लेबल

सोमवार, 13 सितंबर 2021

कुमार प्रिय

चर्चा - उपन्यासकार कुमार प्रिय

कुमारप्रिय उर्फ कैलाश श्रीवास्तव, कुणाल श्रीवास्तव एवं सुशील कुमार श्रीवास्तव : तीन भाई, तीनों साहित्यकार।

 अर्से से मेरी कुमारप्रिय से  मुलाकात नहीं हुई है। मिलना चाहता हूँ। आखिरी बार हम लक्ष्मी नगर के एक मकान में मिले थे।

उसी मकान में किसी समय मोहन पाकेट बुक्स के मालिक - अपना मकान खरीदने से पहले किरायदार थे।

उनके बाद लक्ष्मी नगर, (जमुना पार - दिल्ली)  का वही मकान कुमारप्रिय ने किराये पर लिया था, तब वह एक शिष्ट, सुशील महिला से विवाह भी कर चुके थे, लेकिन विवाह के कई वर्ष बाद भी उनके कोई सन्तान नहीं थी और उन दिनों उनकी धर्मपत्नी बहुत ज्यादा अस्वस्थ चल रहीं थीं। दवाओं और घर के खर्च उठाने में कुमारप्रिय पूरी तरह सफल नहीं हो रहे थे। पड़ोसी दुकानदारों से उधारी चलती रहती थी, इसलिये किसी काम में रुकावट नहीं आती थी, जिसका एक कारण यह भी था कि आसपास के लोग उनका बहुत ज्यादा आदर करते थे।

     तब उनका उपन्यास लिखना बहुत कम हो गया था, पर रंगभूमि कार्यालय से निकलने वाली सभी पत्रिकाओं के लिए लिखना, प्रूफरीडिंग, सम्पादन करते रहे थे। 

उन दिनों कुमारप्रिय  उर्फ कैलाश श्रीवास्तव से बड़े और मंझले भाई कुणाल श्रीवास्तव कुसुम प्रकाशन (इलाहाबाद) से निकलने वाली सत्य कथाओं की पत्रिकाओं का सम्पादन करने लगे थे। 

सबसे बड़े भाई सुशील कुमार श्रीवास्तव ( जो अपना नाम सिर्फ 'सुशील कुमार' ही लिखते थे )  फ्रीलांसिंग करते थे और विभिन्न बड़ी पत्र-पत्रिकाओं में छपते थे तथा प्रूफरीडिंग, एडीडिंग आदि काम भी एक निश्चित रकम  पारिश्रमिक के रूप में लेकर किया करते थे। 

    लक्ष्मी नगर में एक मुलाकात के दौरान कुमारप्रिय ने कुछ निराशा जताते हुए कहा था - "योगेश जी, अब हम में और आप में कोई फर्क नहीं रह गया। (कुमारप्रिय का मतलब मेरे द्वारा दूसरे नामों और दूसरों के लिये उपन्यास लिखने से था।) 

     मगर उस समय भी एक विश्वास था उनमें कि जल्दी ही जब स्थिति ठीक हो जायेगी - बम्बई जाकर फिल्मों के लिये लिखेंगे। नहीं मालूम, उनकी यह तमन्ना पूरी हुई या नहीं। पर एक समय रंगभूमि प्रकाशन से छपवाये गये अपने पहले उपन्यास 'गुड़िया' से सारे भारत में धूम मचाने वाले तब के युवा लेखक का अचानक ही रूहपोश हो जाना अचरज और किस्मत के रंग व ठोकरों का विषय है। 

    मुझसे मिलने के बाद -  मुझे हमेशा कुमारप्रिय अपने समय में  सर्वाधिक उर्जा वाले जोशीले लेखक लगे थे, जो सदैव ही पोजिटिव सोच रखते थे। यही पोजिटिव सोच मुझ में भी कूट-कूट कर है, पर कुमारप्रिय की वजह से नहीं, अन्य कारणों से, बल्कि मुझे लगता है - कुमारप्रिय की पोजिटिव सोच का मैं ही जन्मदाता था। मुझसे दूरी होने पर, वह फिर से निराशावादी हो गये और संघर्ष में हार गये।

    आज भी मैं उनके बारे में जानना चाहता हूँ कि कुमारप्रिय कहाँ हैं, कैसे हैं? 

कुमारप्रिय ने भी पैसों की सख्त जरूरत होने पर एक वैसा ही काम किया था, जिसकी शुरुआत पाकेट बुक्स लाइन में बिमल चटर्जी ने की थी! कुमारप्रिय ने एक निश्चित एमाउंट लेकर जनता पाकेट बुक्स के स्वामी श्री जगदीश गुप्ता जी को अपने बहुत से नामों के कापीराइट दे दिये थे, पर खुद नहीं लिखे थे - कुमारप्रिय के नाम से जनता पाकेट बुक्स द्वारा छापे गये उपन्यास 'सौगात', 'बेवफा',  'गौरी' आदि मेरे द्वारा लिखे गये थे।

@योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से

बुधवार, 8 सितंबर 2021

नये उपन्यास-2021

कुछ नये और रिप्रिंट उपन्यासों की सूचना

साहित्य देश के समस्त पाठकों को नमस्कार।
एक बार हम पुनः उपस्थित हैं, आपके लिए कुछ उपन्यासों की सूचना लेकर।
1. माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया

    प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
    मूल्य -220, 160₹

यह एक जासूसी उपन्यास है। इसी उपन्यास के साथ उपन्यास साहित्य में एक लेखक का पदार्पण हो रहा है।
   जयदेव चावरिया इस से पूर्व कुछ सोशल साइटों पर लिखते रहें है, पर उपन्यास के रूप में यह उनका प्रथम‌ प्रयास है।


जूलरी शॉप के मालिक अशोक नंदा को एक रात किसी ने वक़्त से पहले परलोक पहुंचा दिया। पुलिस को पक्का शक था कि खून उसके दोनों बेटो में से किसी एक ने ही किया है । फिर कहानी में दखल होता है ऐसे जासूस का जिसका अशोक नंदा मर्डर केस पहला मर्डर केस था। जिसने जासूस को यह केस सौंपा उसे खुद यकीन नहीं था कि वह यह केस हल कर पायेगा।

अशोक नंदा का खून किसने किया ? क्या पुलिस कातिल को पकड़ पाई ? क्या जासूस अपना पहला मर्डर केस हल कर सका ? या यह केस उसका आखिरी केस साबित हुआ ?
एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री जिसमें आप उलझकर रह जायेंगे।

 Order Link- माय फर्स्ट मर्डर केस- जयदेव चावरिया


2. कंकाल टाइगर- परशुराम शर्मा
    प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
     श्रेणी- हाॅरर
     मूल्य- 350,  270₹
       परशुराम शर्मा जी का यह नवीनतम हाॅरर उपन्यास है।

तीसरे विश्वयुद्ध में दो सेनायें आमने-सामने हैं।

मंगलवार, 7 सितंबर 2021

निर्मल

नाम- निर्मल

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य एक ऐसा समुद्र है, जिसमें जितना डूबते जाओ उतने ही मोती मिलते जाते हैं। ऐसा ही एक और मोती मिला है नाम है- निर्मल।

   अब उपन्यासकार निर्मल के विषय में कोई ज्यादा जानकारी तो खैर उपलब्ध नहीं हो सकी। जो जानकारी प्राप्त हुयी है उसका स्त्रोत एक उपन्यास है- घूंघट और घुंघरू। यह उपन्यास 'पंकज पॉकेट बुक्स-मेरठ' से प्रकाशित है।

आबिद रिजवी जी और रवि पॉकेट बुक्स मनेष जैन जी से प्राप्त जानकारी अनुसार- निर्मल गौरी पॉकेट बुक्स वालों के छोटे भाई थे;  मूल नाम था निर्मल जैन। निर्मल नाम से कुछ उपन्यास प्रकाशित हुए थे। नॉवल किसने लिखे, यह जानकारी गोपनीय रही क्योंकि न प्रकाशन ज़्यादा दिन चल सका न लेखक का नाम ही।

निर्मल के उपन्यास

1. घूंघट और घुंघरू

सोमवार, 6 सितंबर 2021

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा- 10

 मैं आवार, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा- 10

अशोक कुमार शर्मा जी की आत्मकथा `मैं आवारा, इक बनजारा` का दसवां और अतिंम अंक।

जब हम `राधा पॉकेट बुक्स` पहुंचे, तो हमारी मुलाकात शायद उस पॉकेट बुक्स के मालिक मनेष जैन जी के छोटे भाई से हुई थी, जिनका कि नाम मैं नहीं जानता।

क्योंकि उनका नाम पूछने कि मेरी हिम्मत ही नहीं हुई थी।

वहां मशहूर उपन्यासकार और मेरे बचपन के हीरो श्री परशुराम जी शर्मा पहले से ही मौजूद थे, जो उस वक्त मनेष जैन के छोटे भाई से `बालाजी स्टूडियो` की मालकिन और मशहूर हीरो रह चुके जितेंद्र की सुपुत्री एकता कपूर के सीरियलों की बात कर रहे थे । 

उनकी बातें सुनकर मुझे ऐसा लगा कि किसी न किसी रूप में  परशुराम जी शर्मा का फिल्मी लाइन में भी दखल है। वैसे वह उन दिनों तुलसी पॉकेट बुक्स से निकलने वाली पत्रिका तुलसी कहानियों के संपादक थे। मैंने बतौर संपादक उनका नाम तुलसी कहानियों में पढ़ा था। उनकी बातों से मुझे आगे जाकर यह भी पता चला कि प्रसिद्ध सामाजिक उपन्यासकार श्री प्रेम बाजपेई का निधन कुछ दिनों पहले हो चुका है और उनके सुपुत्र फिल्म लाइन में जाने का इरादा रखते हैं। 

प्रेम बाजपेई के निधन की खबर सुनकर मुझे बहुत गहरा धक्का लगा, क्योंकि मैं उस महान हस्ती का भी नियमित पाठक था और उनके उपन्यास मुझे बहुत ही अच्छे लगते थे।

पर उस दुख के साथ - साथ खुशी इस बात की थी कि अपने चहेते और लोकप्रिय लेखक श्री परशुराम जी शर्मा को, जिनकी अब तक मैंने सिर्फ उपन्यासों पर छपी हुई फोटो ही देखी थी, आज साक्षात देख भी लिया।

मैंने ये कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि अचानक उनसे यूं मुलाकात हो जाएगी।

उनका पहनावा बहुत ही शानदार था और वे सचमुच किसी फिल्म के हीरो जैसे लग रहे थे।

मैंने मनेष जैन जी के छोटे भाई  को एक ही सांस में अपना परिचय देते हुए बताया कि मेरा नाम अशोक कुमार शर्मा है और मैं अपना उपन्यास अपने नाम और फोटो के साथ आपकी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित करवाना चाहता हूँ।

उन्होंने गौर से मेरी और देखा और फिर गम्भीरता से पूछा कि -पहले कभी कहीं से छपे हो ?

गुरुवार, 2 सितंबर 2021

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा -09

मैं आवारा, एक बंजारा- अशोक कुमार शर्मा
        आत्मकथा, भाग-09   
       
बाद में मैंने मशहूर लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक जी की विमल  सीरीज स्टाइल में एक उपन्यास और लिख डाला, जिसका कि शीर्षक था - 36 करोड़ का हार
यह उपन्यास मेरे पाठकों को बहुत ही ज्यादा पसंद आया और इसी उपन्यास से मेरे उपन्यासों के मुख्य किरदार 'सरदार जगतार सिंह जग्गा' का जन्म हुआ, जिनका कि नाम आगे जाकर काफी मशहूर हुआ। 
       इसका सबूत मेरे पास देश के हर कोने से आए वे हजारों खत है, जो आज भी मेरे पास सुरक्षित मौजूद है।
यह उपन्यास मेरे नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हुआ था और इस उपन्यास के प्रकाशन की दास्तान कुछ यूं है दोस्तों कि इस उपन्यास को लिखने के बाद मैं एक बार फिर दिल्ली और मेरठ के कई प्रकाशको के दफ्तरों में गया, पर इस बार मैं राजा पॉकेट बुक्स के मालिक श्री राजकुमार जी गुप्ता से नहीं मिला, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं मैं उनके रौब और प्रभाव में आकर पहले की तरह ही इस उपन्यास को भी उनके ट्रेडमार्क के तहत प्रकाशित करने की इजाजत नहीं दे दूं ।
       दिल्ली के प्रकाशकों ने एक बार फिर मुझे घास नहीं डाली और यही हाल मेरा मेरठ जाकर भी हुआ।
मैं 'तुलसी पॉकेट बुक्स' जाकर  श्री वेद प्रकाश जी शर्मा और ऋतुराज जी उर्फ सुरेश जैन जी से भी मिला, पर उन्होंने भी मुझे कोई खास तवज्जो नहीं दी। 

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...