उपन्यास साहित्य और मेरठ - प्रवीण जैन
नो ड़ाऊट, मेरठ की पहचान को जासूसी उपन्यासो, लुगदी लिटरेचर, पॉकेट बुक पब्लिशर्स ने नया आयाम दिया। मगर मेरठ की अपनी अलग पहचान भी रही है, 1857 के स्वंत्रता संग्राम से भी पहले की । यह पहचान थी उस नौचंदी मेले से जो 1672 से पशुओं की खरीद फरोख्त के मेले से शुरु हुआ। जिसके नाम पर मेरठ से लखनऊ तक रेगुलर एक ट्रेन नौचंदी एक्सप्रेस चलती है और जैसा की किवदन्तियो मे कहा जाता है, देवी पार्वती के उस मन्दिर के सामने गढ़ रोड पर लगने से है जिसे रावण की पटरानी मंदोदरी ने देवी भक्त होने के कारण बनवाया था। आपके कोई मित्र परिचित, रिश्तेदार मेरठ मे हो और नौचंदी मेला देखने के लिये आमन्त्रित न करे, यह तो हो ही नही सकता था, कम से कम 80 के दशक तो बिल्कुल नही।
1672 से अब तक मेला दो बार सिर्फ 1858 और 2020 मे मुल्तवी हुआ है।
मेरठ के पॉकेट बुक बाज़ार मे आने से पहले इलाहबाद ( अब प्रयागराज) जासूसी, सामाजिक, थ्रिलर, अपराध कथाओ के पब्लिकेशन का गढ़ था। निकहत पब्लिकेशंस, कुसुम प्रकाशन, मित्र प्रकाशन जैसे नामी ग्रामी प्रकाशक इलाहबाद मे ही थे। क्या खूब छापा इन्होने, जासूसी दुनिया, रहस्य , मनोरमा, मनोहर कहानियाँ, माया, मनमोहन ( बाल पत्रिका) सत्य कथा जैसे मासिक उपन्यास और रिसाले यहीं से छपे। जिसे हम लुगदी पेपर पर छपा होने से लुगदी साहित्य कहते सुनते है उसकी शुरुआत न्यूज़ प्रिंट पेपर पर बुक साईज़ से हुई थी।