लेबल

गुरुवार, 31 मार्च 2022

Ghost Writer का दर्द

 लेखन साहित्य में Ghost Writing का दौर हमेशा से रहा है। और इस दर्द को एक लेखक ही अच्छे से समझ सकता है। लेखक नरेन्द्र कोहली जी के उपन्यास 'आतंक' में ऐसा ही एक किस्सा नजर आया, जो Ghost writer के दर्द को बहुत अच्छे से व्यक्त करता है, वहीं लेखक और प्रकाशक के संबंधों का यथार्थवादी चित्रण भी करता है।
बलराम अपने प्रकाशक के यहाँ पहुँचा तो उसका काफ़ी तपाक से स्वागत हुआ। 
“आपकी बड़ी प्रतीक्षा थी मुझे।” उसके प्रकाशक जगदीश जी ने दोनों पैर समेटकर कुर्सी पर पालथी मार ली। दाहिने हाथ से सिर पर काफ़ी पीछे रखी हुई गाँधी टोपी को और पीछे की ओर खिसकाया और हथेलियों की मुट्ठियाँ बाँधकर अपनी टाँगों को, परात में पड़े आटे के समान गूँधने लगे। 
“कहिए।” 
“ऐ भाई।” जगदीश जी ने शून्य में आवाज़ लगाई, “ज़रा वह किताब लाइयो, जो मथुरा से छपकर आज आई है।” 
दुकान में काम करने वाला लड़का उन्हें एक पुस्तक दे गया। यह ‘ऐ भाई’ सम्बोधन उसी लड़के के लिये था, वह जानता था। और दुकान पर आने-जाने वाला हर अन्य व्यक्ति भी जल्दी ही समझ जाता था।
     बलराम ने जगदीश जी के हाथ में पकड़ी हुई पुस्तक को देखा—कोई पॉकेट बुक थी। काफ़ी चिकना और रंगदार कवर था। 
       जगदीश जी कुछ देर तक उस पुस्तक को निहारते रहे और फिर उन्होंने पुस्तक उसकी ओर बढ़ा दी, “यह देखो।” 

रविवार, 27 मार्च 2022

यादें वेद प्रकाश शर्मा जी की - 15

यादें वेद पकाश शर्मा जी की - 15
प्रस्तुति- योगेश मित्तल

क्या काम कराना होगा?” - पूछते हुए मेरे चेहरे पर वही मुहब्बत भरी मुस्कान उभर आई, जिसे आपने मेरे रजत राजवंशी नाम से छपे कुछ उपन्यासों की तस्वीरों तथा फेसबुक की तस्वीरों में देखा है। 
वेद भाई ने बड़े रहस्यमय अन्दाज़ में चेहरा आगे किया और धीरे से पूछा –“बता दूँ...?”
हाँ...हाँ...बताओ।” - मैं भी कुछ मज़े लेने वाले मूड में आ गया था। 
तो सुन...मामा... एस. पी. साहब से नूतन पॉकेट बुक्स में छपे कुछ पुराने-सुराने उपन्यास विक्रांत और विजय सीरीज़ के फ्री में लाया होगा, उन्हीं को कवर-सवर फाड़ के योगेश मित्तल के सामने फेंकेगा, ताकि योगेश मित्तल को पता न चले, यह उपन्यास पहले कहाँ छपे हैं, फिर योगेश मित्तल से कहेगा कि यार, इसमें आधा-आधा फार्म शुरू और आखिर में बढ़ा दो और हर चैप्टर की शुरू और आखिर के तीन-तीन चार-चार लाइन चेन्ज कर दो।”
वेदप्रकाश शर्मा
हो सकता है, तुम्हारी बात सही हो, पर सतीश जैन एस. पी. साहब से ही पुराने उपन्यास क्यों लेगा?”-  मैंने पूछा। 

हो सकता है, तुम्हारी बात सही हो, पर सतीश जैन एस. पी. साहब से ही पुराने उपन्यास क्यों लेगा?”-  मैंने पूछा। 
किसी और से भी ले सकै है, प्रभात पॉकेट बुक्स से भी ले सकै है। तिलक चन्द जी के भी पांव पकड़ सकै है, पर एस. पी. साहब का नाम मैंने इसलिए लिया है, क्योंकि मेरा ख्याल है - एस. पी. साहब से 'मामा' की कुछ ज्यादा ही पटती है।”
पटती है?”- मैं हँसा। 
वेद प्रकाश शर्मा के चेहरे पर भी हँसी आ गई, एकदम ही वह बोले - “तू कहीं गलत तो नहीं समझ रहा  मैंने कहा - पटती है। 'फटती है' नहीं कहा है।”
नहीं, मैं गलत नहीं समझा।” मैंने 'पटती है' ही समझा है। तुम तो जानते ही हो, मैं आमिष  शब्दों का प्रयोग नहीं करता। उपन्यासों में बेशक किसी लफंट-लम्पट-मवाली के मुंह से नानवेजिटेरियन शब्द बुलवा दूं, व्यक्तिगत जीवन में खुद कभी इस्तेमाल नहीं करता।” 

मंगलवार, 15 मार्च 2022

नये उपन्यास - 2022

उपन्यास - महल
लेखक - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
प्रकाशक - थ्रिल वर्ल्ड
         
          जमुना के मन में संदेह के साँप ने सिर उठाया और उसकी आँखें गोल हो गयीं। पशुपति को हसीनाबाद में डेरा डाले हुए महीने भर से ऊपर हो रहा था और इस वक्फे में एक भी पल ऐसा नहीं गुजरा था, जब जमुना उसकी ओर से निश्चिंत रहा हो। पशुपति की ओर से उसे जो उजरत हासिल होती थी, उसमें इस बात का भी करार हुआ था कि वह उसके लिए दोपहर और रात का भोजन भी ले आया करेगा। जमुना इस करार को मुसलसल पूरा भी कर रहा था लेकिन आज पहली दफा हुआ था, जब भोजन के वक्त पशुपति कहीं जाने की तैयारी कर रहा था; वो भी रात के दस बजे, जब पूरा जंगल और समूचा कस्बा अँधेरे व कुहरे की दोहरी चादर ओढ़कर सो रहा था।
जमुना ने भयभीत निगाहों से पूरे चाँद की ओर देखा। कस्बे में जब से वह रहस्यमयी मेहमान आया था, तब से पूर्णमासी की रात उसके लिए खौफ और दहशत का बायस बनकर आती थी। वह इस कदर खौफ़जदा रहता था कि उस रात को आँखों ही आँखों में गुजार देता था और जब भोर की पहली किरण धरा का आलिंगन करती थी, पक्षियों का कलरव जन-जीवन को जिजीविषा का बोध कराता था तो वह यूँ लम्बी साँस लेता था, जैसे उसे नया जीवन मिला हो।
वह तुरंत एक पेड़ की ओट में हो गया और पशुपति की हरकतों पर नजर रखने लगा। दूर जंगल से कबाइलियों के नाचने-गाने की आवाजें आ रही थीं।
-------------------------------------------------------------------


मधुर

नाम - मधुर
पूरा नाम - ब्रह्मदेव 'मधुर'
मधुर के उपन्यास
1. लपटें
2. छैला (दो भाग)
3. चोट
उपन्यास 'छैला'  की कहानी में कुशवाहा कांत के चर्चित उपन्यास 'पराया' को आगे बढाया गया है।

ब्रह्मदेव 'मधुर' के विषय में किसी पाठक को कोई और जानकारी हो तो शेयर कीजिएगा।
Email- sahityadesh@gmail.com


Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...