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बुधवार, 26 जुलाई 2023

मिलते - जुलते शीर्षक

साहित्य देश के स्तम्भ 'शीर्षक' के इस पोस्ट में हम 'मिलते- जुलते शीर्षक' शामिल कर रहे हैं। 
समय- समय पर यह पोस्ट अपडेट होती रहेगी।

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सबसे बडा डाॅन - ओमप्रकाश शर्मा (द्वितीय)

सबसे बडा शैतान - राज

सबसे बडा रुपया - राजहस

वो कौन था- अनिल मोहन

वो कौन थी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

वह कौन था- कर्नल रंजीत

डायल 100- सुरेन्द्र मोहन पाठक

डायल 101- रजत राजवंशी


सोमवार, 10 जुलाई 2023

राकेश

लेखक - राकेश

लेखक राकेश का एक उपन्यास उपलब्ध है 'चीनी षड्यंत्र' जो की मेरठ से प्रकाशित है।
प्राप्त उपन्यास में प्रकाशक 'सीक्रेट सर्विस कार्यालय-मेरठ' और वितरक 'प्रभात पॉकेट बुक्स-मेरठ' लिखा है।
  अल्प जानकारी अनुसार 'राकेश' एक एक्शन लेखक थे।

राकेश के उपन्यास


1. चीनी षड्यंत्र

उक्त लेखक के  विषय में‌ अन्य कोई जानकारी हो तो अवश्य शेयर करें।
धन्यवाद
Email- Sahityadesh@gmail.com
विशेष- धीरज पॉकेट बुक्स के एक लेखक 'राकेश' भी थे, जिनके उपन्यास सामाजिक श्रेणी के थे।

sahityadesh

राकेश - धीरज पॉकेट बुक्स


 नाम- अशोक तरुण

दिल्ली के निवासी अशोक तरुण जी, प्राप्त संक्षिप्त जानकारी कर अनुसार एक एक्शन उपन्यासकार के रूप में सामने आते हैं। 

हालांकि उनके विषय में उनके उपन्यासों से ही जानकारी प्राप्त होती है जो अप्राप्य है।

अशोक तरुण के उपन्यास
  1. विकास और खूनी षड्यंत्र
  2. विकास और चीनी दरिंदे
लेखक अशोक तरुण के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध हो तो हमसे अवश्य संपर्क करें।
Email- Sahityadesh@gmail.com

लेखक का एड्रेस
अशोक तरुण
2466, बाजार सीताराम
दिल्ली-6
Ashok sahityadesh


शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

मजेदार समोसे- रोचक किस्सा

साहित्य देश के हास्य रस स्तम्भ में प्रस्तुत है प्रसिद्ध उपन्यासकार कर्नल रंजीत के उपन्यास 'वह कौन था' का एक हास्यपूर्ण किस्सा।

"बाबा, तुम समोसे क्या बनाते हो, गजब ढाते हो !" मेजर कहा ।
   ठाकुर हिम्मत सिंह मेजर की इस प्रशंसा पर प्रसन्न हुए। उन्होंने ऊंची आवाज में कहा - "बाबा नन्दू, इधर आओ और इनको बताओ कि तुम हमारे घर में नौकर कैसे हुए थे !"
"सरकार, मैं यह कहानी इतनी बार मेहमानों को सुना चुका हूं कि अब उसे दुहराते हुए शर्म आती है।" नन्दू बाबा ने निकट आकर कहा – “मगर मालिक का हुक्म कौन टाल सकता है, साहब ? मैं बावर्ची की नौकरी की खोज में था। बड़े ठाकुर साहब यानी मालिक के दादाजी ने मुझे देखा तो उनको विश्वास न आया कि मैं बावर्ची भी हो सकता हूं। खैर उन्होंने मुझे आजमाने की ठान ली। हुक्म हुआ कि मैं रसोईघर में जाकर दोपहर का खाना तैयार करूं, सबसे पहले वे खाकर देखेंगे। सो हुजूर, खाना बन गया।
       ठाकुर साहब खाने के लिए बैठे। मैंने नौकरानी के हाथ पाली परोसकर भिजवाई। थाली में केवल दाल की कटोरी थी और परांठे थे। में धड़कते दिल के साथ रसोई में इन्तजार कर रहा था । वही हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी। बड़े ठाकुर साहब ने बार-बार दाल मंगवाई, यहां तक कि उनका पेट भर गया। फिर वे रसोई में आकर बोले- 'मैं तो सिर्फ दाल ही खाता रहा, बाकी जो चीजें तुमने पकाई होंगी, वे तो पड़ी रह गई...!" मैंने केवल एक बरतन उनके आगे रख दिया जिसमें दाल थी और कहा- 'मैंने और कुछ नहीं बनाया था, सरकार ! बस दाल ही बनाई थी और इस विश्वास के साथ बनाई थी कि आप इसके सिवा और कोई चीज मांग ही नहीं सकेंगे ।' बड़े ठाकुर साहब ने मेरी पीठ बनवाई और उसी दिन से मैं इस घर का सेवक चला आ रहा हूं।" नन्दु बाबा ने हाथ हिलाकर कहा मेजर की नजरें उसके हाथों पर पड़ी तो वह आश्चर्य से उसके मैले हाथों की ओर देखने लगा ।
   नन्दू बाबा ने मेजर की निगाहें अपने हाथों पर जमी देखी तो उसने तुरन्त अपने हाथ अपनी पीठ के पीछे छिपा लिए।

उपन्यास-  वह कौन था
लेखक -    कर्नल रंजीत

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