उपन्यास साहित्य का रोचक संसार-37
आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 37
===============================================
अगले दिन कोई प्रकाशक नहीं आया ! मैं और बिमल चटर्जी दोनों इन्तजार करते रहे ! उसके अगले दिन भी कोई नहीं आया !
तीसरे दिन मैं सुबह-सुबह तैयार होकर बिमल चटर्जी के घर की ओर निकलने वाला ही था कि द्वार पर भारी-भरकम स्याह-सा चेहरा प्रकट हुआ !
वह उत्तमचन्द थे ! बुक बाइन्डर !
"बाबे दी मेहर है ! चिन्ता नहीं करनी !" दोनों हाथ ऊपर उठा, उत्तमचन्द ने चिर-परिचित अन्दाज़ में अभिवादन किया !
"बाबे दी मेहर है !" मैंने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया-"आज सुबह-सुबह कैसे ?"
"चिन्ता नहीं करनी ! इधर से गुज़र रहा था ! सोचा - बड़े-बड़े लोगों से मिलते चलें !"
मैं ठहाका मारकर हँसा -"बड़े-बड़े लोगों से मिलने के लिए आप चारफुटिये से मिलने आये हैं ! मैं कहाँ से बड़ा नज़र आ रहा हूँ आपको ?"
उत्तमचन्द गम्भीर हो गये -"हमें तो जो रोटी दे, वही हमारे लिए बड़ा है !"
"अरे तो मैंने कौन-सी रोटी खिला दी आपको ? खिलाने-पिलाने वाला तो भगवान है ! मेरे यहाँ आने की जगह किसी मन्दिर चले गये होते !"
"वहाँ भी जाऊँगा, पर अभी नहाया नहीं हूँ !"
"तो आप बिना नहाये-धोये सिर उठाकर सीधे मेरे यहाँ चले आये हैं ! कुछ तो बात है ! क्या बात हैं ?" मैंने मुस्कुराते हुए भवें नीचे से ऊपर करते हुए पूछा !
"लड़के खाली बैठे हैं ! मैंने सोचा - योगेश जी से ही पूछ लेते हैं - पंकज पाॅकेट बुक्स का नया सैट कब आ रहा है ?" उत्तमचन्द के मुखमण्डल की मुस्कान का स्थान गम्भीरता ने ले लिया !
"इस बारे में तो कुमार साहब ही कुछ बता सकते हैं !" मैंने कहा !
"तो चलें...कुमार साहब के घर ?" उत्तमचन्द ने पूछा !
"चलिए !"
हम दोनों जब कुमारप्रिय के यहाँ पहुँचे ! कुमारप्रिय घर पर ताला लगा रहे थे ! स्पष्ट था - कहीं जाने को तत्पर हैं !
आइये, आपकी पुरानी किताबी दुनिया से पहचान करायें - 37
===============================================
अगले दिन कोई प्रकाशक नहीं आया ! मैं और बिमल चटर्जी दोनों इन्तजार करते रहे ! उसके अगले दिन भी कोई नहीं आया !
तीसरे दिन मैं सुबह-सुबह तैयार होकर बिमल चटर्जी के घर की ओर निकलने वाला ही था कि द्वार पर भारी-भरकम स्याह-सा चेहरा प्रकट हुआ !
वह उत्तमचन्द थे ! बुक बाइन्डर !
"बाबे दी मेहर है ! चिन्ता नहीं करनी !" दोनों हाथ ऊपर उठा, उत्तमचन्द ने चिर-परिचित अन्दाज़ में अभिवादन किया !
"बाबे दी मेहर है !" मैंने अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया-"आज सुबह-सुबह कैसे ?"
"चिन्ता नहीं करनी ! इधर से गुज़र रहा था ! सोचा - बड़े-बड़े लोगों से मिलते चलें !"
मैं ठहाका मारकर हँसा -"बड़े-बड़े लोगों से मिलने के लिए आप चारफुटिये से मिलने आये हैं ! मैं कहाँ से बड़ा नज़र आ रहा हूँ आपको ?"
उत्तमचन्द गम्भीर हो गये -"हमें तो जो रोटी दे, वही हमारे लिए बड़ा है !"
"अरे तो मैंने कौन-सी रोटी खिला दी आपको ? खिलाने-पिलाने वाला तो भगवान है ! मेरे यहाँ आने की जगह किसी मन्दिर चले गये होते !"
"वहाँ भी जाऊँगा, पर अभी नहाया नहीं हूँ !"
"तो आप बिना नहाये-धोये सिर उठाकर सीधे मेरे यहाँ चले आये हैं ! कुछ तो बात है ! क्या बात हैं ?" मैंने मुस्कुराते हुए भवें नीचे से ऊपर करते हुए पूछा !
"लड़के खाली बैठे हैं ! मैंने सोचा - योगेश जी से ही पूछ लेते हैं - पंकज पाॅकेट बुक्स का नया सैट कब आ रहा है ?" उत्तमचन्द के मुखमण्डल की मुस्कान का स्थान गम्भीरता ने ले लिया !
"इस बारे में तो कुमार साहब ही कुछ बता सकते हैं !" मैंने कहा !
"तो चलें...कुमार साहब के घर ?" उत्तमचन्द ने पूछा !
"चलिए !"
हम दोनों जब कुमारप्रिय के यहाँ पहुँचे ! कुमारप्रिय घर पर ताला लगा रहे थे ! स्पष्ट था - कहीं जाने को तत्पर हैं !