लेखक- योगेश मित्तल
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अरुण कुमार शर्मा उन दिनों कोई नौकरी पाने के लिए भी भाग-दौड़ कर रहा था ! अतः उसका मुझसे मिलना कम ही होता था !
भारती पाॅकेट बुक्स का विज्ञापन वाला अखबार मुझे थमाने के बाद अगले दिन सुबह ही सुबह वह मेरे घर आ गया ! तब मैं नहा-धोकर तैयार था ! मुझे सुबह जल्दी उठने और जल्दी नहा लेने की आदत तब भी थी, अब भी है !
"आ चल, बाहर चलते हैं !" अरुण ने कहा !
हम बाहर निकल मामचन्द चायवाले की दुकान पर बाहर पड़ी खाली बेंच पर बैठ गये !
तब चाय पन्द्रह पैसे की होती थी ! चाय का आर्डर अरुण ने दिया और मुझसे पूछा -"तो क्या सोचा है ?"
"किस बारे में ?" मैंने पूछा तो वह गर्म हो गया और बहुत भद्दी भाषा में उसने जो कुछ कहा, उसका मतलब यह था कि कभी अपने लिए भी कुछ करना है या हमेशा बिमल चटर्जी और कुमारप्रिय के लिए लिखना है !