प्रस्तुति- योगेश मित्तल
नूतन पाकेट बुक्स का ऑफिस उस समय खुला हुआ था। सुमत प्रसाद जैन अपनी सीट पर बिराजमान थे। एक कोने में एक वर्कर कुछ बण्डल पैक कर रहा था।
मैं रुका, मुड़ा, फिर पलटकर नूतन पाकेट बुक्स के ऑफिस में प्रविष्ट हो गया।
"नहीं... ऐसी कोई तलब नहीं है।"- मैंने कहा तो सुमत प्रसाद जैन बड़ी आत्मीयता से बोले -"कर दी न दिल तोड़ने वाली बात। दिन भर में बीस कप चाय पीने वाला योगेश मित्तल हमें चाय को मना कर रहा है। अबे यार, बड़ी देर से मेरा चाय पीने का मूड कर रहा था, लेकिन अकेले पीने का मन नहीं हो रहा था, इसीलिये तो तुझे देखकर आवाज दी।"
"ठीक है, मंगा लीजिये।" - मैं हंसते हुए बोला। तो जनाब यह भी नूतन पाकेट बुक्स और सूर्या पाकेट बुक्स के संस्थापक सुमत प्रसाद जैन का एक मूडी अन्दाज़ था, जिसकी जितनी तारीफ की जाये, कम है। मूड होने पर भी सिर्फ इसलिये चाय नहीं पी रहे थे, क्योंकि उस समय अकेले पीने का मूड नहीं था और गुफ्तगू करने वाला कोई साथी नज़र नहीं आ रहा था।