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गुरुवार, 29 सितंबर 2022

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकारों का एक छोटा सा सम्मेलन हो। कोरोना की वजह से यह विचार हर बार स्थगित करना पड़ा था। लेकिन एक दिन यह पल्लवित हुआ और मैं गुरप्रीत सिंह (बगीचा, श्रीगंगानगर, राजस्थान-335051) निकल पड़ा अपनी उपन्यास यात्रा पर। इस यात्रा के कुछ उद्देश्य पूर्ण हुये और कुछ शेष हैं। शेष का भी अपना एक अलग आनंद है, शेष ही आगामी योजना की नीव रखता है,जैसे इस यात्रा की नीव पिछली यात्रा ने रखी है।

     विद्यालय से पन्द्रह दिनों का  पितृत्व अवकाश था। तो सोचा क्यों न इन दिनों में एक उपन्यास यात्रा की जाये। एक विचार, धीरे-धीरे पल्लवित होता गया। विचार था मेरठ के उपन्यासकारों से मिलना और कुछ गुमनाम हो चुके उपन्यासकारों को खोजना। जिसमें राकेश पाठक जी, वेदप्रकाश वर्मा जी और सी. एम. श्रीवास्तव जी शामिल थे। 
बाये से- दिलशाद अली, गुरप्रीत सिंह, फखरे आलम खान, सुरेश चौधरी, जयदेव चावरिया, विनोद प्रभाकर जी, अन्य
       कुछ माह पूर्व मेरा परिचय उपन्यासकार विनोद प्रभाकर जी से हो चुका था। मलियाना (मेरठ) निवासी विनोद प्रभाकर जी अपने वास्तविक नाम से जासूसी उपन्यास लेखन करते थे और द्वितीय नाम सुरेश साहिल के नाम से सामाजिक उपन्यास लिखते थे। मैंने विनोद प्रभाकर जी से चर्चा की हमें मेरठ में एक छोटा सा आयोजन करना है, लेकिन कोई जगह की व्यवस्था नहीं हो रही। विनोद जी ने तुरंत उत्तर दिया -"गुरप्रीत जी, आप निसंकोच मेरठ आये और जिन भी मित्रों को बुलाना चाहे बुला सकते हैं। मेरा एक फ्लैट खाली है और आप जब तक चाहें वहाँ रुक सकते हैं।"
   विनोद जी का यह प्रस्ताव बहुत ही‌ महत्वपूर्ण था। क्योंकि इस से पूर्व जिन लेखक मित्रों से मेरठ में एकत्र होने‌ की बात चल रही थी उन्हें अभी तक कोई स्पष्ट एड्रेस नहीं दिया गया था।  

       मेरठ के जो भी लेखक मित्र थे उनसे पुनः संपर्क किया।   जिसमें आबिद रिजवी जी, एडवोकेट फखरे आलम खान, एडवोकेट सुरेश चौधरी, दिलशाद अली, आलोक खिलौरी जी। ये सब मेरठ क्षेत्र या नजदीक के रचनाकार थे। इसके अतिरिक्त दिल्ली से राम पुजारी जी और हरियाणा के जयदेव चावरिया जी को भी सूचित किया की तय दिवस पर एक छोटा सा साहित्यिक आयोजन है।

दिनांक 16.09.2022 की शाम को मैं ट्रेन से दिल्ली को रवाना हुआ। पूर्व में यह भी तय हो गया था की दिल्ली सराय रोहिल्ला रेल्वे स्टेशन पर लेखक मित्र जयदेव चावरिया भी पहुँच जायेंगे।
दिनांक 17.09.2022
  मैं सुबह 7:30AM सराय रोहिल्ला रेल्वे स्टेशन पर उतरा। और आठ बजे जयदेव चावरिया जी भी पहुँच गये थे। मैंने राम पुजारी जी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया की वे सुबोध भारतीय जी के साथ मेरठ जायेंगे। यह हमारे लिए और भी अच्छी बात थी की इस आयोजन में लेखकों के साथ एक प्रकाशक भी शामिल हो रहे हैं।
सराय रोहिल्ला रेल्वे स्टेशन से हम लो फ्लोर बस से कश्मीरी गेट बस स्टैण्ड पहुंचे।
"यह है तो बस स्टैण्ड ही ना?" मैंने जयदेव से प्रश्न किया। हालांकि मैं यहाँ पहले भी  आ चुका था, पर संशय बरकरार था। 
"मुझे तो यह मैट्रो स्टेशन लगा।"-जयदेव ने कहा।
"नहीं भाई, यह बस स्टैण्ड ही है। वह देखो सामने लगी बस की तस्वीर।" - मैंने एक तस्वीर की तरफ इशारा किया।
"मैं भी सोच रहा था, मैट्रो स्टेशन तो इसकी साइड में है।"-जयदेव जी मैट्रो स्टेशन की तरफ इशारा करते हुये कहा।
हम दोनों ऐसे ही चर्चा करते हुये बस स्टैण्ड के अंदर प्रवेश कर गये। 
कश्मीर गेट बस स्टैण्ड सामान्य बस स्टैण्ड की तरह है भी नहीं। प्रथम दृष्टि वह जैसा नजर आता तो लगता नहीं की वह बस स्टैण्ड है।
"जयदेव भाई, आज हमने चाय भी नहीं पी।"
        अक्सर नये सदस्य के मिलते ही मैं चाय ऑफर जरूर करता हूँ, लेकिन हम दोनों इतनी जल्दी मैं थे की चाय पीने ख्याल ही नहीं आया।
बस चलने में अभी समय था। जयदेव भाई ने दो चाय और  दो सैण्डविच ऑर्डर कर दिये। चाय खत्म होते-होते बस का भी समय हो गया था।
लगभग 9:30 AM हम कश्मीरी गेट बस स्टैण्ड से मेरठ की ओर रवाना हो लिये। जिसके सूचना हमने विनोद प्रभाकर जी को भी दे दी और वाटस एप ग्रुप 'साहित्य देश' पर बाकी मित्रों को भी सूचित कर दिया। 
  लगभग 11:15 AM हम मलियाना क्षेत्र में पहुँच गये थे। विनोद प्रभाकर जी को हमने सूचित कर दिया। हम दोनों वहीं स्थित माॅल में घूमने चले गये। अभी माॅल में पहुंचे ही थे की विनोद प्रभाकर जी के पुत्र माॅल के बाहर अपनी कार के साथ हमे लेने पहुँच गये थे।
  वहाँ से हम नजदीक ही 'ग्रीन विलेज' क्षेत्र में विनोद प्रभाकर जी के फ्लैट नम्बर 802 में पहुंचे।
ब्लू जिंस, सफेद शर्ट में विनोद प्रभाकर जी हमारे स्वागत के लिए तैयार ही थे। मिलनसार व्यक्तित्व,  चेहरे पर चमक और शब्दों में आत्मीयता लिए हुये मिले विनोद प्रभाकर जी। 
कुछ ही देर में एडवोकेट फखरे आलम खान जी पहुँच गये।  अभी कोई विशेष बातचीत का सूत्र हाथ न लगा था। तभी एडवोकेट सुरेश चौधरी जी और फिर दिलशाद अली जी अपने एक मित्र के साथ फ्लैट नम्बर 802 में उपस्थित हो चुके थे। 
Meerut writer
सुरेश चौधरी और फखरे आलम खान

  एक बार सभी का परस्पर परिचय हुआ और फिर चर्चा का दौर एक बार आरम्भ हुआ तो विभिन्न विषयों पर निरंतर चलता रहा।
"ये हैं एडवोकेट फखरे आलम खान 'विद्यासागर'।"- मैंने फखरे आलम‌ जी का परिचय करवाते हुये कहा। 
" आज दो एडवोकेट लेखक मिल रहे हैं। यह तो और भी अच्छी बात है‌।" - विनोद प्रभाकर जी ने कहा।
"यह हमारी बदकिस्मत है की हम एडवोकेट हैं।" - फखरे आलम खान जी ने कहा।
"यह तो अच्छी बात है की आप लेखक होने के साथ-साथ एडवोकेट भी हैं।"
" यही तो बदकिस्मती है।"
"नहीं। मैं इस बात को स्वीकार नहीं करता।"- सुरेश चौधरी जी ने कहा। 
दो लेखक एडवोकेट तर्क- वितर्क करने लगे और बाकी दिलचस्पी से सुन रहे थे।
" भाई, आखिर इसमें बुरा क्या है?"- दिलशाद अली जी ने पूछा।
" एक लेखक इमोशनल होता है और एडवोकेट थोड़ा कठोर हृदय होता है। इसलिए मैं दोनों में सामंजस्य नहीं बैठा पाता।"
"एडवोकेट का तो वास्ता तो अनके लोगों से होत है, वह तो वास्तविकता को अच्छे से अभिव्यक्त कर सकता है।"- मैंने कहा।
" हाँ, वास्तविकता तो लिख सकता है लेकिन वकालत झूठ के बिना चल नहीं सकती और एक साहित्यकार को झूठ से बचना चाहिए।"
"सुरेश जी तो साहित्यकार और वकील हैं।"- विनोद प्रभाकर जी ने कहा।
"हम तो अपनी बात बता रहे हैं।"- फखरे आलम जी ने कहा।
"दोनों अलग-अलग बाते हैं।"- सुरेश चौधरी जी ने कहा-" मैं जब कचहरी में होता हूँ तो सिर्फ वकील होता हूँ, वहाँ भावुकता काम नहीं करती वहाँ सिर्फ तर्क चलेगा और जब साहित्य के क्षेत्र में होता हूँ तो वहाँ मैं वकील नहीं होता सिर्फ एक लेखक होता हूँ।"
"यह बहुत अच्छी बात कही।"- जयदेव जी जो अब तक चुप थे उन्होंने ने कहा।
" एक बात और बताऊँ।"- सुरेश चौधरी जी ने कहा- "हम वकील जब जज के सामने पेश होते हैं तो स्वयं को सबसे तेज व्यक्ति समझते हैं और सामने वाले को मूर्ख। यहाँ तक की हमें जज साहब भी अपने सामने ऐसे ही प्रतीत होते हैं।"
सुरेश चौधरी जी की बात पर एक जोरदार अट्टहास कमरे में गूंज उठा। 
    मैंने सुरेश चौधरी जी का उपन्यास 'अहसास' पढा था जो एक सामाजिक उपन्यास है। वहीं सोशल मीडिया पर सुरेश जी से चर्चा होती है तो लगता नहीं की वह इतने हाजिर जवाब, बोलते में तेज होंगे। जैसा उन्होंने कहा की वह कचहरी के अंदर और बाहर अलग -अलग हैं ठीक वैसे ही वह सोशल मीडिया पर और उस से बाहर निकल अलग व्यक्ति हैं। स्वच्छंद हास्य, जिंदादिल और मित्रों के मित्र वाले व्यक्तित्व वाले हैं सुरेश चौधरी जी।
सुरेश चौधरी और विनोद प्रभाकर जी के साथ
      विनोद प्रभाकर जी के पुत्र ने बातचीत के मध्य चाय की व्यवस्था कर रखी थी। 
"पहले चाय -नाश्ता हो जाये। बातचीत तो यू ही चलती रहेगी।"- विनोद प्रभाकर जी ने कहा।
" चाय की तो आवश्यकता है।"
ड्राइंग रूम में सब व्यवस्था थी। हम अंदर वाले कमरे से बाहर आकर बैठ गये। यहाँ और भी सुविधाजनक था।  इसी दौरान श्री आलोक सिंह खालौरी जी का आगमन भी हो गया। 
"ये हैं आलोक सिंह जी।"- जयदेव जी ने परिचय देते हुये कहा- ''इनके राजमुनि, वो और तरकीब आदि उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं।"
"अच्छा। आलोक जी कहा से हैं?"- विनोद प्रभाकर जी ने पूछा।
आगे परिचय स्वयं आलोक जी ने ही दिया। 
विनोद प्रभाकर जी को अपना उपन्यास भेंट करते हुये जयदेव चावरिया जी

राम पुजारी जी को अपना प्रथम उपन्यास भेंट करते हुये दिलशाद अली जी

लेखकों का मिलन। वाक्य स्वयं में रोमांच पैदा करता है। मैं उस रोमांच का प्रत्यक्षदर्शी था। यहाँ उपस्थित लेखकगण सोशल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे से परिचित अवश्य थे लेकिन प्रत्यक्ष मिलन का यह प्रथम अवसर था। लेकिन यहाँ लेखक मित्रों में उत्साह, उमंग औत अपनत्व था वह अविस्मरणीय है। 
सुरेश चौधरी जी पेशे से वकील हैं लेखन उनका शौक। एक अच्छे वकील को एक अच्छा वक्ता होना अतिआवश्यक है। और सुरेश चौधरी जी जितने अच्छी व्यक्ति हैं उतने ही अच्छे वक्ता भी। उपन्यास लेखन में हो सकता है व्याकरण दोष कर जायें लेकिन बोलते वक्त तो अर्द्ध विराम का भी समुचित प्रयोग करते नजर आते हैं।  उनकी वाणी, बोलने का लहजा और शब्दावली  विशिष्ट होते हैं। 

फखरे आलम जी को कहीं काम पर जाना था इसलिए वह जाने की जल्दी में थे। पर मेजबान साथी विनोद जी का आग्रह और बाकी साथियों की विनम्र प्रार्थना के चलते वह कुर्सी से उठते-उठते फिर बैठ जाते थे।  
   अभी कोल्ड ड्रिंक का दौर चल ही रहा था की आलोक जी ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दी। शांत स्वभाव के आलोक जी यहाँ  महत्वपूर्ण विषय हो अभी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते थे शेष समय शांतचित्त होकर बात सुनते रहे।
           यहाँ उपस्थित हर एक लेखक की अपनी-अपनी विशेषता रही है।‌ विनोद प्रभाकर जी उस समय के लेखक हैं जब लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का स्वर्णकाल था। विनोद प्रभाकर जी ने सुरेश साहिल जी के नाम से सामाजिक उपन्यास लेखन भी किया है।‌ सुरेश साहिल नाम कैसे पड़ा यह आगे देखते हैं।
वहीं आलोक जी का साहित्य मनोरंजक होते हुए भी अपनी एक अलग विशेषताएँ लिये हुये है। युवा लेखकों में दिलशाद अली जी के अब तक दो उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं 'सिटी आॅफ इविल' और 'युगांतर- एक प्रेम कथा' दोनों कथा स्तर पर नवीनता लिये हुये हैं। सिटी ओफ इविल तो लोकप्रिय साहित्य में एक नया प्रयोग है। और जयदेव चावरिया जी को अभी और मेहनत की अतिआवश्यकता है उनका एकमात्र उपन्यास'माइ फर्स्ट मर्डर केस' प्रकाशित हुआ है लेकिन उपन्यास का स्तर उस दौर की याद दिलाता है जब उपन्यास एक्शन से भरपूर होते थे।
    उपन्यासकार फखरे आलम खान जी सुरेश चौधरी दोनों सामाजिक उपन्यासकार हैं। समाज में घटित, वकालत क्षेत्र के अनुभवों को अपने उपन्यासों में प्रदर्शित करते हैं।
       लम्बी चर्चा के दौरान रामपुजारी का फोन आया की आप कहां हो? 
 मैंने बताया कि मैं तो यहाँ विनोद जी के फ्लैट पर हूँ और आपका इंतजार कर रहे हैं सभी। लेकिन रामपुजारी जी और सुबोध भारतीय जी प्रकाशन के संबंध में जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के पुत्र वीरेन्द्र शर्मा जी के पास गये हुये थे। और राम पुजारी के आग्रह पर मुझे लेखक मित्रों का साहित्यिक आयोजन एक बार बीच में छोड़ना पड़ा।
''क्षमा के साथ एक निवेदन है।"- मैंने कहा- "रामपुजारी जी का फोन आया है तो मैं एक बार उनके पास जा रहा हूँ और उन्हें साथ लेकर ही‌ लौटता हूँ।"
"गुरप्रीत जी, टिफिन का बोल दिया है, आप खाना खाकर ही जाना।"- विनोद प्रभाकर जी ने कहा।
" नहीं सर, राम पुजारी जी की गाड़ी नीचे (फ्लैट के नीचे)  पहुँच गयी होगी। मैं जल्दी वापस आता हूँ। " - मैंने कहा "और हाँ, कोई साथी यहाँ से जायेगा नहीं, जब तक मैं वापस नहीं आता।"
   हालांकि बीच आयोजन के ऐसे जाना उचित तो न था पर मुझे आबिद रिजवी जी के यहाँ कुछ काम था और फिर राम भाई का आग्रह न टाल सका।
  
  जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के घर पर श्री राम पुजारी जी, श्री सुबोध भारतीय जी और ओमप्रकाश शर्मा जी के पुत्र श्री वीरेन्द्र शर्मा जी से एक स्निग्ध मुलाकात हुयी।
   जिस कुर्सी पर बैठकर जनप्रिय जी लेखन करते थे वह कुर्सी आज भी अच्छी स्थिति पर ड्राइंग रूम में उपस्थित है। वहीं एक तरफ एक सैल्फ में ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास रखे हुये थे। यहाँ एक जानकारी यह भी मिली की ओमप्रकाश शर्मा जी का एक उपन्यास छोडकर बाकी सब उपन्यास संग्रह में उपलब्ध हैं। 
   वीरेन्द्र शर्मा जी ने विशेष आग्रह कर चाय पिलाई। वीरेन्द्र शर्मा जी और उनकी पत्नी का अपनत्व स्मरण रहेगा। 
   यहाँ से हम तीनों आदरणीय आबिद रिजवी साहब के घर पहुंचे। आबिद रिजवी जी से यह एक लम्बे समय पश्चात्‌ मुलाकात थी। इन दिनों वह अस्वस्थ थे, इसलिए कम ही बोल रहे थे। 
   बल्लू आबिद रिजवी जी का प्रिय शिष्य है। मेरा बल्लू से पूर्व परिचय भी रहा है। मैंने फोनकर बल्लू को बुलाया। जब मैं पहली बार मेरठ आया तो मुझे यहाँ से बहुत सारी किताबें मिली थी, तीन छोटे कार्टून। और वह किताबें आबिद जी के घर पर ही रखी हुयी थी। लगभग तीन साल पूर्व रखी हुयी किताबे ढूंढना मुश्किल कार्य था। बल्लू के सहयोग से हमने बहुत कोशिश की, परंतु वह किताबें न‌ मिली। हर संभावित स्थान पर खोज की, पर असफलता हाथ लगी।
    आबिद रिजवी के घर की एक विशेषता है और वह है महकदार, स्वादिष्ट चाय- नाश्ता। सुबोध भारतीय जी और राम पुजारी जी के मना करते हुये भी आबिद रिजवी जी की नातिन ने चाय-नाश्ते की प्लेटे सजा दी। 
  नाश्ते के दौरान चर्चा जारी रही। बाहर हल्की- हल्की बरसात होने लगी थी। सुबोध जी और रामपुजारी जी ने वहाँ से विदाई ली पर मैं और बल्लू पुनः पुस्तकें ढूंढने लगे। पर वह न मिली।
  मैंने भी आबिद रिजवी जी से विदाई ली और बल्लू मुझे बाईक  'ग्रीन विलेज' छोड़ने चल दिया।
  रास्ते में बल्लू ने एक बहुत अच्छी बात कही। और वह सत्य भी हुयी।
" बल्लू, आखिर वह किताबें कहां चली गयी? तीन कार्टून थे।"
"भईया, जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। आज किताबें नहीं मिली तो इसके पीछे कोई कारण तो होगा।"- बल्लू ने उत्तर दिया। 
वास्तव में बल्लू का यह कथन दूसरे दिन सत्य साबित हुआ।
      जब मैं पुनः ग्रीन विलेज विनोद प्रभाकर जी के फ्लैट पर पहुचा तो महफिल जारी थी और रामपुजारी जी तथा सुबोध जी भी इस महफिल में उपस्थित थे। लेखकों की यह महफिल प्रकाशक के बिना अधूरी थी, यह कमी श्री सुबोध भारतीय जी ने पूरी कर दी।
यहाँ एक बात बड़ी रोचक रही। राम पुजारी जी एक लेखक हैं, पर वह इस आयोजन में एक प्रकाशक के साथ आये थे। सुबोध भारतीय जी जब भी कोई प्रकाशन की बात करते तो बाकी सब मजाक में कहते की आप हमारी किताब पर कितनी राॅयल्टी दोगे।
" राॅयल्टी तो देंगे। बस कंटेंट अच्छा होना चाहिए। बाकी राम पुजारी जी को पता है वर्तमान में प्रकाशकों का क्या हाल है।"- सुबोध भारतीय जी ने कहा।
"राम पुजारी जी आप प्रकाशक की तरफ हैं या लेखकों की तरफ, पहले यह तय कर लीजिए।"- सुरेश चौधरी जी ने हँसते हुये कहा।
" मैं तटस्थ हूँ। "
"प्रकाशक के साथ आये हैं तो प्रकाशक का साथ देंगे।"- सुबोध जी ने कहा।
" राम पुजारी जी पहले लेखक हैं।"- आलोक जी कहा।
अब राम‌ पुजारी जी अजीब कशमकश में थे आखिर किसका पक्ष ले। यह हास्य वार्ता भी काफी रोचक रही। 
सुबोध भारतीय जी जब हँसते हैं तो दिल खोकर हँसते हैं। वहीं राम‌पुजारी जी धीमे से मुस्कुरा कर काम चला लेते हैं। 
"चलो सब लेखक सहयोग करे तो मिलकर एक कहानी संग्रह निकाला जा सकता है।"
"कैसा सहयोग?"- आलोक जी ने पूछा।
" सभी लेखक आर्थिक सहयोग करें और अपनी-अपनी कहानी भेजे तो हम एक कहानी संग्रह निकाल सकते हैं।"
"अच्छा, हम आर्थिक सहयोग करें।"- सुरेश जी की बुलंद आवाज गूंजी -" हम तो आपसे राॅयल्टी की उम्मीद कर रहे थे।"
"अब सोपिजन ने एक एक संयुक्त कथा संग्रह भी निकाला है।"- जयदेव जी ने कहा।
" हाँ, उसमे मेरी भी कहानी है।"- सुरेश जी ने कहा।
तब तक जयदेव जी सोपिजन का वह कहानी संग्रह निकाल लाये थे। 
"ये देखो।"- सुरेश जी कहा-" इसमें हमारी कहानी भी है और कोई आर्थिक सहयोग भी नहीं लिया गया।"
   इस किस्से को रोकते हुये विनोद प्रभाकर जी ने उपन्यास प्रकाशन के विषय में सुबोध जी से जानकारी लेनी आरम्भ की। एक समय विनोद प्रभाकर जी प्रकाशक रह चुके हैं। वर्तमान में दो निजी शिक्षण संस्थानों के स्वामी और संचालक हैं। अपने एक नये उपन्यास पर भी काम कर रहे हैं। उसी उपन्यास के विषय में सुबोध जी और विनोद जी की चर्चा चलती रही।
   इस प्रकार यह हास्य- व्यंग्य वार्ता तब तक चलती रही जब तक सुबोध जी और राम पुजारी जी ने विदा नहीं ली। दोनों के जाने के बाद एक बार शांति छा गयी और फिर सभी एक एक कर वहाँ से विदा हो गये।
पीछे रह गये मैं और जयदेव चावरिया जी।
 'साहित्य देश' ब्लॉग के माध्यम से मेरा और सहयोगी मित्रों का एक अल्प प्रयास है उपन्यास साहित्य का संरक्षण करना और इसी प्रयास हेतु मैं 'उपन्यास यात्रा' करता हूँ। इन यात्राओं में कुछ उद्देश्य पूर्ण हो जाते हैं और कुछ अधूरे रह जाते हैं, यही अधूरे उद्देश्य आगामी यात्रा की नींव रखते हैं। 
   साहित्य संरक्षण और साहित्य की जानकारी हेतु मेरठ में यह एक छोटा सा आयोजन किया गया था। जिसमें कुछ लेखक मित्रों से मिलना हुआ, कुछ जानकारी सांझा हुयी और उस से भी बढकर जो अपनत्व मिला वह अविस्मरणीय है। यहाँ संस्मरण लिखना तो उस क्षणों को याद रखने का एक छोटा सा माध्यम है क्योंकि उन‌ लम्बी बातों को इस छोटे से पृष्ठ में समेटना संभव ही नहीं।
इस यात्रा का शेष इस लिंक पर पढें- मेरठ उपन्यास यात्रा-भाग द्वितीय

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा काश मे भी वहां होता

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    1. Taskeen Ahmad जी, विश्व पुस्तक मेला-2023 में दिल्ली पधारिये, मुलाकात भी हो जायेगी।

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  2. शानदार पल, यादें ताजा हो गई, दिलशाद

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  3. वाह! पढ़कर ही उपस्थिति महसूस हो गई😊🙏

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  4. बहुत सुंदर विवरण। रोचक रही यह यात्रा।

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