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गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

नये उपन्यास- दिसंबर 2021

          Hindi Pulp Fiction के पाठकों को नमस्कार।
नववर्ष -2022 की हार्दिक शुभकामनाएं

सन् 2021 खत्म होने  वाल है और नये वर्ष का आरम्भ। इस अवसर पर सभी पाठक मित्रों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

     बीता हुआ समय अपने साथ बहुत सी खट्टी-मीठी यादें छोड़ जाता है। और हम भी उन यादों के साथ मुस्कुराते हैं तो कभी आँसू बहाते हैं। लेकिन जो बीत गया सो बात गयी। 

     मनुष्य में एक प्रवृत्ति और भी है वह है नववर्ष पर संकल्प की। अक्सर हम संकल्प भी लेते हैं आगामी वर्ष के लिए, यह अलग बात है की अधिकांश मित्रों के संकल्प सिर्फ संकल्प ही रह जाते हैं, दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में पूर्ण नहीं होते।

        आप भी इस वर्ष पर अगर कोई संकल्प ले रहे हैं तो उसे पूर्ण करने की कोशिश कीजिएगा।

    अब कुछ साहित्यिक चर्चा। 

   सन् 2021 जा रहा है और नववर्ष 2022 आ रहा है। साहित्य देश ब्लॉग ने हर बार कुछ नया करने की कोशिश की है। वह चाहे उपन्यास समीक्षा हो, लेखक साक्षात्कार हो, लेखक परिचय हो या कुछ और हमारा प्रयास सतत जारी है। इस वर्ष भी हमारी कोशिश रहेगी की हम ज्यादा से ज्यादा जानकारी पाठकों तक पहुंचा सके।  लेकिन इसके लिए आप पाठक मित्रों का सहयोग आवश्यक है।आज भी बहुत से लेखक और उपन्यास पाठकों की पहुंच से दूर हैं। आप के संयुक्त प्रयास से ही हम समस्त जानकारी को एकत्र कर पायेंगे। आपका एक छोटा सा सहयोग का संकल्प उपन्यास साहित्य में मील का पत्थर हो सकता है। 

आओ मिलकर उपन्यास साहित्य संरक्षण में योगदान दें।

  अब चर्चा सन् 2021 के अंतिम माह में प्रकाशित उपन्यासों की।

1. महल - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
    प्रकाशक- थ्रिल वर्ल्ड

        हाॅरर श्रेणी के उपन्यासों में जो प्रयोगात्मक लेखन चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी ने किया है वह अद्वितीय है। उनके उपन्यासों का पाठकों को इंतजार रहता है। 

   'थ्रिल वर्ल्ड' से चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी का उपन्यास 'महल' प्रकाशित हो रहा है।

2. बवण्डर - सुरेश चौधरी
     प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स

       लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में आज अधिकांश लेखक जासूसी लेखन कर रहे हैं वही सुरेश चौधरी जी सामाजिक उपन्यास की कमी को पूर्ण कर रहे हैं। लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की एक विधा को जीवित रखने का सराहनीय प्रयास है।

बवण्डर - सुरेश चौधरी
प्राप्ति के लिए सम्पर्क- 9412200594

3. जीरो डिग्री- देवेन्द्र पाण्डेय
     प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
       
लेखन के क्षेत्र में अगल पहचान स्थापित करने वाले देवेन्द्र पाण्डेय की रचनाओं का पाठकों को हमेशा इंतजार रहता है। उसी इंतजार को खत्म कर रही है उनकी नयी रचना 'जीरो डीग्री'।
दुर्गम बर्फीली घाटियों में हुयी एक दुर्घटना के दौरान भूस्खलन में दफन हो गए कुछ लोग किसी प्रकार जीवित बच गए, लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हो गया था कि उनके भीतर कुछ बदल चुका है। उनका सामना अपने भीतर छिपे दानव से हुआ और अब उनकी जिंदगी दूसरों के लिए बुरा सपना बन चुकी थी।
बर्फीली घाटियों में क्रूरता का एक ऐसा खेल शुरू हुआ जिसने इंसान और राक्षस की परिभाषा बदल कर रख दी।

प्राप्ति लिंक- जीरो डीग्री - देवेन्द्र पाण्डेय

4.  जुनून- विकास सी. एस. झा
     प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स

शालिनी खेतान का सरेशाम कत्ल उसके ही घर के अंदर हुआ था और जिस पर कातिल होने का शक था वो खुद कत्ल कर दिया गया। तो आखिर कौन था इन दो कत्लों के पीछे ? डबल मर्डर की ये गुत्थी पुलिस के सुलझाए न सुलझ पा रही थी। क्या ये कोई ड्रग एंगल था या फिर कुछ और ही था ? ऐसे में क्या प्राइवेट डिटेक्टिव अश्विन ग्रोवर कामयाब हो पाता है कत्ल की इस गुत्थी को सुलझाने में ? कहीं खुद उसकी क्लाइंट ही तो नहीं इन सब बातों के पीछे ? लालच, महत्वकांक्षा और जुनून की एक ऐसी रहस्यमय गाथा जो आपको रोमांच के समुंदर की गहराइयों तक लेकर जाएगी। डबल मर्डर की इस पूरी दास्तान को जानने के लिए पढ़िए विकास सी एस झा द्वारा लिखित अश्विन ग्रोवर सीरीज का पहला उपन्यास ‘जुनून – ए मर्डर मिस्ट्री’

प्राप्ति लिंक- जुनून- विकास सी. एस. झा


5. दी सुसाइड केस- सुप्रिया प्रवाह
   प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स

   हिमालय यात्रा से आने के सिर्फ तीन दिन बाद ही सुपरस्टार आरव की लाश रेल की पटरी पर मिलती है। आरव की संदेहास्पद मौत की जाँच करते हुए उसकी एक्स गर्लफ्रेंड एसीपी कलसी, उसका दोस्त दीपक व उसका वकील अरुणाचल पहुंचते है । नन्हे लामा और वकील के लापता होते ही एसीपी कलसी के शक की सुई वकील पर अटक जाती है। आखिर क्या है आरव की मौत का राज?
मुंबई से अरुणाचल, नेपाल, तिब्बत, कैलाश और फिर मुंबई से इंदौर, रुड़की तक के इस रोमांचक रहस्यमई यात्रा में मर्डर मिस्ट्री के साथ दोस्ती, प्यार, व्यथा और भावुकता है। यह अद्भुत कहानी है एक मानव जीवन के संघर्ष, उसके जीने की इच्छा और आत्मदर्शन की।
6. गैंग आॅफ फोर- सुरेन्द्र मोहन पाठक
      सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की चर्चा के बिना तो यह स्तम्भ अधूरा है। लोकप्रिय साहित्य में एक सशक्त स्तम्भ हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक।
    पाठक जी का विमल सीरीज का 46 वां उपन्यास है।
प्राप्ति लिंक - Gang OF Four
   


 सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की दो बाल साहित्यिक रचनाएँ लगभग चासीस वर्ष पश्चात साहित्य विमर्श द्वारा पुनः प्रकाशित हो रही हैं।

- कुबड़ी बुढिया की हवेली
- बेताल और शहजादी

मंगलवार, 28 दिसंबर 2021

लव हिट पण्डित

 नाम- लव हिट पण्डित

 उपन्यास साहित्य में केशव पण्डित ने जो नाम कमाया उसका अनुसरण करते हुये बहुसंख्यक केशव पण्डित बाजार में आ गये। ऐसा ही एक नाम है -लव हिट पण्डित।

  हालांकि इस के विषय में कोई ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। एक उपन्यास से संक्षिप्त जानकारी मिलती है।

लव हिट पण्डित के उपन्यास

1. कानून से बड़ा

2. विस्फोट

3. रेप मिस्ट्री

प्रकाशक- पूनम पॉकेट बुक्स, शाहदरा दिल्ली

वितरक- राम पॉकेट बुक्स, दिल्ली

 उक्त समस्त जानकारी का स्त्रोत लव हिट पण्डित का उपन्यास 'कानून से बड़ा' है।

उक्त लेखक के विषय में अगर कोई जानकारी हो तो अवश्य शेयर करें।

Email- sahityadesh@gmail.com


मंगलवार, 21 दिसंबर 2021

जयदेव चावरिया - साक्षात्कार शृंखला-10

साहित्य देश ब्लॉग साक्षात्कार के क्रम में प्रकाशित कर रहा है नवोदित उपन्यासकार जयदेव चावरिया का साक्षात्कार।

  जयदेव चावरिया हरियाणा के रेवाड़ी जिले के निवासी हैं। अपने प्रथम उपन्यास से पूर्व जासूसी कहानियों के माध्यम से पाठकों मे मध्य अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित 'माय फर्स्ट मर्डर केस' लेखक का प्रथम उपन्यास है।
  'प्रथम उपन्यास, प्रथम साक्षात्कार'  साक्षात्कार शृंखला-10

उपन्यासकार जयदेव चावरिया
उपन्यासकार जयदेव चावरिया
1. जयदेव भाई, सर्वप्रथम आपको आपके प्रथम उपन्यास पर हार्दिक शुभकामनाएं। आज आप एक उपन्यासकारों की श्रेणी में पहुँच गये। बहुत से पाठक आपसे परिचित हैं, फिर भी हम एक बार आप विस्तृत परिचय जानना चाहेंगे।

   मैं जयदेव चावरिया में हरियाणा जिला रेवाड़ी का रहने वाला हूँ।  वैसे मेरा असली नाम जितेंद्र हैं पर मेरे दोस्त और मेरे परिवार वाले सभी मुझे जयदेव कहकर पुकारते थे। इसलिए मैंने अपना नाम जितेंद्र से जयदेव कर दिया। चावरिया मेरे पिता जी का गोत्र है। मेरे पिता जी का नाम रामलाल चावरिया है मेरे पिता जी के देहांत हुए करीब 18 साल हो गये। पिता जी रेलवे में काम करते थे।      पिता जी के देहांत के बाद पिता जी की जॉब मेरी माता जी (रेनू देवी जी) को मिल गयी। मेरे परिवार में मेरी बड़ी रजनी, उनसे छोटा भाई महेश, उनसे छोटी बहन पूजा फिर, आखिरी में 

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

जयदेव चावरिया

नाम - जयदेव चावरिया
पिता-  राम लाल
माता-  रेनू देवी
शिक्षा- 12th
सम्पर्क-
जयदेव चावरिया
Mob- -          90347 35152
Facebook id – Author jaidev Chawariya
Email-  jaidev5152@gmail.com
उपन्यासकार जयदेव चावरिया
उपन्यासकार जयदेव चावरिया
उपन्यास सूची
1. माय फर्स्ट मर्डर केस 13.09.2021

http://svnlibrary.blogspot.com/2021/12/482.html?m=1

           

रविवार, 5 दिसंबर 2021

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की -11

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 11

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ऐश ट्रे मेरी पहुँच से दूर थी। वेद भाई जहाँ बैठे थे, उससे कुछ दूर बायीं ओर। 

ऐश ट्रे अपनी ओर खींचने के लिए मुझे कुर्सी से उठकर टेबल पर काफी आगे झुकना पड़ा। फिर मैंने ऐश ट्रे खींच कर, उसके कॉर्नर पर अपनी सिगरेट का टोटा रगड़ कर बुझाया और बुझा हुआ टोटा ऐश ट्रे में डाल दिया। 

फिर ऐश ट्रे पीछे सरकाकर मैं वापस कुर्सी पर बैठ गया। 

       उन दिनों शास्त्रीनगर में तुलसी पेपर बुक्स आरम्भ तो हो चुकी थी, लेकिन काम करने वाले लोग उतने नहीं थे, जितने बाद में धीरे धीरे बढ़ गये थे। फिर भी कुछ तो थे, लेकिन थोड़ी देर बाद मैंने जो देखा, मुझे स्वामीपाड़ा का वेद भाई का वो घर याद आ गया, जहाँ बरसात में कई जगह से टपकती छत के नीचे परछत्ती में, हम दोनों ने साथ मिलकर कुछ पेज लिखे थे और साथ साथ खाना - खाया था। 

और अचानक ही वो दिन क्यों याद आ गया, यह तो मेरी समझ में नहीं आया, पर जब वेद भाई वापस ऑफिस आये तो उनके हाथों में दो शीशे के मग थे और मग में फलों का जूस...। 

बस, उस समय कुछ ऐसा लगा था, जैसे वक़्त अचानक बरसों पीछे चला गया हो। 

एक मग मेरी ओर बढ़ा कर वेद भाई ने कहा - "चाय तो तू पीवैगा नहीं, ले अब सेहत बना।"

"चाय पीने के लिए मैंने कब मना किया।" मैं जूस का मग अपने होंठों की तरफ बढ़ाते हुए बोला -"अभी जूस पीते हैं। थोड़ी देर बाद चाय पियेंगे।"

“चाय क्या, खाना खिलावैंगे यार...। पहले जूस तो पी...।"- वेद भाई ने कहा और मग होंठों से लगा लिया। 

शनिवार, 4 दिसंबर 2021

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 10

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 10
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
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 दिल्ली में जो लोग रहते हैं, कहीं भी घूम फिर आयें, चैन की सांस, मानों दिल्ली में ही मिलती है। 
वैसे तो यह हर शहर में रहने वाले, अपने शहर के लिए महसूस करते हों, पर दिल्ली वालों की बात कुछ और ही है। 
दिल्ली के साथ बहुत सी बातें जुड़ जाती हैं। जैसे - 
दिल्ली है दिल वालों की। 
अब दिल्ली दूर नहीं। 
दिल्ली दिल है हिन्दुस्तान का। 
और
        दिल बड़ा है दिल्ली का, किसी भी गाँव, शहर, प्रान्त, देश का व्यक्ति दिल्ली आता है तो दिल्ली का होकर रह जाता है। 
बहुत से आक्रांता आये दिल्ली और बार-बार आये। कुछ दिल्ली को लूटकर चले गये तो कुछ यहीं के हो गये। 
हम जब कलकत्ता (आज का कोलकाता) रहते थे, दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर कलकत्ता ही लगता था। वहाँ बोटानिकल गार्डेन के विशाल बरगद की छांव में हवाओं के झोंके मन प्रसन्न कर देते थे तो धर्मतल्ला और उसके आस-पास फुटबॉल क्लबों के मैदान एक जुनून सा पैदा कर देते थे और दक्षिणेश्वर, ताड़केश्वर, काली मंदिर, हुगली नदी, डायमंड हार्बर तथा कलकत्ते का कोना-कोना दिल से नहीं, रोम-रोम से जुड़ा लगता था और हम कलकत्ते से बाहर के अपने रिश्तेदारों को 'कलकत्ते' के बारे में यह सब बताते हुए बड़ा गर्व महसूस करते थे कि कलकत्ते में 'कलकत्ता' नाम का तो कोई रेलवे स्टेशन ही नहीं है। एक रेलवे स्टेशन है 'हावड़ा' और दूसरा रेलवे स्टेशन है -'सियालदह' और हवाई अड्डा है - 'दमदम।

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

29 दिसम्बर की रात - विक्की आनंद, उपन्यास अंश

 अब उसके लिये कत्ल करना बहुत जरूरी हो गया था...इस ताबड़तोड़ भयानक घटनाचक्र में यही एकमात्र उसके बचाव का मार्ग रह गया था।

      अपने अँधेरे कमरे में वह बड़ी देर से इन्हीं विचारों के बवंडर में इधर-उधर घूमे जा रहा था। अपने तीव्र मानसिक तनाव में वह कमरे की बत्ती जलाना भी भूल गया था। एकाकीपन तथा घना अँधेरा मन को और भी विचलित कर देता है।

          तनाव में इधर से उधर और उधर से इधर चलते हुये वह सिगरेट पर सिगरेट फूँके जा रहा था। उसके  मस्तिष्क में सुधा के वाक्य गूँज-गूँज कर प्रलय मचा रहे थे। 

29 दिसम्बर की रात - विक्की आनंद
29 दिसम्बर की रात - विक्की आनंद

“केवल चौबीस घण्टे...इससे अधिक समय मैं तुम्हें नहीं दे सकती।”

“मेरे पेट में पनप रहा तुम्हारा बच्चा- अब मुझे कुलबुलाता अनुभव हो रहा है।”

उसने सुधा से आँख न मिलाते हुये कहा- 

शनिवार, 27 नवंबर 2021

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 9

 यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 09

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मेरा स्टैण्ड अब भी वही है, जो पहले था।” वेद भाई ने कहा - “मैं अब भी ट्रेडमार्क के सख्त खिलाफ हूँ, मगर ऐसा कोई लेखक नज़र तो आवै, जिसे पढ़ते ही लगे कि बस, इसे चांस मिलना जरूरी है। यह जरूर तहलका मचायेगा।”

यार, किसी को चांस मिलेगा, तभी न वह तहलका मचायेगा।” - मैंने कहा। 

तो ठीक है, मैं तुझे दे रहा हूँ चांस। बोल - लिखेगा?”

मेरी बात और है।” मैंने कहा - “मैं बहुत ज्यादा सेक्रीफाइस करने की स्थिति में नहीं हूँ।”

सेक्रीफाइस किस बात का... कौन सेक्रीफाइस करने के लिए कह रहा है?”  वेद ने कहा - “तू बता, क्या लेगा - एक उपन्यास के?”

कम से कम एक हज़ार तो मिलना ही चाहिए...।” मैंने झिझकते-झिझकते कहा। 

मैं दो हज़ार दूंगा...। बोल, कब दे रहा है उपन्यास...?”

मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम। वेद से ऐसी किसी बात की मैंने कल्पना तक नहीं की थी। 

चुप क्यों है...। बता कब दे रहा है उपन्यास...। मुझे हर महीने एक चाहिए...। और तेरी पहली किताब तब छापूंगा, जब तेरे तीन उपन्यास मेरे पास हो जायेंगे।”

            “फिर तो अभी काफी लम्बा इन्तजार करना पड़ेगा।” मैं गम्भीर होकर बोला-”आज तो मैं दिल्ली जाने की सोच रहा हूँ। खेल-खिलाड़ी का काम लटका होगा, जाते ही कम्पलीट करना होगा और कुछ और प्रकाशक भी अपनी पत्रिकाओं का काम मुझसे ही करवाते हैं।”

ठीक है। यह फैसला तो तूने करना है कि कब किसका क्या काम करना है। पर याद रहे, मैं तुझे चांस दे रहा हूँ, पर यह चांस हरएक को नहीं दे सकता।”

क्यों भला...?” मैंने पूछा।  

देख योगेश, लिखने वाले बहुत हैं, पर लिख क्या रहे हैं, यह जानने से पहले यह समझ कि लिख कैसे रहे हैं।”

कैसे लिख रहे हैं..?” मैंने पूछा। 

रविवार, 21 नवंबर 2021

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 08

 कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी के साथ की - 8

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रॉयल पाकेट बुक्स की बाहरी बैठक को अपना ठिकाना बनाने के बाद मुझे सबसे पहले उन्हीं का काम पूरा करना चाहिए था, पर उन्होंने काम पूरा करने के लिए एक हफ्ते का वक़्त दिया था, इसलिये मैं निश्चिन्त तो था, पर दिमाग में यही था कि सबसे पहले अपने लैण्डलॉर्ड का काम ही पूरा किया जाये, लेकिन सुबह दस बजे के करीब गंगा पॉकेट बुक्स के स्वामी सुशील जैन मेरे कमरे पर आ पहुँचे।   


मैंने रायल पाकेट बुक्स की उन किताबों में से एक किताब सामने रखी हुई थी और उसे पढ़ रहा था, कहानी बढ़ाने का काम बिना पढ़े तो हो ही नहीं सकता था। हालांकि मुझे दो बार ऐसा दुर्लभ कार्य भी करना पड़ा था, जब विमल पॉकेट बुक्स, में प्रकाशित होने वाले उपन्यास `कलंकिनी` के अन्तिम सोलह पेज कहानी पढ़े बिना ही लिखने पड़े थे और एक बार हरीश पॉकेट बुक्स (राज पॉकेट बुक्स की एक अन्य संस्था) में प्रकाशित हो रहे एस. सी. बेदी के एक उपन्यास का अन्त उपन्यास पढ़े बिना लिखना पड़ा था। पर वो किस्सा फिर कभी...। 

मेरठ के प्रकाशकों में तो लक्ष्मी पॉकेट बुक्स के स्वामी सतीश जैन उर्फ मामा ने मैटर बढ़ाने-घटाने में मुझे Best होने तक का तमगा दे दिया था और उन्हीं की यह कारस्तानी या करिश्मा था कि ईश्वरपुरी के प्रकाशकों में भी मेरी चर्चा फैल गई थी। 

फिर मेरे बारे में एक यह बात भी सतीश जैन ने फैला दी थी कि योगेश मित्तल से तो जो चाहे काम करवा लो, न पैसे के लिए हुज्जत करता है, ना ही मना करता है और यह मशहूरी गंगा पॉकेट बुक्स के स्वामी सुशील जैन तक भी पहुँच चुकी थी। 

रॉयल पाकेट बुक्स का किरायेदार होने के सबसे पहले ही दिन सुबह सुबह सुशील जैन मेरे कमरे पर आ पहुँचे, तब तक मैंने किसी भी प्रकाशक को अपने वहाँ रहने के बारे में बताया तक नहीं था, इसलिये सुशील जैन को देख, एकदम हक्का-बक्का हो उठा। 

“आप यहाँ कैसे....? यहाँ के बारे में तो मैंने अभी किसी से कोई चर्चा भी नहीं की।" -मैंने अचरज से कहा तो बड़ी मीठी मुस्कान छिड़कते हुए सुशील जैन बोले - "दिल्ली का कोई लेखक मेरठ में हो और हमें पता न चले, यह तो हो ही नहीं सकता। हमारे जासूस कदम-कदम पर फैले हुए हैं। फिर यह तो ईश्वरपुरी से ईश्वरपुरी का मामला है। हमारी नाक के नीचे रहकर भी तू हमारी नज़रों से छिप जायेगा, ऐसा तो तुझे सोचना भी नहीं चाहिए।" 

अपनी बात कहते-कहते सुशील जैन मेरे पलंग पर मेरे करीब बैठ गये। 

शनिवार, 20 नवंबर 2021

कैसे बना मैं उपन्यासकार- तरुण इंजिनियर

 'मैं उपन्यासकार कैसे बना' शृंखला के इस अंक में आप पढेंगे उपन्यासकार तरुण इंजिनियर के उपन्यासकार जीवन के आरम्भिक अंश कैसे बन उपन्यासकार बने।

कैसे बना मैं उपन्यासकार

दोस्तो,

मैं आपको बता दू कि मेरा जन्म बिजनौर के एक छोटे से कस्बे किरतपुर के रस्तोगी परिवार में सन् 1960 में हुआ था,मेरा पूरा नाम तरुण कुमार रस्तोगी है

बचपन से ही मैं नटखट व लेखक प्रवृत्ति क रहा हूँ। जिसकी वजह से मेरे पिता श्री रामनाथ रस्तोगी ने मुझे घर से दूर, नैनीताल पढने के भेज दिया था। उनका मानना था कि घर से दूर रहकर शायद मेरे जहन से लेखक रूपी कीड़ा एकदम‌ मर जायेगा, पर ऐसा हुआ नहीं।

      नैनिताल की वादियों में पहुंचकर, मेरे दिमाग ने शब्दरूपी झील में, कलम की परवार चलानी फिर शुरु कर दी क्योंकि नैनिताल का वातावरण ही कुछ ऐसा है, यहां की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर ना कुछ लिखने वाला भी लिखना शुरु कर देता है।

      यही मेरे साथ हुआ। पढाई के साथ-साथ मेरी लघु कहानियाँ, कवितायें व गजलें देश की नामी-गिरामी पत्रिकाओं 'साप्ताहिक हिंदुस्तान', 'कादम्बिनी' व 'नंदन' में प्रकाशित होने लगी। प्रशंसकों के पत्र  आते रहे। मैं एक के बाद एक कहानियाँ लिखता गया। कुछ हास्य लेख मेरे 'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स' व 'पंजाब केसरी' में भी छपे। दिन कटते रहे...साल कटते रहे, अचानक एक दिन मेरी मुलाकात हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार रानू से हो गयी। जो उस समय नैनिताल की एक सत्य घटना पर आधारित 'पूजा' उपन्यास लिखने के लिये आये हुये थे। मेरी उनसे मुलाकातें होती रही, फिर मुलाकातें दोस्ती में बदल गयी और कुछ ही दिनों में रानू जी मेरे अच्छे दोस्तों में से एक बन गये। जितना मैं उनके सम्पर्क में आता गया,‌ मेरे अंदर भी उपन्यासकार बनने की ललक जागने लगी। मैं उनके साथ बैठकर छोटे-छोटे शाॅट लिखने लगा। उन्हें पसंद आये और उन्होंने मेरी प्रशंसा की, मेरा हौसला बढ  गया। 

गुरुवार, 11 नवंबर 2021

प्रायश्चित - रानू, उन्यास समीक्षा

रानू – प्रायश्चित- 1977

सन् 1970 व 1980 ईं के दशक के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार रानू की प्रसिद्धि इतनी ज्यादा थी कि इस समय उनके नाम से कई जाली उपन्यास भी हाथोहाथ बिक जाते थे। उनकी पत्नी सरला रानू भी उन्यासकार थी। पति-पत्नी दोनों एलीगन रोड़ इलाहाबाद में रहते थे। उनकी पत्नी को भी उनकी प्रसिद्धि का भरपूर लाभ मिला। 

प्राश्चित उपन्यास का पहला संस्करण 1977ई. में हिंद पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित हुआ था।

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

डायमंड क्वीन- एस.सी. बेदी, हास्यरस

नमस्ते पाठक मित्रो,
   साहित्य देश ब्लॉग के स्तम्भ हास्यरस में आज आपके लिये प्रस्तुत है एक नया आनंददायक किस्सा।
  आपने बहुत से उपन्यासों में हास्य-व्यंग्य पढे होंगे, विशेषकर जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी और टाइगर (जे.के. वर्मा) के उपन्यासों में। इस शृंखला की प्रथम अंक में आपने कुशवाहा कांत जी के `उड़ते-उड़ते` हास्य संग्रह से  जनसेविका पुलिस- कुशवाहा कांतनामक हास्यरस पढा, इस शृंखला को आगे बढाते हुये हम आज यहां एस.सी. बेदी जी के उपन्यास `डायमंड क्वीन` का एक हास्य अंश प्रस्तुत कर रहे हैं।

     विमान जब उड़ कर ब्रिटेन की सीमा पार करके बाहर आ गया तो भगत ने निकट से गुजरती परिचारिका को बुलाया-
“मिस लैला।”
उसने चौंक कर भगत की तरफ देखा-“आपने मुझे पुकारा?”
“इस विमान में और लैला कौन हो सकती है?”
“लेकिन मेरा नाम लिली है।”
“लैला हो या लिली, नाम की ऐसी की तैसी, वैसे तुम हो खूबसूरत।”
“आप क्या लेना पसंद करेंगे?”
“तुम दे नहीं सकोगी।”
“आपकी हर इच्छा को पूरा करना मेरा फर्ज है।”
“तो जल्दी से एक गर्मा गर्म चुम्बन दे दो।”
“लेकिन चुम्बन जैसी कोई वस्तु विमान में मौजूद नहीं।”
“तुम्हारे पास होंठ मौजूद हैं मिस लैला।”
“ओह...अभी आती हूँ।”
थोड़ी देर बाद वह भगत के निकट आकर खड़ी हो गयी। उसके होंठों पर मुस्कान थी।
“यानि फंसी।”- भगत बुदबुदाया।
“मैं आपकी बगल में बैठ सकती हूँ।”
भगत एक तरफ को सरक गया और होंठों को जीभ फेर कर चुम्बन के लिये तैयार करने लगा।
सीट पर बैठ कर उसने नकली रबड़ के होंठ भगत को थमा दिये।
“इन्हें जब तक चाहें आप चूम सकते हैं।”- कहने के साथ ही वह हंसती हुयी उठी और आगे बढ गयी।
………………………………..
इसी उपन्यास का एक ओर दृश्य देखें
  “इंजन में खराबी आ गयी है। तुमने कई विमान दुर्घटनाओं के बारे में सुना होगा, आज देख लो विमान दुर्घटना में आदमी जब आसमान से धरती पर गिरता है तो उसके  किस प्रकार चिथड़े उड़ते हैं।”
“मिस्टर भगत।”- लिली बोली,-“आप समझदार आदमी हैं, यात्रियों को इस तरह मत डराइये”
“तो किस तरह डराऊ?”
 
उपन्यास – डायमंड क्वीन
लेखक –  एस. सी बेदी
प्रकाशक- यंग लेडी प्रकाशन, मेरठ

अन्य महत्वपूर्ण लिंक
उपन्यास समीक्षा- डायमंड क्वीन
जनसेविका पुलिस- कुशवाहा कांत


रविवार, 17 अक्तूबर 2021

साधना प्रतापी

 नाम- साधना प्रतापी

साधना प्रतापी के उपन्यास
1. खोटा सिक्का
2. देवताओं की धरती
3. एक थी देवी
4. अभिनेत्री
5. पुजारी
6. बदनाम फरिश्ता
7. दिल की किताब कोरी है।
अन्य लिंक
योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से 
साधना प्रतापी






गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की पुण्यतिथि पर

 जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी 14.10.1998 को इस नश्वर संसार को अलविदा कह गये। उनका भौतिक अस्तित्व चाहे न रहा पर अपने उपन्यासों और यादगार पात्रों से वे साहित्य संसार में अमर हो गये।
    जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की पुण्यतिथि पर युवा लेखक अजिंक्य शर्मा जी श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हें इस आर्टिकल के माध्यम से याद कर रहे हैं। 
        उपन्यास जगत में जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। वे सर्वश्रेष्ठ उपन्यासकारों में से एक थे। उन्होंने हिंदी उपन्यास जगत में ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जो शायद ही कोई और कर सका हो। उनकी अदभुत लेखनी के दीवानों की संख्या करोड़ों में है। लोग बुकस्टालों पर उनका नाम ले-लेकर पूछा करते थे कि शर्मा जी कि नई किताब आई क्या?
आखिर उनकी रचनाओं में ऐसा क्या था? 

बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

वेदप्रकाश गुप्ता

 नाम- वेदप्रकाश गुप्ता

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य (Hindi Pulp Fiction) एक ऐसा अथाह सागर जहां गहरे पानी में आप डुबकी लगाओगे तो वहां से एक नहीं अनेक मोती मिलेंगे। हां, कुछ मोती प्राकृतिक हैं तो कुछ कृत्रिम भी हैं। प्राकृतिक और कृत्रिम में पहचान करना भी सरल कार्य नहीं है।
     उपन्यास साहित्य के इस अथाह सागर में 'वेद' नामक मोती ऐसा है, जिसके नाम से मिलते -जुलते और बहुत से मोती इस सागर में मिलते हैं। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार आदरणीय वेदप्रकाश काम्बोज, वेदप्रकाश शर्मा और वेदप्रकाश वर्मा ही वह असली लेखक हैं‌ जिन्होंने वास्तविक लेखन किया और अपने नाम तथा तस्वीर के साथ प्रकाशित हुये। इसके अतिरिक्त और भी बहुत 'वेदप्रकाश' इस क्षेत्र में सक्रिय रहे, कौन वास्तविक था और कौन Ghost Writer यह कहना कुछ मुश्किल सा है।
    इसी क्रम में एक और 'वेद' का पता चला है और वह वेद हैं - वेदप्रकाश गुप्ता।
  वेदप्रकाश गुप्ता जी के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती। उनके एक उपन्यास से यह जानकारी प्राप्त हुयी है, जो दिल्ली के 'पूनम पॉकेट बुक्स- दिल्ली' से प्रकाश्य है।
     वेदप्रकाश गुप्ता के उपन्यास
1. क्रांति की ज्वाला 


कुछ वेद निम्नलिखित हैं 
1. वेदप्रकाश
2. वेदप्रकाश काम्बोज
3. वेदप्रकाश शर्मा
4. वेदप्रकाश वर्मा
5. वेदप्रताप शर्मा
6. वेदप्रकाश गुप्ता

शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की-07

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की-07
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लक्ष्मी पाकेट बुक्स की किताबों की कम्पोजिंग और प्रिन्टिंग करने वाले एक शख्स का मकान और कम्पोजिंग एजेन्सी और प्रिन्टिंग प्रेस बाहरी मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में थी! 
अचानक ही एक दिन मेरे दिल में आया कि जब मैं लगातार मेरठ में ही रह रहा हूँ तो मुझे वहीं कहीं एक कमरा ले लेना चाहिए! 
लक्ष्मी पाकेट बुक्स के उन दिनों के स्वामी सतीश जैन उर्फ मामा से मैंने इस बात का जिक्र किया! उस समय वह कंकरखेड़ा वाले प्रेस वाले वहीं थे! ( उनका नाम आज याद नहीं है! सहूलियत के लिए हम 'राजनाथ जी' कहेंगे!) 

बातचीत में शामिल होते हुए उन्होंने पूछा - "शहर से थोड़ा दूर...चल जायेगा?"
"चल जायेगा!" मैंने बिना सोचे समझे कह दिया! 
उनके पास एक मोपेड थी! वह उसी समय मुझे मोपेड पर बैठा कर कंकरखेड़ा ले गये! 
उन्हीं के मकान में एक कमरा था, जिसका एक दरवाजा बाहरी गली और एक मकान के अन्दर पड़ता था! 
लेट्रीन-बाथरूम सभी किरायेदारों के लिए एक ही था और पानी के लिए एक हैण्डपम्प था, जो मकान के अन्दर मेरे कमरे के बिल्कुल निकट ही था! 
जब मैंने कमरा देखा तो खास बात मैंने यही देखी थी कि उसका एक द्वार बाहर की गली में था, जिससे मुझे 'टैम-बेटैम' घर आने में भी कोई परेशानी नहीं होनी थी! 
बाहर से ताला, फिर दरवाजा खोला और अपने घर के अन्दर! 
मैंने कमरा किराए पर ले लिया! 
उन दिनों मैं कुछ नये प्रकाशकों के लिए विक्रांत सीरीज़ के उपन्यास लिख रहा था! 
उन दिनों बहुत से ऐसे प्रकाशकों के लिए भी लिखा, जिनसे दिली जुड़ाव कभी भी कुछ ज्यादा नहीं रहा! 
उनमें से ज्यादातर ऐसे प्रकाशन थे, जो जब शुरू हुए, तभी हम जैसे सभी लेखकों को यह पता चल गया था कि यह गाड़ी ज्यादा चलने वाली नहीं है, इसके कई कारण थे! वे सिर्फ नकली ओम प्रकाश शर्मा और वेद प्रकाश काम्बोज और एच. इकबाल छापकर नोट छापना चाहते थे!
किसी अच्छे लेखक को उसके नाम से छापने में, उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। 

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की-06

कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी के साथ की - 06
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उन दिनों मेरठ में ही रहवास होने के कारण फंक्शन वाले दिन मैं अकेला ही पहुँचा था।
मैं अन्य मेहमानों से कुछ ज्यादा ही जल्दी आ गया था, किन्तु यार के घर पहुँच कर भी बेकार था, क्योंकि एक तो कोई पहचाना चेहरा तो क्या कोई भी चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था।
और दूसरे जिसने बुलाया था, उसकी शक्ल भी दूर तक कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, बल्कि उसे बुलाने - पुकारने का भी कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। मैंने दो-तीन बार 'वेद जी, वेद भाई' कहकर पुकारा भी, पर मेरी आवाज पर सिर्फ हल्की सी गुर्राहट ही सुनाई दी। 
उस समय कोई वाचमैन - दरबान भी कहीं नहीं दिख रहा था। तब कोठी में कालबेल जैसी भी कोई चीज़ नहीं थी। 
समस्या यह भी थी कि उस समय मुझे घर में प्रवेश का कोई अन्य रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था। रास्ता सिर्फ दायीं ओर का वह शीशे का द्वार था, जिसके पीछे एक डार्क कलर का एक बड़ा सा कुत्ता था। वह कुत्ता मुझे उस समय शेर दिखाई पड़ रहा था।
वह मुझे देख कर भौंक तो ज्यादा नहीं रहा था, पर घूर रहा था और गुर्रा रहा था, पर राहत की बात यही थी कि उस समय उसके और मेरे बीच शीशे का बन्द दरवाजा था। 

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

हिंदी साहित्य और जासूसी उपन्यास – गोविंद सिंह

 हिंदी साहित्य और जासूसी उपन्यास – गोविंद सिंह

 हिंदी में जासूसी साहित्य को वह प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है, जो पाश्चात्य जगत में इस प्रकार के साहित्य को प्राप्त है। हिंदी में अब तक एक लाख से अधिक प्रकार के जासूसी उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं, पर इसके बावजूद हिंदी साहित्य के इतिहास में कोई उनका नाम लेवा नहीं है।....आखिर इसका कारण क्या है? 

हिंदी साहित्य और जासूसी उपन्यास – गोविंद सिंह
        संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है,  जिसने अपने बचपन में किस्से-कहानियां न सुनी हो। जन्म से ही मानव- स्वभाव कथा प्रिय है। रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण किस्से उसे अच्छे लगते हैं। एक जमाना था, जब गाँव की चौपाल में एकत्रित जनसमूह को किस्सागो कहानियां सुनाया करते थे। वह लोगों का मनोरंजन करने के साथ अपनी जीविका का भी उपार्जन करते थे। राजाओं, महाराजाओं, नवाबों ने भी अपने दरबार में किस्सा सुनाने वालों को रख छोड़ा था। ऐसे ही किस्सागो लोगों के द्वारा  सुनाये गये किस्से आज भी  'अलिफ लैला, चहारदरवेश, हातिमताई, छबीली भटियारिन, बुलाकी नाई और गंगाराम पटेल' आदि के रूप में हमारे लोक साहित्य में उपलब्ध हैं। प्राचीन काल में मनोंरजन के साथ-साथ शिक्षाप्रद किस्से भी बनाये गये।  इनमें 'पंचतंत्र,हितोपदेश' आदि प्रमुख हैं। उन दिनों कई-कई दिनों तक चलने वाले किस्से भी सुनाये जाते थे। 'सहस्त्र रजनी चरित' एक हजार रातों के किस्सों का संग्रह है। 

सोमवार, 13 सितंबर 2021

कुमार प्रिय

चर्चा - उपन्यासकार कुमार प्रिय

कुमारप्रिय उर्फ कैलाश श्रीवास्तव, कुणाल श्रीवास्तव एवं सुशील कुमार श्रीवास्तव : तीन भाई, तीनों साहित्यकार।

 अर्से से मेरी कुमारप्रिय से  मुलाकात नहीं हुई है। मिलना चाहता हूँ। आखिरी बार हम लक्ष्मी नगर के एक मकान में मिले थे।

उसी मकान में किसी समय मोहन पाकेट बुक्स के मालिक - अपना मकान खरीदने से पहले किरायदार थे।

उनके बाद लक्ष्मी नगर, (जमुना पार - दिल्ली)  का वही मकान कुमारप्रिय ने किराये पर लिया था, तब वह एक शिष्ट, सुशील महिला से विवाह भी कर चुके थे, लेकिन विवाह के कई वर्ष बाद भी उनके कोई सन्तान नहीं थी और उन दिनों उनकी धर्मपत्नी बहुत ज्यादा अस्वस्थ चल रहीं थीं। दवाओं और घर के खर्च उठाने में कुमारप्रिय पूरी तरह सफल नहीं हो रहे थे। पड़ोसी दुकानदारों से उधारी चलती रहती थी, इसलिये किसी काम में रुकावट नहीं आती थी, जिसका एक कारण यह भी था कि आसपास के लोग उनका बहुत ज्यादा आदर करते थे।

     तब उनका उपन्यास लिखना बहुत कम हो गया था, पर रंगभूमि कार्यालय से निकलने वाली सभी पत्रिकाओं के लिए लिखना, प्रूफरीडिंग, सम्पादन करते रहे थे। 

उन दिनों कुमारप्रिय  उर्फ कैलाश श्रीवास्तव से बड़े और मंझले भाई कुणाल श्रीवास्तव कुसुम प्रकाशन (इलाहाबाद) से निकलने वाली सत्य कथाओं की पत्रिकाओं का सम्पादन करने लगे थे। 

सबसे बड़े भाई सुशील कुमार श्रीवास्तव ( जो अपना नाम सिर्फ 'सुशील कुमार' ही लिखते थे )  फ्रीलांसिंग करते थे और विभिन्न बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में छपते थे तथा प्रूफरीडिंग, एडीडिंग आदि काम भी एक निश्चित रकम  पारिश्रमिक के रूप में लेकर किया करते थे। 

    लक्ष्मी नगर में एक मुलाकात के दौरान कुमारप्रिय ने कुछ निराशा जताते हुए कहा था - "योगेश जी, अब हम में और आप में कोई फर्क नहीं रह गया। (कुमारप्रिय का मतलब मेरे द्वारा दूसरे नामों और दूसरों के लिये उपन्यास लिखने से था।) 

     मगर उस समय भी एक विश्वास था उनमें कि जल्दी ही जब स्थिति ठीक हो जायेगी - बम्बई जाकर फिल्मों के लिये लिखेंगे। नहीं मालूम, उनकी यह तमन्ना पूरी हुई या नहीं। पर एक समय रंगभूमि प्रकाशन से छपवाये गये अपने पहले उपन्यास 'गुड़िया' से सारे भारत में धूम मचाने वाले तब के युवा लेखक का अचानक ही रूहपोश हो जाना अचरज और किस्मत के रंग व ठोकरों का विषय है। 

    मुझसे मिलने के बाद -  मुझे हमेशा कुमारप्रिय अपने समय में  सर्वाधिक उर्जा वाले जोशीले लेखक लगे थे, जो सदैव ही पोजिटिव सोच रखते थे। यही पोजिटिव सोच मुझ में भी कूट-कूट कर है, पर कुमारप्रिय की वजह से नहीं, अन्य कारणों से, बल्कि मुझे लगता है - कुमारप्रिय की पोजिटिव सोच का मैं ही जन्मदाता था। मुझसे दूरी होने पर, वह फिर से निराशावादी हो गये और संघर्ष में हार गये।

    आज भी मैं उनके बारे में जानना चाहता हूँ कि कुमारप्रिय कहाँ हैं, कैसे हैं? 

कुमारप्रिय ने भी पैसों की सख्त जरूरत होने पर एक वैसा ही काम किया था, जिसकी शुरुआत पाकेट बुक्स लाइन में बिमल चटर्जी ने की थी! कुमारप्रिय ने एक निश्चित एमाउंट लेकर जनता पाकेट बुक्स के स्वामी श्री जगदीश गुप्ता जी को अपने बहुत से नामों के कापीराइट दे दिये थे, पर खुद नहीं लिखे थे - कुमारप्रिय के नाम से जनता पाकेट बुक्स द्वारा छापे गये उपन्यास 'सौगात', 'बेवफा',  'गौरी' आदि मेरे द्वारा लिखे गये थे।

@योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से

बुधवार, 8 सितंबर 2021

नये उपन्यास-2021

कुछ नये और रिप्रिंट उपन्यासों की सूचना

साहित्य देश के समस्त पाठकों को नमस्कार।
एक बार हम पुनः उपस्थित हैं, आपके लिए कुछ उपन्यासों की सूचना लेकर।
1. माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया

    प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
    मूल्य -220, 160₹

यह एक जासूसी उपन्यास है। इसी उपन्यास के साथ उपन्यास साहित्य में एक लेखक का पदार्पण हो रहा है।
   जयदेव चावरिया इस से पूर्व कुछ सोशल साइटों पर लिखते रहें है, पर उपन्यास के रूप में यह उनका प्रथम‌ प्रयास है।


जूलरी शॉप के मालिक अशोक नंदा को एक रात किसी ने वक़्त से पहले परलोक पहुंचा दिया। पुलिस को पक्का शक था कि खून उसके दोनों बेटो में से किसी एक ने ही किया है । फिर कहानी में दखल होता है ऐसे जासूस का जिसका अशोक नंदा मर्डर केस पहला मर्डर केस था। जिसने जासूस को यह केस सौंपा उसे खुद यकीन नहीं था कि वह यह केस हल कर पायेगा।

अशोक नंदा का खून किसने किया ? क्या पुलिस कातिल को पकड़ पाई ? क्या जासूस अपना पहला मर्डर केस हल कर सका ? या यह केस उसका आखिरी केस साबित हुआ ?
एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री जिसमें आप उलझकर रह जायेंगे।

 Order Link- माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया


2. कंकाल टाइगर- परशुराम शर्मा
    प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
     श्रेणी- हाॅरर
     मूल्य- 350,  270₹
       परशुराम शर्मा जी का यह नवीनतम हाॅरर उपन्यास है।

तीसरे विश्वयुद्ध में दो सेनायें आमने-सामने हैं।

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

निर्मल

नाम- निर्मल

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य एक ऐसा समुद्र है, जिसमें जितना डूबते जाओ उतने ही मोती मिलते जाते हैं। ऐसा ही एक और मोती मिला है नाम है- निर्मल।

   अब उपन्यासकार निर्मल के विषय में कोई ज्यादा जानकारी तो खैर उपलब्ध नहीं हो सकी। जो जानकारी प्राप्त हुयी है उसका स्त्रोत एक उपन्यास है- घूंघट और घुंघरू। यह उपन्यास 'पंकज पॉकेट बुक्स-मेरठ' से प्रकाशित है।

आबिद रिजवी जी और रवि पॉकेट बुक्स मनेष जैन जी से प्राप्त जानकारी अनुसार- निर्मल गौरी पॉकेट बुक्स वालों के छोटे भाई थे;  मूल नाम था निर्मल जैन। निर्मल नाम से कुछ उपन्यास प्रकाशित हुए थे। नॉवल किसने लिखे, यह जानकारी गोपनीय रही क्योंकि न प्रकाशन ज़्यादा दिन चल सका न लेखक का नाम ही।

निर्मल के उपन्यास

1. घूंघट और घुंघरू

सोमवार, 6 सितंबर 2021

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा- 10

 मैं आवार, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा- 10

अशोक कुमार शर्मा जी की आत्मकथा `मैं आवारा, इक बनजारा` का दसवां और अतिंम अंक।

जब हम `राधा पॉकेट बुक्स` पहुंचे, तो हमारी मुलाकात शायद उस पॉकेट बुक्स के मालिक मनेष जैन जी के छोटे भाई से हुई थी, जिनका कि नाम मैं नहीं जानता।

क्योंकि उनका नाम पूछने कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई थी।

वहां मशहूर उपन्यासकार और मेरे बचपन के हीरो श्री परशुराम जी शर्मा पहले से ही मौजूद थे, जो उस वक्त मनेष जैन के छोटे भाई से `बालाजी स्टूडियो` की मालकिन और मशहूर हीरो रह चुके जितेंद्र की सुपुत्री एकता कपूर के सीरियलों की बात कर रहे थे । 

उनकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा कि किसी न किसी रूप में  परशुराम जी शर्मा का फिल्मी लाइन में भी दखल है। वैसे वह उन दिनों तुलसी पॉकेट बुक्स से निकलने वाली पत्रिका तुलसी कहानियों के संपादक थे। मैंने बतौर संपादक उनका नाम तुलसी कहानियों में पढ़ा था। उनकी बातों से मुझे आगे जाकर यह भी पता चला कि प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यासकार श्री प्रेम बाजपेई का निधन कुछ दिनों पहले हो चुका है और उनके सुपुत्र फिल्म लाइन में जाने का इरादा रखते हैं। 

प्रेम बाजपेई के निधन की खबर सुनकर मुझे बहुत गहरा धक्का लगा, क्योंकि मैं उस महान हस्ती का भी नियमित पाठक था और उनके उपन्यास मुझे बहुत ही अच्छे लगते थे।

पर उस दुख के साथ - साथ खुशी इस बात की थी कि अपने चहेते और लोकप्रिय लेखक श्री परशुराम जी शर्मा को, जिनकी अब तक मैंने सिर्फ उपन्यासों पर छपी हुई फोटो ही देखी थी, आज साक्षात देख भी लिया।

मैंने ये कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि अचानक उनसे यूं मुलाकात हो जाएगी।

उनका पहनावा बहुत ही शानदार था और वे सचमुच किसी फिल्म के हीरो जैसे लग रहे थे।

मैंने मनेष जैन जी के छोटे भाई  को एक ही सांस में अपना परिचय देते हुए बताया कि मेरा नाम अशोक कुमार शर्मा है और मैं अपना उपन्यास अपने नाम और फोटो के साथ आपकी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित करवाना चाहता हूँ।

उन्होंने गौर से मेरी और देखा और फिर गम्भीरता से पूछा कि -पहले कभी कहीं से छपे हो ?

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा -09

मैं आवारा, एक बंजारा- अशोक कुमार शर्मा
        आत्मकथा, भाग-09   
       
बाद में मैंने मशहूर लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक जी की विमल  सीरीज स्टाइल में एक उपन्यास और लिख डाला, जिसका कि शीर्षक था - 36 करोड़ का हार
यह उपन्यास मेरे पाठकों को बहुत ही ज्यादा पसंद आया और इसी उपन्यास से मेरे उपन्यासों के मुख्य किरदार 'सरदार जगतार सिंह जग्गा' का जन्म हुआ, जिनका कि नाम आगे जाकर काफी मशहूर हुआ। 
       इसका सबूत मेरे पास देश के हर कोने से आए वे हजारों खत है, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित मौजूद है।
यह उपन्यास मेरे नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हुआ था और इस उपन्यास के प्रकाशन की दास्तान कुछ यूं है दोस्तों कि इस उपन्यास को लिखने के बाद मैं एक बार फिर दिल्ली और मेरठ के कई प्रकाशको के दफ्तरों में गया, पर इस बार मैं राजा पॉकेट बुक्स के मालिक श्री राजकुमार जी गुप्ता से नहीं मिला, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मैं उनके रौब और प्रभाव में आकर पहले की तरह ही इस उपन्यास को भी उनके ट्रेडमार्क के तहत प्रकाशित करने की इजाजत नहीं दे दूं ।
       दिल्ली के प्रकाशकों ने एक बार फिर मुझे घास नहीं डाली और यही हाल मेरा मेरठ जाकर भी हुआ।
मैं 'तुलसी पॉकेट बुक्स' जाकर  श्री वेद प्रकाश जी शर्मा और ऋतुराज जी उर्फ सुरेश जैन जी से भी मिला, पर उन्होंने भी मुझे कोई खास तवज्जो नहीं दी। 

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मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...