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सोमवार, 27 जुलाई 2020
प्रिंस सईद
प्रेम कुमार शर्मा
नाम- प्रेम कुमार शर्मा
जन्म- 03.03.1956मृत्यु- 24.09.2021
उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के निवासी प्रेम कुमार शर्मा का जन्म एक साहित्यिक परिवार में हुआ था। इनके पिता भी लेखक थे, जिन्होंने उपन्यास, कविता के अतिरिक्त फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमाया था। साहित्यिक परिवार में पैदा होने के कारण इनका झुकाव साहित्य की तरह रहा, काॅलेज समय से ही इन्होने साहित्यिक लेखन आरम्भ कर दिया था।
सन् 70-80 के मध्य पत्रकारिता की। 'नूतन कहानियाँ', 'सच्ची कहानियाँ' पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन् 90 के दशक में प्रसिद्ध उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा जी के निमंत्रण पर मेरठ आ गये और तुलसी पॉकेट बुक्स की पत्रिका 'तुलसी कहानियाँ' का संपादन कार्य। मेरठ में आने के पश्चात प्रेम कुमार शर्मा जी का झुकाव जासूसी उपन्यास लेखन की तरह हो गया। जहाँ उन्होंने स्वयं के नाम से उपन्यास लिखे वहीं प्रेम कुमार शर्मा जी द्वारा लिखित कुछ उपन्यास 'अजगर' नाम से भी प्रकाशित हुये।
प्रेम कुमार शर्मा के क्रमशः उपन्यास
1. देखो और मार दो (प्रथम उपन्यास)
2. सावधान, कुत्ते खुले हैं।
3. आप्रेशन हिंदू
4. काला सच ( अप्रकाशित)
5. दानव देश ( अप्रकाशित)
अंजुम अर्शी
एक खास बात और
हथियार के नाम पर बूमरैंग टाइप की गेंद का इस्तेमाल सैमुएल अंजुम अर्शी साहब ने अपने मास्टर ब्रेन सीरीज़ के उपन्यासों में बखूबी किया था, वो अपने किस्म का अनूठा उदाहरण है!
दुश्मन पर मास्टर ब्रेन की गेंद का वार और दुश्मन चारों खाने चित्त और गेंद फिर से मास्टर ब्रेन के हाथ में।
आप में से जिसने भी पढ़े होंगे - मास्टर ब्रेन सीरीज़ के उपन्यास, निश्चय ही भूले नहीं होंगे और खास बात यह कि यह खूबी सिर्फ मास्टर ब्रेन के उपन्यासों में ही मिलेगी।
सफदरजंग अस्पताल में 28 नम्बर वार्ड के इंचार्ज किसी समय ये ही थे और बहुत सारी नर्सों तथा वार्ड बाय को ट्रेनिंग भी दिया करते थे।
सैमुएल अंजुम अर्शी साहब मेहमाननवाजी में जवाब नहीं रखते थे। कोई भी आये - सिर आँखों पर बैठाते थे। अच्छा सत्कार करते थे और बड़े प्यार से धीरे धीरे बात करते थे।
जबरदस्त कुक भी थे। खास तौर से नानवेज बनाने में इनका जवाब नहीं था।
आप यदि दस बार इनके यहाँ गये होंगे तो हर बार आपको नयी-नयी डिश खिलाई होगी, क्योंकि इनकी याद्दाश्त भी गज़ब की हुआ करती थी और....
इससे ज्यादा और मुझसे बेहतर इनके बारे में आज के लोगों में दूसरा एक भी शख्स कुछ नहीं बता सकता।
आखिरी बार इनसे नोयडा स्थित जर्मन डिजाइन की बनी कोठी में हुई थी। बदकिस्मती से आज वो पता याद नहीं है।
और हाँ, मुसलमान नहीं, क्रिश्चियन थे और इनकी दो बीवियाँ थीं।
#योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से
रविवार, 26 जुलाई 2020
अजय ठकराल
यह जानकारी सुनील प्रभाकर के उपन्यास 'मौत का साया' से मिली है। जो गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था।
'मौत का साया' का एक संवाद देखें-
जेम्स को एक पुस्तक विक्रेता कहता है-
" ये लीजिये- अजय ठकराल का नया उपन्यास 'दबे पांव' कमाल का उपन्यास है....।"
शुक्रवार, 24 जुलाई 2020
उपन्यास मार्च- जुलाई 2020
सन् 2020 'कोरोना काल' बहुत से नये उपन्यास बाजार में आये और कुछ रिप्रिंट भी। हालांकि इस समय में ebook पर उपन्यास प्रकाशित हुये और फिर हार्डकाॅपी में, कारण यह रहा की lockdown चलते प्रिटिंग का काम बंद रहा।
अब lockdown हट गया है और उपन्यास हार्डकाॅपी में आने आरम्भ हो गये हैं। हालांकि कुछ कारणों से ब्लॉग पर फरवरी बाद के नये उपन्यासों की सूचना अपडेट न हो पायी। अब आप मार्च से लेकर जुलाई तक के उपन्यासों की सूचना एक साथ यहाँ पर पढ सकते हो।
रवि पॉकेट बुक्स
रवि पॉकेट बुक्स से कंवल शर्मा का नवीनतम उपन्यास टोपाज 25 जुलाई 2020 को प्रकाशित हो चुका है।
कंवल जी के पाठक को इस उपन्यास का बेचैनी से इंतजार है।
2. शालीमार- जेम्स हेडल चेईज
जेम्स हेडल चेईज के उपन्यास ....का हिन्दी अनुवाद 'शालीमार' शीर्षक से हसन अल्मास ने किया है।
हसन अल्मास जी का यह प्रथम अनुवाद है।
3. गुण्डागर्दी- अनिल मोहन
अनिल मोहन जी के उपन्यास 'गुण्डागर्दी' का रिप्रिंट भी आ रहा है। यह देवराज चौहान सीरीज का उपन्यास है।
थ्रिल वर्ल्ड
थ्रिल वर्ल्ड के तत्वाधान में संतोष पाठक जी और इकराम फरीदी जी के उपन्यास आये हैं। lockdown के चलते जो उपन्यास eBook में आये थे वे सब हार्डकाॅपी में आ रहे हैं।
1. इन साइडजाॅब- संतोष पाठक
संतोष पाठक जी का विशाल सक्सेना सीरीज उर्फ पनौती सीरीज का तृतीय उपन्यास पाठक के लिए प्रस्तुत है।
इन साईड जाॅब की एक झलक देखें
वर्षा अवस्थी को पति की हत्या के इल्जाम में रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया था। पुलिस की निगाहों में वह ओपेन ऐंड शट केस था, क्यों कि मुलजिम खुद ये कबूल कर रही थी कि वह अंजाने में रिवाल्वर का ट्रैगर दबा बैठी थी। एक तरफ पुलिस मामले को इरादतन की गई हत्या साबित करने पर तुली थी तो दूसरी तरफ मुलजिम का वकील उसे गैरइरादतन हत्या साबित करने पर जोर दे रहा था। जबकि उन सब से अलग विशाल सक्सेना उर्फ पनौती का दावा था कि इरादतन या गैरइरादतन, वर्षा अवस्थी ने कभी कोई गोली नहीं चलाई थी।
2. कैच मी इफ यू कैन- संतोष पाठक
विशाल सक्सेना उर्फ पनौती सीरीज का यह शानदार कारनामा lockdown के चलते ebook में आयट था अब यह पाठक के लिए हार्डकाॅपी में उपलब्ध है।
इस उपन्यास पर एक पाठक की प्रतिक्रिया देखें
अद्भुत,अद्भुत,अद्भुत। थ्रिलर और सस्पेंस का अनूठा संगम। कई बार सांस उपर की उपर नीचे की नीचे रह जाती है। जासूसी साहित्य के नए बादशाह की एक और अनूठी कृति। सच पूछिए तो प्रशंसा लिखने को शब्द नहीं सूझ रहे। ग़ज़ब का उपन्यास है।
यह वास्तव में एक अविस्मरणीय रचना है।
उपन्यास समीक्षा इस लिंक पर उपलब्ध है।
3. मर्डर इन लाॅकडाउन- संतोष पाठक
यह उपन्यास लाॅकडाउन पर आधारित एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है।
कैसे उपन्यास नायक विक्रात गोखले एक सिगरेट की लत के चलते एक कत्ल के अपराध में पकड़े जाते हैं और कैसे वह लाॅकडाउन की परिस्थितियों में अपनी इन्वेस्टिगेशन करते हैं।
यह एक एक रोचक उपन्यास है।
उपन्यास समीक्षा - मर्डर इन लाॅक डाउन- संतोष पाठक
3. द साइलेंट मर्डर- संतोष पाठक
Lockdown में अगर किसी लेखक ने कम समय में अधिक उपन्यास लिखे तो वह नाम है संतोष पाठक जी का।
द साइलेंट मर्डर एक रोचक मर्डर मिस्ट्री है।
4. अवैध- एम. इकराम फरीदी
हर बार नये कथानक पर उपन्यास लिखने वाले एक. इकराम फरीदी जी का अवैध उपन्यास भी खूब चर्चा में रहा।
यह उपन्यास पहले ebook में प्रकाशित हुआ था। यह एक शृंखलाबंद्ध उपन्यास है जिसके भाग निम्न हैं।
1. अवैध (समीक्षा - अवैध- इकराम फरीदी
2. जुर्म का ओवरटेक
3. अनंत
बुक कैफे
बुक कैफे अपने अच्छे गेटअप और उच्च मूल्य के कारण जाना जाता है। बुक कैफे से नये और रिप्रिंट निरंतर आ रहे हैं।
1. फंस जाओ मेरे लिए- अमित खान
तुम मरोगी मेरे हाथों- अमित खान
औरत कभी उधार नहीं रखती। मोहब्बत, इज्ज़त, नफ़रत, वफ़ा, सब दोगुना करके लौटाती है । ऐसी ही रीटा सान्याल थी। वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही खतरनाक भी। अपनी माँ की तबाह हो चुकी ज़िन्दगी का बदला लेने के लिए उसने एक ऐसी मर्डर प्लानिंग रच डाली कि सब चौंक उठे।
‘नाइट क्लब’ और ‘मैडम नताशा का प्रेमी’ की ज़बरदस्त कामयाबी के बाद ‘अमित खान’ की लोह-लेखनी से निकले 2 और सुपरहिट थ्रिलर- ‘फँस जाओ मेरे लिये’ और ‘तुम मरोगी मेरे हाथों’। दोनों उपन्यास अब एक साथ।
वह 2 बेहद शानदार थ्रिलर, जिन्हें आप बारम्बार पढना चाहेंगे।
2. वारलाॅक- विक्रम ई. दीवान
हाॅरर श्रेणी के इस चर्चित उपन्यास का हिन्दी अनुवाद बुक कैफे से आ रहा है।
यह अपनी तरह का एक रोंगटे खड़े कर देने वाला उपन्यास है।
3. गेम- अनिल मोहन
अनिल मोहन जी के रिप्रिंट निरंतर विभिन्न प्रकाशन संस्थानों से आ रहे हैं।
गेम एक तेज रफ्तार उपन्यास है।
सूरज पॉकेट बुक्स
1. कानून की आँख- परशुराम (रिप्रिंट)
अगर कोई क़त्ल हो जाये पर उसका न्याय मांगने वाला कोई न हो तो कानून क्या करेगा?
अगर कोई अपराधी गवाहों को अदालत तक पहुंचने न दे तो कानून उसे कैसे सजा देगा?
अगर समाज के इज्जतदार लोग जरायम में लिप्त हों, जिनके खिलाफ कहीं कोई सबूत न हो, जिनके बलबूतों पर चुनाव जीते जाते हों, क्या ऐसे लोगों के खिलाफ कोई कानून से इंसाफ मांग सकता है?
3. हेरोइन - एस सी बेदी
एक ऐसा गैंग हेरोइन के नशे से युवा पीढ़ी को बर्बाद कर देश को कमजोर बनाना चाहता था। उस गैंग को तबाह करने के लिए उतरे राजन, इकबाल, सलमा, शोभा, मोहिनी व देवदत्त। 1500 के करीब बाल उपन्यास लिखने वाले राजन-इकबाल के जन्मदाता एस. सी. बेदी द्वारा लिखित अंतिम उपन्यास।
4. खाकी से गद्दारी - अनिल मोहन
- खाकी पहनकर, इंस्पेक्टर सूरजभान यादव बनकर, देवराज चौहान जेल मे खतरनाक आतंकवादी जब्बार मलिक तक जा पहुंचा, फिर…देवराज चौहान सीरीज़ का विस्फोटक उपन्यास
5. आखिरी मिशन - शुभानन्द
- साजिशों के मकड़जाल में गिरफ्त हिंदुस्तान जिसे युद्ध की आग से बचाने के लिये अब ज़रूरत थी उन जासूसों की जो अपनी जान की बाज़ी लगा इस जाल को तार-तार कर दें। क्या वे सफल हो पाएंगे ? या ये होगा उनका…आखिरी मिशन ? युरोप से साउथ ईस्ट एशिया और हिन्द महासागर के गर्भ तक फैली रहस्य, रोमांच और एक्शन से भरपूर एक अनोखी दास्तान।
6. 11:59 - मिथिलेश गुप्ता (समीक्षा)
- कहते हैं कि एक भयानक दुर्घटना कई जिंदगियां बदल देती है। उस रात हम लोगों के साथ भी वैसा ही कुछ हुआ। घड़ी की बढ़ती सुईयों के साथ जब साक्षात मौत हमारे सिर मंडराने लगी, बचपन से सुने सारे डरावने किस्से हमारी आंखों के सामने घूमने लगे।
7. रोड ट्रिप -देवेन्द्र पाण्डेय
- तीन अनजाने जो मित्र बने। पहली मुलाकात और पहली ही मुलाकात में रोड ट्रिप की योजना, तीन यात्राएं, तीन पड़ाव, तीन कहानियां, लेकिन मंजिल एक। जिंदगी की परेशानियों और उलझनों से जूझ रहे तीन अनजाने दुनिया जहान को भुला कर एक अनोखे सफर पर निकल पड़े, एक ऐसे अनुभव के लिए जिसने उन्हें बदल कर रख दिया। यात्रा जो मुम्बई के मैदानों से आरम्भ होकर उत्तराखंड की बर्फीली चोटियों तक पहुंच जाती है, जहां उनका सामना उनकी नियति से होता है। नियति जो जीवन मरन से परे जाकर उनके अस्तित्व को ही बदल कर रख देती है। रास्तों में मंजिल खोजने की कहानी।
8. किस्मत का खेल -अनुराग कुमार जीनियस
अनराग जी का यह तृतीय उपन्यास है।
- निहाल चक्रवर्ती एक सफल युवा बिजनेसमैन था। वर्क इज वर्शिप उसकी जिंदगी का वो पैमाना था जिससे उसने अपनी अब तक की मुकम्मल जिंदगी को हमेशा मापा था। भगवान, किस्मत जैसी चीजों को वह वाहियात मानता था। एक दिन वह एक फकीर से जा टकराया जिसने उसके बारे में कुछ अजीबोगरीब भविष्यवाणियां की जिसे सुनकर निहाल ने ठहाका लगाया। पर बाद में उस फकीर की भविष्यवणियां एक एक करके सच साबित होती गईं।
9. दौलत का खेल -जेम्स हेडली चेइज़
हिन्दी अनुवाद
- जोई लक और उसकी बेटी सिंडी की ज़िंदगी छोटे-मोटे अपराधों के सहारे कट रही थी । मयामी से भागे पेशेवर मुजरिम विन पिन्ना के साथ जुड़ने से उनके हौसले बढ़े और उन्होंने चर्चित अभिनेता डॉन एलियट का अपहरण कर लिया । पर एलियट के पास उनके लिये दौलत का एक बड़ा खेल खेलने का ऑफर था।
शब्दगाथा
रमाकंत मिश्र और सब्बा खान जी के संयुक्त प्रकाशन से प्रथम चरण में बहुत अच्छे उपन्यास आये हैं।
1. महासमर- रमाकांत मिश्र, सब्बा खान
दो भागों में विस्तृत इस महागाथा का प्रथम भाग सूरज पॉकेट बुक्स से आया था और अब द्वितीय भाग शब्दागाथा से आया है
यह उपन्यास लोकप्रिय साहित्य में अपनी विशिष्टता के चलते बहुत लोकप्रिय हुआ।
2. अवंतिका- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
पाण्डेय जी की अपनी एक विशेष शैली है। यह चन्द प्रकाश जी का उपन्यास ebook के रूप में बहुत लोकप्रिय हुआ था और इसी के चलते यह हार्डकाॅपी में आ रहा है।
एक अविस्मरणीय रोचक उपन्यास।
गुरुवार, 23 जुलाई 2020
मेघराज
जगमोहन कुमार तमन्ना
बेला सिन्हा
दयानंद अनंत
इन्द्रदेव
कुमार श्री
शनिवार, 11 जुलाई 2020
शुक्रवार, 10 जुलाई 2020
रोमा चौधरी
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में Ghost Writing का काला समय भी रहा है।
एक तो Ghost writing और दूसरा Ghost writer दोनों जब एक साथ हो तो क्या कहना और उस पर भी उपन्यास का पात्र भी किसी और प्रकाशक का हो तो.....चलो रहने दो यार।
मेरठ का एक प्रकाशक था 'केशव पॉकेट बुक्स' उसी के अन्तर्गत रोमा चौधरी के उपन्यास प्रकाशित होते थे। रोमा चौधरी एक छद्म नाम था।
ध्यान रहे रोमा चौधरी के छद्म उपन्यास सूर्या पॉकेट बुक्स से भी प्रकाशित होते थे। मेरे विचार से दोनों में कोई संबंध तो न था, बस नाम की समानता संयोग से रही होगी।
रोमा चौधरी के उपन्यास- केशव पॉकेट बुक्स से
1. आई पाॅयजन
2.
रोमा चौधरी - सूर्या पॉकेट बुक्स
सचिन मोहन परिचय- केशव पॉकेट बुक्स
सचिन मोहन
इस किरदार के नाम से तो कई लेखक भी मैदान में आ गये थे और यह तो एक शृंखला की तरह फैल गया था। फिर तो बहुसंख्यक लेखक और प्रकाशक केशव पण्डित और उसके साथी मित्रों के नाम से उपन्यास लिखने लगे थे।
इसी संदर्भ में एक और लेखक का वर्णन आता है वह है सचिन मोहन। सचिन मोहन के उपन्यास जिस प्रकाशन से आते थे उसका तो नाम भी 'केशव पॉकेट बुक्स' था।
सचिन मोहन तात्कालिक प्रसिद्ध पात्र केशव पण्डित, विजय, रघुनाथ, सिहंगी या कहे तो वेदप्रकाश शर्मा जी के पात्रों को लेकर अपनी कलम चलाते थे।
सचिन मोहन के उपन्यास
1. केशव पण्डित और अलफांसे
2. केशव पण्डित और सिहंगी
3. केशव पण्डित और विजय का चूहेदान
सोमवार, 6 जुलाई 2020
जनसेविका पुलिस- कुशवाहा कांत
(लोकप्रिय साहित्य के सितारे कुशवाहा कांत जी के प्रकाशन से 'चिनगारी' मासिक पत्रिकाएं निकला करती थी। पत्रिका में 'श्री चमगादड़' नाम से वे कुछ हास्य- व्यंग्यात्मक स्तंभ भी लिखा करते थे। बाद में इन्हीं हास्य-व्यंग्य को एक पुस्तक रूप में 'उड़ते-उड़ते' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। प्रस्तुत हास्य-व्यंग्य 'जनसेविका पुलिस' उसी पुस्तक से लिया गया है।- साहित्य देश)
साहबों! अगर अपने राम सच न बोल, तो पुलिस के समान जनसेवक कर्मचारी भूत-भविष्य-वर्तमान कभी भी नहीं मिलेंगे। हमारे प्रांत की पुलिस तो सेवा भाव में सबसे 'फ्रण्ट' पर है। ट्रेनिंग पीरियड में इन्हें जबानी अभ्यास भी कराया जाता है, ताकि आगे चलकर ये सेवक जनता की माँ-बहनों को धड़ाके के साथ याद रख सकें।
भारत में सुराज होने पर इन जनसेवकों का रोजगार कुछ ठ-ठ-ठप्प पड़ गया है, वर्ना अंग्रेजी पीरियड में आँखों के एक ही इशारे पर इनकी जेबें भर जाती थी। आजकल तो इन बेचारों को कोई ठोस कार्य ही नहीं रह गया है, अत: हम जनता का कर्तव्य है कि इन्हें कोई नवीन कार्य सौंपें।
एक दिन की बात सुना दूँ। बीच बाजार में अपने एक मित्र जी मिल गये, गोद में चारसालीय 'प्रोडक्शन' लादे। बच्चा बड़ा प्यारा लग रहा था, सो अपनेराम ने बड़े लाड़-प्यार-दुलार से उसे चूमा-चाटा, फिर बातचीत का सिलसिला जो चला तो अन्त में सिनेमा देखने के निश्चय पर आकर रूका। अब मित्रजी बड़े फेर में पड़े। सिनेमा देखने का निश्चय हो चुका, समय भी दस-बारह मिनट ही रह गये, सामने सिनेमा भवन का लाउडस्पीकर रेंक रहा था...मगर गोद का बच्चा वे किसे दें? घर दूर था, पहुँच कर लौटने में काफी देर हो जाती।
"रहने दो कल देख लेंगे..."- अपनेराम ने तसल्ली दी।
वे बोले-"नहीं यार! आज ही देखेंगे। इतने दिन के बाद तो घोंसले से निकले हो...इस बच्चे को मैं लाया ही क्यों? इसे लेकर सिनेमा में बैठे भी नहीं सकता। शैतान रो-रो दूसरों से गाली सुनवायेगा। इसे खड़े-खड़े लिये रहो तो चुप, जरा भी बैठे कि रोनाध्याय प्रारंभ... "
तभी अपनेराम की नजर सामने जा पड़ी-थाना! ...बस उपाय दिमाग में आ गया। चट बोला-"मित्र! बच्चा मुझे दो..."
"क्या करोगे?"-कहते हुए मित्र जी ने बच्चे को दे दिया। मैं तूफानमेलीय रफ्तार से बच्चे को लेकर थाने की ओर भागा। अगर वे मेरे अन्तरंग मित्र न होते तो 'उचक्का मेरा बच्चा ले भागा' था, अत: चुपचाप वही मूर्ति बनकर खड़े रहे।
थाने में आया। थानेदार साहब कुर्सी पर बैठे हुए मेज पर टाँग पसार रहे थे।
" क्या है?.."
"सा-साहब! यह ब-ब-बच्चा खो गया है।"- अपनेराम ने कहा।
" खो गया है?..कैसे?..."
"ऐसे ही...हमें उस मोड़ पर रोता हुआ मिला..."
"आपको मिला?...".
" जी हाँ...यों समझ लीजिए, हमने इसे प-प-पाया...आप इसे सम्हालिये...मैं चला..."
"सुनिये...अपना नाम-पता तो बता दीजिये.."
"जरूर-जरूर! लिखिये श्री-श्री...जरा जल्दी कीजिए मुझे सिनेमा जाना है..?"
थानेदार साहब ने मेरी हुलिया लिख ली।
अपनेराम की सूझ पर मित्रजी दंग रह गये। ठाट से हम लोगों ने साथ-साथ सिनेमा देखा। फिर लौट कर दोनों आदमी थाने गये तो देखा मित्रजी का बच्चा ठाट से जलेबी तोड़ रहा था।
थानेदार साहब बोले-"यह बच्चा तो साहब बड़ा रोता है...पुलिस दौड़ रही है, मगर इसके बाप का पता नहीं"
"मैं खोज लाया साहब !... ये हैं..."- अपनेराम ने कहा।
" आप इसके बाप हैं?"
" जी हाँ"- मित्रजी ने कहा।
"जी हाँ- सेंट-पर-सेंट असली बाप साहब! बड़ी मुश्किल से इनका पता लगा सि-सि-सिनेमा के अन्दर..." मैं बोला।
"सिनेमा के अन्दर?"
"जी-जी नहीं, सिनेमा के बा-बाहर ...ये बिचारे रोते हुए इसे खोज रहे थे।"
"लीजिये साहब। आप अपना लड़का सम्हालिये..बड़े लापरवाह हैं आप लोग...इन्होंने आपके बच्चे को यहाँ पहुँचाया है और आपको यहाँ तक लाये भी हैं, इसलिये इन्हें कुछ इनाम..."
"अवश्य..."-मित्रजी ने पाँच का नोट मेरी ओर बढाया।
हम लोग हँसते हुए वापस हुए।
पुलिस के लिये यह नया काम कैसा रहा साहब? इति श्री इलस्ट्रेटेड-वीकलीयो नम:।
पुस्तक - उड़ते-उड़ते
लेखक- कुशवाहा कांत
बुधवार, 1 जुलाई 2020
एक थी तुरन
किस्सा कुशवाहा कांत जी के प्रेम जीवन का।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में रोमांटिक उपन्यासकार के रूप में 'कुशवाहा कांत जी' का नाम खूब चर्चित रहा है। प्रेम रंग में रंगे इनके उपन्यास युवा हृदय की धड़कन होते थे। प्रेम का मार्मिक, स्वच्छंद और हृदय की गहराइयों को छू लेने वाला चित्रण इनके उपन्यासों में खूब होता था, इसलिए इन्हें रोमांटिक उपन्यासकार कहा जाता था।
कुशवाहा कांत जी के नाम के साथ एक और नाम चर्चित रहा है, वह नाम है 'तुरन'। जिन्होंने ने कुशवाहा कांत के उपन्यास पढे हैं, उनके लिए यह नाम हमेशा रहस्य रहा है।
क्या आपने यह नाम पहले कभी सुना है?
क्या आप तुरन को जानते हैं?
अगर आपने तुरन का नाम नहीं सुना तो यह आलेख पढें, आपको जान जायेंगे आखिर कौन थी तुरन।
- क्या कुशवाहा कांत तुरन के कारण ही रोमांटिक उपन्यासकार कहलाने लगे थे?
- क्या कुशवाहा कांत तुरन के कारण रोमांटिक उपन्यास लिखते थे?
- क्या एक लेखक की जान तुरन के लिए ही चली गयी? या फिर कोई और कारण था?
अतीत की गर्द के नीचे छिपे किए ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर आज मिलना असंभव है।
काश आज तुरन मिल जाती तो हम पूछते- बताओ तुरन सच क्या है?
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