अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू
उदयपुर विश्वविद्यालय कुछ अपने नाम जैसा ही अत्यन्त अलग एवम् प्रिय। अनेक शहरों के लड़के-लड़किया, अमीर-गरीब तथा सभी धर्मों के छात्र इस विद्यालय को शोभायमान बनाए हुए थे। अगस्त का महीना यूं भी छात्र- छात्राओं के अन्दर नया उत्साह उत्पन्न कर देता है—क्योंकि इलेक्शन आरम्भ हो चुके थे। छात्रों में एक नया जोश सहज ही देखा जा सकता था, किन्तु शाम होते ही चीखते एम्प्लीफायर खामोश हो जाते, जैसे इस समय चारों ओर खामोशी व्याप्त थी। कुछेक लड़के-लड़कियां अपने होस्टल के कमरों में पढ़ाई में व्यस्त थे, कुछ बैडमिंटन खेल रहे थे, तो कुछ प्रेमिकाओं की झलक के लिए 'गर्ल्स होस्टल' के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे थे। लड़कियां भी कम नहीं थीं किसी-न- किसी बहाने अपने प्रियतम को दर्शन दे दिया करती। माहौल कुछ अजीब था।
आज रविवार था, इसीलिए शायद ऐसा समां बंधा था। ठंडी हवा चारों ओर चहलकदमी कर रही थी। आकाश में चांद दिखने लगा था। लॉन के एक कोने में विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध छात्र नेता बैठे हुए थे। उनकी संख्या चार थी। चारों के हाथों में सिगरेटें सुलग रही थीं। अनायास प्रथम छात्र नेता बोला- "हमारा ग्रुप आज यूनिवर्सिटी में काफी चर्चित है— इसका श्रेय अमित तिवारी को जाता है।”