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रविवार, 28 फ़रवरी 2021

साक्षात्कार- वेदप्रकाश कांबोज

 मैं मानसिक रूप से एक बेहद आवारा किस्म का आदमी हूँ- वेदप्रकाश कांबोज
साहित्य देश इस बार प्रस्तुत कर रहा है लोकप्रिय साहित्य के सितारे आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज जी का साक्षात्कार। सन् 1958 में अपने लेखन की शुरुआत करने वाले कांबोज जी आज भी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
     साहित्य देश ब्लॉग के लिए यह  साक्षात्कार युवा उपन्यासकार राम पुजारी जी ने लिया है।

1. आदरणीय वेदप्रकाश कांबोज जी आपका का नाम लोकप्रिय साहित्य में एक मील का पत्थर है। आपके पाठकों का एक बहुत बड़ा वर्ग रहा है। यहाँ हम सर्वप्रथम जानना चाहेंगे आपके के जीवन के आरम्भिक पृष्ठों को जैसे बचपन, शिक्षा इत्यादि के बारे में।
- सबसे पहले तो इस बात को समझो कि जो तुम कह रहे हो नाम है। या ...मान लो कि नहीं है,  नाम का होना या न होना महत्त्वपूर्ण  नहीं है। महत्त्वपूर्ण होता है लेखन यात्रा पर इसका प्रभाव। समझदार वही  होता जो लगातार सीखता रहता है। फिर लेखन तो  एक सतत धारा है। इसमें मुझ से पहले भी बड़े लेखक रहे हैं और मेरे समकालीन भी रहे और बाद में भी रहेंगे। 
और जहां तक बचपन का सवाल है तो ये जान लो कि मेरा बचपन साधारण होते हुए भी विशेष था। असल में वो समय ही विशेष था। देश नया-नया आज़ाद हुआ था। संघर्ष के दिन थे। पढ़ने का शौक था स्कूली पुस्तकों से ज्यादा मैंने अन्य पुस्तकें ज्यादा पढ़ी।
अपने पुस्तकालय में कांबोज जी
अपने पुस्तकालय में कांबोज जी
2. कांबोज जी आपका झुकाव उपन्यास लेखन की तरफ कैसे हो गया, तब आपकी उम्र क्या रही होगी और आप क्या करते थे? 

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा, आत्मकथा भाग-02

मैं आवारा, इक बनजारा-  भाग-2
अशोक कुमार शर्मा, आत्मकथा
तो दोस्तो, मेरे गांव रूपगढ़ की इस ऐतिहासिक दास्तान सुनने के बाद अब आप इस ख़ाकसार की दास्तान भी सुन लीजिए, जिसका कि शीर्षक मैंने दिया है  -   
मैं आवारा, इक बंजारा
मेरा, यानी कि इस नाचीज़ का जन्म ऐसे ही ऐतिहासिक महत्व वाले रूपगढ़ नाम के इस गांव में ईसवी सन 1968 को श्री मदन लाल शर्मा एवं श्रीमती गीता देवी के घर सुबह चार बजे अलसभोर में हुआ था।
घर में मेरे दो भाइयों सुभाष शर्मा एवं पवन शर्मा का जन्म मुझसे पहले ही हो चुका था, इस कारण घर में सबसे छोटा सदस्य होने की वजह से मैं सबका प्यारा, राज दुलारा और आंखो का तारा था। इस वजह से बचपन से ही मुझे स्वच्छंद और आवारगी भरा जीवन जीने का पक्का लाइसेंस मिल गया था।
अब..., जब मेरे खानदान की बात चल ही गई है, तो मैं अपने शेष खानदान का एक छोटा सा परिचय आपको दे दूं।
और मेरे शेष खानदान का छोटा सा परिचय ये है दोस्तो कि मेरे पूजनीय दादाजी का नाम -
श्री बंशीधर शर्मा, दादी का नाम श्रीमती घोटीदेवी, मेरी भाभियों का नाम क्रमश: पाना शर्मा और किरण शर्मा है और मेरी धर्मपत्नी  का नाम मंजू शर्मा है ।
मेरे पुत्र का नाम सौरभ शर्मा और मेरे भतीजे व भतीजी का नाम क्रमश: विकास शर्मा, सचिन शर्मा और बीना शर्मा ( धर्म पत्नी - श्री दीपक शर्मा ) है ।
और हम सब की प्यारी और राज दुलारियों नाती और पोती का नाम मनस्वी शर्मा और आराध्या शर्मा है।
मेरे भतीजे विकाश और सचिन, दोनों की ही पत्नियों का नाम संयोग से पूनम शर्मा है ।
बचपन में, यानी कि तीन - चार साल की उम्र में मैने अपनी सिर्फ पांचवीं कक्षा पास मां से राजाओं की, भूतो की, चोरों की, स्थानीय रॉबिन हुड जैसे परोपकारी और उदार दिल डाकू व स्वतंत्रता सेनानी बलजी - भूरजी और डूंग जी - जवाहर जी की, व्रतकथा और त्योंहारों की, लोककथा और परलोक कथाओं की, रामायण और महाभारत के महान पात्रों की और अन्य बहुत सी कहानियां सुनी थी।
इसके अलावा जब हमारा परिवार नागौर जिले के कुकनवाली नाम के गांव में रहता था, तो मैं अपने भाईयो के साथ रामलीला और नाटक देखने के लिए भी जाया करता था ।
नाटकों में मैंने 'मैना सुंदरी और सर सुंदरी', 'राजा हरीश्चंद्र, 'राजा भरतहरी', 'सुल्ताना डाकू' और 'रूप - बसंत' जैसे कई नाटक कई बार देखे, जिनका प्रभाव मेरे भावुक व संवेदनशील दिल पर और कल्पना शील दिमाग पर बहुत ही ज्यादा पड़ा।
मैं नाटकों के पात्रों की खुशी में उनके साथ हंसता था और उनके दुखों में उनके साथ रोता था। यानी कि मैं मात्र एक दर्शक न रहकर उन्ही के परिवार का एक सदस्य बन जाया करता था और उनके सुखी होने पर मैं खुद को भी सुखी और उनके दुखी होने पर मैं खुद को भी दुखी महसूस करता था।
मुझ जैसे नाचीज़ में दया, प्रेम, सहानुभूति, अहिंसा, सहयोग, सत्यता और न्यायप्रियता आदि गुण व अन्याय, असमानता, हिंसा और शोषण के खिलाफ जो आक्रोश का भाव थोक भाव में मौजूद है, उनकी वजह मेरी मां द्वारा सुनाई गई कहानियां, रामलीला और उन नाटकों का ही प्रभाव है।
सिर्फ यही नहीं, मेरी कल्पनाओं को उड़ान भी इन्होंने ही दी।
मैं कल्पना में इनके मुख्य पात्रों की जगह खुद को रखकर मन ही मन उन जैसा होने का अहसास महसूस करता था।
कहने का मतलब ये है साहेबान कि उन कथा - कहानी और नाटकों ने मेरे भविष्य में लेखक होने की एक पुख्ता और मजबूत नींव रख दी थी, परिणाम स्वरूप मैं अपने कल्पना शील दिमाग से जोड़ - जोड़ कर मनघड़ंत कहानियां अपने यार - दोस्तों, नाते - रिश्तदारों और घरवालों - बाहरवालों को लगभग चार - पांच वर्ष की उम्र में ही सुनाने लगा था।
बचपन में मेरे द्वारा सुनाई जाने वाली उन कहानियों को सुनकर  मेरे मंझले मामाजी श्री दीनदयाल शर्मा ने भविष्यवाणी कर दी थी कि मेरा ये नन्हा सा भांजा बड़ा होकर एक न एक दिन बहुत ही बड़ा लेखक बनेगा और दुनिया में अपना नाम रोशन करेगा।
और इस प्रेणना भरे मात्र एक ही वाक्य ने हमेशा ही मुझे एक लेखक बनने और इस वाक्य को सिद्ध करके दिखाने के लिए प्रेरित किया।
मैं जानता हूं कि आप मन ही मन ये जरूर सोच रहे होंगे कि मैं लंबी - लंबी फैंक रहा हूं।
एक चार - पांच साल की उम्र वाली बचपन की बातें भला बावन साल की उम्र में कैसे याद रह सकती है ?
तो मैं आपको बतादूं कि ऐसे  प्रेरणादायक या दिल को चोट पहुंचने वाले प्रसंग या संस्मरण या घटनाऐं, जिन्होंने आपके दिल, दिमाग और भावनाओं को बहुत ही ज्यादा और बहुत ही गहराई तक प्रेसराईज या प्रभावित या आहत किया हो, वे दिमाग की 'स्थाई मेमोरी' में  जाकर स्टोरेज हो जाते हैं। 

शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

नये उपन्यास- मार्च 2021

 सन् 2021 उपन्यास साहित्य के लिए बहुत अच्छा साबित हो रहा है।

पाठकों के लिए नित नये उपन्यास आये रहे हैं। जहाँ नये लेखकों के नये उपन्यास प्रकाशित हुये हैं वहीं कुछ रिप्रिंट भी सामने आये हैं।
 यहाँ प्रस्तुत है इन दिनों प्रकाशित और कुछ नये आने वाले उपन्यासों की चर्चा।
  1. कत्लोगारत- अनिल गर्ग
      प्रकाशक- कहानी जंक्शन
       हार्डकाॅपी में प्रकाशित होने वाला अनिल गर्ग जी का यह द्वितीय उपन्यास है। अनिल गर्ग जी ने उपन्यास साहित्य में online प्लेटफार्म के माध्यम से प्रवेश किया है। इस से पूर्व उपन्यास एक उपन्यास 'एक लाश सौ दुश्मन' हार्ड काॅपी के रूप में आ चुका है।
  कत्लोगारत एक सस्पेंश से भरा रोचक उपन्यास है।
2. मैं अपराधी जन्म का- सुरेन्द्र मोहन पाठक
    पाठक जी का यह उपन्यास विमल सीरीज का है। 

 अमेजन लिंक-     मैं अपराधी जन्म का

3. नाचती चिनगारियां- आबिद रिजवी
    प्रकाशक- फ्लाई ड्रिम्स 
  लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया कहे जाने वाले आबिद रिजवी की एक बेहतरीन रचना है।
   यह उनके उपन्यास 'फोमांचू चिंगारियों के देश में' और 'चिनगारियों का नाच' का संयुक्त संस्करण हैैैै।

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

रीमा भारती ™

 नाम -रीमा भारती™
प्रकाशक- दुर्गा पॉकेट बुक्स, मेरठ

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में नये-नये करतब होते रहे हैं। कुछ अच्छे और कुछ बुरे भी। लेकिन यहाँ हम जिस पात्र की बात कर रहे हैं उसका किस्सा कुछ अलग ही है।
   लोकप्रिय साहित्य में दिनेश ठाकुर ने एक पात्र खड़ा किया था रीमा भारती। इस पात्र ने इतनी प्रसिद्धि प्राप्त की थी कि तात्कालिक लेखकों और प्रकाशकों ने रीमा भारती से मिलते-जुलते क ई पात्र पात्र मैदान में उतार दिये। यहाँ तक की स्वयं दिनेश ठाकुर की धर्मपत्नी की तस्वीर लगे उपन्यास लेखिका रीमा भारती नाम से प्रकाशित होने लगे।  
रीमा भारती™ दुर्गा पाॅकेट बुक्स
रीमा भारती™ दुर्गा पाॅकेट बुक्स
 जहाँ लेखक दिनेश ठाकुर के उपन्यासों में रीमा भारती नायिका होती थी और उपन्यासों में अश्लीलता होती थी, वहीं स्वयं रीमा भारती नामक लेखिका के उपन्यासों की नायिका चाहे रीमा भारती थी लेकिन वहाँ अश्लीलता नहीं थी।
    पर इन सब के विपरीत दुर्गा पॉकेट बुक्स ने भी लेखिका रीमा भारती मैदान में उतार दी। अब यहाँ समस्या पैदा हो गयी की। मैदान में दो-दो रीमा भारती उपस्थित थी, दोनों ही लेखिका।
तब इसका एक समाधान भी निकाला गया। समाधान कैसे और किन परिस्थितियों में निकला यह अलग विषय है पर यहाँ अपने चर्चा रीमा भारती लेखिका की है।
दिनेश ठाकुर की पत्नी की तस्वीर लगे उपन्यासों की लेखिका रीमा भारती थी, यह तस्वीर उनकी पहचान थी वहीं दुर्गा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित रीमा भारती ट्रेड नेम था और उस पर ट्रेडमार्क (™ )का निशान लगा होता था।
दुर्गा पॉकेट बुक्स से ट्रेडमार्क रीमा भारती के उपन्यास क्रम से
1. दफा 302
2. खतरा
3. केकड़ा
4. फायर
5. धमाका 
6. औरतखोर 

बुधवार, 24 फ़रवरी 2021

7. साक्षात्कार- विजय कुमार बोहरा

साहित्य देश साक्षात्कार की इस शृंखला में इस बार लेकर आया है युवा उपन्यासकार विजय कुमार बोहरा जी का साक्षात्कार। यह विजय कुमार जी का प्रथम साक्षात्कार है।

   विजय जी अपने प्रथम उपन्यास मर्डर ऑन वैलेंटाइन नाईट के कारण काफी चर्चा में रहे हैं।

विजय कुमार बोहरा जी अपने प्रथम उपन्यास के साथ
विजय कुमार बोहरा जी अपने प्रथम उपन्यास के साथ

 1. विजय जी, सर्वप्रथम हम आपका परिचय जानना चाहेंगे।- जन्म, शिक्षा, वर्तमान स्थिति आदि।

- मेरा जन्म 31 जनवरी , 1988 को राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित बेगूं कस्बे में हुआ। स्नातक तक की शिक्षा यहीं हुई। 

2. आपका साहित्य की तरफ झुकाव कैसे हुआ?

-  बचपन में चम्पक पत्रिका पढ़ने को मिली। कहानियों में मेरी रुचि इस पत्रिका में छपने वाले रंग - बिरंगे चित्रों को देखकर जाग्रत हुई। इसके बाद तो बस हर तरह की किताबें पढ़ने लगा। हालाँकि अपने पारिवारिक वातावरण की वजह से कॉमिक्स और उपन्यासों तक पहुंच मेरे लिए काफी मुश्किल थी। फिर बचा गंभीर साहित्य, ...तो 15 - 16 की आयु में गंभीर साहित्य की ओर रुचि होने का मेरे पास कोई कारण नहीं था। इसी बीच  रामचरितमानस और कुछ पुराण हाथ लगे। जल्द ही मैं समझ गया कि इनमें बहुत ही रोचक कहानियां हैं। इस तरह बाल साहित्य के बाद मेरी रुचि आध्यात्मिक साहित्य में हुई। फिर जब कॉलेज पहुँचा और वहाँ की लाइब्रेरी देखी तो जैसे खज़ाना हाथ लग गया, बाल साहित्य तो वहाँ था नहीं, किन्तु बाकी बहुत तरह की किताबें थी। गंभीर साहित्य, विश्व की श्रेष्ठ कृतियों के साथ ही संस्कृत के कुछ नाटकों के हिन्दी अनुवाद, सेल्फ- हेल्प बुक्स - इन सबसे न केवल पहली बार परिचित हुआ, बल्कि इनमें कभी खत्म न होने वाली रूचि भी जागृत हुई। इन किताबों में न केवल कहानियां थी, बल्कि वे भावनाएं भी कूट कूटकर भरी हुई थी, जिनको महसूस करने के लिए मैं कठिन से कठिन पुस्तक भी पढ़ने के लिए तैयार हो जाता।

3. आप अध्यापक हैं, गंभीर साहित्य में रुचि आपकी, फिर लेखन में आपने लोकप्रिय जासूसी साहित्य कैसे चुना? 

शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

मैं आवारा, इक बनजारा- अशोक कुमार शर्मा, भाग- 01

नमस्ते पाठक मित्रो, 
साहित्य देश इस बार प्रस्तुत कर रहा है लोकप्रिय साहित्य के एक और सितारे अशोक कुमार शर्मा जी की आत्मकथा। पेशे से अध्यापक अशोक जी राजस्थान के सीकर जिले के निवासी हैं। इन्होने ट्रेड नेम से भी लिखा और स्वयं के नाम से भी उपन्यास प्रकाशित हुये हैं।

लेखक परिचय-
नाम-     अशोक कुमार शर्मा
मु. पो. -  रूपगढ़,
वाया   -  कौछोर,
जिला -   सीकर [ राज ]
मो. न. -  9928108646
                
    मैं आवारा, इक बंजारा- भाग-01
          मैं अत्यंत ही आभारी हूं हम सब लेखकों के अति प्रिय आदरणीय श्री गुरप्रीत सिंह जी का [लेक्चरर- माउंट आबू।। निवासी - बगीचा, जिला -  गंगानगर, राजस्थान ]
जिन्होंने मुझे अपने ब्लॉग  साहित्य देश पर अपने लेखकीय जीवन की यह छोटी सी एक आत्मकथा, जिसका कि शीर्षक है -
'मैं आवारा, इक बंजारा' लिखने का मौका दिया। शुक्रिया गुरप्रीत सिंह जी, आपका लाख - लाख शुक्रिया।

मेरी इस लेखकीय आत्मकथा को पढ़ने वाले पाठकों को मैं यकीन दिलाना चाहता हूं कि अपनी इस आत्मकथा में जो कुछ भी मैंने लिखा है, वो सब ऊपरवाले को हाजिर - नाजिर जानकर पूरा का पूरा सच लिखा है और सच के सिवा और कुछ भी नहीं लिखा है।  हां, पर स्मृति दोष के कारण इसकी कुछ घटनाओं के काल खंड में और कुछ व्यक्ति या स्थान के नामो में भूल हो सकती है, जिसके कारण मैं एडवांस में ही आप जैसे उदार हृदय बंधुओ से क्षमा मांग लेता हूं ।
तो अब चलिए दोस्तों !
मेरे साथ मेरे लेखन जीवन की शुरुआत के कुछ सुहाने और कुछ दर्द भरे सफर पर, जिसमें कुछ गम भी है, तो कुछ खुशियां भी। कुछ फूल भी है, तो कुछ कांटे भी। 
कुछ मुस्कुराहटें है, तो कुछ आंसू भी ।
अगर मेरी इस आत्मकथा में लिखे कुछ शब्दों और वाक्यों की वजह से किसी महानुभाव की भावनाओं को अगर जरा सी भी कोई ठेस पहुंचे, तो मेरी उनसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट है कि वे मुझे अपनी इस बेअदबी के लिए अपना छोटा भाई समझ कर तुरन्त मुझे माफ कर देना ।
तो आइए दोस्तो । अब चलते है मेरे जीवन की उन टेढ़ी - मेढ़ी, ऊंची - नीची, पथरीली, कंटीली और रेतीली राहों पर, जिनपर मैं कभी बिना थके और बिना किसी से शिकायत का एक लफ्ज़ भी कहे कभी रोता, तो कभी हंसता, तो कभी एक आवारा बंजारे की तरह मस्ती से बांसुरी या अलगोजे की धुन बजाता हुआ बिना अपने पैरो में चुभे हुए कांटो की परवाह किए, निरन्तर नंगे पांव आगे, और आगे, और फिर उससे भी और आगे चलता ही गया, बस । चलता ही गया..........।
बिना रुके !
बिना थके !
दर कूंचा $$$ !
दर मंजलां $$$!
उन अनजानी मंजिलों की ओर, जिनकी न तो मुझे दिशा ही
मालूम थी और न ही दूरी ।
इसीलिए मैंने अपनी इस लेखकीय आत्मकथा का नाम एक निष्पक्ष और एक तटस्थ दृष्टा बनकर दिया है -मैं आवारा, इक बंजारा। 

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

वेदप्रकाश शर्मा- पुण्यतिथि

 लोकप्रिय साहित्य के सितारे वेदप्रकाश शर्मा जी पुण्यतिथि पर जयदेव चावरिया जी का एक विशेष आर्टिकल।

 10 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा जी हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलतः बुलंदशहर के रहने वाले थे। वेद सर की एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मृत्यु हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर एक बीमारी की वजह से पिता ने खाट पकड़ ली। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, इसलिए सारी ज़िम्मेदारी मां पर आ गई। मां के संघर्ष से इन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और फिर देखते ही देखते एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखते चले गये। 

वेदप्रकाश शर्मा
वेदप्रकाश शर्मा
वेद सर का शुरुआती दौर काफी मुश्किलों से भरा हुआ था।जब वेद सर अपने पहले उपन्यास कि स्क्रिप्ट लेकर कई प्रकाशकों के चक्कर काटे पर कोई फायदा नहीं हुआ। सब प्रकाशक एक ही बात बोलते थे कि तुम्हारा उपन्यास किसी और के नाम से ही छाप सकते हैं वरना नहीं । लगभग ढाई साल प्रकाशकों के चक्कर काटने के बाद वेद सर ने कई उपन्यासों की स्क्रिप्ट लिख डाली। अंत में वेद सर ने सोचा मेरे नाम से ना सही पर पाठकों तक मेरी रचना तो पहुंचेगी। फिर वेद सर के शुरुआती उपन्यास कई प्रसिद्ध लेखकों के नाम से प्रकाशित हुए। वेद सर का पहला उपन्यास 'डायमंड किंग' लक्ष्मी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था। वेद सर के एक बाद एक सात उपन्यास प्रकाशित हुए । पाठक उनके द्वारा लिखे उपन्यास काफी पसंद कर रहे थे। पर हकीकत तो यह थी कि वह किसी अन्य लेखक के नाम से प्रकाशित हो रहे थे। वेद सर ने समाजिक उपन्यास भी लिखे जो  'राजेश' के नाम से प्रकाशित हुए । 

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

संतोष आनंद

 नाम- संतोष आनंद

संतोष आनंद जी के एक उपन्यास के विषय में और उनके विषय में संक्षिप्त जानकारी मिली है।

संतोष आनंद के उपन्यास

1. टैरर(भय)- पारस पब्लिकेशन, मेरठ




रंजन

 नाम- रंजन

यह नाम मेरे लिए बिलकुल नया है। लेकिन नाम रोचक है। हालांकि इनके विषय में कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पायी है।

रंजन के उपन्यास

1. धूमकेतु

रंजन
रंजन


संतोष आनंद

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मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...