सुरेन्द्र मोहन पाठक जी मर्डर मिस्ट्री लेखन के लिए विख्यात, वहीं उनके उपन्यासों में हास्यरस भी देखने को मिलता है। पाठक जी के प्रिय पात्र पत्रकार सुनील चक्रवर्ती के मित्र रमाकांत अपने विशेष अंदाज के लिए जाने जाते हैं।
उपन्यास 'काॅनमैन' का एक दृश्य देखें जहां रमाकांत एक युवती के साथ कैसे हास्य अंदाज में बातचीत करते हैं।
रमाकान्त ने उसके बालों की तरफ उंगली उठाई।
"ये विग है ?” वो बोला ।
“नहीं।” वो बड़े सब्र से बोली।
“विग है। "
“नहीं, भई ।”
"मेरे खयाल से तो विग है !”
“तुम्हारा खयाल गलत है।”
“विग है. मोतियांवालयो।”
“अच्छा, भई, विग है।"
“कमाल है? लगता तो नहीं !"
युवती ने आंखें तरेरीं।
"ये विग है ?” वो बोला ।
“नहीं।” वो बड़े सब्र से बोली।
“विग है। "
“नहीं, भई ।”
"मेरे खयाल से तो विग है !”
“तुम्हारा खयाल गलत है।”
“विग है. मोतियांवालयो।”
“अच्छा, भई, विग है।"
“कमाल है? लगता तो नहीं !"
युवती ने आंखें तरेरीं।