वह विनय प्रभाकर भी है और रामनारायण पासी भी और मेरे पापा है- दीपक पासी
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में विनय प्रभाकर को एक छद्म लेखक के तौर पर जाना जाता है। लेनिक इस छद्म लेखक के पीछे एक चेहरा और है और वह चेहरा है रामनारायण पासी का। रामनारायण पासी जी ने विनय प्रभाकर के नाम से अधिकांश उपन्यास लिखे हैं और 'नाना पाटेकर' जैसा जीवंत किरदार उपन्यास साहित्य को दिया है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में विनय प्रभाकर को एक छद्म लेखक के तौर पर जाना जाता है। लेनिक इस छद्म लेखक के पीछे एक चेहरा और है और वह चेहरा है रामनारायण पासी का। रामनारायण पासी जी ने विनय प्रभाकर के नाम से अधिकांश उपन्यास लिखे हैं और 'नाना पाटेकर' जैसा जीवंत किरदार उपन्यास साहित्य को दिया है।
रामनारायण पासी के सुपुत्र दीपक पासी से जाने उनके बारे में।
एक समय था जब मनोरंजन का मुख्य साधन था उपन्यास ।वेद प्रकाश शर्मा और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे कई उपन्यास लेखक उस समय एक स्टार थे।
इन्हीं में से एक थे विनय प्रभाकर। विनय प्रभाकर द्वारा लिखे उपन्यास की काफ़ी माँग थी। बहुत से लोग उन्हें पढ़ा करते थे।
बहुत कम लोगों को पता है विनय प्रभाकर के नाम से लिखने वाले अधिकतर उपन्यास श्री राम नारायण पासी जी ने लिखा था। विनय प्रभाकर की मेजर नाना पाटेकर सीरीज के तो सारे उपन्यास रामनारायण पासी जी ने ही लिखा थे।
बहुत कम लोगों को पता है और मैंने भी कभी पब्लिक प्लेटफ़ोरम पर इसका ज़िक्र नहीं किया की विनय प्रभाकर के नाम से उपन्यास लिखने वाले रामनारायण पासी जी मेरे पिताजी है।
विनय प्रभाकर के नाम से तक़रीबन सभी उपन्यास पापा ने ही लिखे थे। इसके अलावा कुछ उपन्यास अर्जुन पंडित और दूसरों के नाम से भी लिखे थे। थ्रिलर और सस्पेंस के साथ साथ प्रकाशक जो भी विषय कहते हर उस सब्जेक्ट पर लिखने में महारत हासिल थी पापा को। पापा ने काफ़ी प्रयास किया की कुछ उपन्यास उनके नाम से भी छपे, इसलिए प्रकाशकों ने जो कहा वह लिखते गए पर प्रकाशकों ने सिर्फ़ आश्वासन दिया।
कई पत्र - पत्रिकाओं में भी उस समय लिखते रहते थे। मुंबई में थे तो फ़िल्मों और TV सीरियल के लिए भी उन्होंने प्रयास किया। कई साल फ़िल्म राइटर असोसियशन के मेम्बर भी थे । पर हमारे समाज में पापा के पीढ़ी के लोग बहुत स्वाभिमानी होते है चाहे जो हो जाय किसी के सामने झुकेंगे नहीं स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगे। और फ़िल्मी दुनिया में तो जगज़ाहिर है अपने स्वाभिमान को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ सकते और अगर आप SC समाज से है तो फिर तो कहाँ की बात। पापा को किसी के सामने झुकना, चापलूसी करना, जी हजुरी पसंद नहीं था नतीजा वहाँ भी धोखा मिला। कोई सहायता करने वाला भी नहीं था। इसलिए उन्होंने लिखना ही छोड़ दिया।
पिछले साल 2019 में पापा रिटायर हुए है और अब मुंबई से जाकर वह हमारे गाँव प्रतापगढ़, सांगीपुर में खेती में कुछ रीसर्च कर रहे है। पापा ने कहा अब लिखने के क्षेत्र में नहीं जाना है खेती के क्षेत्र में कुछ रीसर्च करने का शौक़ है।
पापा हमेशा ही कुछ नया सीखने में व्यस्त रहते है। रिटायर होने के कुछ साल पहले कम्प्यूटर और लैपटॉप चलाने में भी दक्षता हासिल कर ली। अभी कुछ महीना पहले कार ड्राइविंग करना भी सिख लिया है वह भी बिना ड्राइविंग क्लास गए।
पापा की वजह से मैं भी थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ और मेरा लिखा भी लोग पसंद करते है। बचपन से ही उन्हें बहुत पढ़ते और लिखते देखता रहा। पापा की वजह से ही लिखने पढ़ने में मुझे भी इंट्रेस्ट हुआ और पापा की वजह से ही मुझमें भी लेखन के थोड़े गुण आ गए है।
उस समय पापा को कोई सहयोग करने वाला नहीं था इसलिए तक़रीबन 40 से ज़्यादा किताबें लिखने के बावजूद पापा को कोई पहचान नहीं मिल पाई। विनय प्रभाकर, अर्जुन पंडित जैसे नाम को तो लोग देश भर में जानते थे पर रामनारायण पासी को लोग नहीं जानते और इस तरह समाज की एक और प्रतिभा दब गई।
प्रस्तुति- दीपक पासी (रामनारायण पासी के पुत्र)
बहुत कम लोगों को पता है विनय प्रभाकर के नाम से लिखने वाले अधिकतर उपन्यास श्री राम नारायण पासी जी ने लिखा था। विनय प्रभाकर की मेजर नाना पाटेकर सीरीज के तो सारे उपन्यास रामनारायण पासी जी ने ही लिखा थे।
बहुत कम लोगों को पता है और मैंने भी कभी पब्लिक प्लेटफ़ोरम पर इसका ज़िक्र नहीं किया की विनय प्रभाकर के नाम से उपन्यास लिखने वाले रामनारायण पासी जी मेरे पिताजी है।
रामनारायण पासी/ विनय प्रभाकर |
कई पत्र - पत्रिकाओं में भी उस समय लिखते रहते थे। मुंबई में थे तो फ़िल्मों और TV सीरियल के लिए भी उन्होंने प्रयास किया। कई साल फ़िल्म राइटर असोसियशन के मेम्बर भी थे । पर हमारे समाज में पापा के पीढ़ी के लोग बहुत स्वाभिमानी होते है चाहे जो हो जाय किसी के सामने झुकेंगे नहीं स्वाभिमान से समझौता नहीं करेंगे। और फ़िल्मी दुनिया में तो जगज़ाहिर है अपने स्वाभिमान को साथ लेकर आगे नहीं बढ़ सकते और अगर आप SC समाज से है तो फिर तो कहाँ की बात। पापा को किसी के सामने झुकना, चापलूसी करना, जी हजुरी पसंद नहीं था नतीजा वहाँ भी धोखा मिला। कोई सहायता करने वाला भी नहीं था। इसलिए उन्होंने लिखना ही छोड़ दिया।
पिछले साल 2019 में पापा रिटायर हुए है और अब मुंबई से जाकर वह हमारे गाँव प्रतापगढ़, सांगीपुर में खेती में कुछ रीसर्च कर रहे है। पापा ने कहा अब लिखने के क्षेत्र में नहीं जाना है खेती के क्षेत्र में कुछ रीसर्च करने का शौक़ है।
पापा हमेशा ही कुछ नया सीखने में व्यस्त रहते है। रिटायर होने के कुछ साल पहले कम्प्यूटर और लैपटॉप चलाने में भी दक्षता हासिल कर ली। अभी कुछ महीना पहले कार ड्राइविंग करना भी सिख लिया है वह भी बिना ड्राइविंग क्लास गए।
पापा की वजह से मैं भी थोड़ा बहुत लिख लेता हूँ और मेरा लिखा भी लोग पसंद करते है। बचपन से ही उन्हें बहुत पढ़ते और लिखते देखता रहा। पापा की वजह से ही लिखने पढ़ने में मुझे भी इंट्रेस्ट हुआ और पापा की वजह से ही मुझमें भी लेखन के थोड़े गुण आ गए है।
उस समय पापा को कोई सहयोग करने वाला नहीं था इसलिए तक़रीबन 40 से ज़्यादा किताबें लिखने के बावजूद पापा को कोई पहचान नहीं मिल पाई। विनय प्रभाकर, अर्जुन पंडित जैसे नाम को तो लोग देश भर में जानते थे पर रामनारायण पासी को लोग नहीं जानते और इस तरह समाज की एक और प्रतिभा दब गई।
प्रस्तुति- दीपक पासी (रामनारायण पासी के पुत्र)
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उपन्यास समीक्षा
Kya hawaldar bahadur bhi aapne he likhi hai sir
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