साहित्य देश के स्तम्भ 'उपन्यास अंश' में इस बार प्रस्तुत है प्रसिद्ध उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा जी के पुत्र शगुन शर्मा जी के उपन्यास 'तथास्तु' का एक रोचक अंश।तथास्तु - शगुन शर्मा
अपने आलीशान चैंबर में अपनी ऊंची पुश्तगाह वाली चेयर पर मौजूद रागिनी ने रिवाल्विंग चेयर को घुमाया और अपने सामने मेज के पार बैठे शख्स का खुर्दबीनी से मुआयना किया।
रागिनी का पूरा नाम रागिनी माथवन था। वह यौवनावस्था के नाजुक दौर को पहुंची किसी ताजा खिले गुलाब-सी सुंदर युवती थी उसकी आवाज में जैसे जादू और आंखों में हद दर्जे का आकर्षण था। बला के हसीन चेहरे पर शैशव का अल्हड़पन तथा गजब का आत्मविश्वास था।
वह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड की नामचीन प्लेबैक सिंगर थी और आज निर्विवाद रूप से वालीवुड की टॉप सिंगर कही जाती थी। उसकी मधुर आवाज हिंदुस्तान के कोने-कोने में गूंज रही थी।
महज उन्नीस बरस की आयु में यह आज कामयाबी की उस बुलंदी पर पहुंच चुकी थी जो केवल विरलों को ही नसीब होती थी।
उसके सामने बैठे शख्स का नाम भीखाराम भंसाली था। जो कि बाॅलीवुड का सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक था। जिसकी वालीवुड में चौतरफा डिमांड थी और जिसके बारे में यह कहते आम सुना जा सकता था कि किसी फिल्म के साथ उसका नाम जुड़ना ही उस फिल्म की कामयाबी की लगभग गारंटी था।
रागिनी को इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर भंसाली के चेहरे पर असंमजस के भाव आ गए।
"लगता है मुझे यहां देखकर आपको कोई खुशी नहीं हुई मिस रागिनी?" भंसाली तनिक खिन्न भाव से बोला ।
"यह आपकी गलतफहमी है जनाब भंसाली साहब।" दुनिया की सबसे मथुर आवाज की स्वामिनी ने अपने होठों पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट लाते हुए कहा- "आप जैसी शख्सियत से मिलकर भला कौन होगा जो खुश नहीं होगा। खैर... जाने दीजिए।" उसने निःश्वास
भरी- 'और यह बताइए कि आप क्या लेना पसंद करेंगे। ठंडा या... ।"
रागिनी का पूरा नाम रागिनी माथवन था। वह यौवनावस्था के नाजुक दौर को पहुंची किसी ताजा खिले गुलाब-सी सुंदर युवती थी उसकी आवाज में जैसे जादू और आंखों में हद दर्जे का आकर्षण था। बला के हसीन चेहरे पर शैशव का अल्हड़पन तथा गजब का आत्मविश्वास था।
वह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड की नामचीन प्लेबैक सिंगर थी और आज निर्विवाद रूप से वालीवुड की टॉप सिंगर कही जाती थी। उसकी मधुर आवाज हिंदुस्तान के कोने-कोने में गूंज रही थी।
महज उन्नीस बरस की आयु में यह आज कामयाबी की उस बुलंदी पर पहुंच चुकी थी जो केवल विरलों को ही नसीब होती थी।
उसके सामने बैठे शख्स का नाम भीखाराम भंसाली था। जो कि बाॅलीवुड का सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक था। जिसकी वालीवुड में चौतरफा डिमांड थी और जिसके बारे में यह कहते आम सुना जा सकता था कि किसी फिल्म के साथ उसका नाम जुड़ना ही उस फिल्म की कामयाबी की लगभग गारंटी था।
रागिनी को इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर भंसाली के चेहरे पर असंमजस के भाव आ गए।
"लगता है मुझे यहां देखकर आपको कोई खुशी नहीं हुई मिस रागिनी?" भंसाली तनिक खिन्न भाव से बोला ।
"यह आपकी गलतफहमी है जनाब भंसाली साहब।" दुनिया की सबसे मथुर आवाज की स्वामिनी ने अपने होठों पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट लाते हुए कहा- "आप जैसी शख्सियत से मिलकर भला कौन होगा जो खुश नहीं होगा। खैर... जाने दीजिए।" उसने निःश्वास
भरी- 'और यह बताइए कि आप क्या लेना पसंद करेंगे। ठंडा या... ।"