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सोमवार, 30 अगस्त 2021

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की-05

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 05
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वेद जी ने 'विजय और केशव पंडित' का प्रूफ पढ़ा फार्म ओम जी की ओर बढ़ा दिया और 'शमा' काटकर 'समा' किये गये शब्द को दिखाकर बोले - "आप यह बताइये, इसमें क्या सही है? यहाँ 'शमा' आना चाहिए या 'समा'...?"
"समा आयेगा...!" -ओम जी ने सेकेण्ड की भी देरी किये बिना, मेरे द्वारा की गई करेक्शन स्वरूप लिखे गये 'समा' शब्द पर उंगली रख, तुरन्त ही जवाब दिया।
अगले ही पल जो हुआ, वह अप्रत्याशित था।
       एक झटके से वेद जी कुर्सी से उठे और टेबल पर आगे की ओर, मेरी तरफ झुकते हुए, उन्होंने अपना लम्बा हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया तथा मेरे सुकड़े और कोहनी से मुड़े हाथ को एकदम थाम, खींच कर तेजी से हिला दिया, फिर एक गोल्डन जुबली मुस्कान मेरे चेहरे पर फेंकते हुए बोले -"फिर तो बहुत अच्छा हुआ, मैंने तेरे से प्रूफ पढ़वा लिये, वरना ख्वामखाह गलती रह जाती!" 

       फिर सिर घुमा वेद जी ने सुरेश जैन जी को ओर देखा - "क्यों सही किया न योगेश को प्रूफ पकड़ा दिया..?"

सुरेश जी गर्दन हिलाकर मुस्कुराये। उस समय बोले कुछ नहीं। हालांकि बाद में ओम जी और मेरे साथ ढेरों बातों में वह भी खुलकर शामिल हुए।
दोस्तों, कुछ समझे...

बुधवार, 25 अगस्त 2021

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की -04

 कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी के साथ की -

प्रस्तुति- योगेश मित्तल
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      मनोज पाकेट बुक्स में जब वेद भाई ने छपना आरम्भ किया, उसके बाद मनोज पाकेट बुक्स में मेरे बहुत ज्यादा चक्कर नहीं लगे।
पर एक बार जब वहाँ पहुँचा, संयोगवश उस समय वेद भाई भी वहीं मौजूद थे ऑफिस में उनके अलावा सिर्फ गौरीशंकर गुप्ता जी थे। 
मनोज पाकेट बुक्स और राज पाकेट बुक्स के ऑफिस जब तक शक़्तिनगर में रहे, दोनों जगह मैं खुद को VIP शख्सियत जैसा महसूस करता रहा था।
      मनोज पाकेट बुक्स में तो मेनगेट से कोठी में दाखिल होकर, सीधे ही बायीं ओर बेसमेंट में जाने वाली सीढ़ियाँ थीं, जहाँ बाहर कोई दरबान नहीं होता था। 
मैं धड़धड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे उतर जाता और नीचे पहुँच जाता। सीढ़ियों के साथ गैलरी के दायें बायें केबिन थे। 

            दायीं ओर एकाउन्टेन्ट नवीन और प्रूफरीडर भूपेन्द्र के छोटे- छोटे केबिन थे, जबकि बायीं ओर थोड़ी खाली जगह, फिर एक बड़ा केबिन था, जिसका इन्ट्रेन्स डोर साइड में न होकर, नजरों के सामने ही पड़ता था। मैं हमेशा बिना किसी से कुछ पूछे इन्ट्रेन्स डोर खोल कर बॉस लोगों के केबिन में घुस जाता था। अन्दर घुसते ही इन्ट्रेन्स डोर वाली तरफ ही दो-तीन कुर्सियाँ रखी होती थीं, फिर एक लम्बी टेबल, जिसके पीछे केबिन की बैक दीवार से कुछ स्पेस रखती हुई, राजकुमार गुप्ता जी और गौरीशंकर गुप्ता जी की रिवाल्विंग कुर्सियाँ। 
     अग्रवाल मार्ग वाले मनोज पाकेट बुक्स के उस ऑफिस में मेरे अलावा भी सम्भवतः कुछ अन्य लोगों के लिए कोई रोक-टोक नहीं थी। अन्यथा अजनबी लोगों को एकाउन्टेन्ट नवीन ही एकदम रोक देता था। उसका केबिन इस तरह बना था कि सीढ़ियों से गैलरी तक उसकी तीक्ष्ण निगाह से किसी का भी बचना नामुमकिन था। मतलब साफ था कि नवीन की नजरों में आये बिना किसी का भी मनोज पाकेट बुक्स में आना-जाना असम्भव था।

मंगलवार, 24 अगस्त 2021

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की -03

कुछ यादें वेद प्रकाश शर्मा जी के साथ की - 03
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की - 02
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उन दिनों मैं मेरठ ही रह रहा था।
कभी देवीनगर में अपनी सबसे बड़ी बहन प्रतिमा जैन के यहाँ तो कभी हरीनगर के एक बहुत बड़े मकान के अलग-अलग पोर्शन में रहने वाले अपने चार मामाओं में से दूसरे नम्बर के मामाजी रामाकान्त गुप्ता जी के यहाँ या तीसरे नम्बर के मामाजी विजयकान्त गुप्ता के यहाँ सभी मामाओं के बच्चे मुझे सगे भाई जैसा मान और प्यार देते थे।
रामाकान्त मामाजी की पांचों बेटियों ने मुझे हमेशा सगे भाई जैसा मान और प्यार दिया है! उस समय बड़ी दो बेटियों संगीता और सविता का विवाह हो चुका था! छोटी तीनों बेटियों सरिता, अंजू और राखी के साथ अक्सर मैं लूडो या कैरमबोर्ड भी खेला करता था और कभी-कभी कोई कहानी भी सुनाता था, जबकि विजयकान्त मामाजी की बेटियाँ पूनम और नीलू तथा बेटे बबलू और टीनू मुझे देखते ही "भैया, कोई कहानी सुनाओ" की रट लगाकर घेर लेते थे।
रिश्तों और रिश्तेदारियों में उन दिनों बेपनाह और निस्वार्थ प्यार होता था और मुझे तो आज भी सभी से वही प्यार और सम्मान हासिल है। 
मामाजी का मकान ईश्वरपुरी की गली के तुरन्त बाद की गली का पहला ही मकान था। 
सुरेश जैन रितुराज
उस समय तक भारत में कामिक्स युग की शुरुआत हो चुकी थी और यहाँ पहली हंगामी शुरुआत करने का श्रेय 'एन. एस. धम्मी स्टुडियो' को जाता है, जिसका एक हिस्सा बालक हरविन्दर माँकड़ भी था, जो बाद में लोटपोट से जुड़ने के बाद कामिक्स जगत का सुपर स्टार बना।
        उस समय तक मैं नूतन कामिक्स, राज कामिक्स, मनोज कामिक्स और राधा कामिक्स के लिए अपना कुछ न कुछ योगदान दे चुका था। लेकिन यह किस्सा कामिक्स की दुनिया में फिर कभी....।
     आप सोचेंगे कि कामिक्स की दुनिया में एक नया आयाम लिखने वाले चचा चौधरी फेम के 'प्राण' का नाम न लेकर, मैंने एन. एस. धम्मी और हरविन्दर माँकड़ का जिक्र क्यों किया है तो सच्चाई और आँकड़ों के साथ इस विषय पर विस्तार से कामिक्स की दुनिया के कालम में लिखूँगा।

नये उपन्यास-2021,

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