द ट्रेल - अजिंक्य शर्मा
उपन्यास समीक्षा- संजय आर्य
उपन्यास समीक्षा-03
"एक और नई मर्डर मिस्ट्री जिसमे रहस्य के साथ जज्बातों का सैलाब भी है जिसमे आप खो जाएंगे । कातिल को पकड़ने में इस बार पाठकों को बहुत मशक्कत करनी होगी । अंत काफी चौकाने वाला है।"
'द ट्रेल' अजिंक्य शर्मा का सातवां उपन्यास है और उनके पहले उपन्यास 'मौत अब दूर नही' को पाठकों से अच्छा प्रतिसाद मिला था जिसके कारण लेखक से पाठकों की उम्मीद बढ़ गई थी जिस पर 'द ट्रेल' के माध्यम से लेखक 100 प्रतिशत खरे उतरे है, और मिस्ट्री लेखक के रूप में अपना सिक्का एक बार फिर से जमाने मे सफल रहे है। 'द ट्रेल' को मैंने एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म करके ही माना। उपन्यास का अंत काफी हैरत अंगेज है उनके अन्य उपन्यास से इतर इसमें जज्बातों का तूफान भी है । ऐसी मर्डर मिस्ट्री की आप भी खुद को जासूस मानते हुवे कातिल की तलाश करने लग जाएंगे।
'द ट्रेल' अजिंक्य शर्मा का सातवां उपन्यास है और उनके पहले उपन्यास 'मौत अब दूर नही' को पाठकों से अच्छा प्रतिसाद मिला था जिसके कारण लेखक से पाठकों की उम्मीद बढ़ गई थी जिस पर 'द ट्रेल' के माध्यम से लेखक 100 प्रतिशत खरे उतरे है, और मिस्ट्री लेखक के रूप में अपना सिक्का एक बार फिर से जमाने मे सफल रहे है। 'द ट्रेल' को मैंने एक बार पढ़ना शुरू किया तो खत्म करके ही माना। उपन्यास का अंत काफी हैरत अंगेज है उनके अन्य उपन्यास से इतर इसमें जज्बातों का तूफान भी है । ऐसी मर्डर मिस्ट्री की आप भी खुद को जासूस मानते हुवे कातिल की तलाश करने लग जाएंगे।
रंजीत विश्वास एक प्रसिद्ध मिस्ट्री लेखक है और पब्लिशिंग हाउस का मालिक है। एक रात अचानक उनका खून हो जाता है और वह दीवार पर लिखकर जाते हैं -'United we rise'
जबकि कोई भी व्यक्ति मरने से पहले अपने कातिल का नाम ही लिखना चाहेगा।
कत्ल के घटना स्थल पर मिलते है सिर्फ जूतों के निशान और रंजीत विस्वास के गले में फंसे कांच के कुछ टुकड़े और जिसके बाद शुरू होती है मर्डर की इन्वेस्टीगेशन और इंस्पेक्टर हितेश कश्यप इस मिस्ट्री को सुलझाने समय तब उलझ कर रह जाता है जब एक संदिग्ध कातिल की भी हत्या हो जाती है।
इस केस में एक के बाद एक रोचक मोड़ आते है और रंजीत विश्वास की सेक्रेटरी और उसकी विश्वास पात्र शैली पर जब शक की सुई जाती है तो एक के बाद कई खुलासे होते है।
कहानी के बारे में ज्यादा बताना पाठकों के साथ नाइंसाफी होगी।
शुरू से आखरी तक रहस्य को बनाकर रखने में लेखक सफल हुवे है और शैली का पात्र पाठकों को खूब पसंद आने वाला है जो बरबस ही आपको वेदप्रकाश शर्मा की विभा जिंदल की याद दिला देती है।
"कातिल कितना ही शातिर हो वो अपने पीछे सबूत छोड़ ही जाता है " और अंततः पकड़ा जाता है।
- रंजीत विश्वास को किसने मारा?
-क्यो रंजीत विश्वास ने लिखा "united we rise"
- दो- दो खून की साजिश के पीछे कौन था ?
- ताज का क्या रहस्य था?
इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा।
लेखक के पिछले उपन्यासों की तुलना में यह उपन्यास मात्र एक मर्डर मिस्ट्री नही है बल्कि लेखक ने इसमें नयापन लाने का भरपूर प्रयास किया है। शैली का केस को सुलझाने का अंदाज बहुत ही अनोखा है जो पाठकों की उत्सुकता को बनाये रखता है। पाठक अंत तक कातिल के बारे में बस अंदाजा ही लगाते रह जाता है और जब अंत मे रहस्य से पर्दा उठता है तो उपन्यास पढने का मजा दोगुना हो जाता है।बहुत ही अच्छी इन्वेस्टीगेशन के साथ रहस्य से भरपूर नवीन कथानक है, जिसको पढ़कर आपको निराशा नही होगी।
कत्ल के घटना स्थल पर मिलते है सिर्फ जूतों के निशान और रंजीत विस्वास के गले में फंसे कांच के कुछ टुकड़े और जिसके बाद शुरू होती है मर्डर की इन्वेस्टीगेशन और इंस्पेक्टर हितेश कश्यप इस मिस्ट्री को सुलझाने समय तब उलझ कर रह जाता है जब एक संदिग्ध कातिल की भी हत्या हो जाती है।
इस केस में एक के बाद एक रोचक मोड़ आते है और रंजीत विश्वास की सेक्रेटरी और उसकी विश्वास पात्र शैली पर जब शक की सुई जाती है तो एक के बाद कई खुलासे होते है।
कहानी के बारे में ज्यादा बताना पाठकों के साथ नाइंसाफी होगी।
शुरू से आखरी तक रहस्य को बनाकर रखने में लेखक सफल हुवे है और शैली का पात्र पाठकों को खूब पसंद आने वाला है जो बरबस ही आपको वेदप्रकाश शर्मा की विभा जिंदल की याद दिला देती है।
"कातिल कितना ही शातिर हो वो अपने पीछे सबूत छोड़ ही जाता है " और अंततः पकड़ा जाता है।
- रंजीत विश्वास को किसने मारा?
-क्यो रंजीत विश्वास ने लिखा "united we rise"
- दो- दो खून की साजिश के पीछे कौन था ?
- ताज का क्या रहस्य था?
इसके लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा।
लेखक के पिछले उपन्यासों की तुलना में यह उपन्यास मात्र एक मर्डर मिस्ट्री नही है बल्कि लेखक ने इसमें नयापन लाने का भरपूर प्रयास किया है। शैली का केस को सुलझाने का अंदाज बहुत ही अनोखा है जो पाठकों की उत्सुकता को बनाये रखता है। पाठक अंत तक कातिल के बारे में बस अंदाजा ही लगाते रह जाता है और जब अंत मे रहस्य से पर्दा उठता है तो उपन्यास पढने का मजा दोगुना हो जाता है।बहुत ही अच्छी इन्वेस्टीगेशन के साथ रहस्य से भरपूर नवीन कथानक है, जिसको पढ़कर आपको निराशा नही होगी।
समीक्षक- संजय आर्य
संजय आर्य की अन्य समीक्षा
रोचक। यह उपन्यास जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।
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