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गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

लोकप्रिय साहित्य के लिए...

               साहित्य देश ब्लॉग के लिए
       इस असीम(लोकप्रिय साहित्य के) महासागर का अभी मैं अंजुली भर जल हूँ, इस बारे में कुछ लिखूं ये मेरा सौभाग्य है।
अपने से पहले वाले लेखकों को प्रणाम करते हुए मैं अपनी बात शुरू करता हूं (गलतियां सारी मेरी, बधाइयां सारी वरिष्ठ लेखकों की)।

   "वो किताब, किताब नहीं जिसका कोई पाठक न हो।
   वो किताब, किताब नहीं जो पुस्तकालय में सिर्फ सजती हों।"

      बड़े भैया के उपन्यासों को छुप छुप कर पढ़ना शुरू किया तो मैं सातवीं में था। संडे मॉर्निंग मिक्की माउस कार्टून देखने के लिए बेकरार रहता था और, इवनिंग में विक्रम-बेताल।
            कॉमिक्स की दुनियां में नागराज पैदा ही हुआ था और, सुमन-सौरभ, नंदन, राम-रहीम, राजन-इक़बाल औऱ बिल्लू, चाचा चौधरी जलवा बिखेर रहे थे।
             उसी दौरान भैया अपने  दोस्तों के साथ विजय की बातें किया करते थे। मेरी उत्सुकता का कोई ठिकाना नहीं था जब मैं भैया को तुकबंदी करते हुए विजय बनने की कोशिश करते देखा करता था।
         फिर किसी दिन ओमप्रकाश शर्मा जी का नॉवेल भी देखा। इतनी बड़ी-बड़ी किताबें कैसे पड़ते हैं भैया... वो भी बिना चित्रों के। ये सवाल था मेरा।
         फिर भैया पढ़ाई के बाद कंप्यूटर कोर्स करने लगे।
हमारी भाभी (जो बड़े भैया की भी भाभी थीं) उन दिनों रानू, गुलशन नन्दा और जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा के नॉवेल पढ़ा करती थीं। सवाल वही की बिना चित्रों के कैसे इतने मोटे नॉवेल पढ़ती हैं।
            खैर,  वक़्त गुज़रा (वक़्त हमेशा क्या तेज़ी से ही गुजरता है ?)। भैया अपनी ज़िंदगी में - नौकरी में बिजी हो गए। बड़ी भाभी जी बच्चों में और फिर ज़माना भी बदल गया-नॉवेल, कॉमिक की जगह टीवी आ गया। फिर भी यदा-कदा घर में कॉमिक्स और नोवेल्स के दर्शन हो ही जाते थे(ये शौक़ इतनी आसानी से जाता भी नहीं)।
           स्कूलिंग के बाद  मेरा इंजीनियरिंग में एडमिशन हुआ। चार साल दुनियां से बेखबर पढ़ाई और मौज मस्ती में गुजरे गए। पढ़ने का सिलसिला टूट-सा गया। फिर नौकरी औऱ छोकरी ने वक़्त न दिया।
             आशिकी में जब कुछ न कर पाए तो नौकरी ही कर लें-इस भावना से दिलो दिमाग को अपने ऑफिस में गिरवी रख दिया। नतीज़ा ये की इमेज अच्छी बन गयी, और हम भी सीनियर हो गए।
        ऐसे में एक दिन दिल्ली में निर्भया कांड हो गया जो मुझे रुला गया (मैं कई सालों से रोया नहीं था-पिता जी के न रहने पर भी)।
      फिर मेरा एक्सीडेंट हो गया(बहुत अच्छा हुआ!) और मैं 4 महीनें बेड पर रहा। ऐसे में मैंने वक़्त गुजरने के लिए कुछ लिखना-पढ़ना शुरू किया तो भैया ने कुछ पुराने नॉवेल दिए(उस वक़्त तो मना करते थे)। मैंने पढ़े औऱ पढ़ता ही गया।
सब पढ़ा-कम्बोज जी, ओमप्रकाश जी, पाठक जी, रानु जी, गुलशन  नंदा जी कुछ जीवनियां भी पढ़ी जो आबिद रिज़वी जी की लिखी हुई थीं।
             और आज तक पढ़ रहा हूँ सोचता हूँ कि हर चीज में कुछ न कुछ सकारात्मक होता है तो एक्सीडेंट ने मुझे लोकप्रिय साहित्य की दुनियां से परिचय करवा दिया। आजकल शरतचन्द्र, टैगोर, प्रेमचंद, कृष्णचंदर के आलवा वेद प्रकाश कंबोज जी,सुरेंद्र मोहन पाठक जी, जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी, वेदप्रकाश शर्मा जी सभी पढ़ रहा हूं। जो मिल जाता है चन्दर, आरिफ मरहवीं, कुशवाहा कांत, शिवानी पढ़ने की कोशिश करता हूँ।

अब समझ आने लगा है कि बिना चित्रों के कैसे इतनी मोटी नावेल पढ़ी जाती है/थी।

         ये एक अजीब ही दुनियां है। इसमें पुराने समय के दिग्गज और नए जमाने के लेखक दोनों ही अपनी लेखनी से मनोरंजन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
            जब गृहकार्य से निपट कर महिलायें किसी लव स्टोरी को पढ़ती थीं और अपने सर्किल में इनके पात्रों के बारे में बतियाती थीं, ठीक ऐसे ही जैसे आजकल सीरियल की डिस्कशन होती है। वो दिन क्या कभी लौट के आएंगे--किसी ने पूछा था क्या ऐसा हो सकता है।
              होने को तो सभी कुछ हो सकता है पर उसके लिए तो हमें अपनी धरोहरों को बचाना होगा। उस सहित्य को जीवंत रखना होगा जिसकी मशाल को एक सदी से पहले के लेखकों ने हमारे हाथों में दी।
        इस उद्देश्य को ध्यान में रख कर श्री गुरप्रीत सिंह जी ने साहित्य ब्लॉगस्पोट के जरिये एक शुरुआत की है -उस दौर के सुनहरे इतिहास को, किस्सों को, लेखकों की कहानियों को और लुगदी साहित्य कहे जाने वाले इस लोकप्रिय साहित्य को संजोने की।
सौभाग्य से
कम्बोज जी, पाठक जी,आबिद जी, योगेश मित्तल जी, धरम राकेश जी, अनिल मोहन जी (अन्य किसी लेखक के बारे सूचित करें) आज हमारे बीच हैं जिनके सामने ये इतिहास बना था।

राम 'पुजारी'
( लेखक 'अधूरा इंसाफ...एक और दामिनी' तथा 'लव जिहाद...एक चिड़िया' जैसी चर्चित उपन्यासों के लेखक हैं।)
राम पुजारी

सफलता के दो वर्ष

साहित्य देश ब्लॉग के दो वर्ष पूर्ण होने पर...

        समस्त पाठक मित्रों को ब्लॉग के दो वर्ष पूर्ण होने पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
         साहित्य देश ब्लॉग और लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के समस्त पाठकों के स्नेह और सहयोग से ब्लॉग ने अपने सफलतापूर्वक दो वर्ष पूर्ण कर लिये।
      ब्लॉग का निर्माण 'लोकप्रिय साहित्य संरक्षण' (उपन्यास लेखक और उपन्यासों की जानकारी) के लिए किया गया था। धीरे-धीरे उद्देश्य विस्तृत होते गये।
           मेरा बचपन साहित्य पठन में ही बीता है, समय के साथ परिवर्तन होते गये और मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन आया और इसी परिवर्तन की चपेट में उपन्यास जगत अंधेरे में खोता चला गया। सन् 2017 में जब सोशल मीडिया के माध्यम से मैं पाठक मित्रों के संपर्क में आया तब पाठक एक-दूसरे से लेखकों के उपन्यासों के नाम पूछा करते थे। किसी के पास कोई संतुष्टिजनक उत्तर नहीं होता था। वहीं अगर किसी लेखक के जीवन के विषय में कोई बात चलती तो एक-दो लेखकों के अतिरिक्त किसी लेखक का कोई पता ही नहीं चलता था। हालांकि बहुत से अच्छे लेखक थे, उनके उपन्यासों की आज भी चर्चा होती है।
            बस यहीं से मुझे प्रेरणा मिली की लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के लिए कुछ किया जाये और उसी का परिणाम है साहित्य देश ब्लॉग।

          साहित्य देश ब्लॉग/टीम इस उद्देश्य के साथ आरम्भ हुआ था की लोकप्रिय उपन्यास साहित्य संरक्षण के लिए 'कुछ' किया जाये। यह 'कुछ' किस स्तर का होगा यह हालांकि तय न था। लेकिन फिर भी एक प्रयास था की लेखकों की जानकारी एकत्र की जाये और आज सभी सहयोगी मित्रों की प्रेरणा और मदद से हमने बहुत से ज्ञात और अज्ञात लेखकों की जानकारी एकत्र की और ब्लॉग पर शेयर की। इसी क्रम में 'साहित्य देश' नाम से YouTube चैनल पर कुछ साक्षात्कार भी प्रस्तुत किये। youtube  चैनल लिंक साहित्य देश

   ब्लॉग पर दो सौ से ज्यादा लेखक की जानकारी उपलब्ध है (हालांकि यह अधूरी है) और इन दो सालों में साठ हजार से भी ज्यादा बार ब्लॉग को पाठकों द्वारा पढा (देखा) गया है। यह सब पाठक मित्रों के सहयोग का ही परिणाम है। इन दो वर्षों में कुछ अनुभव भी मिले, जो भविष्य में सहायक हो।
                  बहुत से पाठक मित्रों के पास आज भी पुराने उपन्यास उपलब्ध हैं लेकिन पता नहीं किस संकोचवश वे उनको शेयर नहीं कर पा रहे। एक किस्सा याद आ रहा है। मेरे एक दोस्त के पास कुछ उपन्यास थे। वह किसी को भी पढने के लिए नहीं देता था‌। उनको छुपा कर रखता। एक दिन उनके घर वालों ने घर की सफाई की तो वो सब उपन्यास रद्दी वाले को बेच दिये। उस दोस्त ने एक दिन यह घटना मुझे बताई की मेरे सारे उपन्यास घरवालों ने बेच दिये। यह किस्सा सिर्फ पाठकों तक ही सीमित नहीं, लेखकों तक विस्तृत है।
          यही स्थिति अधिकांश पाठकों के साथ हो रही है। वे अपने संग्रह को सार्वजनिक नहीं करना चाहते। वक्त का पता भी नहीं चलेगा और सब खत्म हो जायेगा। अगर हम पुराने उपन्यासों को ONLINE उपलब्ध करवा सके तो यह बहुत अच्छा रहेगा। हालांकि ज्यादातर इसमें प्रकाशक और लेखक की सहमति का झंझट है। आज न तो वे प्रकाशक रहे और न ही लेखक। एक बार मैंने एक लेखक से बात की और उनसे कहां की आप अपने उपन्यास ONLINE उपलब्ध करवा दीजिएगा तो लेखक महोदय ने कहा 'एक दिन फिर वही दौर आयेगा और मेरे उपन्यास उसी प्रकार पुन: बिकेंगे'। अब यह पता नहीं कब संभव होगा।
            मेरा उद्देश्य किसी को बुरा बताना नहीं है। मेरे कहने का तात्पर्य मात्र यही है की उपन्यास साहित्य संरक्षण के लिए कोई भी गंभीर नहीं है। न प्रकाशक, न लेखक और न पाठक। आज अगर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को छोड़ दिया जाये तो और किसी लेखक के पास स्वयं के उपन्यासों की व्यवस्थित सूची उपलब्ध नहीं है।

         ‌ब्लॉग पर ऐसे बहुत से पाठक आते हैं जो पुराने लेखकों को पढना चाहते हैं लेकिन हमारे पास ऐसा कोई विकल्प ही नहीं है जो उन्हें उपन्यास उपलब्ध करवा सके। अगर देखा जाये तो हिन्दी जासूसी उपन्यास साहित्य (Pulp fiction) के क्षेत्र में आज तक कोई सार्थक कार्य हुआ ही नहीं। किसी ने भी इस क्षेत्र में, इस क्षेत्र के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम तक नहीं उठाया।
         आज अधिकांश लेखकों का तो अता-पता भी नहीं, और जिनके विषय में जानकारी है उनके उपन्यास तक स्वयं उनके पास भी उपलब्ध नहीं और जिनके पास कुछ उपन्यास उपलब्ध हैं वे कहीं भी Online उपलब्ध नहीं करवा पा रहे।
वर्तमान उपन्यास साहित्य चाहे एक लाभदायक व्यवसाय नहीं है लेकिन आप एक समर्पित व्यक्तित्व की तरह इसके लिए कुछ कर सकते हैं। आपकी कृतियां तो सुरक्षित रहेंगी। आप का नाम तो अमिट रहेगा, पाठक तो आपको याद करेंगे।
           हमारा प्रयास है पुराने लेखकों के उपन्यास भी सुरक्षित किये जायें अगर संभव हो तो उनका पुनः प्रकाशन किया जाये या Online पाठन हेतु प्रस्तुत किये जायें। यह काम किसी भी एक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं है यह तो एक टीमवर्क के द्वारा ही संभव है।
             उपन्यास साहित्य संरक्षण के लिए साहित्य देश ब्लॉग के अतिरिक्त और भी बहुत से मित्र सक्रिय हैं लेकिन कोई सामूहिक प्रयास नजर नहीं आता। लेकिन जो भी प्रयासरत है उनका कार्य प्रशंसनीय है। हालांकि अब कुछ लेखक भी सक्रिय हुये हैं‌ लेकिन यह सक्रियता अभी अधूरी है।
              दो वर्ष पूर्ण होने पर साहित्य देश ब्लॉग अपने पाठकों के लिए कुछ न कुछ नया विचार लाता रहेगा। इसी क्रम में लेखक 'राम पुजारी' का आर्टिकल लोकप्रिय साहित्य के लिए.. भी ब्लॉग पर प्रकाशित है। अगर संभव हुआ तो हम कुछ उपन्यास भी ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे। (अगर कोई अच्छा टाइपिस्ट मिल गया तो)।
            वर्तमान में बहुत से लेखक हमारे संपर्क में हैं लेकिन समयाभाव के कारण उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा और उनके साक्षात्कार भी ब्लॉग पर प्रकाशित नहीं कर पा रहे।
             उपन्यास जगत के सभी पाठक, लेखक और प्रकाशक मित्रों से निवेदन है की हम सामूहिक रूप से इस क्षेत्र के लिए प्रयास करें। आज अनिवार्यता महसूस हो रही है की हमें कोई सामूहिक और ठोस कार्य करना चाहिए ताकी इस विरासत को सुरक्षित किया जा सके। आप भी अपने क्षेत्र में देखेंगे तो कोई‌ न कोई लेखक शायद नजर आ जाये। आज जरूरत हैं उन लेखकों को उनका उचित सम्मान देने की जिन्होंने साहित्य लेखक कर हमें मनोरंजन प्रदान किया।
          हमें उम्मीद है आपका सहयोग लोकप्रिय उपन्यास साहित्य संरक्षण में सहयोगी साबित होगा।
             एक बार पुनः उन पाठक मित्रों का हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने उपन्यास जगत से संबंधित जानकारी हमें प्रदान की।
आओ हम सब मिलकर कदम बढायें।
आपके उत्तर का इंतजार रहेगा।

साहित्य देश टीम
Email- sahityadesh@gmail.com


शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

मृगेन्द्र नाथ

नाम - मृगेन्द्रनाथ
जासूसी उपन्यासकार मृगेन्द्र नाथ के विषय में सामान्य सी जानकारी प्राप्त हुयी है। अप्राप्य जानकारी अनुसार मृगेन्द्रनाथ मध्य प्रदेश के रिवा जिले के निपनिया से संबंधित हैं। (उपन्यास में यह एड्रेस है) इनके उपन्यास सरोज पॉकेट बुक्स और माया पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुये हैं। 
 'सरोज पॉकेट बुक्स' का एड्रेस भी वही है जो लेखक महोदय का है। इसी पॉकेट बुक्स से 'सरोज' नामक उपन्यासकार के उपन्यास भी प्रकाशित हुये हैं।
 उक्त लेखक के विषय में किसी के पास कोई भी जानकारी हो तो अवश्य संपर्क करें।
धन्यवाद।
सम्पर्क
सरोज पॉकेट बुक्स/ मृगेन्द्रनाथ
1/132, निपनिया
जिला- रीवा, मध्य प्रदेश

मृगेन्द्र नाथ के उपन्यास
1. मुझे फांसी चढा दो
2. खून से नहला दूंगा
3. लूट की दुल्हन

सरोज पॉकेट बुक्स से नरेन्द्र नाथ नामक लेखक के उपन्यास भी प्रकाशित होते रहे हैं।

 



डाॅ. नरेन्द्र नाथ गुप्ता

नरेन्द्र नाथ गुप्ता के विषय में उ‌नके उपन्यास 'पुलिस निगरानी' से कुछ जानकारी प्राप्त हुयी है।
प्रस्तुत जानकारी का यही एक माध्यम है। उक्त लेखक के विषय में कोई और जानकारी उपलब्ध हो तो अवश्य संपर्क करें।

डाॅ. नरेन्द्र नाथ गुप्ता के उपन्यास 'सरोज पॉकेट बुक्स' और 'माया पॉकेट बुक्स-मेरठ' से प्रकाशित होते रहे हैं।
संपर्क
डाॅ. नरेन्द्र नाथ गुप्ता
C/O सरोज पॉकेट बुक्स
1/132 निपनिया, रीवा
मध्य प्रदेश- 486001

डाॅ. नरेन्द्र नाथ गुप्ता
1. कायर कहीं का
2. पुलिस निगरानी (प्रथम भाग)
3. भूकम्प का इंसाफ (द्वितीय भाग)
4. कत्ल हुआ कातिल का
5. मेरा जुर्म (जादूई सीरिज नरेन)



बुधवार, 17 अप्रैल 2019

अमित खान जी के लिए

कुछ टिप्पणियाँ अख़बारों से लेख़क  के बारे में


1. अमित खान—हिन्दी पल्प फिक्शन का बेहद मशहूर और सबसे युवा चेहरा।-  हिन्दुस्तान टाइम्स


2. हिन्दी पल्प साहित्य के सबसे युवा लेखक, जिनकी निगाह लेखन के इस बदलते युग में इंटरनेट व्यवसाय पर भी है।-    फेमिना


3. अमित खान—वह लेखक, जिन्होंने अपनी ज़िद और शर्तों पर ज़िन्दगी जी।- दैनिक जागरण


4. अमित खान—थ्रिलर उपन्यासों की दुनिया में एक प्रभावशाली नाम है।- मिड डे


5. बारह साल की उम्र में पहली कहानी। 15 साल की उम्र में पहला धारावाहिक उपन्यास। यह किसी कहानी के किरदार का ज़िक्र नहीं है बल्कि ‘अमित खान’नाम के एक ऐसे शख्स का परिचय है—जिसका लिखा बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने पढ़ा और अब पर्दे पर लाखों लोग देख रहे हैं।- दैनिक जनवाणी


6. अमित खान—वह नाम, जो लेखन की दुनिया का अद्भुत व्यक्तित्व है।- द फ्री प्रेस जनरल


7. चेतन भगत वर्सिस अमित खान- दिव्य भास्कर

अमित खान

रविवार, 14 अप्रैल 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-31,32

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 31
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          उस दिन फूलचन्द सुबह-सुबह घर आ गया ! वह अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान था और उसके माता-पिता उसकी इतनी ज्यादा चिन्ता करते थे, जितनी कोई माँ-बाप अपनी जवान बेटी की भी नहीं करते।

           फूलचन्द गाँधीनगर में रहने पर शुरुआती दौर में बने मेरे दोस्तों नरेश कुमार गोयल और अरुण कुमार शर्मा का सहपाठी रह चुका था और उन दोनों का ही अच्छा दोस्त था, लेकिन मेरी उससे सिर्फ पहचान ही थी।

           फूलचन्द कद में मुझसे खास बड़ा नहीं था, सिर्फ इंच-दो इंच का रहा होगा, लेकिन उसका शारीरिक गठन बहुत अच्छा था और सबसे खास बात यह थी कि उसका रंग एकदम गोरा-चिट्टा था ! चेहरे पर हमेशा मासूमियत छाई रहती थी ! किन्तु उसके चेहरे पर मूँछ-दाढ़ी का अभाव था।

         वह इतना खूबसूरत था कि यदि साड़ी-ब्लाऊज में सामने आ जाये तो गली-मोहल्ले के दिलफेंक लड़के 'अश्-अश्' कर उठें और उस पर लाइन मारने के अवसर ढूँढने लगें।

       नवीं-दसवीं में तीन साल फेल होने के कारण वह नरेश और अरुण से पिछड़ अवश्य गया था, किन्तु बचपन से साथ-साथ पढ़ने के कारण बनी दोस्ती बरकरार थी।

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-29,30

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 29
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"मैं तो गर्ग एण्ड कम्पनी में पैसे लेने आया था ! मनोज में भी गया था।  उन्हें बाल पाॅकेट बुक्स देनी थीं ?" मैंने राज भारती जी से कहा।  फिर पूछा -"पर आप यहाँ कहाँ ?"
"क्यों ? तू ही यहाँ माल कमाने आ सकता है ? राज भारती को कोई नहीं जानता।" राज भारती हँसते हुए बोले तो मैं हड़बड़ाया -"नहीं-नहीं, मेरा वो मतलब नहीं था !"
"मतलब-वतलब छोड़ ये बता ज्ञान ने पैसे दिये ?"
"हाँ, दिये !" मैंने कहा।

उन दिनों मेरे मुँह से किसी भी पारिश्रमिक अथवा पेमेन्ट के लिए अधिकांशतः 'पैसे' शब्द ही मुँह से निकलता था ! राज भारती जी के संसर्ग ने ही मुझे 'पेमेन्ट' या 'पारिश्रमिक' बोलना सिखाया।

"आज तो लगता है - मनोज से भी पेमेन्ट मिल गई है ?" भारती साहब मेरा चेहरा गौर से देखते हुए चुटकी लेकर बोले !
"हाँ !" मैं हँसा।
"तब तो पार्टी हो जाये !"
"हाँ-हाँ, जरूर ! बताइये कहाँ चलना है ?"
"सब्र कर...सब्र कर ! तूने तो अपनी जेब भर ली ! अब मैं भी जरा कुछ नाश्ते-पानी का जुगाड़ कर लूँ !" राज भारती  बदस्तूर मुस्कुराते हुए बोले।

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-27,28

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 27
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बैठने के लिए उन दिनों चन्दर की दुकान में छोटे-छोटे स्टूल थे।

एक पर वो बैठा, दूसरे के शीर्ष पर हाथ से थपकी दे, मुझसे बोला -"बैठ।"
मैं यन्त्रवत् बैठ गया।

"यार, मैं तुझसे बहुत दिन से बात करने की सोच रहा था। पर कभी कस्टमर्स की भीड़, कभी तेरे साथ बिमल चटर्जी या अरुण शर्मा होते थे, इसलिए कभी चांस नहीं मिला, पर आज तू पकड़ में आ गया और अभी कस्टमर भी नहीं हैं !"
मैं मुस्कुरा दिया, बोला कुछ नहीं।

"तुझे जल्दी तो नहीं है ना ?" चन्दर ने फिर पूछा।
मैंने "नहीं" में सिर हिला दिया।

"पानी पियेगा ?" पूछने के साथ-साथ चन्दर ने स्टूल से उठ, वहीं कहीं से काँच का एक गिलास उठाया और कुछ पीछे नीचे जमीन पर रखी एक बेहद खूबसूरत सुराही उठाई और सुराही से पानी काँच के गिलास में उड़ेलकर, मेरी ओर बढ़ा दिया।

प्यास तो नहीं थी, फिर भी मैंने गट-गट पानी पीकर गिलास खाली कर दिया और वापस चन्दर को थमा दिया।

चन्दर गिलास वहीं कहीं नीचे रखने के बाद फिर से स्टूल पर बैठ गया।

"अच्छा बता, किस-किसके लिए लिख रहा है ?" स्टूल पर जमकर बैठने के बाद उसने पूछा।
मैंने पहले तो बगल की दुकान की ओर इशारा किया और बोला -"मनोज में लिख रहा हूँ।"
फिर एक क्षण रुककर बोला -"गर्ग एण्ड कम्पनी और भारती पाॅकेट बुक्स में भी लिख रहा हूँ।"
"बेकार है, यह सब बनिये लोग बड़े चालू होते हैं ! इनमें कोई भी तुझे तेरे नाम से नहीं छापेगा । तू जिन्दगी भर लिखता रहेगा। कोई फायदा नहीं होगा।" चन्दर ने कहा !

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-25,26

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 25
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"आप भी लीजिए ना...।" कुमारप्रिय ने बिमल जैन को केवल चाय की चुस्की भरते देखकर, बिस्कुट और नमकीन की ओर संकेत करते हुए कहा तो बिमल जैन बोले -"नहीं, ठीक है। आप लीजिए।"

     कुछ पल सन्नाटा रहा।  जब हमारे कपों में चाय लगभग अन्तिम घूँट भर थी, तभी बिमल जैन फट पड़े -"मुझे तो आप लोगों ने बरबाद कर दिया। आगे नहीं करना है - मुझे पब्लिकेशन। अब और एक पैसा नहीं लगाऊँगा !"
"अरे ! क्या हुआ ? ऐसे क्यों नाराज हो रहे हैं जैन साहब ?" कुमारप्रिय चौंकते हुए बोले।
"क्या हुआ ? चाय पी लीजिये। फिर दिखाता हूँ - क्या हुआ ?" बिमल जैन तल्ख स्वर में बोले।

कुमारप्रिय ने चाय का आखिरी घूँट भर कप टेबल पर रख दिया। मैं पहले ही अपना कप खाली कर चुका था।

बिमल जैन खड़े हो गये और दूसरे कमरे की ओर बढ़ते हुए बोले -"इधर आइये !"

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2019

इब्ने सफी के उपन्यासों की झलक

इब्ने सफी की 'जासूसी दुनिया सीरिज' के कुछ उपन्यासों की एक झलक


1. दिलेर मुजरिम

            यह इब्ने सफी का प्रथम उपन्यास है।
                ‘दिलेर मुजरिम’ की कहानी पैसे की हवस के चलते जुर्म की दुनिया में डूबते चले जाने की कहानी है। नवाब वजाहत मिर्ज़ा के बीमार पड़ते ही सलीम, जो उनका नज़दीकी रिश्तेदार है, उनकी जायदाद को हासिल करने के लिए क़त्ल पर उतर आता है। इसी में डॉक्टर शौकत का क़िस्सा भी है जो नवाब वजाहत मिर्ज़ा का बेटा है, लेकिन चूँकि नवाब साहब ने अपनी दिवंगत बीवी की इच्छा पर उसे परवरिश के लिए अपनी दोस्त सविता देवी के पास रख दिया था, इसलिए यह राज़ राज़ ही रहा और जैसे ही सलीम को इस राज़ का पता चला, उसने शौकत को रास्ते से हटाने की ठान ली।
               अपने मंसूबे में सलीम किस तरह नाकाम रहा और अपने ही बनाये जाल में फँसता चला गया, इसे जानने के लिए पाठकों को ‘दिलेर मुजरिम’ के पन्नों से गुज़रना होगा और हम आपको इस सफ़र पर चलने का न्योता देते हैं।


2. जंगल में लाश 
                      


                      जब जंगल में एक के बाद एक लाशें मिलने लगती हैं तो किसी को अन्दाज़ा नहीं होता कि मामला कहाँ अटका है। असली मुजरिम कौन है और इन हत्याओं की असली वजह क्या है? जानने के लिये पढ़िये इब्ने सफ़ी की दूसरी हैरतअंगेज़ कहानी ‘जंगल में लाश’।


3. औरत फ़रोश का हत्यारा
                       


                जब इन्स्पेक्टर फ़रीदी और सार्जेंट हमीद के बीच ‘गुलिस्ताँ होटल’ में जा कर नाच के जश्न में को ले कर नोंक-झोंक होती है तो ज़रा भी अन्दाज़ा नहीं होता कि यह जश्न जुर्मों के कैसे सिलसिले को पैदा करनेवाला है। हमीद अपनी नयी मित्र शहनाज़ के साथ नाचने की तमन्ना दिल ही में सँजोये रखता है और इन्स्पेक्टर फ़रीदी शहनाज़ के साथ नाचने लगता है। तभी गोली चलने की आवाज़ आती है और सारा माहौल बदल जाता है। पता चलता है कि किसी आदमी ने ख़ुदकुशी कर ली है और यह आदमी फ़रीदी की तफ़तीश की मुताबिक़ औरतों का धन्धा करने वाला एक पुराना मुजरिम था।
                ज़ाहिर है वह ख़ुदकुशी नहीं है, बल्कि क़त्ल है। मगर किसने किया है ? जानने के लिये पढ़िये इब्ने सफ़ी की तीसरी हैरतअंगेज़ कहानी ‘औरत फ़रोश का हत्यारा’।


4. तिजोरी का रहस्य

              क्या आपने कभी ऐसे मुजरिम के बारे में पढ़ा है जो तिजोरियाँ तोड़े,  मगर चुराये कुछ भी नहीं ? नहीं सुना न ? तो हम आपसे गुज़ारिश करेंगे कि आप इब्ने सफ़ी का यह उपन्यास ‘तिजोरी का रहस्य’ पढ़िए।
               ‘तिजोरी का रहस्य’ ऐसे मुजरिम की कहानी है जो एक राज़ जानने के बाद उसे अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। दिलचस्प बात यह है कि इस मुजरिम का पता लगाने के लिए फ़रीदी आम जासूसों से अलग हट कर ख़ुद भी कुछ मुजरिमों जैसे तरीक़े अपनाता है। यही नहीं, बल्कि वह एक पुराने मुजरिम दिलावर की मदद भी लेता है। मगर कैसे? जानने के लिये पढ़िये इब्ने सफ़ी की दूसरी हैरतअंगेज़ कहानी ‘तिजोरी का रहस्य’।


5. फ़रीदी और लियोनार्ड
                 
             लियोनार्ड बेहद घटिया क़िस्म का ब्लैकमेलर है, जो सिर्फ़ ब्लैकमेलिंग तक ही नहीं रुकता, बल्कि क़त्ल और दूसरे ओछे हथकण्डे अपनाने पर उतर आता है। क्या-क्या गुल खिलाता है और फिर कैसे फ़रीदी के हत्थे चढ़ता है–इसे जानने के लिए आइए, इस उपन्यास के हैरत-अंगेज़ सफ़र पर चलें। हमारा य़कीन है आप निराश न होंगे।


6. कुएँ का राज़
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             जब नवाब रशीदुज़्ज़माँ की कोठी में बने पुराने कुएँ से अचानक अंगारों की बौछार होने लगती है, घर की दीवारों से जंगली आवाज़ें आने लगती हैं और पालतू जानवर एक-एक करके मरने लगते हैं। दहशत में भरकर कोठी के लोग ऐसी हरकतें करते हैं कि ग़ज़ाला, जिसे य़कीन हैकि यह कोई भूत-नाच नहीं, इन्सानी साज़िश है, फ़रीदी को बुला लाती है।
    फिर क्या होता है ? किसका पर्दाफ़ाश होता है ? यही ‘कुएँ काराज़’ की अचरज-भरी कहानी है।


7. चालबाज़ बूढ़ा
              

         हालाँकि ‘चालबाज़ बूढ़ा’ का केन्द्रीय पात्र जाबिर है - निहायत ही पेचीदा शख़्स, जिसे किसी भी क़िस्म का इन्सानी जज़्बा छू नहीं पाता और जो आख़िर में फ़रीदी जैसे होशियार भेदिये को भी चकमा दे कर फ़रार हो जाता है - लेकिन जो किरदार उपन्यास में अनायास उभर आया है वह रुक़ैया का। ‘चालबाज़ बूढ़ा’ की भटकती हुई खलनायिका रुक़ैया का किरदार इब्ने सफ़ी ने लाजवाब मिट्टी से गढ़ा है और उसे उपन्यासकार की भरपूर हमदर्दी भी मिली है।
            ज़िन्दगी में भटकाव का शिकार हो कर गुनाह की गहराइयों में डूब जाने के बावजूद रुक़ैया के दिल में गहरे कहीं प्यार की प्यास है। फ़रीदी जैसे ही इन जज़्बात को छेड़ता है तो रुक़ैया के चरित्र का बेहद उजला पहलू सामने आता है। लेकिन इब्ने सफ़ी जानते हैं कि हृदय-परिवर्तन के बाद भी रुक़ैया का अन्त मौत है और वे उसे उसके स्वाभाविक अन्त तक जाने देते हैं।
            इब्ने सफ़ी की ख़ूबी है कि वे भयानक-से-भयानक चरित्र को पेश करते समय भी उस बुनियादी उसूल पर काम कर रहे होते हैं कि गुनाह से नफ़रत करो, गुनहगार से नहीं। इसलिए वे कोरी किताबी बात न करके गुनहगार की ज़ेहनियत को समझने की कोशिश करते हैं। रुक़ैया जैसे बहुत-से खलनायकों को वे इसी आधार पर हमदर्दी भी दे पाते हैं।

इब्ने सफी साहब
जासूसी दुनिया पत्रिका 



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धन्यवाद।
इब्ने सफी साहब के उपन्यासों की लिस्ट यहाँ उपलब्ध है।-इब्ने सफी उपन्यास सूची

रविवार, 7 अप्रैल 2019

कर्नल अशोक

कर्नल अशोक के एक उपन्यास का आवरण चित्र उपलब्ध हुआ है। कर्नल अशोक शायद उस दौर के लेखक हैं जब Ghost writing में कर्नल, इंस्पेक्टर, मेजर, कैप्टन जैसे नाम चला करते थे।
   कर्नल अशोक के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं।

 कर्नल अशोक के उपन्यास

1. रंगीले बुड्ढे
2. चीखों‌ का संसार- 1974

मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

सुरेश श्रीवास्तव

हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में एक और उपन्यासकार की जानकारी उपलब्ध हुयी है। जिनका नाम है सुरेश श्रीवास्तव । इनके एक उपन्यास की फोटो उपलब्ध हुयी है।
   अपने उपन्यास 'गुलाम मुल्क' के लेखकीय में इन्होंने एक बात का जिक्र किया है वह है -हठयोग। सुरेश श्रीवास्तव जी लिखते हैं - मैंने जासूसी साहित्य में 'हठयोग' के माध्यम से एक नया प्रयोग किया था। हालांकि यह प्रयोग क्या था कहीं कुछ स्पष्ट नहीं है।
 संपर्क-
सुरेश श्रीवास्तव
11-C, प्रहलाद नगर,मेरठ, उत्तर प्रदेश

सुरेश श्रीवास्तव के उपन्यास

  1. विक्रांत और द्वीप का देवता.
  2. देवता की गर्जना
  3. विक्रांत देवता के जाल में
  4. विक्रांत देवता की टक्कर
  5. देवता का अन्त
  6. विक्रांत और विराट
  7. तूफानी विराट
  8. अजेय विराट
  9. बारूद भरा समझौता
  10. वियोगिनी पावेला
  11. अपराधिनी पावेला
  12. विश्वद्रोही पावेला
  13. पावेला का प्रतिशोध
  14. पावेला फिर आई
  15. रणचण्डी पावेला
  16. पावेला का आतंक
  17. विक्रांत और डाक्टर प्रेत
  18. डाक्टर प्रेत का षड़यंत्र
  19. विक्रांत डाक्टर प्रेत की टक्कर
  20. डाक्टर प्रेत का अंत
  21. वतन बेचने वाले
  22. ये दीवाने भारत के
  23. गुलाम मुल्क
  24. मौत के सौदागर



सुशील जैन

मेरठ से प्रकाशित होने वाली 'गंगा पॉकेट बुक्स' में सुशील जैन जी के उपन्यास प्रकाशित होते रहे हैं।


सुशील जैन के उपन्यास
1. मिश्र की हसीना


सुरेश मोदी

उपन्यासकार सुरेश मोदी के विषय में कुछ ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, पर उनका एक उपन्यास मिला है जहाँ से यह जानकारी प्राप्त हुयी है।


सुरेश मोदी के उपन्यास
1. मेरी सजनी तेरी सौत

वेदप्रकाश

एक लेखक वेदप्रकाश जी के विषय में कुछ जानकारी मिली। ये वेदप्रकाश नामक लेखक वेदप्रकाश कांबोज नहीं, ये वेदप्रकाश शर्मा नहीं और ये वेदप्रकाश वर्मा भी नहीं। इनका नाम तो मात्र 'वेदप्रकाश' है। इनका एक उपन्यास मिला है, यह जानकारी वहीं से उपलब्ध है।

वेदप्रकाश के उपन्यास
1. यहा रहमान, वहाँ शैतान
2. जाली लायसैंस

सोमवार, 1 अप्रैल 2019

अनिता

भोपाल निवासी अनिता जी एक सामाजिक उपन्यासकार थी। इनके उपन्यास 'धीरज पॉकेट बुक्स-मेरठ' से प्रकाशित होते रहे हैं।
इनका पूरा नाम अनिता बेल्बासे है।
संपर्क-
अनिता बेल्बासे
स्टेट बैंक कालोनी
MIG-44, अन्तोदय नगर,
दिल खुशबाद, रायसेन रोड़,
भोपाल, मध्य प्रदेश
मोबा.- 990788..74
- 998196..95

अनिता के उपन्यास
1. सीजन


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