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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की- 19

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 19
प्रस्तुति- योगेश मित्तल

         
नूतन पाकेट बुक्स का ऑफिस उस समय खुला हुआ था। सुमत प्रसाद जैन अपनी सीट पर बिराजमान थे। एक कोने में एक वर्कर कुछ बण्डल पैक कर रहा था। 
सुमत प्रसाद जैन ने जब सामने से मुझे गुजरते देखा तो एकदम आवाज लगाई -"योगेश ।"
मैं रुकामुड़ाफिर पलटकर नूतन पाकेट बुक्स के ऑफिस में प्रविष्ट हो गया। 
"चाय पियेगा..?" सुमत प्रसाद जैन ने पूछा। 
"नहीं... ऐसी कोई तलब नहीं है।"-  मैंने कहा तो सुमत प्रसाद जैन बड़ी आत्मीयता से बोले -"कर दी न दिल तोड़ने वाली बात। दिन भर में बीस कप चाय पीने वाला योगेश मित्तल हमें चाय को मना कर रहा है। अबे यारबड़ी देर से मेरा चाय पीने का मूड कर रहा थालेकिन अकेले पीने का मन नहीं हो रहा थाइसीलिये तो तुझे देखकर आवाज दी।"
"ठीक हैमंगा लीजिये।" - मैं हंसते हुए बोला। 
                           तो जनाब यह भी नूतन पाकेट बुक्स और सूर्या पाकेट बुक्स के संस्थापक सुमत प्रसाद जैन का एक मूडी अन्दाज़ थाजिसकी जितनी तारीफ की जायेकम है। मूड होने पर भी सिर्फ इसलिये चाय नहीं पी रहे थेक्योंकि उस समय अकेले पीने का मूड नहीं था और गुफ्तगू करने वाला कोई साथी नज़र नहीं आ रहा था। 
              मेरे 'हाँकरते ही सुमत प्रसाद जैन पैकिंग में लगे वर्कर से बोले -"जा बेटागिरधारी के यहाँ चाय बोल देतूने भी पीनी हो तो तीन चाय बोल देइयो।"

मीरा बाजपेयी

 नाम - मीरा बाजपेयी

पति- प्रेम बाजपेयी (प्रसिद्ध उपन्यासकार)

मीरा बाजपेयी
मीरा बाजपेयी
प्रेम बाजपेयी और  मीरा बाजपेयी
प्रेम बाजपेयी और  मीरा बाजपेयी

मीरा बाजपेयी के उपन्यास

  1. अधूरा मिलन
  2. तड़पता सिंदूर
  3. उजड़ा घर
  4. मेहंदी
  5. पत्थर के आँसू
  6. पीले हाथ
  7. काँच की चूड़ियाँ

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

दिनेश ठाकुर

दिनेश ठाकुर
मूल नाम- प्रदीप कुमार शर्मा

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में दिनेश ठाकुर का एक विशेष नाम है। दिनेश ठाकुर का वास्तविक नाम प्रदीप कुमार शर्मा था, इन्होंने प्रदीप कुमार शर्मा, प्रदीप शर्मा, प्रदीप ठाकुर आदि नामों से भी उपन्यास लेखन किया है, लेकिन उन्होंने जो विशेष ख्याति प्राप्त हुयी है वह है दिनेश ठाकुर नाम से लिखे इनके 'रीमा भारती' सीरीज के उपन्यासों से। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'राहु-केतु' और 'विजय चौहान' सीरीज के भी उपन्यास लिखे हैं।

दिनेश ठाकुर
  हालांकि इन्होंने रीमा भारती सीरीज के अतिरिक्त 'विजय चौहान सीरीज' , 'राहू-केतु' सीरीज भी लिखी है।
   रीमा भारती 'भारतीय सीक्रेट सर्विस' की एक एजेंट है, जो अपने शरीर को माध्यम बना (HoneyTrap) कर अपराधी वर्ग को पकड़ती है। 
www.sahityadesh.blogspot.com
   'माँ भारती की लाड़ली किंतु उदण्ड बेटी' यह टैग लाइन रीमा भारती के उपन्यासों में मिलती है।
   हिंदी जासूसी साहित्य में वेदप्रकाश शर्मा जी के पात्र 'केशव पण्डित' के बाद अगर और किस पात्र की नकल हुयी है तो वह है रीमा भारती।
      रीमा भारती के उपन्यासों पर अश्लील का आरोप भी लगा था फिर मेरठ में एक कोर्ट केस के माध्यम से अश्लीलता पर रोक लगी थी।
रीमा भारती के उपन्यासों को हम तीन अलग-अलग रूप में देखते हैं।

  1. दिनेश ठाकुर द्वारा लिखित रीमा भारती सीरीज के उपन्यास।
  2. लेखिका रीमा भारती द्वारा लिखित 'रीमा भारती' सीरीज के उपन्यास। 

दुर्गा पॉकेट बुक्स की ट्रेड नाम 'रीमा भारती' के उपन्यास।   

दिनेश ठाकुर के उपन्यासों की सूची।

रविवार, 24 अप्रैल 2022

साहित्य देश - पांच वर्ष की यात्रा

 साहित्य देश के पांच वर्ष

समय अपनी अबाध  गति से चलता है। समय की गति चाहे दृष्टिगत नहीं होती पर महसूस अवश्य होती है।  समय बहुत कुछ सिखाता है, नये अनुभव देता है।
     मुझे शिक्षा विभाग में आये हुये पांच वर्ष होने को है (27 जून 2017), माउंट आबू में आये हुये भी इतना समय होने को है। और 24 अप्रैल 2017 को आरम्भ हुये 'साहित्य देश' ब्लॉग को भी पांच वर्ष हो गये।
इन पांच वर्षों की यात्रा में 'साहित्य देश' ने लेखक, प्रकाशक और उपन्यास प्रेमियों के साथ मिलकर अथक प्रयास से लोकप्रिय साहित्य संरक्षण का कार्य किया है वह  स्वयं में अद्वितीय कार्य है।
कहते हैं
   मसला ये नहीं की हल कौन करे,
    मसला ये है कि पहल कौन करे।
  'साहित्य देश' की पहल ने आज जो भी कार्य किया है वह शुरुआत है।
            जब हम भी‌ लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के समुद्र में उतरते हैं तो हमें पता चलता है की कार्य अभी बहुत कुछ बाकी है। हम (पाठक)या लेखक, प्रकाशक इस विषय पर कभी गंभीर हुये ही नहीं। आज आप इंटरनेट पर सर्च करोगे तो चार-पांच लेखकों से आगे की कोई जानकारी हमारे पास उपलब्ध नहीं है। क्यों?, क्योंकि हमने इस विषय पर चिंतन-मनन ही नहीं किया, कोई सार्थक कार्य ही नहीं किया।
     आज भी बहुत से उपन्यास पाठकों के पास है लेकिन चिंता का विषय यह है की वे उन उपन्यासों की जानकारी ही शेयर नहीं करना चाहते। कारण, कहा नहीं जा सकता।
          उपन्यास साहित्य में एक से बढकर एक लेखक हुये हैं लेकिन श्रेय कितनो को मिला? क्योंकि अधिकांश लेखकों की रचनाए समय की गर्द में खो गयी। साहित्य देश का यही प्रयास है उन लेखकों को पाठकों के समक्ष लाया जाये, उन अनमोल कृतियाँ का संरक्षण किया जाये।
हमने आबिद रिजवी जी के उपन्यास kindle पर उपलब्ध करवाने की कोशिश से जो कार्य आरम्भ किया था उसे आगे बढाते हुये हम रजत राजवंशी (योगेश मित्तल) जी के उपन्यास भी Online उपलब्ध करवाये हैं, और आगे भी यह प्रयास यथावत रहेगा।
   हम आबिद रिजवी जी और योगेश मित्तल जी का विशेष धन्यवाद करते हैं जो उन्होंने 'साहित्य देश' के लिए अमूल्य समय और जानकारी प्रदान‌ की है।
     यह सफर आगे भी जारी रहेगा।
धन्यवाद।
गुरप्रीत सिंह
टीम साहित्य देश
Email  sahityadesh@gmail.com
       Mob- 9509583944


शनिवार, 23 अप्रैल 2022

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की – 18

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की – 18
प्रस्तुति- योगेश मित्तल

ताला तेरा नहीं हैयह क्या बात हुई?” - वेद ने चकित होकर कहा।
बात तो मेरी भी समझ में नहीं आ रही थी
बात तो मेरी भी समझ में नहीं आ रही थीलेकिन इससे पहले कि मैं कुछ कहतासामने की गैलरी में आ खड़े हुएजयन्ती प्रसाद सिंघल जी बुलन्द और रौबदार आवाज कानों में पड़ी –“अबे तू जिन्दा हैमैं तो  समझामर-खप गया  होगा। सदियाँ बीत गईं तुझे देखे।”
सदियाँ....।”- मैं और वेद दोनों जयन्ती प्रसाद सिंघल के इस शब्द पर मुस्कुरायेतभी जयन्ती प्रसाद सिंघल जी का खुशी से सराबोर स्वर उभरा -”अरे वेद जीआप भी आये हैंइस नमूने के साथ। धन्य भाग हमारे। आये हैं तो जरा हमारी कुटिया भी तो पवित्र कर दीजिये।” 
                                       जयन्ती प्रसाद सिंघल ने बाँयीं ओर स्थित रायल पॉकेट बुक्स के छोटे से ऑफिस की ओर प्रवेश के लिये संकेत किया। ऑफिस में आगन्तुकों के बैठने के लिए एक ही फोल्डिंग कुर्सी खुली पड़ी थी
                                       जयन्ती प्रसाद सिंघल ने बाँयीं ओर स्थित रायल पॉकेट बुक्स के छोटे से ऑफिस की ओर प्रवेश के लिये संकेत किया। ऑफिस में आगन्तुकों के बैठने के लिए एक ही फोल्डिंग कुर्सी खुली पड़ी थीजयन्ती प्रसाद सिंघल जी ने दूसरी भी खोल दीफिर स्वयं टेबल के पीछे बांस की कुर्सी पर विराजे और हमसे बैठने का अनुरोध किया। 
वेद और मैं बैठ गयेपर बैठते-बैठते वेद ने कह ही दिया - “मैं तो यहाँ योगेश जी कमरा देखने आया थापर यहाँ तो दिक्खै आपने अपना ताला लगा रखा है।”
इसका ताला तोड़ करअपना न लगाता तो और क्या करतादस महीने में तो यह कमरा भूतों का डेरा हो जाता। हम सारे घर की रोज सफाई करवावैं हैंलेकिन...।”
दस महीने कहाँ हुए अभी...।”- तभी मैंने जयन्ती प्रसाद सिंघल जी की बात काटते हुए कहा।
वह बोले –“हिसाब लगाना आवै है या सिर्फ कागज़ काले करना ही जानै है?”

शनिवार, 16 अप्रैल 2022

चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

नाम - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
श्रेणी- हाॅरर उपन्यासकार

हिंदी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में युवा लेखक चन्द्र प्रकश

 जी ने हाॅरर/पैरानोर्मल साहित्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है। इ‌नके उपन्यास मात्र घटना न होकर एक व्यवस्थित कथा पर आधारित होते हैं और कहानियाँ में किसी न किसी तथ्य को आधार बनाया गया है।


लेखक की उपलब्ध कृतियाँ (प्रकाशन क्रम के अनुसार) 

  1. फिर वही खौफ (हॉरर थ्रिलर) 
  2. अवंतिका (माइथालॉजिकल थ्रिलर) 
  3. मौत के बाद (हॉरर थ्रिलर) 
  4. आवाज़ (पैरानॉर्मल थ्रिलर) 
  5. विषकन्या (माइथालॉजिकल थ्रिलर) 
  6. अनहोनी (पैरानॉर्मल थ्रिलर) 
  7. रक्ततृष्णा (हॉरर थ्रिलर) 
  8. महल (पैरानॉर्मल थ्रिलर) (मई -2022)
  9. कोई लौट आया
  10. रुपांतरण

1. अस्तित्व- एक रहस्यमयी कहानी
2. गुमनाम है कोई


शुक्रवार, 15 अप्रैल 2022

राकेश

नाम- राकेश 
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स, मेरठ

लेखक राकेश के विषय में इनके एक उपन्यास 'खून का कर्ज' से ही हमें जानकारी मिली है। प्रथम दृष्टि तो 'राकेश' नाम एक Ghost writer ही नजर आता है। उपन्यास सूची से प्रतीत होता है राकेश सामाजिक उपन्यासकार हैं।

राकेश के उपन्यास

  1.  बड़ी बहू 
  2. चुभन सिंदूर की
  3. दूसरी लंका
  4. अधूरा इंसाफ
  5. रिश्ते नफरत के
  6. माँ का हत्यारा
  7. प्यार बिकता नहीं
  8. पत्नीव्रता
  9. खून का कर्ज
  10. आखरी अदालत 

रविवार, 10 अप्रैल 2022

मास्टर माइण्ड- शुभानंद

पुस्तक का नाम : मास्टरमाइंड 
° लेखक का नाम : शुभानंद 
• प्रकाशक एवं स्थान : सूरज पॉकेट बुक्स , ठाणे ( महाराष्ट्र )
• मूल्य ( पेपर बैक ) : ₹ 118
   किंडल : ₹ 50 ( अनलिमिटेड )
• पेज संख्या : 345
• भाषा : हिंदी 
लेखक के बारे में -
              IIT , बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षित शुभानंद ने बचपन से ही लिखने के लिए कलम उठा ली थी और लिखने के शौक के कारण उपन्यास लिखते चले गए । इनकी लिखने की खास बात यह है कि सरल भाषा शैली पर जटिल व तेज रफ्तार कहानी जो पाठक को एक ही सिटिंग में अंत तक पढ़ने के लिए बाध्य करती है । शुभानंद मुंबई में अपनी लेखिका व डॉक्टर पत्नी रुनझुन व पुत्र मानस के साथ रहते हैं । लेखन के अलावा संगीत सुनने , इंटरनेशनल टी.वी. सीरीज देखने में रुचि रखते हैं ।
पुस्तक के बारे में -
              अमेजॉन किंडल पर शुभानंद कृत जावेद , अमर , जॉन सीरीज का चतुर्थ उपन्यास मास्टरमाइंड पड़ा ।
       इस उपन्यास में तीन मुख्य पात्र हैं , जिनके नाम जावेद , अमर , जॉन हैं । यह तीन भारतीय सीक्रेट सर्विस के जांबाज़ जासूस हैं । अमर , जॉन को ' मेरी जान ' और जॉन , अमर को ' मेरे आम ' कहकर पुकारता है । जैसा कि इस उपन्यास के टाइटल  ' मास्टरमाइंड ' को देखकर विदित होता है कि यह आतंकवाद पर आधारित कहानी है । हां , तो यह असल में आतंकवाद और साजिश पर आधारित कहानी ही है । एक ऐसी साजिश जिसमें कदम कदम पर रोंगटे खड़े कर देने एवं चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं ।
        मास्टरमाइंड , इतना शातिर की सीक्रेट सर्विस को धता बताकर अपने मास्टर प्लान के तहत सीक्रेट सर्विस के जासूस के खिलाफ कुछ ऐसे सबूत प्लांट करता है , जिससे कि सीक्रेट सर्विस का जासूस जेल चला जाए और सीक्रेट सर्विस अपने जासूस को निर्दोष साबित करने में लग जाए ताकि वह अपने मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम तक पहुंचा सके । लेकिन सीक्रेट सर्विस अपने ही जासूस के जेल जाने के पीछे के कारणों को तलाशने लगती है और तेजी से इन्वेस्टिगेशन शुरू कर देती है । तब जाकर सीक्रेट सर्विस के अपनी जांच पड़ताल में कुछ ऐसे खुलासे होते हैं । जिन्हें जानकर सीक्रेट सर्विस के एजेंट एवं चीफ आश्चर्यचकित रह जाते हैं ।
         
        वो कौन सा प्लान था जिसे जानने के बाद सीक्रेट सर्विस के एजेंट आश्चर्यचकित रह जाते हैं ? 
        आखिर उस मास्टरमाइंड का ऐसा कौन सा प्लान था जिसके तहत मास्टर माइंड ने सीक्रेट सर्विस को अन्य दिशाओं में उलझाकर रख दिया ?
        क्या मास्टरमाइंड अपने प्लान को अंजाम तक पहुंचा पाता है ?
        क्या सीक्रेट सर्विस को पता चल पाता है कि मास्टरमाइंड कौन है और किस के इशारे पर काम कर रहा था ?
        क्या सीक्रेट सर्विस असल मास्टरमाइंड तक पहुंच पाती है ?
        क्या सीक्रेट सर्विस का एजेंट जेल से आजाद हो पाता है ?
° मेरी रुचि का कारण -
          मुझे स्पाई ( जासूसी ) थ्रिलर बहुत पसंद हैं ।इस उपन्यास में अमर और रिंकी के बीच के वार्तालाप और क्रियाकलाप बहुत अच्छे लगे । अमर सीक्रेट सर्विस का एजेंट और रिंकी भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ की एजेंट थी । जो अपने अपने मिशन के तहत एक दूसरे से अचानक मिल जाते हैं । अमर और रिंकी को ना जाने कब एक दूसरे से प्यार हो जाता है । अमर , रिंकी को अपनी सोलमेट मानने लगता है ।
पुस्तक के बारे में मेरी राय -
            यह उपन्यास अपने आप में पूर्ण उपन्यास है । लेकिन लेखक ने इस कहानी के अंत में कुछ ऐसे हालात पैदा कर दिए जिससे कि पाठकों के मन में जिज्ञासा बढ़ जाती है कि अब इन किरदारों का आगे चलकर क्या होगा क्या नहीं । मेरी नजर में लेखक महाशय ऐसा ना करते तो भी उपन्यास की कहानी पूर्ण ही होती ।
मेरी संस्तुति
            यह उपन्यास जासूसी थ्रिलर पढ़ने वालों को बहुत पसंद आएगा । जो लोग जासूसी थ्रिलर पढ़ते हैं मैं उन्हें उपन्यास पढ़ने का सुझाव देना ज्यादा पसंद करूंगा ।
पाठक  : प्रेम कुमार मौर्य
• दिनांक : 31 मई 2020

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 17

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 17
 प्रस्तुति- योगेश मित्तल
मैं सतीश जैन के सामने था।
“तुम पागल हो?- सतीश जैन ने कहा।
वो तो मैं हूँ....पर आपको बहुत ज्यादा गुस्सा किस बात पर आ रहा है?” मैंने बेहद शान्ति से सवाल किया। 
तुम यारइसे जानते कितना हो?” - सतीश जैन का स्वर अभी भी गर्म था। 
इसे... किसे...?”- समझते हुए भी मैंने पूछा। 
इसी को...रामअवतार को....?”
नहीं जानता...।” -मैंने स्वीकार किया -”आपके यहाँ ही मिला हूँ।”
अरे मैं नहीं जानता उसे..। उसके घर के लोगों को...। कैसा आदमी हैकैसा परिवार हैऔर तुम.... तुम्हें उसने एक बार कहा और तुम उसके यहाँ खाने पहुँच गये। यार ये कोई तुक है। अक्ल-वक्ल कुछ है तुममें या दिमाग से एकदम पैदल होजितने का तुमने खाना नहीं खाया होगाउससे ज्यादा तो तुमने किराया खर्च कर दिया। कितना किराया खर्चा?”
साठ रुपये....।” - मैंने धीरे से कहा -"तीस जाने के...तीस आने के।”
इससे कम मेंतुम यहीं किसी रेस्टोरेंट में बैठकर उससे अच्छा खाना खा सकते थेजैसा वहाँ खाया होगा।”
हाँखाना बेशक ज्यादा अच्छा खा सकता थालेकिन रेस्टोरेंट में वो माहौल... ।”
तुम यार बिल्कुल बेवकूफ हो। ऐसे ही किसी ऐरे-गैरे के यहाँ खाना खाने कैसे जा सकते हो। तुम जासूसी उपन्यास लिखते होतुम्हें समझना चाहिए कि तुम्हारे साथ कुछ ऊंच-नीच भी घट सकता है।”
टेन्शन मत लो यार...। कुछ हुआ तो नहीं। रामअवतार जी बहुत सिम्पल आदमी हैं।” - मैंने सतीश जैन को समझाना चाहापर उनका मूड सही नहीं हुआ। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वह मेरे द्वारा रामअवतार जी के यहाँ खाना खाने से खफा हैं या मैंने उन्हें अपना कोट दे दिया इसलियेपर सतीश जैन ने कुछ जाहिर नहीं किया। मुझसे ठीक से बात किये बिना ही वह ऑफिस की ओर पलट गये। मैं भी सतीश जैन के पीछे पीछे ऑफिस में दाखिल हुआ। 
       सतीश जैन कीऑफिस टेबल के अपोजिट बिछी फोल्डिंग चेयर पर बैठते हुए मैंने यूँ ही सवाल किया –“कितने दिन का टूर है?”
कम से कम दो हफ्ते तो लगेंगे ही।” सतीश जैन ने कहापर उनकी आवाज़ में अभी भी जो तल्खी थीमुझे समझ में आ गया कि उनका मूड अभी भी सही नहीं है। 

बुधवार, 6 अप्रैल 2022

साक्षात्कार- सत्यपाल

  साहित्य मस्तिष्क के संवाद का विषय है- सत्यपाल

   साक्षात्कार श्रृंखला -11

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के क्षेत्र में ऐसे अनेक सितारे हुये हैं जिन्होंने अपनी कलम से उपन्यास साहित्य को अनमोल मोती प्रदान किये हैं और इस क्षेत्र में एक विशेष पहचान स्थापित की है।

     साहित्य देश अपने साक्षात्कार स्तंभ में लोकप्रिय साहित्य के सामाजिक उपन्यासकार 'सत्यपाल' जी का साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत कर रहा है, जिसमें अपने लेखन, तात्कालिक समय और अपने उपन्यासों के संबंध में विस्तृत चर्चा की है।

सत्यपाल उपन्यासकार
सत्यपाल
01.लोकप्रिय सामाजिक उपन्यासकारों में 'सत्यपाल' एक विशेष नाम रहा है। लेकिन ज्यादातर पाठकों की जानकारी 'सत्यपाल' नाम तक ही सीमित है। आप एक बार पाठकों को अपना संपूर्ण परिचय अवश्य दीजिए। (जन्म, शिक्षा, परिवार आदि के बारे में)

-  मेरा पूरा नाम सत्यपाल चावला है। मेरा जन्म अप्रैल 1955 में एक कृषक परिवार में गाँव बनियानी, जिला रोहतक, हरियाणा, भारत में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। तत्पश्चात परिवार दिल्ली आ गया। शेष शिक्षा दिल्ली में ही हुई। लिखने का शौक कहिए या जुनून बचपन से ही था। तुकबंदी करना छटी कक्षा से ही शुरू हो गया था। हायर सेकंडरी तक आते-आते निबंध, कहानी और मुक्त कविताएं इत्यादि भी लिखना शुरू कर दिया था। क्योंकि परिवार निम्न मध्यम वर्ग में था, माता-पिता अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे। छोटे स्तर की एक डेयरी से भरण-पोषण चलता था। मैं पढ़ने में तेज था। अपने से छोटी क्लास के बच्चों को ट्यूशन देने के कारण मेरा स्वयं का शिक्षा का आधार भी मजबूत हो जाता था और कुछ आय भी हो जाती थी। समाज के लिए उपयोगी था इसलिए मुझे प्यार ओर आदर मिलता था। स्कूलिंग के उपरान्त हालांकि मुझे पहली ही लिस्ट में दिल्ली विश्वविद्यालय के डी.ए.वी. कॉलेज में बी.काम.आनर्स में प्रवेश मिला किंतु आर्थिक एवं पारिवारिक परिस्थितियों के कारण मुझे आगे की पढ़ाई पत्राचार द्वारा करनी पड़ी। मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.काम. कर ली। घर की तरफ से स्पष्ट आदेश था कि पहले नौकरी प्राप्त करो। और कागज़ काले (लिखना) करना बंद करो। ट्यूशन, नौकरी के लिए कम्पीटीशन, सैल्फ स्टडी और लेखन सब साथ-साथ चले। कुछ नौकरियां कुछ-कुछ दिन ही चली। स्टेट बैंक की कलैरिकल परीक्षा और साक्षात्कार उत्तीर्ण कर लिया तब लगा कि अब चैन मिला। इधर शादी भी हो गई। एक पुत्री और दो पुत्रों जन्म हुआ आज मैं रिटायर्ड हूँ। परिवार सैटल है। मैं हिन्दी में स्नातकोत्तर करना चाहता था। मैंने रिटायर होने के बाद इग्नू से हिन्दी स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी में पास कर लिया। 

रविवार, 3 अप्रैल 2022

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की- 16

यादें वेदप्रकाश शर्मा जी की- 16

प्रस्तुति- योगेश‌ मित्तल

मेरे द्वारा काम करने के बाद वो पुराना उपन्यास इतना नया हो जाता था कि जिस किसी ने भी पहले पढ़ भी रखा हो, उसे पढ़ा-पढ़ा सा बेशक लगे, पर उसे आसानी से पता नहीं चल सकता था कि यह उपन्यास कहाँ पढ़ा है। इसका कारण यह भी था, मुझसे काम करवाने के बाद सतीश जैन अक्सर अन्दर के कुछ पात्रों के नाम स्वयं बदल देते थे या किसी से बदलवा देते थे और पुराना घिसा पिटा उपन्यास नया हो जाता था। 

एक तरह से यह पाठकों से चीटिंग थी और इस चीटिंग में प्रकाशक का साथ देने वाला शख्स आपका अपना योगेश मित्तल था, जिसे कि प्रकाशक सबसे ईमानदार और सच्चा लेखक मानते थे और कहते भी थे। 

पर तब मुझे कभी भी ऐसा नहीं लगा कि यह मैं कुछ गलत कर रहा हूँ। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। 

मेरी सोच बस, यह थी कि मैं लेखक हूँ और मुझे लिखने का जो भी काम मिल रहा है, करना चाहिए और फिर मुझे अपनी बीमारी की वजह से हर समय पैसों की जरूरत रहती थी। दवाएँ और डाक्टरी इलाज, उस समय की कमाई के हिसाब से बहुत मंहगा पड़ता था। मेरा सोचना यह भी होता था कि मैं यदि घर खर्च के लिए घर के लोगों की बहुत मदद न भी करवाऊँ, कम से कम अपनी बीमारी, अपने इलाज के खर्च का बोझ तो घर पर न डालूँ। 

सतीश जैन ने दूसरा जो उपन्यास मुझे दिया, वह विक्रान्त सीरीज़ का ही था। 

मैंने दोनों लिफाफे थामते हुए पूछा - “कब तक चाहिये?”

इस बार कोई जल्दी नहीं है।” - सतीश जैन बोले -”बेशक आप दिल्ली ले जाओ। जब चक्कर लगे, तब दे जाना। स्पेशली आने की जरूरत नहीं है।”

यह मेरे लिए घोर अचरज़ की बात थी। सतीश जैन के लिए मैं जब से काम कर रहा था, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था।

ठीक है, फिर मैं अभी चलूँ।”-  मैंने उठने का उपक्रम करते हुए कहा, लेकिन उठा नहीं। 

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 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...