यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 05
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वेद जी ने 'विजय और केशव पंडित' का प्रूफ पढ़ा
फार्म ओम जी की ओर बढ़ा दिया और 'शमा' काटकर 'समा' किये गये शब्द को दिखाकर बोले - "आप यह
बताइये, इसमें क्या
सही है? यहाँ 'शमा' आना चाहिए या 'समा'...?"
"समा आयेगा...!" -ओम जी ने सेकेण्ड की भी देरी किये बिना, मेरे द्वारा की गई
करेक्शन स्वरूप लिखे गये 'समा' शब्द पर उंगली रख, तुरन्त ही
जवाब दिया।
अगले ही पल जो हुआ, वह अप्रत्याशित था।
एक झटके से वेद जी कुर्सी से उठे और टेबल पर आगे की
ओर, मेरी तरफ
झुकते हुए, उन्होंने अपना लम्बा हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया तथा मेरे सुकड़े और कोहनी से मुड़े
हाथ को एकदम थाम, खींच कर तेजी से हिला दिया, फिर एक गोल्डन
जुबली मुस्कान मेरे चेहरे पर फेंकते हुए बोले -"फिर तो बहुत अच्छा हुआ, मैंने तेरे से
प्रूफ पढ़वा लिये, वरना ख्वामखाह गलती रह जाती!"
सुरेश जी गर्दन हिलाकर मुस्कुराये। उस समय बोले कुछ
नहीं। हालांकि बाद में ओम जी और मेरे साथ ढेरों बातों में वह भी खुलकर शामिल हुए।
दोस्तों, कुछ समझे...?