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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू

उदयपुर विश्वविद्यालय कुछ अपने नाम जैसा ही अत्यन्त अलग एवम् प्रिय। अनेक शहरों के लड़के-लड़किया, अमीर-गरीब तथा सभी धर्मों के छात्र इस विद्यालय को शोभायमान बनाए हुए थे। अगस्त का महीना यूं भी छात्र- छात्राओं के अन्दर नया उत्साह उत्पन्न कर देता है—क्योंकि इलेक्शन आरम्भ हो चुके थे। छात्रों में एक नया जोश सहज ही देखा जा सकता था, किन्तु शाम होते ही चीखते एम्प्लीफायर खामोश हो जाते, जैसे इस समय चारों ओर खामोशी व्याप्त थी। कुछेक लड़के-लड़कियां अपने होस्टल के कमरों में पढ़ाई में व्यस्त थे, कुछ बैडमिंटन खेल रहे थे, तो कुछ प्रेमिकाओं की झलक के लिए 'गर्ल्स होस्टल' के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे थे। लड़कियां भी कम नहीं थीं किसी-न- किसी बहाने अपने प्रियतम को दर्शन दे दिया करती। माहौल कुछ अजीब था। 

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू
        आज रविवार था, इसीलिए शायद ऐसा समां बंधा था। ठंडी हवा चारों ओर चहलकदमी कर रही थी। आकाश में चांद दिखने लगा था। लॉन के एक कोने में विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध छात्र नेता बैठे हुए थे। उनकी संख्या चार थी। चारों के हाथों में सिगरेटें सुलग रही थीं। अनायास प्रथम छात्र नेता बोला- "हमारा ग्रुप आज यूनिवर्सिटी में काफी चर्चित है— इसका श्रेय अमित तिवारी को जाता है।”

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

मायाजाल - विक्की आनंद

मायाजाल - विक्की आनंद

साहित्य देश के उपन्यास अंश स्तम्भ के अंतर्गत इस बार पढें लोकप्रिय उपन्यासकार विक्की आनंद के उपन्यास मायाजाल का एक रोचक अंश।

विनोद के पलटने तक मोना अपने सांचे में ढले दूध जैसे गोरे बदन से कपड़े उतार चुकी थी। सिर्फ अण्डरवियर्स शेष रह गए थे। उसके गोरे बदन पर काले रंग की चड्ढी और काले ही रंग की चोली अलग से चमक रही थी।
दरवाजा अंदर से बंद करके मुड़ने पर विनोद उसे विस्मय से देखता का देखता रह गया।
मायाजाल - विक्की आनंद

उसने ऐसा दिलकश-दिलफरेब-हाहाकारी हुस्न पहली बार देखा था।

मोना ने तौबा शिकन अंदाज से दोनों हाथ उठाकर अंगड़ाई ली। उस घड़ी वह किसी नृत्यांगना जैसी मुद्रा में पंजों के बल खड़ी थी। अंगड़ाई लेते समय उसके उन्नत वक्षों में अतिरिक्त तनाव आ गया था। उसने विनोद की ओर देखते हुए कातिलना अंदाज में घनेरी पलकों और नाक को हल्की-सी जुम्बिश दी।

फिर उसका निचला अधर दांतों के बीच दब गया।

गहरी लाल लिपिस्टिक उसके अधरों को अलग-सी चमक प्रदान कर रही थी। व्हिस्की के नशे में थी वह।

उसी नशे में उसके नेत्र जगमग-जगमग कर रहे थे।

आमंत्रण की मुद्रा में उसने अपनी दोनों गुदाज बांहें फैला दीं।

खुद विनोद भी गहरे नशे में था।

जिस होटल में वह ठहरा था, उसके ठीक बाहर मोना से एक गुण्डे ने छेड़छाड़ शुरू कर दी। ऐन वक्त पर पहुंचकर विनोद ने उसे गुण्डे से बचा लिया। गुण्डे ने पहले चाकू, उसके बाद उस्तरे से उस पर वार करने चाहे थे, लेकिन उसका एक भी वार कामयाब न हो सका।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

सुनीता अग्रवाल

नाम- सुनीता अग्रवाल

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में एक विवादस्पद प्रश्न रहा है और वह प्रश्न है प्रथम उपन्यास लेखिका। इस विषय पर विभिन्न विद्वानों के मत अलग-अलग हैं। कोई भी किसी एक मत पर सहमत नहीं है। 

   इस शृंखला में एक और नाम शामिल होता है और वह नाम है सुनीता अग्रवाल। अब यह नाम वास्तविक है या छद्म लेखन है कुछ कहा नहीं जा सकता पर लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में महिला उपन्यासकार की सूची में एक और नाम अवश्य जुड़ गया है। 

  सुनिता अग्रवाल के विषय में हालांकि कोई संतोषप्रद जानकारी उपलब्ध नहीं है। समस्त जानकारी का स्त्रोत 'बुद्धिमान प्रकाशन- मुम्बई' से प्रकाशित एक पत्रिका है। 

सुनीता अग्रवाल के उपन्यास
1. मानव कंकाल


सुनीता अग्रवाल के विषय में किसी पाठक को कोई जानकारी हो तो हमसे अवश्य संपर्क करें। 

Email- sahityadesh@gmail.com

लोकप्रिय साहित्य की पत्रिकाएं

कुछ लोकप्रिय साहित्य की पत्रिकाएं

जासूस साहित्य में एक और प्रकाशन की जानकारी प्राप्त हुयी है। दिल्ली का प्रकाशन संस्थान है - चित्रलोक प्रकाशन। 
चित्रलोक प्रकाशन की चार पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी। जैसा की चित्र में देख सकते हैं।
  1. सी. आई. डी.
  2. इमराम के कारनामें सीरीज
  3. के. थ्री सीरीज
  4. जासूसी चिंगारी


सी आई डी मासिक पत्रिका

सी आई डी मासिक पत्रिका







बुधवार, 15 फ़रवरी 2023

फंदा- अनिल सलूजा, उपन्यास अंश

फन्दा - अनिल सलूजा, बलराज गोगिया, प्रथम उपन्यास

  साहित्य देश के 'उपन्यास अंश' स्तम्भ में इस बार प्रस्तुत है अनिल सलूजा द्वारा लिखित प्रथम उपन्यास 'फंदा' का अंश। यह बलराज गोगिया सीरीज का प्रथम उपन्यास है और अनिल सलूजा जी के नाम से प्रकाशित होने वाला भी प्रथम उपन्यास है।
फन्दा - अनिल सलूजा, बलराज गोगिया, प्रथम उपन्यास

"क.... कौन हो तुम...." - बड़ी मुश्किल के बोल फूट पाया कुलकर्णी साहब के होंठों से।
रंगत एक दम से स्याह पड़ी हुई थी कुलकर्णी साहव की आंखों में खौफ के साये मंडराने लगे थे....। फटी-फटी आंखों से वे अपने सामने खड़े उन पांच नकाबपोशों को देख रहे थे जो कि उनके आठ साल के बेटे बबलू की खोपड़ी से स्टेनगन लगाये खड़े थे।
काले कपड़े में झांकते पांचों नकाबपोशों के होठों पर जहरीली मुस्कान रेंग गई।
एक नकाबपोश आगे बढ़ा- स्टेनगन अपने कंधे पर रखा और मुस्कान को और तेज करते हुए बोला- "जाहिर है हम अच्छे लोग नहीं हैं वर्ना काले कपड़ों में अपने मुंह छुपाकर तुम्हारे पास क्यों आते ।"
"क्या....क्या चाहते हो ?"
“हां....यह सवाल तुमने अच्छा किया।" - नकाबपोश अपनी स्टेनगन को कुलकर्णी साहब के सीने के सटाते हुए बोला- "बलराज गोगिया को फांसी का हुक्म तुमने ही सुनाया था न कुलकर्णी ?"
बुरी तरह से चौंके कुलकर्णी साहब....।

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