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बुधवार, 19 जनवरी 2022

इंतकाम - प्रकाश भारती

प्रशांत सीरीज का पहला उपन्यास

इन्तकामप्रकाश भारती (उपन्यास अंश)
कॉपीराइट © 1986 प्रकाश भारती द्वारा
ISBN 978-93-85898-87-7

       औसत दर्जे की उस चाय की दुकान में पहुंचना मेरी मजबूरी थी।
उस रोज शनिवार था और उस वक्त रात के बारह बज चुके थे। लम्बी कार ड्राइविंग, थकान, सुस्ती और ऊपर से अकेलेपन की बोरियत। इन सबकी वजह से मेरी हालत खस्ता थी। बार–बार उबासियां आ रही थीं ! आंखें रह–रहकर मुंदने लगती थीं। मेरी तकदीर अच्छी थी कि रास्ते में एक्सीडेंट नहीं हुआ और करीमगंज से विशालगढ़ मैं सहीसलामत पहुंच गया था।
लेकिन अपने फ्लैट तक पहुंचने में अभी कम से कम आधा घंटा और लगना था। और अब शहरी सीमा में क्योंकि यातायात अपेक्षाकृत बढ़ता जा रहा था इसलिए और ज्यादा रिस्क लेना खतरनाक था। अपनी थकान और सुस्ती से वक्ती तौर पर कुछ निजात पाने के लिए मुझे कड़क चाय या स्ट्रांग कॉफी की जरूरत महसूस होने लगी। 

धीरे–धीरे मेरी वो जरूरत जोरदार तलब में बदलती चली गई ।
आखिरकार, एम्बेसेडर साइड में पार्क करके मजबूरन मुझे उस दुकान में, जिस पर ग्लोरी रेस्टोरेंट का बोर्ड लगा था, जाना पड़ा ।
मामूली शक्ल–सूरत और लिबास वाले तीन आदमी वहां मौजूद थे । उनमें से, एक मेज पर बैठे, दो आदमी ब्रेड स्लाइस और आमलेट खाते हुए चाय सुड़क रहे थे । अलग बैठा तीसरा आदमी चाय के गिलास में रस्क भिगो–भिगोकर खा रहा था ।
एक नौकर सिंक के पास खड़ा गिलास, प्लेटें, प्याले वगैरा धो रहा था । और दूसरा जिस ढंग से चीजें समेट रहा था उससे जाहिर था कि दुकान बंद होने में ज्यादा देर नहीं थी। 

सोमवार, 17 जनवरी 2022

बवण्डर - सुरेश चौधरी, समीक्षा

नाॅवल – बवंडर
लेखक – सुरेश चौधरी
प्रकाशन – रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ - 288
समीक्षक – दिलशाद (सिटी ऑफ इविल)
सुरेश चौधरी की कलम से निकली है इस बार देशभक्ति से ओत प्रोत एक्शन, थ्रिल और रोमांस की बेहद ही मार्मिक कहानी। जो प्रत्येक पाठक को अंत तक झंझोड़ देगी। 
     देशभक्ति है अपने देश से प्रेम और देश के लिए प्राण न्योछावर करना। तब क्या हो जब बीच में परिवार या धर्म आ जाए। इसको भी सुरेश जी ने बेहद ही शानदार तरीके से बताया है की देश सर्वोपरि है। देशप्रेम के स्थान को परिवार, प्यार, धर्म, कोई कीमती चीज भी जगह नहीं ले सकती। देश की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है जो देश को नुकसान पहुंचाती है। किंतु देश के मतवाले, जिनके हृदय में देश प्रेम बसा है तब तक देश को कोई बाल बराबर भी नुकसान नही पहुंचा सकता। 

शनिवार, 15 जनवरी 2022

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 13

 यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 13
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"नहीं-नहीं, तुलसी का नम्बर तो हमेशा पहला रहेगा।"- मैंने वेद भाई की बात पर पुरजोर तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त की। 
"रहने दे.... रहने दे....। लिखेगा तो तू... तब ना... जब ये दो-दो पेज वाले तुझे छोड़ेंगे"
"नहीं यार, अब की बार यह इल्लत नहीं पालनी...।" -मैंने वेद भाई को आश्वासन दिया। 
"तेरे कहने से क्या होता है, किसी ने सौ-दो सौ एडवांस दिये। दो चार चिकनी चुपड़ी बातें की तेरी छाती खुशी से फूल जायेगी कि तेरा कितना मान-सम्मान है।"
"नहीं-नहीं, ऐसा नहीं होगा।"  
        इस बार वेद प्रकाश शर्मा ठहाका मार कर हंसे और सरलता छोड़ कुछ ड्रामेटिक अन्दाज़ में बोले - "ऐसा है भाई योगेश जी, तुम भी यहीं हो और मैने तो रहना ही यहीं है। छ: महीने का समय काफी रहेगा?"
"किस बात के लिए...?" - मैंने पूछा। 
"नॉवल शुरू करने के लिए... हमारे लिए नॉवल शुरू करने के लिए।"- वेद भाई ने हंसते हुए कहा - "भाई मेरे, कम्पलीट तो जभी होगा, जब शुरू होगा। ऐसा करियो... जब शुरू करै तो मेरे से सौ का नोट ले जाइयो, एक फार्म का मैटर दिखा के। और वो सौ का नोट समझ ले मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने के लिए होगा। उसका तेरे उपन्यास के मेहनताने से कोई मतलब नहीं होगा।"
मैं तुरन्त ही कुछ न कह सका। फिर कुछ देर बाद धीरे से बोला -"यार, इतनी खराब रेपुटेशन तो नहीं है।"
        वेद भाई फिर हंसे -"खराब....। रेपुटेशन...। भाई...यूँ बता, तेरी रेपुटेशन है कहाँ? बेपेंदी का लोटा है, जिधर नोटों की शक्ल दिखी, उधर ही लुढ़क गया। ऐसे कोई धन्धा होवै है।"
"यार, मैं धन्धा करता ही कहाँ हूँ।" - मैंने कहा -"मैं तो कलम का पुजारी हूँ।"

शनिवार, 8 जनवरी 2022

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 12

 यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 12
प्रस्तुति- योगेश मित्तल          
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रिक्शा रुका तो मेरे उतरने से पहले ही सतीश जैन की आवाज़ आई - "हज़ार साल की उम्र है तुम्हारी। खूब ऐड़ियाँ रगड़-रगड़कर मरोगे ।"
"ठीक है, मैं वापस जाता हूँ ।"- मैं रिक्शे से उतरते-उतरते वापस रिक्शे में बैठ गया और बोला -"ईश्वरपुरी होकर आता हूँ । तब तक शटर बंद करके चले जाना ।" 
"अरे नहीं, रुको ।"- सतीश जैन तुरन्त अपनी कुर्सी से उठकर बाहर आ गए और रिक्शे वाले को धमकी देते हुए  बोले - "खबरदार, जो इस आदमी को यहां से कहीं लेकर गया ।"
मगर रिक्शेवाला भी कम नहीं था, बोला -'बाबूजी, हमें तो पईसा से मतलब है ।" फिर मेरी तरफ इशारा करके बोला -"ये बाबूजी, पईसा देंगे तो हम कहीं भी ले जाएंगे। आप हमको धमकी तो देओ ना।" 
सतीश जैन अपने असली अन्दाज़ में आ गये, रिक्शे वाले से बोले - "अरे नहीं यार, आपको हम धमकी नहीं दे रहे। आपसे तो रिक्वेस्ट कर रहे हैं, आप यह बताओ - किराया कितना हुआ।"
"बीस रुपये...।" - रिक्शे वाले ने वही बताया, जो मुझसे तय हुआ था। 

शनिवार, 1 जनवरी 2022

उपन्यास पहेली

नववर्ष 2022 की हार्दिक शुभकामनाएं

    साहित्य देश ब्लॉग इस वर्ष पाठकों के लिए लेकर आया है एक रोचक पहेली। उम्मीद है हमारा यह नया प्रयोग/प्रयास आपको अच्छा लगेगा। @साहित्यदेश

 सुनील पण्डित का एक और रोमांचकारी उपन्यास

'अण्डरवर्ल्ड' का 'जुर्म का पण्डित' 'विमल खन्ना' और उसके मौत के हरकारे...जब टकराये, जुर्म की अँधेरी दुनिया के बेताज बादशाह 'दाऊद' से जो तूफान और जलजला आया उसने दाऊद के अभेद किले तक को हिला दिया। और काली दुनिया के इन‌ महारथियों की इस खूनी मुठभेड़ का चश्मदीद गवाह है- इंस्पेक्टर केशव पण्डित।
  पिस्तौल के खिलाड़ी विमल खन्ना व अनूठे पुलिस इंस्पेक्टर केशव पण्डित का एक और तूफानी हंगामा।
                        जुर्म का पण्डित

sahityadesh सुनील पण्डित
नमस्ते पाठक मित्रो,

    आपने सुनील पण्डित के उपन्यास 'जुर्म का पण्डित' उक्त कथन पढ लिया होगा। अब आपको यह बताना है की इस कथन में किस- किस उपन्यास/ पात्र या लेखक का आपका आभास मिलता है।

  कमेंट बॉक्स में अपने नाम सहित लिखें।
धन्यवाद
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 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...