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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-43,44

 
आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 43
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रोडवेज पहुँचने पर हमें दिल्ली की एक बस तैयार दिखी।
बस के फ्रन्ट शीशे पर तथा ऊपर गन्तव्य के छोटे स्थान पर भी दिल्ली लिखा था, तो भी बस कंडक्टर बस से नीचे,बस में सवारियों के प्रवेश द्वार के निकट खड़ा जोर-जोर से "दिल्ली-दिल्ली" की आवाज लगा रहा था।
उन दिनों यूपी रोडवेज़ के अधिकांश बस अड्डों पर ऐसे दृश्य आम हुआ करते थे।
अब काफी सालों से यूपी में कहीं भी जाने के लिए बस का सफर करने की नौबत नहीं आई, इसलिए यूपी के बस अड्डों की शक्ल देखे, जमाना हो गया।
हम लोग बस में चढ़ गये!
बस में एक ओर दो लोगों के बैठने की सीटें थीं तो दूसरी तरफ तीन लोगों के बैठने की सीट थी!
बिमल ने दो लोगों वाली सीट चुनी! वह स्वयं खिड़की के पास वाली सीट पर बैठे!

खैर, खरामा-खरामा कर बस चली!
"योगेश जी, डील सही रही?" बिमल ने पूछा!
"हाँ!" मैंने कहा!
"खुश तो हो..?"
"यह तो आदत है मेरी! डील न भी होती तो भी खुश रहता! आप जानते हो!"
बिमल हंसे! बहुत जोर से हंसे! 

सोमवार, 30 दिसंबर 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-41,42

 आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 41

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मेरठ में हम बस अड्डे पर ही उतरे। उसके बाद जब हम ठठेरवाड़ा के लिए रिक्शा ढूँढने लगे तो जल्दी ही कोई रिक्शा नहीं मिला।
पांचवें या छठे रिक्शेवाले ने ठठेरवाड़ा चलने के लिए हामी भरी तो हमारी जान में जान आई।
"बैठो योगेश जी !" बिमल ने मुझसे कहा।
बिमल की यह खास आदत थी, जब कोई साथ होता था तो अधिकांशतः खुद बाद में ही बैठते थे, दूसरे शख्स को पहले बैठाते थे।
दोनों के बैठने के बाद रिक्शेवाले ने रिक्शा दौड़ाया तो बिमल ने मुझसे कहा-"चलो, रिक्शा तो मिला।"
" बाबूजी, पहले आप जिन लोगों से बातें किये थे, सब पुलबेगम की तरफ रिक्शा चलाते हैं। उनमें शहर का कोई नहीं था।" बिमल की बात सुन रिक्शेवाला अचानक बोल उठा।
"ओह...अच्छा...!" बिमल ने कहा।
तभी रिक्शेवाले ने सवाल किया-"बाबूजी आप दिल्ली से आ रहे हैं...?"
"हाँ...!" बिमल ने कहा।
"फिर आपको दिल्ली चुंगी पर उतरना चाहिए था। दिल्ली से आने वाली बस दिल्ली चुंगी और डी.एन. कालेज पर भी रुकती है। उधर से ठठेरवाड़ा पास पड़ता।"
"अच्छा... !" बिमल मुस्कुराये और रिक्शेवाले से बोले-"पर अगर हम वहाँ उतर जाते तो आपके रिक्शे में कैसे बैठते बाबा। "
"हाँ, यह तो है।" रिक्शेवाला भी हंसा-"आज सुबह से मेरी भी बोहनी नहीं हुई थी । ऊपरवाला बड़ा कारसाज है। सबका ख्याल रखता है।"
रिक्शेवाला बड़ा बातूनी था। रास्ते भर कोई न कोई बात करता रहा।
          बहुत से रिक्शेवाले बातूनी होते हैं, किन्तु बैठने वाली सवारी को उनसे सड़क, रास्तों, फिल्मों से ज्यादा बातें नहीं करनी चाहिए।
      यह बात मुझे बिमल चटर्जी ने बाद में कभी समझाई थी।
और व्यक्तिगत तथा पारिवारिक बातों के अलावा राजनैतिक बातें भी हर किसी नये राह चलते मिलने वाले से नहीं करनी चाहिए।
आज के राजनैतिक उथल-पुथल वाले वातावरण में अक्सर मैं सीमा से बाहर निकल जाता हूँ, तब हमेशा बिमल की बातें याद आ जाती हैं।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

क्या लोकप्रिय साहित्य का दौर लौट रहा है?- गुरप्रीत सिंह

क्या लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का दौर लौट रहा है?- गुरप्रीत सिंह
    एम. इकराम फरीदी के उपन्यास 'चैलेंज होटल' में प्रकाशित आलेख।
         समय गतिशील और परिवर्तनशील है। इसी परिवर्तन में बहुत कुछ नया आता है तो बहुत कुछ पुराना पीछे छूट जाता है। समय के साथ मनोरंजन के साधन बदल गये। कभी मनोरंजन का माध्यम खेल..आदि थे, कभी मनोरंजन का माध्यम किताबें थी और अब इलैक्ट्रॉनिक साधन मनोरंजन के माध्यम हैं।
उपन्यास पृष्ठ
        कभी मनोरंजन का माध्यम रहा था लोकप्रिय उपन्यास साहित्य। जिसमें जासूसी, सामाजिक, तिलिस्मी और हाॅरर श्रेणी के उपन्यास लिखे जाते थे। कहते हैं लोगों ने देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पढने के लिए हिन्दी सीखी थी।
देवकीनन्दन खत्री के तिलिस्मी उपन्यासों से चला यह दौर सामाजिक और जासूसी उपन्यासों से होता हुआ एक लंबे समय तक चला।
          सामाजिक उपन्यासों में प्यारे लाल आवारा, गुलशन नंदा, कुशवाहा कांत, रितुराज, राजहंस, राजवंश जैसे असंख्य सामाजिक लेखक घर -घर में पढे जाते थे। तब गृहणियां भी अवकाश के समय सामाजिक उपन्यासों को पढती थी।
‌लेकिन बदलते समय के साथ सामाजिक उपन्यासों का प्रभाव कम हुआ और जासूसी उपन्यासों का दौर आ गया। जिसमें इब्ने सफी, निरंजन चौधरी, ओमप्रकाश शर्मा, वेदप्रकाश कांबोज, कुमार कश्यप, वेदप्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन पाठक और अनिल‌ मोहन आदि बहुसंख्यक लेखकों ने जनता का भरपूर मनोरंजन किया।
             लेकिन बदलते मनोरंजन के साधनों ने उपन्यास जगत को गहरी क्षति पहुंचायी। सन् 2000 के बाद उपन्यास जगत से प्रकाशक मुँह मोड़ने लगे और एक ऐसा समय आया की कभी स्वर्णिम समय देखने वाला लोकप्रिय उपन्यास साहित्य किसी गहरे अंधेरे में खो गया। हालांकि इसके पीछे बहुत से कारण रहे जैसे घोस्ट राइटिंग, लेखकों को रायल्टी न देना, अश्लीलता, कहानियों का निम्नस्तर लेकिन मूल में बदलते मनोरंजन के साधन ही हैं।
            इस दौर में मात्र तीन लेखक वेदप्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन पाठक और अनिल मोहन ही सक्रिय रहे और प्रकाशकों में दिल्ली से राजा पॉकेट बुक्स और मेरठ से रवि पॉकेट बुक्स। रवि पॉकेट बुक्स एकमात्र वह संस्था रही जिसने अपनी लाभ-हानि की बजाय उपन्यास जगत को जीवित रखने में यथासंभव कोशिश की।
           वेदप्रकाश शर्मा जी के निधन और अनिल‌ मोहन जी के परिस्थितिवश लेखन से दूरी बना लेने के कारण इस क्षेत्र में एक सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ही वह लेखक रहे जिन्होंने इस परम्परा को जीवित रखा। मात्र जीवित ही नहीं बल्कि उन्होंने इस विधा को नये स्तर तक भी पहुंचाया।
           उपन्यास जगत में एक लंबे समय पश्चात इस क्षेत्र में हलचल महसूस हुयी। इलैक्ट्रॉनिक मीडिया ने जहाँ एक बार उपन्यास जगत को खत्म कर दिया वहीं सोशल मीडिया ने इसे पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एम. इकराम फरीदी जी आदरणीय वेदप्रकाश शर्मा जी की बात को माध्यम बना कर कहते है की "समयानुसार मनोरंजन के साधन बदलते रहते हैं। एक समय उपन्यास मनोरंजन का माध्यम था फिर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया और अब पुनः लोग किताबों की तरफ लौट रहे हैं।"
           सोशल मीडिया के समय में रवि पॉकेट बुक्स के माध्यम से दो लेखक सामने आये। एक कंवल शर्मा और दूसरे एम. इकराम फरीदी। हालांकि कंवल शर्मा रवि पॉकेट बुक्स के लिए पहले अनुवाद का काम कर रहे थे, वहीं एम. इकराम फरीदी जी के दो उपन्यास अन्य संस्थानों से प्रकाशित हो चुके थे। लेकिन जो प्रसिद्ध इन्हें रवि पॉकेट के बैनर तले मिली वह अन्यत्र दुर्लभ थी।
             सन् 2011 में मुंबई से एक और प्रकाशन संस्था 'सूरज पॉकेट बुक्स' ने बाजार में दस्तक दी। सूरज पॉकेट बुक्स के संस्थापक शुभानंद जी ने 'राजन-इकबाल रिबोर्न सीरिज' से लेखन आरम्भ किया। पाठकों ने इसे हाथो-हाथ लिया। कुछ समय बाद इन्होंने 'राजन-इकबाल' के जन्मदाता एस.सी.बेदी के नये उपन्यास प्रकाशित किये। एस. सी. बेदी एक लंबे समय से उपन्यास क्षेत्र से बाहर थे।

सूरज पॉकेट बुक्स से नये लेखक अमित श्रीवास्तव, मोहन मौर्य, मिथिलेश गुप्ता, देवेन पाण्डेय जी आदि सामने आये तो वहीं पाठकों की मांग को देखते हुए उन्होंने पुराने लेखकों भी प्रकाशित किया।
            सूरज पॉकेट बुक्स के सहयोगी मिथिलेश गुप्ता जी कहते हैं की "सोशल मीडिया ने उपन्यास संसार को नये पाठक दिये और पाठकों की मांग पर ही हमने परशुराम शर्मा, वेदप्रकाश कांबोज और अनिल मोहन आदि को पुन: प्रकाशित किया।"
        यह सब बदलते समय और बढते उपन्यास पाठकों का ही प्रभाव था की एक के बाद एक नये लेखक सामने आते गये और पुराने लेखकों के उपन्यास भी पुन: प्रकाशित होने लगे।
इसी समय उपन्यास जगत के वीकीपिड़िया कहे जाने वाले आबिद रिजवी साहब का उपन्यास 'मेरी‌ मदहोशी के दुश्मन' (रिप्रिंट) रवि पॉकेट बुक्स से आया और लगभग दस वर्ष पश्चात एक्शन लेखिका गजाला करीम ने भी अपने उपन्यास 'वन्स एगेन' उपन्यास जगत में पुन: पदार्पण किया।

        उपन्यास बाजार को पुन: पलवित होते हुए देखकर राजा पॉकेट बुक्स ने भी लगभग दस वर्ष पश्चात टाइगर का एक पूर्व घोषित उपन्यास 'मिशन आश्रम वाला बाबा' प्रकाशित किया और आगे एक उपन्यास 'मिशन सफेद कोट' की घोषणा भी की।

          पाठकों के प्रेम को देखते हुए प्रतिष्ठित लेखक वेदप्रकाश कांबोज जी ने भी अपने उपन्यासों को पुन: बाजार में उतारा। जिसे पाठकों ने हाथो-हाथ लिया। वेदप्रकाश कांबोज जी चाहे नये जासूसी उपन्यास नहीं लिखे लेकिन पुराने उपन्यासों का पुन: प्रकाशन एक नये आरम्भ का सुखद संकेत तो है। कांबोज जी का सूरज पॉकेट बुक्स और गुल्ली बाबा पब्लिकेशन से प्रकाशित होना और विश्व पुस्तक मेले में उपन्यास का विमोचन होना इस बात को प्रमाणित करता है की जासूसी उपन्यासों का सुनहरा समय लौट रहा है। लेखक अनुराग कुमार जीनियस कहते हैं -"वास्तव में पाठकवर्ग पुनः सक्रिय हुआ है। उपन्यास का दौर लौट रहा है। लेकिन इसकी रफ्तार अभी धीमी है।"

            समय के साथ पाठकवर्ग पुन: उपन्यासों की तरफ आकृष्ट हुआ, यह रूझान चाहे लेखक और प्रकाशक को लाभ देने वाला तो नहीं था लेकिन संतोषजनक अवश्य था। जहां पाठक को नये उपन्यास मिल जाते हैं वहीं लेखक को इतनी संतुष्टि है की वह अपने लेखन को जीवित रख रहा है। मात्र जीवित ही नहीं ईबुक के माध्यम से कुछ हद तक आमदनी भी करता है।

           अगर आने वाले समय में कुछ और लेखकों के जासूसी उपन्यास बाजार में आ जाये तो कोई अचरज नहीं होगा। यह एक अच्छी पहल है और उम्मीद है यह पहल एक सार्थक मुकाम तक पहुंचे।

           उपन्यास साहित्य का दौर वापस लौट रहा है तो इसके कई कारण रहे हैं। अब लेखक अपने नाम के साथ सैल्फ पब्लिकेशन कर सकता है। ईबुक ने तो इस साहित्य की धारा को एक नया रास्ता दिया है। जहाँ लेखक अपनी किताब का स्वयं प्रकाशक है। संतोष पाठक, चन्द्रप्रकाश पाण्डेय और राजीव कुलश्रेष्ठ और विपिन तिवारी जैसे कई लेखकों का आरम्भ ही ईबुक से हुआ है। यह ईबुक की लोकप्रियता थी, जिसे देखकर सूरज पॉकेट बुक्स ने चन्द्रप्रकाश पाण्डेय और संतोष पाठक को हार्डकाॅपी में प्रकाशित किया वहीं राजीव कुलश्रेष्ठ अपनी ईबुक से ही प्रसन्न हैं। वे कहते है की मुझे नये पाठक और आमदनी इसी से हो जाती है।

अनिल गर्ग, विकास भंटी, विजय सरकार, साग्नि पाठक, कमल कांत और के. सिंह आदि ऐसे नाम है जो ईबुक के क्षेत्र में काफी चर्चित रहे हैं।
            संतोष पाठक जी कहते हैं- "जासूसी उपन्यासों का दौर लौट रहा है इसलिए लौट रहा है क्योंकि आज सैल्फ पब्लिशिंग जैसी सुविधाएं सहज ही उपलब्ध हैं। लिहाजा किसी लेखक के लिए अपने लिखे को प्रकाशित करा पाना बेहद आसान काम साबित हो रहा है। "
               यह तो तय है की बदलते ट्रेड ने नये पाठक पैदा किये हैं। ईबुक से भी आगे एक नये ट्रेड आडियो बुक्स का भी आ रहा है। मिथिलेश गुप्ता जी कहते हैं की -"मेरे उपन्यास को पढने से ज्यादा सुना गया है।"
जासूसी उपन्यास के पाठक अवश्य लौट रहे हैं‌ लेकिन वे हाॅर्डकाॅपी के साथ-साथ अन्य माध्यमों से लौट रहे हैं।

          इसी समय एक और ट्रेड चला वह है उपन्यास संग्रहण का। उपन्यास जगत में सुरेन्द्र मोहन पाठक और वेदप्रकाश शर्मा जी को छोड़ कर किसी भी लेखक के पास स्वयं के उपन्यास तक न थे। लेकिन इस बदलते दौर में कुछ लेखक सक्रिय हुए और अपने उपन्यासों को एकत्र करना आरम्भ किया, वही पाठकवर्ग तो पहले से ही उपन्यास संग्रह कर्ता था लेकिन अब इनमें कुछ और वृद्धि हुयी है।

          संतोष पाठक जी का कथन सत्य ही साबित हो रहा है कि अब लेखक स्वयं प्रकाशक बन कर उपन्यास साहित्य के स्तम्भ को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। जहां शुभानंद जी ने अपने लेखन का आरम्भ अपनी प्रकाशन संस्था का के आरम्भ से किया तो वहीं लंबे समय तक उपन्यास साहित्य पटल से गायब रहने के पश्चात अमित खान जी ने भी 'बुक कैफे' नाम से अपना प्रकाशन संस्थान आरम्भ कर दिया। विभिन्न प्रकाशन संस्था‌ओं से प्रकाशित होने के बाद संतोष पाठक जी और इकराम फरीदी जी ने भी 'थ्रिल वर्ल्ड' नाम से एक प्रकाशन संस्थान की नींव रखी।

        राजस्थान के जैसलमेर से 'फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन' ने सन् 2018 में उपन्यास साहित्य में हाॅरर उपन्यासों की कमी को पूरा किया अपने तीसरे सेट तक इनसे अपने पाठकों पर अच्छी पकड़ बना ली।
         नये लेखकों और प्रकाशक संस्थानों का आना यह सुनिश्चित तो करता है की जासूसी उपन्यास जगत का समय पुन: लौट रहा है। अब यह समय कैसा होगा यह लेखकों पर निर्भर करता है की वे पाठकों को क्या देते हैं।
इस क्षेत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक है लेखक वर्ग नये प्रयोग, भाषाशैली और नयी कहानियों के साथ पाठकों को अच्छा मनोरंजन प्रदान करें।
          अभी प्रकाशकों को भी थोड़ा सक्रिय होना होगा। उपन्यास सम्पादन सही ढंग से हो और इसके अलावा यह सुनिश्चित करें कि किताबों की बिक्री ऑनलाइन ऑफलाइन दोनों जगह हो और पुराने उपन्यास भी आसानी से मिले। ईबुक एक अच्छा माध्यम है जहाँ लेखक और प्रकाशक अपने पुराने उपन्यास उपलब्ध करवा सकते हैं।


आदरणीय रमाकांत मिश्र जी, सबा खान, रुनझुन सक्सेना और चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी को पढने के बाद एक नयी उम्मीद कायम होती है की उपन्यास साहित्य में नयी भाषा शैली और प्रयोगशील लेखक भी हैं। प्रयोग आवश्यक हैं, यही प्रयोग इस साहित्य को नया रूप देंगे।

        वर्तमान समय लेखक और पाठकवर्ग के लिए एक अच्छा अवसर लेकर आया है। इस समय चाहे उपन्यास का बाजार सीमित हुआ है लेकिन यह भी तय है जो सार्थक और मौलिक लेखनकर्ता होगा वह पाठकों को प्रभावित करेगा। हार्डकाॅपी के अतिरिक्त बहुत से पाठक ईबुक और आॅडियो के माध्यम से उपन्यास को पढना- सुनना पसंद करते हैं।

अपने समय के चर्चित लेखक द्वय 'धरम-राकेश' जी के उपन्यास भी में पुनः प्रकाशित होकर आ सकते हैं। चर्चित 'हिमालय सीरिज' लिखने वाले बसंत कश्यप जी ने भी आश्वासन दिया की वे अपनी 'हिमालय सीरिज' का पुनः प्रकाशन करवा रहे हैं।
        यह तो तय है की लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का समय वापस लौट रहा है। चाहे इसकी गति धीमी हो। वह मात्र हार्डकाॅपी के रूप में ही नहीं बल्कि ईबुक और आॅडियो के माध्यम से भी वापसी कर रहा है। अब जरूरत है तो उपन्यास साहित्य के बाजार को मजबूती प्रदान करने की ताकी यह भविष्य में नये आयाम स्थापित कर सके।

गुरप्रीत सिंह (व्याख्याता)
श्री गंगानगर, राजस्थान

ब्लॉग- www.sahityadesh.blogspot.in
ईमेल- sahityadesh@gmail.com

(यह आलेख एम. इकराम फरीदी जी के उपन्यास 'चैलेंज होटल' में प्रकाशित हुआ था)

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-39,40

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार,भाग -39,40
योगेश मित्तल जी के स्मृति कोष से

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 39
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अगले कुछ दिनों में बस एक विशेष बात हुई ! पिताजी कलकत्ते से हमेशा के लिए दिल्ली आ गये ! कलकत्ते में हमारे घर में जो-जो सामान था, अधिकांश वहीं बेच दिया या मुफ्त में किसी पड़ोसी को दे दिया ! सिर्फ कपड़े और कुछ एक हल्की-फुल्की चीजें साथ ले आये थे, जिनमें शार्प झंकार का वह रेडियो भी था, जो बचपन के दिनों में हमारी सबसे प्रिय वस्तु हुआ करता था !

घर में रेडियो आ गया था, हम सब रेडियो पर फिल्मी गाने व हवामहल जैसे प्रोग्राम सुनना चाहते थे, लेकिन यह सम्भव न हुआ !
मकानमालिक जगदीश गुप्ता ने कहा -"रेडियो चलाओगे तो दस रुपये महीना देने होंगे !"
और दस रुपये उन दिनों बहुत होते थे ! 
पास ही के एक जाट रणवीर सिंह की गाय-भैंस के दूध की डेयरी से घर की चाय के लिए दूध लाया जाता था और सबके सामने रणवीर सिंह दूध दुह कर बेचा करता था, वह दूध उन दिनों पचास पैसे किलो होता था !

पिताजी डाॅक्टर थे ! बहुत भाग-दौड़ करने पर शीला सिनेमा टाकीज, पहाड़गंज, नई दिल्ली स्टेशन के पीछे जा रही एक सड़क पर उन्हें एक छोटी-सी दुकान किराए पर मिल गयी, जहाँ उन्होंने अपना क्लिनिक खोल लिया !
वे दिन हमारी आर्थिक परेशानियों के बड़े भारी दिन थे ! 
हम जगदीश गुप्ता के जिस मकान में किराए पर रह रहे थे, उससे पहले हम वहीं आगे की एक गली में सरदार जीतसिंह के मकान में रह चुके थे ! तब सरदार जीतसिंह के बच्चों बिमला, कान्ता और काले को मैं पढ़ाया भी करता था !
सरदार जीतसिंह के मकान के बिल्कुल साथ वाला मकान एक मुल्तानी विधवा का था, जिनके चार बच्चे थे ! सबसे बड़ी इन्दिरा दीदी, उनसे छोटा राम, उससे छोटा किशोर और सबसे छोटी बेबी ! 

रविवार, 27 अक्तूबर 2019

प्रेम वाजपेयी कहते हैं।

प्रेम वाजपेयी कहते हैं।
आपका हजार बार शुक्रिया


इधर हजारों की संख्या में मुझे मेरे पाठकों के खत मिले हैं। उन खतों में मुझे जो प्यार दुलार, मान, सम्मान और हौंसला और उत्साह मिला है। उसके लिए मैं अपने पाठकों का बहुत ही कृतज्ञ हूँ। इसके ऐवज अगर मैं उनका हजार बार शुक्रिया अदा करूं तो यह भी कम होगा। उन सभी खतों में चेतना की एक लहर भी मुझे दिखाई पड़ी है। मुझसे भारी संख्या में पुराने उपन्यासों की सूची की मांग की गई है। पाठकों ने लिखा है कि अब वे नकली के मामले में बहुत ही सावधान हो गये हैं और उन्हें धोखा नहीं दिया जा सकता। फिर भी मैं एक बात दोहराना उचित समझता हूं कि मेरे नये उपन्यास अब सिर्फ मनोज पाकेट बुक्स में ही प्रकाशित होंगे। अगर कोई प्रकाशक आपको यह सूचना देता है कि वह प्रेम वाजपेयी का नया उपन्यास छाप रहा है तो उसे कदापि सच न मानें। निश्चित रूप से वह जाली उपन्यास होगा।
       आप मेरे जाली उपन्यासों के बारे में भ्रमित न हो। इसके लिए मेरा निवेदन है कि आप मुझे एक पत्र लिख कर मुझसे मेरे पुराने उपन्यासों की सूची मंगा लें। दस पैसे खर्च करने पर आपको सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भविष्य में प्रकाशित होने वाले अपने उपन्यासों की सूचना आपको देता रहूंगा तथा जाली उपन्यासों के बारे में भी आपको जानकारी मिलती रहेगी।
        जैसा की आपको मालूम है कि मेरे नकली उपन्यासों के प्रकाशन का केन्द्र मेरठ है। अभी-अभी मेरठ से कुछ जाली उपन्यास निकाले गये हैं। इन उपन्यासों पर मैं कानूनी कार्यवाही करने तो जा ही रहा हूँ। फिर भी आप मेरठ से निकलने वाले नकली उपन्यासों से सावधान रहें।
      मेरे नाम से निकाले गये उपन्यास एकदम जाली हैं। मन छुपी पीड़ा, दर्द के साथी, एक चुभन गुलाब की, उजले मोती काले पंख, वासना की देवी, पाप की पुतली, ढलती रात का सपना। मेरे लिखे उपन्यास नहीं है। इन जाली उपन्यासों को बेचते हुए यदि किसी बुलसेलर को पायें तो उसका पता नोट करके हमारे पास अवश्य भेजें।
       एक बार फिर मैं अपना नया उपन्यास लेकर आपके सामने आया हूँ। आप बड़े ध्यान से इस उपन्यास को पढे़ और पढ़ने के बाद दो शब्द मुझे अवश्य लिखें। आपके पत्रों से मुझे और भी अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है। मुझे यह ज्ञान मिलता है कि आपकी रूचि कैसी है। आप कैसा उपन्यास पसंद करते हैं।

आशा है सानंद होंगे
शुभ कामनाओं सहित
प्रेम वाजपेयी
एफ-1/27, कृष्णनगर, दिल्ली-51

(उपन्यास 'लटके हुए लोग' के लेखकीय से



शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

अनुराग कुमार जीनियस

नाम-   अनुराग कुमार जीनियस 
जन्म-   01.01.1988
माता- श्रीमति मालती देवी
पिता- अशोक कुमार चतुर्वेदी
शिक्षा- अधि स्नातक (M.A.)
संपर्क-
Email- anuragkumargenius77@gmail.com
एड्रेस - ग्राम+ पोस्ट- महोई, कानपुर देहात,
उत्तर प्रदेश- 209310

बाल कथा लेखन से अपनी कलम का जादू दिखाने वाले अनुराग कुमार की प्रथम रचना चंपक (नवंबर, प्रथम -2007) में 'घड़ी चोर' शीर्षक से प्रकाशित हुयी। उसके बाद इनकी रचनाएं चंपक और सरस सलिल जैसे प्रसिद्ध पत्रिकाओं में स्थान पाती रही। समय के साथ इनकी रचनाएं परिपक्व होती गयी और अनुराग जी ने सन् 2017 में जासूसी उपन्यास क्षेत्र में 'एक लाश का चक्कर' उपन्यास के साथ पदार्पण किया।

रचनाएं
1. घड़ी चोर (चंपक, नवंबर, प्रथम -2007)
2. सही राह (चंपक, नवंबर, द्वितीय-2007)
3. सुनील की बुद्धिमानी (चंपक, नंवबर, 2009)
4. संस्कार (सरस सलिल, 2009)
5. विश्वासघात (सरस सलिल, 2009)
अनुराग कुमार जीनियस
अब तक प्रकाशित उपन्यास
1. एक लाश का चक्कर
(तुलसी पॉकेट बुक्स, मेरठ-2017, द्वितीय संस्करण- सूरज पॉकेट बुक्स, मुंबई- 2019)
2. एक्सीडेंट- एक रहस्य कथा   सूरज पॉकेट बुक्स-2018)
3. किस्मत का खेल (सूरज पॉकेट बुक्स)

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019

विपिन तिवारी

नाम-     विपिन तिवारी
जन्म-    05.07.1974
माता-    स्व.विद्या देवी तिवारी
पिता-    स्व.बेनी प्रसाद तिवारी
शिक्षा-   बी. काॅम.
ईमेल-    viptiwari57@gmail.com

मोबाइल-  9653042611, 8005365755

एड्रेस- बिजेमऊ, रानीगंज, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

उपन्यास सूची
1.  द लाल- (अगस्त-2017)
विपिन तिवारी जी

सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

एक खत फरीदी जी को

लेखक एम. इकराम फरीदी जी को पंजाब के जसपालों निवासी संजीव कुमार जी द्वारा लिखा गया एक खत।



ओमप्रकाश शर्मा जी का खत वीरेन्द्र जैन के नाम

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का साहित्यकार वीरेन्द्र जैन जी को लिखा गया एक खत।
   यह खत 'वीरेन्द्र जैन का साहित्य' नामक ग्रंथ में संकलित है।

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

नये उपन्यास, अक्टूबर-2019

उपन्यास पाठकों के लिए सूरज पॉकेट बुक्स लेकर आ रहा है कुछ बेहतरीन पठनीय उपन्यास।

  सूरज पॉकेट बुक्स के इस बार उपन्यास आवरण बहुत शानदार और आकर्षक है।

सूरज पॉकेट बुक्स का नया सेट (October 2019)
ऐसी किताबें जिनका आपको बेसब्री से इंतज़ार था.

1. इन्का – परशुराम शर्मा
                 जादूगर लेखक ‘परशुराम शर्मा’ की अद्भुत लेखनी से         
               निकला एक विशेषांक, जो तंत्र मन्त्र और पैरासाइकोलोजी
              जैसे विषय पर लिखा एक अनूठा नायब तोहफा है सभी   
              पाठकों के लियेेे। मूल उपन्यास के पांच पार्टों को एकत्रित कर इस उपन्यास तीन भागों में प्रकाशित किया जायेगा।
शानदार नया आवरण
  













  

2. अंतर्द्वंद्व – शुभानंद
                    जाने वाले लेखक ‘शुभानन्द’ की करिश्माई कलम से निकली जावेद अमर जॉन सीरीज़ का एक बेजोड़ रहस्य, थ्रिल और रामंच से भरपूर स्पाई थ्रिलर।

3. चक्रव्यूह – मोहन मौर्य
                     ‘एक हसीन क़त्ल’ से ख्यातिप्राप्त लेखक ‘मोहन मौर्य’ का नया जलजला. एक ऐसा थ्रिलर जो राजनीति, भ्रष्टाचार और सम्प्रदायिक साजिश पर आधारित  है।


4. कमीना – शुभानंद
                   लेखक शुभानन्द जी के बहुचर्चित उपन्यास का नया विस्तारित  संस्करण एक नये आवरण के साथ. इस  संस्करण में पिछले पेपरबैक संस्करण के मुकाबले  क्लाइमेक्स को  विस्तारित किया गया है।



उपन्यास आॅर्डर के लिए इस लिंक पर जायें।


रविवार, 29 सितंबर 2019

दो लेखक

परशुराम शर्मा जी और अमित खान
 ले

सितंबर,2019, परशुराम शर्मा जी और अमित खान जी मुंबई में।

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

लोकप्रिय साहित्य पर एक चर्चा- एम.इकराम फरीदी

लोकप्रिय साहित्य पर एक चर्चा

हिंदी सप्ताह चल रहा है।

इस मौक़े पर हिंदी साहित्य की दुर्दशा का मज़ाकरात किया जाता है।
     हिंदी भाषा जितनी विराट ह्रदय की रही है कि उसने सदा बाहरी शब्दों को समाहित और आलिंगन करने में संकोच नहीं किया है, उतना ही हिंदी किताबों के प्रकाशक संकुचित मन के रहे हैं जिन्होंने हिंदी किताबों की लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहां गंभीर साहित्य के नाम पर अधिकांशतः विश्वविद्यालयों या विद्यालयों के प्रवक्ता का दबदबा रहा है जबकि प्रतिभा तो कहीं भी जन्म ले सकती है लेकिन जिस प्रकार कोई बड़ा धर्मगुरु किसी छोटी ज़मीन से नहीं आता है, आला हज़रत का बेटा, नवासा ही बड़ा मुक़र्रिर हो सकता है, किसी ग़रीब का बेटा ज़िंदगी भर सिर्फ हाथ ही चूमता रह सकता है, उसी तरह गंभीर साहित्य में भी अपवाद को छोड़कर बड़े नाम विश्वविद्यालयों या अन्य उच्चपदों से मंसूब नज़र आते हैं।

       लेकिन लोकप्रिय साहित्य को यह ज़रूर गौरव हासिल रहा कि वहां प्रतिभाओं की कद्र हुई | वेद प्रकाश शर्मा नाम का जो धूमकेतु आकाशगंगा में चमकता नज़र आता है, सन 65 की बारिश में उनका कच्चा घर गिर गया था ओर सड़क पर रातें गुज़ारी थी| सुरेंद्र मोहन पाठक साहब भी अपने नौकरी के कर्तव्य की इतिश्री के साथ सिर्फ अपने जुनून के चलते आराम के समय को लेखन के हार्ड वर्क के नाम खर्च किया करते थे। काम्बोज साहब और ओ पी शर्मा जी भी संघर्ष के पर्याय रहे हैं।

 चूंकि लोकप्रिय साहित्य में वही प्रतिभाएं प्रकाशमान हुईं जो विधिवत आगे बढ़ीं।  यही कारण रहा कि दिल से लिखा और दिल में उतरा|  इब्ने सफी साहब के बारे में कहा जाता है कि उनके रीडर उनके नाविल की बाइंडिंग तक का भी सब्र नहीं कर पाते थे और यूँ ही फार्म (16 पेज )को ले जाकर पढ़ा करते थे और खुद ही सिल लिया करते थे।

लेकिन इस पाॅकेट बुक्स ने जब लोकप्रियता के शिखर को छुआ तो इसके प्रकाशकों की बदनीयती ने आज इस धंधे को उस रसातल में पहुंचा दिया है कि अब इसके उभरने की बहुत आशाएं बांधी जाए तब भी वह आशाएं एक पर्सेंट से अधिक नहीं बढ़ पाती।

 जब पॉकेट बुक्स का सितारा बुलंदियों पर था और इसके चुनिंदा लेखक अपना लेखकीय जीवन 30-35 वर्ष से अधिक का जी चुके थे कदाचित कहना चाहिए कि हर शिखर के बाद अवसान की यात्रा शुरू होती है , कोई भी फनकार एक समय के बाद खुद को रिपीट करना शुरू कर देता है कदाचित उसे जो कहना था वह कह चुका होता है , फिर सिर्फ अपनी लोकप्रियता को भुनाता है।  ऐसे में उस फील्ड को नए फनकारों की ज़रूरत होती है जो जेनेटिक स्तर पर उस पुराने फनकार से 30 वर्ष आगे का नज़रिया लेकर पैदा हुआ होता है।       उस समय फील्ड का दारोमदार नए फनकार के कंधों पर ही होता है  और वही उसे अपनी अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का उपक्रम कर सकता है लेकिन सन 90 से ऐसे सुअवसर पर पॉकेट बुक्स के प्रकाशकों ने नए लेखकों के लिए अपने दरवाज़े सदा के लिए बंद कर लिए और फिर वे दरवाज़े यूँ बंद हुए कि अंततः उनमें ताले पड़ गये।

    उस समय प्रकाशकों ने नये लेखकों के आगे ट्रेड नेम का ऑप्शन रखना शुरु कर दिया था क्योंकि वे गुलशन नंदा, पाठक जी, काम्बोज जी, शर्मा जी की तरह कोई अगला भाव खाते लेखक का सामना नहीं करना चाहते थे। वे चाहते थे लेखक उनकी उंगलियों पर नाचे , लेखक उन्हे छोड़कर कहीं का न रहे।  आज की डेट में राकेश पाठक को कौन जानता है लेकिन केशव पण्डित ( ट्रेड नेम) को सब जानते हैं | जब राकेश पाठक को कोई जानता ही नहीं है तो कौन प्रकाशक उन्हे घास डालने बैठा है।

    घोस्ट राइटिंग में कभी भी प्रतिभाशाली राइटिंग नहीं होती है। राइटर की नज़र बस इस बात पर होती है कि मैंने आज 10 पेज लिख दिए तो इतने रुपये कमा लिये | उसे न प्रशंसा मिल रही है ना आलोचना।  यह भी कोई गारंटी नहीं है कि उसी ट्रेड नेम से अगला उपन्यास कौन लिखेगा ?

 परिणाम यह हुआ कि जिन उपन्यासों को पहले ईर्ष्या के चलते हेय दृष्टि से देखा जाता था ,  वो सचमुच हेय का पात्र बन गए और पाठक का ऐसा मन खटटा हुआ कि आज इस पाॅकेट बुक्स के नाम लेवा में लाखों की तादाद से घटकर गिने चुने लोग बाक़ी रह गये हैं।

 मैं नहीं समझता कि इसका दौर कभी लौटेगा।  इस मुर्दे की अब तदफ़ीन हो चुकी है।  कुछ शौक़िया लोग आते और जाते रहेंगे और कुछ हम जैसे जिनका मदावा ही लेखन है , 15 दिन ना लिखा जाए तो मौत के किनारे आ लगते हैं। प्रतिभा अभिशाप बन गई है। विवशतावश लिखते रहेंगे। खैर...

 जय हिंदी
जय मातृभाषा
लेखक- एम. इकराम फरीदी

प्रस्तुत आलेख लेखक के फेसबुक वाॅल से लिया गया है।
फेसबुक लिंक

रविवार, 15 सितंबर 2019

मैं जासूसी उपन्यासकार क्यों बना?- अमित खान

मैं जासूसी उपन्यासकार ही क्यों बना ?

 मैं समझता हूँ, उपन्यास लेखन अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है । जिसमें पात्रों के माध्यम से आप अपने मन की बात कहते हैं । दूसरे शब्दों में, उपन्यास-लेखन एक जादू की तरह है । जैसे काला जादू ! उपन्यासकार एक जादूगर की तरह रंगमंच पर खड़ा होता है और वह अपने दिमाग रूपी हैट में-से घटनाओं का ऐसा चमत्कारी जाल निकालकर दिखाता है, ऐसा महिमा-मंडल चारों तरफ बुनता है कि सब बेहद मन्त्र-मुग्ध होकर कागज़ पर लिखे शब्दों को पढ़ते हैं ।

       जिस उपन्यासकार में पाठकों को शब्दों से चिपकाने का जितना ज्यादा कौशल होगा, वह उतना ही कामयाब उपन्यासकार बनेगा  ।

         कहने को सब कुछ काफी आसान है, लेकिन फिर भी यह जादू बिखेरना कोई बच्चों का खेल नहीं । उसके लिये उपन्यासकार के पास कठोर परिश्रम, अगाध कल्पनाशीलता और पाठकों की नब्ज परखने का ख़ास आला होना चाहिए ।

       बचपन से ही मुझे अच्छा लगता था, रहस्यमयी रचनाओं का ताना-बाना बुनना । मैं घंटों के लिये ऐसे कल्पना-लोक में खो जाता, जो एक अजब ही दुनिया होती । थ्रिल (रोमांच) से मुझे प्यार था, आज भी है । ज़रा सोचिये, आम जिन्दगी में भी कितना थ्रिल होता है । जिन्दगी में कितने अद्भुत होते हैं वो क्षण, जब आपको मालूम ही नहीं होता कि अगले पल क्या होने वाला है ? क्या घटने वाला है ? सब कुछ सस्पेंसफुल होता है । फिर चाहे वह सस्पेंस कैरियर को लेकर हो या जिन्दगी और मौत को लेकर । थ्रिल आखिर जिन्दगी में कहाँ नहीं है ? हर जगह रोमांच है । हर जगह सस्पेंस है । और जब हमारी जिन्दगी ही इतनी रोमांचकारी होती है, तो फिर व्यवसाय भी कोई रोमांचकारी ही क्यों न चुना जाये । यही सोचकर मैं जासूसी उपन्यासकार बन गया ।

     श्रद्धेय देवकीनंदन खत्री से शुरू हुआ भारत में जासूसी उपन्यास का यह सफ़र इब्ने सफी और ओमप्रकाश शर्मा से लेकर आज तक जारी है ।
      फिर भी एक बात का दुःख अवश्य है । भारत में जासूसी साहित्य को वह सम्मान आज भी नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था । जबकि वेद प्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक जैसे शलाका पुरुष इस क्षेत्र में हुए हैं, जिन्होंने अद्भुत लेखन-कार्य किया है । आज भी जासूसी साहित्य को भारत में साहित्य के नाम पर कूड़ा परोसने वाला एक व्यवसाय समझा जाता है । जबकि विदेशों में जासूसी साहित्यकारों ने अथाह मान-सम्मान प्राप्त किया है । अगाथा क्रिस्टी, इयान फ्लेमिंग और जेम्स हेडली चेइज जैसे दर्जनों उपन्यासकार इस बात के साक्षी हैं । इतना ही नहीं, शरलाक होम्ज पात्र के रचयिता आर्थर कानन डायल को इंग्लैंड में ‘सर’ जैसी मानद उपाधि से भी अलंकृत किया गया ।

क्या भारत में ऐसा संभव है ?
हरगिज नहीं ।
अभी जासूसी साहित्य के लिये यहाँ एक खुली मानसिकता की आवश्यकता है । स्वस्थ्य बहस की आवश्यकता है ।

       फिर भी मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक जासूसी उपन्यासकार हूँ और मुझे दया आती है उन कुंठित मानसिकता वाले लोगों पर, जो जासूसी उपन्यासों को सिर्फ इसलिये नहीं पढ़ते, क्योंकि उनकी निगाह में यह एक स्तरहीन साहित्य है ।

ज़रा सोचिये, वह मनोरंजन के कितने महत्वपूर्ण साधन से वंचित हैं ।

     मैं इस कामना के साथ इस लेखकीय को बंद करता हूँ कि एक दिन हालात सुधरेंगे । एक दिन जासूसी साहित्य को भारत में वही दर्जा हासिल होगा, जो विदेशों में हासिल है ।

अब आज्ञा चाहूंगा ।
आपका अपना
अमित खान
मुंबई – 400104
सम्पर्क सूत्र : foramitkhan@gmail.com

यह खास लेखकीय, जो "मैडम नताशा का प्रेमीे" उपन्यास का हिस्सा है।  


शनिवार, 14 सितंबर 2019

नये उपन्यास- 2019

जासूसी उपन्यास साहित्य में एक के बाद एक बेहतरीन उपन्यासों का प्रकाशित होना एक अच्छी खबर है। उस बार तो उपन्यास ही नहीं बल्कि प्रकाशन संस्थान भी नया है।
नये उपन्यास
1. चैलेंज होटल- एम. इकराम फरीदी
      प्रकाशन तिथि- 15.09.2019
            यह उपन्यास लेखक के जीवन में घटित एक सत्य घटना पर आधारित है। एम. इकराम फरीदी पहली बार हाॅरर कथानक के साथ उपस्थित हैं।
       उम्मीद है यह उपन्यास पाठको को पसंद आयेगा। इसी उपन्यास के साथ फरीदी जी ने अपने प्रकाशन संस्थान 'थ्रिल वर्ल्ड' की शुरुआत की है।
         फरीदी जी का आगामी उपन्यास 'अवैध' है।
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बुधवार, 4 सितंबर 2019

साहित्य प्रचार में पाठक का योगदान

साहित्य प्रचार- प्रसार में आपका योगदान - संतोष पाठक
    साहित्य के प्रचार-प्रसार में एक पाठक का क्या योगदान होना चाहिए। इसके क्या अर्थ हैं। इसी विषय पर उपन्यासकार संतोष पाठक जी का एक आलेख प्रस्तुत है।

कुछ कहना चाहता हूं।
आज के लेखन और लेखकों के संदर्भ में, आज के प्रकाशकों के संदर्भ में। वैंटीलेटर पर कृतिम ढंग से सांस लेते मनोरंजक साहित्य के संदर्भ में।
   ये तीनों ही बड़ी कठिनता से - आपस में सामंजस्य बैठाने की मुश्किल कोशिश करते हुए - घिसट-घिसट कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
  उक्त हालात के लिए कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं, फिलहाल यह मेरा मुद्दा नहीं है।
       मैं बात करना चाहता हूं, लेखक, प्रकाशक और उनके सामंजस्य से छपकर सामने आ रहीं, आने वाली रचनाओं की। उन किताबों की जिनकी कुछ हजार प्रतियां छापकर, उनमें से कुछ सौ प्रतियां बेचकर प्रकाशक चैन की सांस लेता है कि चलो पब्लिशिंग का खर्चा तो निकला। दूसरी तरफ लेखक उस किताब को सोशल मीडिया पर डालकर, हजारों लोगों में से कुछ की प्रशंसा और कुछ पाठकों की आलोचना झेलकर ये सोचकर अपने को तसल्ली दे लेता है कि चलो, किताब छपकर मार्केट में आई तो सही।
सवाल ये है कि इससे हासिल क्या हुआ?
लेखक ने राॅयल्टी नहीं कमाई, प्रकाशक ने ऊंचे दाम पर किताब बेचकर भी बस प्रकाशन का खर्चा भर वसूल लिया। लेखक को लेखक कहलाने का गौरव - जो कि अधिकतर मामलों में बस मुंहदेखी बात होती है - हासिल हुआ। प्रकाशक को प्रकाशक कहलाने का गौरव - जो वास्तव में किसी गिनती में नहीं आता - हासिल हुआ।
चेहरे पर दिखावे की मुस्कान और बेस्ट सेलर होने का दावा, किताब के आउट आॅफ स्टाॅक तो जैसे कोई बड़ी उपलब्धि हो - भले ही वह किताब पांच सौ ही छापी गई हो - सोशल मीडिया पर प्रमुखता से प्रचारित होने लगता है।
         वह भी ऐसे ऐसे ग्रुप में जहां हर पाठक अपने आप में एक लेखक है लिहाजा किताब का पोस्टमार्टम शुरू हो जाता है। इसके विपरीत 'तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊंगा' की तर्ज पर वाहवाही भी मिलती है। नतीजा ये होता है कि एक अच्छी किताब पाठकों तक पहुंचने से पहले ही अपना वजूद खो देती है। इसके विपरीत ऐसी किताब जिसके आपको पांच पन्ने भी पढ़ना गवारा न हो कुछ नये पाठकों के हाथों तक पहुंच जाती है।
नतीजा फिर भी वही रहता है ढाक के तीन पात।
और हम क्या करते हैं?
भसड़ फैलाने वाली पोस्ट को शेयर कर के दुनिया भर में फैला देते हैं। राजनीति पर ऐसे ऐसे कमेंट करते हैं कि हमारे नेताओं ने अगरी बेशरमी में डिप्लोमा ना कर रखा हो तो अब तक जाने कितने सुसाईड कर चुके होते।
       संप्रदायिकता की भावनाओं को भड़काने वाले पोस्ट को लाईक करते हैं, कमेंट करते हैं, शेयर करते हैं। पोस्ट किसी खूबसूरत दिखने वाली मोहतरमा की हो तो उनकी छींक की खबर पर भी पूछ बैठते हैं कि डाॅक्टर को दिखाया या नहीं, या फिर हकीम लुकमान बनकर दो चार सलाह दे डालते हैं।
मगर एक बार भी हम वहां दिखाई दे रही किसी पुस्तक को या उसके रीव्यू को शेयर करने की जहमत नहीं उठाते। कहीं हमारे ऐसा करने से किताब की सेल ना बढ़ जाय। अरे भाई किताब नहीं पढ़ी कोई बात नहीं, अच्छी नहीं लगी कोई बात नहीं, बहुत अच्छी लगी तो भी कोई बात नहीं मगर सामने दिखाई दे रही किताब को शेयर कर देंगे तो हमारे पाॅकेट से क्या गया। कुछ और लोग किताब के बारे में जान जायेंगे हो सकता है उन हजार लोगों में से कोई एक किताब खरीद भी ले। हमारा क्या गया? सिवाय इसके कि हमारेे इस किंचित प्रयास से अमुक किताब की एक प्रति ज्यादा बिक गई।
          हम किताब पढ़ते हैं, अच्छी लगे तो हम सैकड़ों लोगों में से एक उसके बारे में दो लाईन लिख देता है। बुरी लगे तो लेखक को बुरा ना लगे इस भावना के तहत अधिकतर लोग किताब के बारे में कुछ नहीं लिखते।
         जबकि जरूरत दोनों ही बातों की है। ईमानदारी पूर्वक की गई हमारी समीक्षा हमेशा लेखन को बढ़ावा देती है, लेखक को और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है, भले ही किताब की बुराई सुनकर थोड़ी देर के लिए उसका मन खिन्न हो जाए।
इसलिए सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाली हर किताब को शेयर करें। भले ही उसका लेखक हमारे संपर्क में हो या न हो! हम उसे व्यक्तिगत तौर पर जानते हों या नहीं जानते हों।
आइए मिलकर मनोरंजक साहित्य को फिर से बुलंदियों पर पहुंचाने की कवायद में जुट जाएं।
लेखक का फायदा - किताबें ज्यादा बिकेंगी तो राॅयल्टी ज्यादा मिलेगी। वह ज्यादा मेहनत से अपने लेखन कार्य को अंजाम दे सकेगा।
प्रकाशक का फायदा - किताबें ज्यादा बिकेंगी तो वह ज्यादा कमाई करेगा और पुस्तक का मूल्य कम करने में कामयाब होगा। आज दो सौ बीस में बिकने वाली किताबें कल डेढ़ सौ, एक सौ तीस में मिलने लगेंगी।
पाठक का फायदा - पढ़ने के लिए कम पैसे खरचने पड़ेंगे। आज जिस मूल्य में एक किताब खरीदते हैं हो सकता है कल को उसी कीमत में उसी स्तर की दो किताबें हासिल हो जायं।

प्रस्तुति- संतोष पाठक
लेखक- संतोष पाठक
फेसबुक की मूल पोस्ट

रविवार, 1 सितंबर 2019

जासूसी दुनिया पत्रिका

जासूसी दुनिया पत्रिका की रोचक जानकारी।

आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि जासूसी दुनिया पहले राही मासूम रजा लिखने वाले थे. उन्होंने लिखा नहीं था. उनसे अब्बास हुसैनी ने नमूना माँगा था और उन्हें व इब्ने सफी को फाइनल किया गया. लेकिन अंत में सफी साहब को इसलिए फाइनल किया गया क्योंकि उनमें जासूसी के साथ हास्य की भी समझ थी. और यह अच्छा ही हुआ. इससे उर्दू ही नहीं हिंदी को भी बेहतरीन जासूसी लेखक मिला. कल्ट लेखक भी कह सकते हैं. वो इकलौते लेखक हैं जिनका उपन्यास छपते छपते बिकना शुरू हो जाता था।
      तब ट्रेडल पर धीमी छपाई होती थी. इलाहबाद के खासकर इक्के वाले शाम ही से प्रेस के पास मंडराने लगते थे और छपाई के बाद बाइंडिंग का भी इंतज़ार नहीं करते थे और वैसे ही खरीद कर ले जाते थे. हालाँकि बाइंडिंग के नाम पर इसमें सिर्फ पिन ही लगती थी. लेकिन लोग इतना भी सब्र नहीं दिखाते थे. हॉट केक का नाम सबने सुना होगा, लेकिन हॉट केक की तरह बिकने वाला हिंदुस्तान का एकमात्र लेखक था इब्ने सफी।

- प्रस्तुति- विनोद भास्कर

रविवार, 4 अगस्त 2019

रघुनाथ और विजय नामकरण

मेरे मन में एक इच्छा थी की उपन्यास पात्रों पर एक श्रृंखला आरम्भ की जाये जिसमें  पात्रों के बारे में महत्वपूर्ण बाते/घटनाएं आदि वर्णित हो। जैसे इमरान, अलफांसे, विमल, देवराज चौहान, नाना पाटेकर, विजय-विकास जैसे बहुसंख्यक पात्रों पर कुछ लिखा जाये।
श्री मान प्रवीण जैन जी ने एक सराहनीय प्रयास किया है और यह प्रयास स्वयं में अनूठा और एकदम अलग है। प्रवीण जी ने आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज साहब के पात्रों का ज्योतिषीय महत्व रेखांकित किया है। 
इस श्रृंखला की प्रथम कड़ी में आप पढेंगे रघुनाथ और विजय के नाम का ज्योतिषीय महत्व। (गुरप्रीत सिंह, साहित्य देश)
     

     भाई वेद प्रकाश कम्बोज के जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले मित्र उनके अन्य पात्र रघुनाथ को नही भूल सकते खास तौर से इसलिए कि विजय हमेशा उसे प्यारे तुला राशि कह कर सम्भोदित करता है। पाठको को ऐसी अनुभूति होती है जैसे अपने किसी अति घनिष्ठ मित्र से मिल रहे हो। पर क्या कभी आपने पढ़ा है कि विजय को किसी ने, रघुनाथ ने भी  वृष राशि कह कर पुकारा हो। नही न। ऐसा इसलिए कि कम्बोज ने कभी ऐसा लिखा ही नही। परंतु जाने अनजाने में उन्होंने दोनों के मध्य एक ज्योतिषीय साम्य प्रस्तुत किया है। वृष और तुला दोनो राशियों का स्वामी ग्रह शुक्र है। और उनकी मित्रता का मजबूत आधार है। रघुनाथ हमेशा विजय के पास प्रोफेशनल मदद की अपेक्षा करता है। क्यों? इसका उत्तर दोनो के नज़्म में ही छुपा है।
     विजय का नामांक 1, रघुनाथ के नामांक 5 का मित्र है इसके विपरीत रघुनाथ के नामांक 5 के लिए विजय का नामांक सपोर्टिव है मददगार है।
ज्योतिष के विद्वान जैमिनी ज्योतिष से भली भांति परिचित है। इसमें अंको की 'क, ट, प, य' आदि पद्धति से भावो को इंगित किया जाता है। इस पद्धति से विजय और रघुनाथ दोनों शब्दो से कुंडली के प्रथम भाव का बोध होता है।
   दोनों के राशि स्वामी होने से नव पंचम दोष इनके सम्बन्धो में बाधक नही बनता।।

लेखक- प्रवीण जैन
 
प्रस्तुत पोस्ट आपको कैसी लगी। अपने विचार अवश्य व्यक्त करें। 

मंगलवार, 23 जुलाई 2019

नये उपन्यास- जुलाई 2019


नमस्कार,
एक बार फिर उपस्थित हैं आपके लिए नये उपन्यासों की सूचना लेकर। कुछ नये उपन्यासों तो कुछ रिप्रिंट।
उम्मीद है ये उपन्यास आपके अच्छे मनोरंजन में सहायक होंगे।

रवि पॉकेट बुक्स मेरठ द्वारा प्रकाशित उपन्यास
उपलब्ध-25.07.2019 से   
रवि पॉकेट बुक्स की प्रस्तुति
1. एंट्रेप्ड- कंवल शर्मा
               कंवल शर्मा का नाम ही मनोरंजन का पर्याय बन चुका है। इनका हर उपन्यास एक नयी कहानी के साथ आता है और पाठकों पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
इनके एक पूर्व उपन्यास 'देजा वू' की तरह यह शीर्षक भी कुछ अलग हट कर है। उम्मीद है यह कहानी भी कुछ जुदा और मनोरंजक होगी।
          रवि पॉकेट बुक्स मेरठ से प्रकाशित कंवल जी का यह छठा उपन्यास है।
         हालांकि इनके एक उपन्यास 'कैच-04' की घोषणा को काफी समय हो गया, वह अभी तक प्रकाशित नहीं हुआ।
वैसे भी कंवल जी के उपन्यासों के शीर्षक में संख्याओं का विशेष योगदान रहा है। जैसे -'वन शाॅट', 'सैकण्ड चांस', 'टेक थ्री'।

2. बाजीगर- शिवा पण्डित

                 अर्जुन त्यागी सीरिज से पहचाने जाने वाले शिवा पण्डित का एक और थ्रिलर उपन्यास प्रकाशित हो रहा है।

3. बारूद की बेटी- रीमा भारती

                         अपने एक्शन के कारण विशेष पहचान बनाने वाले रीमा भारती के उपन्यास आज भी पाठकों को बेहद पसंद है। एक बार फिर रीमा भारती का जलवा हाजिर है।
दुश्मनों को मौत की नींद सुलाने आ रही है बारूद की बेटी।

4. लूटमार-अनिल मोहन

               उपन्यास जगत के बेहतरीन लेखक अनिल मोहन का एक उपन्यास रवि पॉकेट से रिप्रिंट आ रहा है।
देवराज चौहान का कारनामा।

5. बदमाशों की टोली- अनिल मोहन

                              देवराज चौहान एक बार फिर जा टकराया बदमाशों‌ की टोली से। फिर छिड़ी एक जंग। एक कहर बरसाने वाला जबरदस्त कथानक।

6. कैदी प्रेतात्मा, गुलबदन- राज भारती
                                    राज भारती के हाॅरर उपन्यास पसंद करने वालों के लिए यह अच्छी खबर है की रवि पॉकेट बुक्स से उनके उपन्यास लगातार रिप्रिंट हो रहे हैं।
इस बार तो एक साथ दो उपन्यास, एक के मूल्य में दो उपन्यास उपलब्ध हैं।

सूरज पॉकेट बुक्स- मुंबई से प्रकाशित
इस सेट में सूरज पॉकेट बुक्स पहली बार कुछ अलग हटकर किताबें लेकर आया है। उम्मीद है की ये किताबें नये आयाम स्थापित करेगी।


7. महासमर- रमाकांत मिश्र, सबा खान।

                  रमाकांत मिश्र अपने प्रथम उपन्यास ...के साथ ही चर्चा में आ गये थे। वहीं सबा खान अपने रोचक और सरल अनुवाद के कारण चर्चा में रही है। उस बार यह संयोग है की दोनों लेखक एक साथ आ रहे हैं। ऐसा बहुत कम संयोग देखने को मिलता है। पाठकों के लिए यह अपार हर्ष का समय है।
'महासमर- परित्राणाम साधुनाम' उपन्यास एक विशेष टैग लाइन के साथ उपस्थित है। उपन्यास के विषय में सिर्फ इतना ही कहना काफी है की इसके लेखक द्वय रमाकंत मिश्र और सबा खान है।

8. बालि- देवेन्द्र पाण्डेय

            प्यार, इश्क और मोहब्बत जैसे विषय पर कलम चलाने वाले देवेन्द्र पाण्डेय जी इस बार एक पौराणिक कथा के साथ उपस्थित हैं। बालि- युग युगांतर प्रतिशोध।
उम्मीद है और प्रार्थना भी है की यह रचना एक अलग पहचान बनाने में सफल होगी।

9. धुरंधरों के बीच- एम. इकराम फरीदी

                            फरीदी जी के पाठकों के लिए यह एक अच्छी खबर है की उनके उपन्यास अब और भी बेहतरीन गुणवत्ता के साथ उपलब्ध हैं।
फरीदी जी पहली बार सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हो रहे हैं।
10. Warlock- vickram e diwan
                        हिन्दी रचनाओं के मध्य अंग्रेजी पाठकों के लिए भी सूरज पॉकेट बुक्स एक उपहार लेकर उपस्थित है। विक्रम दीवान की रचना warlock.

Book cafe Publication द्वारा प्रकाशित
लेखक अमित खान जी के स्वयं के पब्लिकेशन के अंतर्गत कुछ नयी और कुछ रिप्रिंट उपन्यास शीघ्र प्रकाशय हैं।


11. हैरतअंगेज हत्या- संतोष पाठक
                              जैसा की नाम से ही स्पष्ट हो रहा है कि यह एक मर्डर मिस्ट्री है। संतोष पाठक जी के उपन्यास पाठक का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम होते हैं। यह बात उनके पूर्व उपन्यासों के आधार पर कही जा सकती है।
                उम्मीद है प्रस्तुत उपन्यास भी पाठकों को पसंद आयेगा। संतोष पाठक जी पहली बार book cafe के अंतर्गत प्रकाशित हो रहे हैं।

12. मेरे हाथ मेरे हथियार- अमित खान
                                    एक बार फिर पाठकों के लिए प्रस्तुत है कमाण्डर करण सक्सेना का जलवा। अमित खान जी की लेखनी से जन्मे कमांडर करण सक्सेना के उपन्यास किसी न किसी मिशन पर आधारित होते हैं। इस बार भी कमाण्डर करन सक्सेना निकले हैं किसी खतरनाक मिशन पर। आप भी पढे और खो जाये कमाण्डर की रोचक दुनिया में।


13. मैडम नताशा का प्रेमी- अमित खान
                                      यह एक हाॅट थ्रिलर है। ध्यान दें अश्लील नहीं है। यह कहानी है नताशा की। उस नताशा की जिसकी जिंदगी में प्यार नहीं था लेकिन प्रेमी बहुत थे।
यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिसने अपनी मौत का प्लान खुद तैयार किया।
उपन्यास जगत की एक बेहतरीन रचना है। अगर आपने आज तक अमित खान को नहीं पढा तो यह रचना पढे। विश्वास है आपको यह बेहद पसंद आयेगी।

14. हम नहीं चंगे, बुरा न कोय- सुरेन्द्र मोहन पाठक
                                            सबसे रोचक है और बहु प्रतीक्षित रचना है वह है सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की आत्मकथा का द्वितीय भाग।
हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास जगत के वर्तमान जगमागते सितारे सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्मकथा 'न कोई बैरी, न बैगाना' का द्वितीय भाग ....को प्रकाशित हो रहा है।
इस उपन्यास में लेखक के जीवन के साथ-साथ उपन्यास जगत की बहुत सी रोचक और दुर्लभ जानकारियाँ पाठकों को उपलब्ध होंगी।
प्रकाशन तिथि- 19 अगस्त 2019
प्री आॅर्डर लिंक- अमजेन लिंक- यहा क्लिक करें


विशेष-
 एम. इकराम फरीदी का उपन्यास 'होटल चैलेंज' कुछ विशेष कारणों से निर्धारित समय से बाद में प्रकाशित होगा।


यह पोस्ट आपको कैसी लगी, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।


शुक्रवार, 19 जुलाई 2019

तीन लेखक

उपन्यास जगत के लेखक त्रय एक साथ।
 वेदप्रकाश कांबोज जी के घर पर।
बायें से- संतोष पाठक जी,वेदप्रकाश कांबोज जी,एम. इकराम फरीदी जी


सोमवार, 1 जुलाई 2019

3. साक्षात्कार- राम पुजारी

 आने वाला वक्त अच्छा होगा- राम पुजारी
साक्षात्कार शृंखला-03

'लव जिहाद..एक चिड़िया' और 'अधूरा इंसाफ...एक और दामिनी' जैसे सामाजिक उपन्यास लिख कर कम समय में ज्यादा चर्चित रहने वाले राम पुजारी जी की कलम में समाज की विकृतियों के प्रति एक स्वाभाविक आक्रोश दृष्टिगत होता है। 
     हमने राम पुजारी जी से विभिन्न विषयों पर साक्षात्कार रूप में चर्चा की जो यहाँ प्रस्तुत है। राम पुजारी जी वर्तमान में बठिण्डा (पंजाब) में एक  कम्पनी में कार्यरत हैं।


1. आप अपने बारे जरा बताइये?

     अपने बारे में..., मैं एक नवरतन कंपनी में इंजीनियर हूँ और पढ़ने का बहुत शौक है।
कॉमिक्स से लेकर लोकप्रिय साहित्य सभी पढ़ लेता हूँ। वैसे बता दूं लोकप्रिय साहित्य अभी पढ़ना शुरू किया।

2. किन लेखकों को पढा आपने?

     कॉमिक्स में फैंटम, ध्रुव, नागराज और चाचा चौधरी....और उपन्यास में शरतचंद्र बाबू, विमल मित्र जी, कम्बोज जी, शर्मा जी, पाठक जी, मंटो साहब, कृष्ण चन्दर जी, धर्मवीर भारती और अमृता प्रीतम जी...और भी हैं। पर...इनके सारे नहीं...कुछ-कुछ पढ़ें है।

डैन ब्राउन, चेतन भगत, सर आर्थर कॉनन डॉयल और मारियो पूजो इनके भी कुछ-कुछ पढ़ें हैं।

3.आपको सबसे ज्यादा कौन सी पुस्तक पसंद आयी।

     English में The God Father और हिंदी में गुनाहों का देवता।

4.  दोनों अलग है एक क्राइम फिक्शन है तो दूसरी लव स्टोरी।

      जी।  क्या करें पसंद-पसंद की बात है, जैसे ...कम्बोज जी के विजय ने बहुत प्रभावित किया... और गुनाहों के देवता की सुधा ने।

5. आपके मन में  लेखक बनने की इच्छा कब और कैसे उठी?

     लेखक होना या बनना... मैं मानता हूं कि अपने विचारों को अभिव्यक्त करना है। लिखता था...मैं शुरू से ही, लेकिन ऐसे नहीं कि बुक बन जाये। छोटी कहानियाँ-किस्से लिखता था, बाद कैरियर की दौड़ में समय ही नहीं मिला। फिर जब मेरे एक्सीडेंट हुआ तो मैं 4 महीनें बेड पर रहा, उसी दौरान समय बहुत था मेरे पास, जब लिखना शुरू किया तो बड़े भैया ने उसमें काफी सुधार किया और कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। फिर पुरानी आदत फॉर्म में आ गई, इस तरह से लेखक बन गया।

6. आपने किन लेखकों से प्रेरणा ली है? 

रविवार, 30 जून 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-37,38

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-37

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 37
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अगले दिन कोई प्रकाशक नहीं आया ! मैं और बिमल चटर्जी दोनों इन्तजार करते रहे ! उसके अगले दिन भी कोई नहीं आया !
तीसरे दिन मैं सुबह-सुबह तैयार होकर बिमल चटर्जी के घर की ओर निकलने वाला ही था कि द्वार पर भारी-भरकम स्याह-सा चेहरा प्रकट हुआ !
वह उत्तमचन्द थे ! बुक बाइन्डर !
"बाबे दी मेहर है ! चिन्ता नहीं करनी !" दोनों हाथ ऊपर उठा, उत्तमचन्द ने चिर-परिचित अन्दाज़ में अभिवादन किया !
"बाबे दी मेहर है !" मैंने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया-"आज सुबह-सुबह कैसे ?"
"चिन्ता नहीं करनी ! इधर से गुज़र रहा था ! सोचा - बड़े-बड़े लोगों से मिलते चलें !"
मैं ठहाका मारकर हँसा -"बड़े-बड़े लोगों से मिलने के लिए आप चारफुटिये से मिलने आये हैं ! मैं कहाँ से बड़ा नज़र आ रहा हूँ आपको ?"
उत्तमचन्द गम्भीर हो गये -"हमें तो जो रोटी दे, वही हमारे लिए बड़ा है !"
"अरे तो मैंने कौन-सी रोटी खिला दी आपको ? खिलाने-पिलाने वाला तो भगवान है ! मेरे यहाँ आने की जगह किसी मन्दिर चले गये होते !"
"वहाँ भी जाऊँगा, पर अभी नहाया नहीं हूँ !"
"तो आप बिना नहाये-धोये सिर उठाकर सीधे मेरे यहाँ चले आये हैं ! कुछ तो बात है ! क्या बात हैं ?" मैंने मुस्कुराते हुए भवें नीचे से ऊपर करते हुए पूछा !
"लड़के खाली बैठे हैं ! मैंने सोचा - योगेश जी से ही पूछ लेते हैं - पंकज पाॅकेट बुक्स का नया सैट कब आ रहा है ?" उत्तमचन्द के मुखमण्डल की मुस्कान का स्थान गम्भीरता ने ले लिया !
"इस बारे में तो कुमार साहब ही कुछ बता सकते हैं !" मैंने कहा !
"तो चलें...कुमार साहब के घर ?" उत्तमचन्द ने पूछा !
"चलिए !"
हम दोनों जब कुमारप्रिय के यहाँ पहुँचे ! कुमारप्रिय घर पर ताला लगा रहे थे ! स्पष्ट था - कहीं जाने को तत्पर हैं !

शुक्रवार, 14 जून 2019

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-35,36

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 35
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राज भारती जी और यशपाल वालिया ने मेरा और बिमल का सहज स्वागत किया !
फोल्डिंग कुर्सी बिछाकर हम दोनों जम गये तो राज भारती जी ने बिमल से पूछा -"स्क्रिप्ट तैयार है तेरी ?"
"हाँ, लेकर आया हूँ !" बिमल ने कहा ! किन्तु सवाल मुझसे तो किया ही नहीं गया था ! मैं खुद टपक पड़ा जवाब देने को, बोला - "मैं भी लाया हूँ !"
"अच्छा...!" जवाबी आवाज यशपाल वालिया की थी, जो नाटकीय अन्दाज़ में कुर्सी से उठकर खड़े हुए और ऊपर से नीचे मुझे देख, भारती साहब से पंजाबी में बोले -"आपने इधर तो देखा ही नहीं ! इधर भी देख लो ! योगेश जी भी आये हैं ! स्क्रिप्ट भी लाये हैं !"
फिर वालिया साहब बिमल से बोले -"ये क्या मोटे ? तूने अपनी कुर्सी तो भारती साहब के पास रख ली, योगेश जी को पीछे छिपा दिया !"

उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-33,34

आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 33
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अचानक अपना ही घर मेरे लिए कारागार बन गया !

लेखकों-प्रकाशकों तथा बिमल चटर्जी की विशाल लाइब्रेरी में आनेवाले लोगों से जो रिश्ता बना था, उसकी वजह से घर में मेरा समय कम ही बीतता था !
बहुत बार तो केवल रात का खाना ही घर पर होता था, दिन का भोजन कहीं न कहीं यारों के साथ होता था !

लेकिन...
सब दिन होत न एक समाना !

वह दिन भी अन्य दिनों से अलग था !

सुबह-सुबह की पहली चाय कुमारप्रिय के साथ एक टी स्टाॅल में पीने के बाद अलग हुआ तो बिमल चटर्जी के यहाँ पहुँच गया ! वहाँ से हम साथ-साथ विशाल लाइब्रेरी पहुँचे !

"योगेश जी, भारती पाॅकेट बुक्स का मेरा नाॅवल तो कम्प्लीट होनेवाला है ! आपका 'जगत के दुश्मन' कहाँ तक पहुँचा ?" बिमल ने पूछा तो मैंने बताया - "आखिरी ढलान पर है, जरा-सा धक्का लगाना है, पूरा हो जायेगा !"
बिमल हँस पड़े -"मुझे तो आज और कल, दो दिन लगेंगे ! आप भी पूरा कर लो ! फिर साथ में ही चलेंगे ! ठीक !"
"ठीक !" मैंने कहा !

गुरुवार, 13 जून 2019

के. एम. मोहन

उपन्यास जगत में एक और लेखक के विषय में जानकारी प्राप्त हुयी है। लेखक हैं के. एम. मोहन।

के. एम. मोहन के उपन्यास
1. किरण- एक अभिशप्त हीरा (साधना पॉकेट बुक्स)

उक्त लेखक के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध हो तो शेयर करें।
धन्यवाद।
. .




शनिवार, 1 जून 2019

अभिमन्यु पण्डित लेखकीय

अभिमन्यु पण्डित के प्रथम उपन्यास 'अभिमन्यु का चक्रव्यूह' का लेखकिय ।
परमप्रिय पाठकों,
सादर अभिनन्दन!

जिस तरह किसी भी मां को अपना पहला बच्चा प्यारा होता है, जौहरी को पत्थरों में हीरा प्यारा होता है, गुलशन के महकते फूलों में गुलाब प्यारा होता है, उसी तरह किसी भी लेखक के लिये उसका पहला उपन्यास प्यारा होता है, जिसे वह ताउम्र नहीं भूल पाता, क्योंकि उसी से उसकी पहचान बननी शुरू होती है। मैं अपनी इस प्यारी चीज को आप सबको समर्पित करता हूं। मेरी यह सौगात आपके नाम है। केशव पण्डित जैसे किरदार का जलवा ही समझिये जिसने मुझे प्रेरित किया कि मैं भी अपने टूटे-फूटे शब्दों से इस किरदार को लेकर पूरा केशव पुराण ही लिख सकूं। इस केशव पुराण की यह पहली कृति है, जिसके प्रकाशक हैं—'रवि पॉकेट बुक्स'।


          केशव पण्डित को मुख्य पात्र के रूप में लेकर अनेक उपन्यासों की इस घुड़दौड़ में पहली बार एक लंगड़ा घोड़ा मैदान में उतरा है, जो अभी इस रेस में सबसे पीछे है, अगर जौकी ने इस घोड़े को उसी अन्दाज में दौड़ाया, जिसकी मैंने परिकल्पना की है, तो दौड़ का एक अद्भुत आनन्द आप सब ले सकेंगे। हार-जीत का फैसला भविष्य के गर्भ में है--भविष्य, जिसे न कोई जान सका और न जान सकता है। इस घोड़े पर जो जौकी सवार है, उसका नाम है अभिमन्यु पण्डित और प्रस्तुत उपन्यास है--'अभिमन्यु का चक्रव्यूह'।

शुक्रवार, 31 मई 2019

पुतली - राजवंश

 पुतली-  राजवंश,
 उपन्यास अंश 

खन खन खन खन।
 प्याली फर्श पर गिरकर खनखनाती हुई नौकरानी के पैरों तक आई और टुकड़े-टुकड़े हो गई। नौकरानी के बदन में कंप-कंपी जारी हो गई। उसने भयभीत नजरों से प्याली के टुकड़ों को देखा ओर फिर उस धार को देखा जो चाय गिरने से उसके पैरों के पास से बिस्तर तक बनती चली गई थी। फिर उसकी भयभीत निगाहें आशा के चेहरे पर रुक गईं। आशा का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो रहा था। आँखें उबली पड़ रही थीं। वह कुछ क्षण तक होंठ भींचे नौकरानी को घूरती रही, फिर एकदम फूट पड़ी- ‘ईडियट...किस गंवार ने बनाई है यह चाय...?’
  ‘ज...ज...जी...म...मैंने मालकिन!’ नौकरानी भय-भीत लहजे में हकलाई।
           ‘जाहिल गंवार है तू। यह चाय है या जुशांदा-पानी की तरह ठण्डी और शर्बत की तरह मीठी। इससे पहले भी तूने किसी बड़े घराने में नौकरी की है? किस गधे ने नौकर रखा है तुझे?’
  ‘ज...ज...जी...ब...बड़े मालिक ने।' नौकरानी हकलाई।

पम्मी दीवानी

'सीक्रेट सर्विस कार्यालय-मेरठ' से प्रकाशित होने वाली 'पम्मी दीवानी' रोमांटिक उपन्यास लेखिका थी।

पम्मी दीवानी के उपन्यास
1. जा भी जा बेवफा
2. तड़फती जवानी
3. प्यार का मौसम
4. तन सोया मन जागा
5. सावन बहका बाहों में
6. प्यार भरे दिल
7. शोख अदायें सूनी राहें
8. सारी रात लूटती रही
9. सनम उठा लो बाहों में
10. मदहोश जवानी
11. जवानी की आग
12. बलखाई जवानी
13. नंगे रिश्ते नंगे लोग
14. हुस्न के सौदागर
15. यौवन की प्यास
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निरंजन चौधरी

नाम- निरंजन चौधरी
निरंजन चौधरी सत्तर के दशक के चर्चित जासूसी उपन्यासकार रहे हैं।
      इनके पात्र जासूस सम्राट नागपाल, एस.पी. होमीसाईड निरंजन सिंह ठाकुर, कैप्टन दिलीप और सिगार उसमानी आदि होते थे।
           इनके उपन्यासों का कथानक रोचक और दिलचस्प था। इ‌नके उपन्यास 'चंदर पॉकेट बुक्स, सूरत, गुजरात' और 'गुप्तचर' मासिक पत्रिका 'नीता प्रकाशन- इलाहाबाद'  से प्रकाशित होते रहे हैं।

निरंजन चौधरी के उपन्यास

  1.  तलाश हत्यारे की
  2. अंधेरे का तीर            
  3. आखिरी हत्या
  4. बाहरवीं गली का मकान - दिसंबर 1969
  5. मैं हत्यारा हूँ
  6. पीले गुलाब
  7. काली रोशनी।
  8. यादें, धुआँ और परछाईयां
  9. मुर्दे की वापसी
  10. जानवरों का हंगामा
  11. दोहरा आदमी
  12. उल्लू का निशान
  13. विचित्र पक्षी
  14. अँधेरे टापू का सम्राट
  15. जिंदा चट्टाने
  16. मौत का साया           
  17. जहाँ मौत रोती है
  18. निशान के पुजारी
  19. खूनी परछाईयां
  20. मौत का भेद
  21. काली रोशनी। समीक्षा
  22. और वह भाग गयी। समीक्षा
  23. भगतराम मर्डर केस (Feb. 1964)
  24. यमराज की बेटी - प्रथम भाग
  25. रोशनी, फीता और बिल्ली - द्वितीय भाग
  26.  अँधेरे के अपराध
  27. काइमा का सफर

मंगलवार, 28 मई 2019

कुमार प्रिय

कुमार प्रिय अपने समय चर्चित रोमांस लेखक रहे हैं
 इनके उपन्यासों में प्रेम का एक अलग ही रंग मिलता था, इसलिए इन्हें 'दूसरा गुलशन नंदा' भी कहा जाता था।
   उपन्यास चाहे छोटे थे लेकिन कथा में संवेदना का फलक विस्तृत था।

कुमार प्रिय के 'रंगभूमि पॉकेट बुक्स दिल्ली' से प्रकाशित उपन्यास

  1. प्यासा दरिया
  2. ठण्डी आग
  3. गुड़िया
  4. राजा और रखैल
  5. पत्थर का देवता
  6. बेगाना
  7. दीदार
  8. अधूरा सुहाग
  9. पिंजरे की मैना
  10. मेरे अरमान तेरे सपने
  11. थाम लो आँचल
  12. छलिया
  13. बाबुल की गलियाँ (जनवरी, 1973)
  14. हमराही
  15. आह
  16. भंवरा
  17. थाम लो आँचल
  18. प्रतिशोध
  19. अधूरा सुहाग
  20. मर्यादा
  21. गौरी
  22. राख की दुल्हन
  23. खामोश चिता
  24. बदनसीब
  25. छलिया
  26. तमन्ना
  27. बेवफा
  28. सौगात
  29. हमराही
  30. इंतजार (क्रम 20- 30 तक भारती पॉकेट बुक्स , दिल्ली से प्रकाशित)

शनिवार, 25 मई 2019

आबिद रिजवी जी- तब और अब

एक नया स्तंभ है 'तब और अब', जिसमें कोशिश रहेगी लेखकगण के नये और पुराने चित्रों को दर्शाने की।
    इस स्तंभ का आरम्भ आबिद जी के चित्र के साथ कर रहे हैं।

समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। समय आदमी के चेहरे को बदल देता है।
     अब प्रिय आबिद जी की तस्वीरें ही देख लीजिएगा समय के साथ बहुत बदल गये, बस नहीं बदली तो उनकी मूँछें
    मूँछें कल भी शान थी, आज भी शान हैं।
    मूँछें आबिद जी की विशेष पहचान हैं।

                          


सोमवार, 20 मई 2019

जोरावर सिंह वर्मा

हिन्दी जासूसी उपन्यास जगत में एक चर्चित नाम रहा है जोरावर सिंह वर्मा का। जोरावर सिंह वर्मा एक जासूसी उपन्यासकार हैं।
     इनके उपन्यासों का नायक 'ओ हिन्द' नामक एक जासूस है और उसके तीन साथी हैं जान,मान और शान।

जोरावर सिंह वर्मा के सुबोध पॉकेट बुक्स से प्रकाशित उपन्यास

  1. खूनी हस्पताल
  2. पुलिस के कारनामें
  3. मैं जासूस नहीं हूँ
  4. मैं तेरी दीवानी
  5. रेशमी रात
  6. मोहिनी की माया
  7. चीखरे अंधेरे
  8. ठण्डी चिंगारी
  9. गहरे घाव
  10. फैलती परछाई
  11. काली आँधी
  12. सभ्यता के चोर
  13. मौत की नींद
  14. पाप की गठरी
  15. हवस और हत्यायें
  16. हर मोड़ पर हत्या


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 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...