21 वर्ष की उम्र में मैं एक सफल उपन्यासकार और प्रकाशक बन चुका था- विनोद प्रभाकर
साक्षात्कार की इस शृंखला में इस बार प्रस्तुत है लोकप्रिय
साहित्य के सितारे विनोद प्रभाकर उर्फ सुरेश साहिल जी का प्रथम साक्षात्कार। मेरठ
निवासी विनोद प्रभाकर जी ने यहां अपने वास्तविक नाम से जासूसी लेखन किया वहीं
सुरेश साहिल के नाम से लौट आओ सिमरन जैसी चर्चित कृति का सर्जन भी किया।
वर्तमान में मेरठ के मलियाना में निवासरत सुरेश जी निजी
शिक्षण संस्थान का संचालन करते है और दीर्घ समय पश्चात अपनी रचना लेखन में व्यस्त
हैं।
01. लोकप्रिय साहित्य में विनोद प्रभाकर या सुरेश साहिल का नाम काफी चर्चित रहा है। लेकिन हम एक बार अपने पाठकों के लिये आपका जीवन परिचय जानना चाहेंगे।
- मेरा जन्म मेरठ जिले के मलियाना ग्राम में हुआ था। जो
मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर है। मेरे पिता श्री किरन सिंह
मेरठ जिले की सरधना तहसील के हबड़िया गांव के एक छोटे किसान परिवार से थे। और मेरठ
नगर महापालिका में सरकारी ओहदे पर थे।
मेरी शिक्षा ग्रेजुएट तक रही। किसी
कारणवश मुझे पोस्ट ग्रेजुऐशन की पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। पूर्व संस्कार ही
रहे होंगे की कक्षा पांच तक पहुंचते -पहुंचते मेरे अंदर का लेखक जागृत हो चुका
था। यह बचपन का वह दौर था, जब क्लासरूम
में बच्चों के झुण्ड के बीच फिल्मी गानों पर परोडी बनाकर सुनाता था। और ताज्जुब इस
बात का रहा कि दस फिट दूर बैठे सख्त मिजाज अध्यापक को मेरी आवाज सुनाई नहीं देती
थी। उस वक्त के मेरे ही ग्रुप का एक बच्चा (जिसका नाम शायद चतर सिंह था) कहीं से
दो अजीब सी लैंग्वेज सीख कर आया था। और मैं एकमात्र स्टुडेंट था जो हफ्ते भर में
उससे धाराप्रवाह उस लैंग्वेज में बातें करने लगा था। वह दोनों भाषायें में आज भी
धाराप्रवाह बोलना जानता हूँ। मुझे नहीं लगता लिखने में और बोलने में संस्कृत जैसी
प्रतीत होती दोनों भाषायें कहीं बोली भी जाती रही होंगी या अब भी कहीं बोली जाती
होंगी।
बहरहाल, दोनों भाषाओं का इतिहास कुछ भी हो, मगर अब यह भाषायें उन दो देशों की राष्ट्रीय भाषायें बन चुकी हैं, जो मेरे आने वाले उपन्यास के दो काल्पनिक देश हैं।