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सोमवार, 11 सितंबर 2023

विनोद प्रभाकर- साक्षात्कार

 21 वर्ष की उम्र में मैं एक सफल उपन्यासकार और प्रकाशक बन चुका था- विनोद प्रभाकर

साक्षात्कार की इस शृंखला में इस बार प्रस्तुत है लोकप्रिय साहित्य के सितारे विनोद प्रभाकर उर्फ सुरेश साहिल जी का प्रथम साक्षात्कार। मेरठ निवासी विनोद प्रभाकर जी ने यहां अपने वास्तविक नाम से जासूसी लेखन किया वहीं सुरेश साहिल के नाम से लौट आओ सिमरन जैसी चर्चित कृति का सर्जन भी किया।
वर्तमान में मेरठ के मलियाना में निवासरत सुरेश जी निजी शिक्षण संस्थान का संचालन करते है और दीर्घ समय पश्चात अपनी रचना लेखन में व्यस्त हैं।

01. लोकप्रिय साहित्य में विनोद प्रभाकर या सुरेश साहिल का नाम काफी चर्चित रहा है। लेकिन हम एक बार अपने पाठकों के लिये आपका जीवन परिचय जानना चाहेंगे।

- मेरा जन्म मेरठ जिले के मलियाना ग्राम में हुआ था। जो मेरठ सिटी रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर है। मेरे पिता श्री किरन सिंह मेरठ जिले की सरधना तहसील के हबड़िया गांव के एक छोटे किसान परिवार से थे। और मेरठ नगर महापालिका में सरकारी ओहदे पर थे।

               मेरी शिक्षा ग्रेजुएट तक रही। किसी कारणवश मुझे पोस्ट ग्रेजुऐशन की पढाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। पूर्व संस्कार ही रहे होंगे की कक्षा पांच तक पहुंचते -पहुंचते मेरे अंदर का लेखक जागृत हो चुका था।  यह बचपन का वह दौर था, जब क्लासरूम में बच्चों के झुण्ड के बीच फिल्मी गानों पर परोडी बनाकर सुनाता था। और ताज्जुब इस बात का रहा कि दस फिट दूर बैठे सख्त मिजाज अध्यापक को मेरी आवाज सुनाई नहीं देती थी। उस वक्त के मेरे ही ग्रुप का एक बच्चा (जिसका नाम शायद चतर सिंह था) कहीं से दो अजीब सी लैंग्वेज सीख कर आया था। और मैं एकमात्र स्टुडेंट था जो हफ्ते भर में उससे धाराप्रवाह उस लैंग्वेज में बातें करने लगा था। वह दोनों भाषायें में आज भी धाराप्रवाह बोलना जानता हूँ। मुझे नहीं लगता लिखने में और बोलने में संस्कृत जैसी प्रतीत होती दोनों भाषायें कहीं बोली भी जाती रही होंगी या अब भी कहीं बोली जाती होंगी।

 बहरहाल, दोनों भाषाओं का इतिहास कुछ भी हो, मगर अब यह भाषायें उन दो देशों की राष्ट्रीय भाषायें बन चुकी हैं, जो मेरे आने वाले उपन्यास के दो काल्पनिक देश हैं।

रविवार, 3 सितंबर 2023

होशियार सिंह

नाम-होशियार सिंह
लोकप्रिय साहित्य में एक नाम और सामने आया है, वह नाम है। होशियार सिंह। हालांकि होशियार सिंह जी का एक ही उपन्यास अभी तक हमारी जानकारी में आया है। यहाँ प्रस्तुत जानकारी उसी उपन्यास पर आधारित है। 
होशियार सिंह के उपन्यास
1. जंजीर और हथकडियां (नूतन पॉकेट बुक्स, मेरठ)
2. कसमें वायदे
संपर्क-
होशियार सिंह /
13/8, शाहगंज दरवाजा
कच्ची सडक- मथुरा
पिन-281001
उक्त समस्त जानकारी हमें छत्तीसगढ़ निवासी नवीन जी ने प्रेषित की है। नवीन जी का हार्दिक धन्यवाद |
लेखक होशियार सिंह जी के विषय में अन्य कोई जानकारी
किसी पाठक के पास हो तो हमसे संपर्क करें।

आनंद चौधरी, परिचय

नाम- आनंद चौधरी
जन्म - 10-05-1981
माता- श्रीमती उर्मिला देवी
पिता- श्री विजय चौधरी
शिक्षा- स्नातक 
वर्तमान कार्य- उपन्यास लेखन, contractor (machenical steel construction) founder of our construction company "omkar engineering".
संपर्क- 8578853325, 9472621470.
Email- omkarengineering.1525@gmail.com 
Add.- ग्राम- नुरपुर, पोस्ट- फुलाड़ी, थाना-अजीमाबाद, 
जिला- भोजपुर (आरा), बिहार- 802164
उपन्यासकार आनंद चौधरी
उपन्यासकार आनंद चौधरी

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उपन्यास सूची- 

1. साजन मेरे शातिर- [ क्राइम -थ्रिलर ] नवम्बर 2009 
दुर्गा पॉकेट बुक्स 
2. हैरीटेज होस्टल हत्याकांड- [ मर्डर मिस्ट्री ] 10- 05- 2022 - अजय पॉकेट बुक्स
3.आयुष्मान- [ साइंस फिक्शन ] 1 जनवरी 2023 अजय पॉकेट बुक्स
4. मौत मेरे पीछे - [ मर्डर मिस्ट्री ] - प्रकाशकाधीन

आनंद चौधरी के उपन्यासों की समीक्षा यहाँ पढें

गुरुवार, 24 अगस्त 2023

खाली आंचल- सुरेश चौधरी, उपन्यास समीक्षा

उपन्यास - खाली आँचल
लेखक -   सुरेश चौधरी, 
उपन्यास समीक्षा- सूरज शुक्ला

हा विधाता! क्यों दिए कोमल हृदय, 
हर जरा सी बात पर होता सदय, 
सह न जाता, यह कठिनतम ताप है!
सच कहूँ, संवेदना अभिशाप है। 
- सूरज 
पर...वह जरा सी बात न थी... 
आकाश को आकाश भर दुख मिले, धोखे मिले, दर्द मिला, और यह सब उन्होंने दिया जो उसके अपने लगते थे, जिनके लिए उसने अपने सुख, अपनी खुशियां , अपनी सारी कामनायें त्याग दी। 
कहते हैं, प्यार में आदमी अंधा हो जाता है, आकाश भी हुआ पर उसके अंतर्मन में वह अंतर्दृष्टि मौजूद थी, जिससे वह सही-गलत का आकलन कर सकता था, उसने किया भी और हमेशा करता रहा और यही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई।


एक बार‘विम्मी’ दी ने मुझसे कहा था, ‘भाई, कोई सही या गलत नहीं होता है, सब परिस्थितियों का खेल है, जो आज सही है, वह कल गलत लगेगा और जो आज गलत है वह कल सही लगेगा’ और सच कहूँ तो लगभग यही आकाश के साथ हुआ। 

गुरुवार, 10 अगस्त 2023

क्राइम एक्सपर्ट- राकेश पाठक, उपन्यास अंश

साहित्य देश के उपन्यास अंश में इस बार पढें लोकप्रिय साहित्य के प्रसिद्ध उपन्यासकार राकेश पाठक जी के चर्चित उपन्यास 'क्राइम एक्सपर्ट' उपन्यास का एक अंश।
फोन की घण्टी बजने पर स्टाफ के साथ जश्न मना रहे इन्सपेक्टर मुकेश तिवारी ने रिसीवर उठाया तथा कान से लगाकर बोला- “हैलो, कौन ?"
"कांग्रेचुलेशन, मिस्टर तिवारी ।" दूसरी तरफ से मानो कोई गहरे कुंयें से बोल रहा था-"तुमने बहुत बड़ा कारनामा कर दिखलाया है।"
“हां, कारनामा तो किया ही है मैंने।”- मुकेश तिवारी सीने पर लगे सोने के तमगे को सहला कर बोला, "रिंगो को खत्म कर दिया है मैंने। वो साला कानून और पुलिस डिपार्टमैंट के लिये सिरदर्द और चैलेंज बना हुआ था। तभी तो सरकार ने उस पर पूरे एक करोड़ रुपये का इनाम रखा था। लेकिन तुम कौन हो ?"


“रिंगो।"
“क्या बकते हो ? पुलिस वाले से ही मजाक ? रिंगो को तो मैंने मार दिया।"
"रिंगो के पंच तत्वों से बने शरीर को ही ना, उसकी आत्मा को तो नहीं ना ?” - मानो कोई जख्मी नाग ही फुफंकारा हो, “थोड़ा-सा चूक गया मैं और तेरी गोलियों का शिकार हो गया। वरना तेरे जैसे पुलिस वाले मेरी जेबों में पड़े रहते थे। ओवर कॉन्फीडेन्स का शिकार हो गया था मैं। खरगोश और कछुवे वाली बात ही हो गई। खरगोश ने सोचा कि कछुआ तो शाम तक भी विनिंग स्पॉट पर नहीं पहुंच पायेगा, और वो सो गया। जब नींद टूटी तो कछुआ रेस जीत चुका था। मैं आत्मा हूँ 'रिंगो की आत्मा' ।"

बुधवार, 26 जुलाई 2023

मिलते - जुलते शीर्षक

साहित्य देश के स्तम्भ 'शीर्षक' के इस पोस्ट में हम 'मिलते- जुलते शीर्षक' शामिल कर रहे हैं। 
समय- समय पर यह पोस्ट अपडेट होती रहेगी।

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सबसे बडा डाॅन - ओमप्रकाश शर्मा (द्वितीय)

सबसे बडा शैतान - राज

सबसे बडा रुपया - राजहस

वो कौन था- अनिल मोहन

वो कौन थी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

वह कौन था- कर्नल रंजीत

डायल 100- सुरेन्द्र मोहन पाठक

डायल 101- रजत राजवंशी


सोमवार, 10 जुलाई 2023

राकेश

लेखक - राकेश

लेखक राकेश का एक उपन्यास उपलब्ध है 'चीनी षड्यंत्र' जो की मेरठ से प्रकाशित है।
प्राप्त उपन्यास में प्रकाशक 'सीक्रेट सर्विस कार्यालय-मेरठ' और वितरक 'प्रभात पॉकेट बुक्स-मेरठ' लिखा है।
  अल्प जानकारी अनुसार 'राकेश' एक एक्शन लेखक थे।

राकेश के उपन्यास


1. चीनी षड्यंत्र

उक्त लेखक के  विषय में‌ अन्य कोई जानकारी हो तो अवश्य शेयर करें।
धन्यवाद
Email- Sahityadesh@gmail.com
विशेष- धीरज पॉकेट बुक्स के एक लेखक 'राकेश' भी थे, जिनके उपन्यास सामाजिक श्रेणी के थे।

sahityadesh

राकेश - धीरज पॉकेट बुक्स


 नाम- अशोक तरुण

दिल्ली के निवासी अशोक तरुण जी, प्राप्त संक्षिप्त जानकारी कर अनुसार एक एक्शन उपन्यासकार के रूप में सामने आते हैं। 

हालांकि उनके विषय में उनके उपन्यासों से ही जानकारी प्राप्त होती है जो अप्राप्य है।

अशोक तरुण के उपन्यास
  1. विकास और खूनी षड्यंत्र
  2. विकास और चीनी दरिंदे
लेखक अशोक तरुण के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध हो तो हमसे अवश्य संपर्क करें।
Email- Sahityadesh@gmail.com

लेखक का एड्रेस
अशोक तरुण
2466, बाजार सीताराम
दिल्ली-6
Ashok sahityadesh


शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

मजेदार समोसे- रोचक किस्सा

साहित्य देश के हास्य रस स्तम्भ में प्रस्तुत है प्रसिद्ध उपन्यासकार कर्नल रंजीत के उपन्यास 'वह कौन था' का एक हास्यपूर्ण किस्सा।

"बाबा, तुम समोसे क्या बनाते हो, गजब ढाते हो !" मेजर कहा ।
   ठाकुर हिम्मत सिंह मेजर की इस प्रशंसा पर प्रसन्न हुए। उन्होंने ऊंची आवाज में कहा - "बाबा नन्दू, इधर आओ और इनको बताओ कि तुम हमारे घर में नौकर कैसे हुए थे !"
"सरकार, मैं यह कहानी इतनी बार मेहमानों को सुना चुका हूं कि अब उसे दुहराते हुए शर्म आती है।" नन्दू बाबा ने निकट आकर कहा – “मगर मालिक का हुक्म कौन टाल सकता है, साहब ? मैं बावर्ची की नौकरी की खोज में था। बड़े ठाकुर साहब यानी मालिक के दादाजी ने मुझे देखा तो उनको विश्वास न आया कि मैं बावर्ची भी हो सकता हूं। खैर उन्होंने मुझे आजमाने की ठान ली। हुक्म हुआ कि मैं रसोईघर में जाकर दोपहर का खाना तैयार करूं, सबसे पहले वे खाकर देखेंगे। सो हुजूर, खाना बन गया।
       ठाकुर साहब खाने के लिए बैठे। मैंने नौकरानी के हाथ पाली परोसकर भिजवाई। थाली में केवल दाल की कटोरी थी और परांठे थे। में धड़कते दिल के साथ रसोई में इन्तजार कर रहा था । वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी। बड़े ठाकुर साहब ने बार-बार दाल मंगवाई, यहां तक कि उनका पेट भर गया। फिर वे रसोई में आकर बोले- 'मैं तो सिर्फ दाल ही खाता रहा, बाकी जो चीजें तुमने पकाई होंगी, वे तो पड़ी रह गई...!" मैंने केवल एक बरतन उनके आगे रख दिया जिसमें दाल थी और कहा- 'मैंने और कुछ नहीं बनाया था, सरकार ! बस दाल ही बनाई थी और इस विश्वास के साथ बनाई थी कि आप इसके सिवा और कोई चीज मांग ही नहीं सकेंगे ।' बड़े ठाकुर साहब ने मेरी पीठ बनवाई और उसी दिन से मैं इस घर का सेवक चला आ रहा हूं।" नन्दु बाबा ने हाथ हिलाकर कहा मेजर की नजरें उसके हाथों पर पड़ी तो वह आश्चर्य से उसके मैले हाथों की ओर देखने लगा ।
   नन्दू बाबा ने मेजर की निगाहें अपने हाथों पर जमी देखी तो उसने तुरन्त अपने हाथ अपनी पीठ के पीछे छिपा लिए।

उपन्यास-  वह कौन था
लेखक -    कर्नल रंजीत

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 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...