किसी चर्चित व्यक्ति जो जानने का अच्छा माध्यम है उसकी आत्मकथा या जीवनी। इन दोनों के माध्यम से हम उस व्यक्ति के व्यवहार, मित्र, उसके परिवेश और व्यक्तित्व को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। इन दोनों के अतिरिक्त डायरी भी एक अच्छा माध्यम है। वैसे बहुत से चर्चित व्यक्तियों की डायरियों ने भी 'आत्मकथा और जीवनी' की नींव का काम किया है।
पहले हम जान लें की आत्मकथा (Autobiography) और जीवनी (Biography) में अंतर क्या होता है।
सबसे बड़ा और विशेष अंतर दोनों में यही है की आत्मकथा (Autobiography) लेखक द्वारा स्वयं लिखी जाती है अर्थात् स्वयं के जीवन की कथा स्वयं द्वारा लिखना ही आत्मकथा है।
वहीं जीवनी (Biography) में किसी के जीवन की कथा अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है।
जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है। जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है। जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी होती है। जीवनी में लेखक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन और यथेष्ट जीवन की जानकारी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है।
साहित्य में आत्मकथा किसी लेखक द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को कहते हैं। यह संस्मरण से मिलती-जुलती लेकिन भिन्न है। जहाँ संस्मरण में लेखक अपने आसपास के समाज, परिस्थितियों व अन्य घटनाओं के बारे में लिखता हैं वहाँ आत्मकथा में केन्द्र लेखक स्वयं होता है।
हालांकि दोनों जी अपनी-अपनी विशेषताएं और कमियां है। 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' महात्मा गांधी जी की आत्मकथा है और 'आवारा मसीहा' विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित 'शरतचन्द्र' जी की जीवनी है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में जीवन या आत्मकथा की चर्चा करे तो यहां निराशा ही हाथ लगती है। इस क्षेत्र में असंख्य लेखक हुये लेकिन न तो किसी ने अपनी आत्मकथा न किसी ने जीवनी की तरफ ध्यान दिया।
कुछ लेखकों ने हालांकि थोड़ा बहुत प्रयास किया लेकिन वह भी अव्यवस्थित सा प्रयास है या कह सकते हैं वह उनका संक्षिप्त जीवन परिचय मात्र ही सिद्ध होता है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अगर जीवनी की बात करें तो वह व्यवस्थित रूप से 'कुशवाहा कांत' की जीवनी पढने को मिलती है।
अप्रैल 1959 में कलायन प्रकाशन, वाराणसी द्वारा प्रकाशित 'कुशवाहा कांत'(मेरी दृष्टि में) जीवनी के लेखक कुशवाहा कांत के शिष्य ज्वलाप्रसाद केशर है। कुशवाहा कांत जी की जीवन का शीर्षक था 'कुशवाहा कांत(मेरी दृष्टि में)' (कुशवाहा कांत जी का निधन 1952 मेें हो गया था) इस रचना को पढकर एक और भी जानकारी प्राप्त होती है, लेखक ज्वालाप्रसाद केशर जी लिखते हैं। "प्रस्तुत पुस्तक का नामकरण 'कुशवाहा कांत-जीवन और साहित्य' हुआ था। हर पृष्ठ पर यही नाम छपा भी था, परंतु बाद में पता चला, इसी नाम की एक और पुस्तक प्रकाशकाधीन है। जग भ्रम में न पड़े इसलिए विवश होकर, नाम परिवर्तन कर, 'कुशवाहा कांत' करना पड़ा।"
अब कुशवाहा कांत के जीवन से संबंधित द्वितीय जीवनी कौन सी थी यह तो पता नहीं लेकिन कुशवाहा कांत जी के छोटे भाई जयंत कुशवाहा जी ने भी घोषणा की थी की वह कुशवाहा कांत जी पर एक उपन्यास लिख रहे हैं।
क्या जयंत कुशवाहा द्वारा लिखा गया उपन्यास और द्वितीय जीवनी एक ही है या अलग-अलग यह कुछ भी नहीं कहा का सकता। लेकिन यह निर्विवाद है की लोकप्रिय साहित्य में प्रथम जीवनी कुशवाहा कांत जी की ही थी।
लोकप्रिय साहित्य में अगर बात करें आत्मकथा की तो छोटे-छोटे प्रयास बहुत से लेखकों ने किये लेकिन व्यवस्थित और एक आत्मकथा के रूप में पहला प्रयास सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की आत्मकथा 'ना कोई बैरी ना बेगाना' को कहा जा सकता है।
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की आत्मकथा का प्रथम भाग
'ना कोई बैरी ना बेगानाा' शीर्षक से वेस्टलैंड पब्लिकेशन सन् 2018 में प्रकाशित हुया था और इसका द्वितीय भाग सन् 2019 में 'हम नहीं चंगे बुरा न कोय' शीर्षक से राजकमल पैपरबैक्स, 2019 प्रकाशित हुआ।
इस आत्मकथा का तृतीय और चतुर्थ भाग आना अभी बाकी है। वैसे इन दो भागों जो पढकर एक तरफ हम जहाँ पाठक जी के आरम्भिक जीवन को समझ सकते हैं वहीं उपन्यास जगत के लेखकों, प्रकाशकों आदि का वर्णन भी दिलचस्प और पठनीय है।
इसके अतिरिक्त जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने उपन्यास 'एक रात का मेहमान' के अंत में 'खुद अपनी नजर में' शीर्षक से अपनी संक्षिप्त आत्मकथा प्रकाशित की थी, जो उनको जानने के लिए काफी उपयोगी था।
वेदप्रकाश शर्मा जी के बहुत से उपन्यासों के पीछे उनका जीवन परिचय मिलता है। जैसे- 'वो साला खद्दर वाला', 'जय हिन्द' आदि।
वेद जी का यह छोटा सा प्रयास उनके संघर्ष दिन, परिवार की स्थिति और सफलता के पथ पर बढते समय को अच्छी तरह से चित्रित करने में सक्षम है।
वेद जी परिवार या साथी मित्रों को इस प्रयास को आगे बढाना चाहिए।
उपन्यास साहित्य में सोशल मीडिया के साथ पुनः परिवर्तन आया है। इसी परिवर्तन के साथ-साथ नये और पुराने लेखक भी सक्रिय हुये हैं।
लंबे समय से उपन्यास जगत से दूरी बनाये हुये जादूगर लेखक परशुराम शर्मा जी ने 'कोरे कागज का कत्ल' उपन्यास से पुनः लेखन क्षेत्र में कदम रखा। इस उपन्यास में परशुराम शर्मा जी ने अपना जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया है।
लगभग दस साल बाद उपन्यास साहित्य में 'Once again' उपन्यास से पुनः पदार्पण करने वाली लेखिका महोदया 'गजाला करीम' ने अपने उपन्यास 'Once again' में 'मेरी कहानी, मेरी जुबानी' शीर्षक से प्रकाशित हुयी थी।
वहीं लोकप्रिय साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया के नाम से प्रसिद्ध आबिद रिजवी साहब ने फेसबुक पर 'मेरा साठ साल का सफरनामा' भी लिखा था जो काफी चर्चित रहा।
वहीं योगेश मित्तल जी ने भी अपने समय को शब्दों नें बांधने का खूबसूरत प्रयास किया है। योगेश मित्तल जी का 'उपन्यास साहित्य का रोचक संसार' आप साहित्य देश ब्लॉग पर भी पढ सकते हैं। (लिंक- उपन्यास साहित्य का रोचक संसार- योगेश मित्तल)
धरम-राकेश नाम के नाम से चर्चित लेखक द्वय में से धरम बारिया जी ने भी अपना सफरनामा लिखने का अल्पप्रयास किया था पर अतिव्यस्तता के चलते वह इस कार्य में समय न दे पाये।
हम उम्मीद करते हैं की लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की यह परम्परा भी विकसित और पल्लवित होगी। पाठकवर्ग को अपने चहेते लेखकों जीवन के बारे में भी रोचक जानकारी उपलब्ध हो सके।
अगर आपको किसी और लेखक के विषय में जीवनी/आत्मकथा आदि की जानकारी है तो आप हमारे साथ सांझा कीजिएगा।
धन्यवाद।
साहित्य देश
www.sahityadesh@gmail.com
पहले हम जान लें की आत्मकथा (Autobiography) और जीवनी (Biography) में अंतर क्या होता है।
सबसे बड़ा और विशेष अंतर दोनों में यही है की आत्मकथा (Autobiography) लेखक द्वारा स्वयं लिखी जाती है अर्थात् स्वयं के जीवन की कथा स्वयं द्वारा लिखना ही आत्मकथा है।
वहीं जीवनी (Biography) में किसी के जीवन की कथा अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी जाती है।
जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है। जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है। जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी होती है। जीवनी में लेखक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन और यथेष्ट जीवन की जानकारी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है।
साहित्य में आत्मकथा किसी लेखक द्वारा अपने ही जीवन का वर्णन करने वाली कथा को कहते हैं। यह संस्मरण से मिलती-जुलती लेकिन भिन्न है। जहाँ संस्मरण में लेखक अपने आसपास के समाज, परिस्थितियों व अन्य घटनाओं के बारे में लिखता हैं वहाँ आत्मकथा में केन्द्र लेखक स्वयं होता है।
हालांकि दोनों जी अपनी-अपनी विशेषताएं और कमियां है। 'सत्य के साथ मेरे प्रयोग' महात्मा गांधी जी की आत्मकथा है और 'आवारा मसीहा' विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित 'शरतचन्द्र' जी की जीवनी है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में जीवन या आत्मकथा की चर्चा करे तो यहां निराशा ही हाथ लगती है। इस क्षेत्र में असंख्य लेखक हुये लेकिन न तो किसी ने अपनी आत्मकथा न किसी ने जीवनी की तरफ ध्यान दिया।
कुछ लेखकों ने हालांकि थोड़ा बहुत प्रयास किया लेकिन वह भी अव्यवस्थित सा प्रयास है या कह सकते हैं वह उनका संक्षिप्त जीवन परिचय मात्र ही सिद्ध होता है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अगर जीवनी की बात करें तो वह व्यवस्थित रूप से 'कुशवाहा कांत' की जीवनी पढने को मिलती है।
कुशवाहा कांत- ज्वालाप्रसाद केशर |
अब कुशवाहा कांत के जीवन से संबंधित द्वितीय जीवनी कौन सी थी यह तो पता नहीं लेकिन कुशवाहा कांत जी के छोटे भाई जयंत कुशवाहा जी ने भी घोषणा की थी की वह कुशवाहा कांत जी पर एक उपन्यास लिख रहे हैं।
क्या जयंत कुशवाहा द्वारा लिखा गया उपन्यास और द्वितीय जीवनी एक ही है या अलग-अलग यह कुछ भी नहीं कहा का सकता। लेकिन यह निर्विवाद है की लोकप्रिय साहित्य में प्रथम जीवनी कुशवाहा कांत जी की ही थी।
जयंत कुशवाहा जी द्वारा घोषित |
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी की आत्मकथा के दो भाग |
'ना कोई बैरी ना बेगानाा' शीर्षक से वेस्टलैंड पब्लिकेशन सन् 2018 में प्रकाशित हुया था और इसका द्वितीय भाग सन् 2019 में 'हम नहीं चंगे बुरा न कोय' शीर्षक से राजकमल पैपरबैक्स, 2019 प्रकाशित हुआ।
इस आत्मकथा का तृतीय और चतुर्थ भाग आना अभी बाकी है। वैसे इन दो भागों जो पढकर एक तरफ हम जहाँ पाठक जी के आरम्भिक जीवन को समझ सकते हैं वहीं उपन्यास जगत के लेखकों, प्रकाशकों आदि का वर्णन भी दिलचस्प और पठनीय है।
इसके अतिरिक्त जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने उपन्यास 'एक रात का मेहमान' के अंत में 'खुद अपनी नजर में' शीर्षक से अपनी संक्षिप्त आत्मकथा प्रकाशित की थी, जो उनको जानने के लिए काफी उपयोगी था।
खुद अपनी नजर में- ओमप्रकाश शर्मा |
वेद जी का यह छोटा सा प्रयास उनके संघर्ष दिन, परिवार की स्थिति और सफलता के पथ पर बढते समय को अच्छी तरह से चित्रित करने में सक्षम है।
वेद जी परिवार या साथी मित्रों को इस प्रयास को आगे बढाना चाहिए।
उपन्यास साहित्य में सोशल मीडिया के साथ पुनः परिवर्तन आया है। इसी परिवर्तन के साथ-साथ नये और पुराने लेखक भी सक्रिय हुये हैं।
लंबे समय से उपन्यास जगत से दूरी बनाये हुये जादूगर लेखक परशुराम शर्मा जी ने 'कोरे कागज का कत्ल' उपन्यास से पुनः लेखन क्षेत्र में कदम रखा। इस उपन्यास में परशुराम शर्मा जी ने अपना जीवन परिचय भी प्रस्तुत किया है।
गजाला करीम जी की आत्मकथा का एक पृष्ठ |
वहीं लोकप्रिय साहित्य के इनसाइक्लोपीडिया के नाम से प्रसिद्ध आबिद रिजवी साहब ने फेसबुक पर 'मेरा साठ साल का सफरनामा' भी लिखा था जो काफी चर्चित रहा।
वहीं योगेश मित्तल जी ने भी अपने समय को शब्दों नें बांधने का खूबसूरत प्रयास किया है। योगेश मित्तल जी का 'उपन्यास साहित्य का रोचक संसार' आप साहित्य देश ब्लॉग पर भी पढ सकते हैं। (लिंक- उपन्यास साहित्य का रोचक संसार- योगेश मित्तल)
धरम-राकेश नाम के नाम से चर्चित लेखक द्वय में से धरम बारिया जी ने भी अपना सफरनामा लिखने का अल्पप्रयास किया था पर अतिव्यस्तता के चलते वह इस कार्य में समय न दे पाये।
हम उम्मीद करते हैं की लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की यह परम्परा भी विकसित और पल्लवित होगी। पाठकवर्ग को अपने चहेते लेखकों जीवन के बारे में भी रोचक जानकारी उपलब्ध हो सके।
अगर आपको किसी और लेखक के विषय में जीवनी/आत्मकथा आदि की जानकारी है तो आप हमारे साथ सांझा कीजिएगा।
धन्यवाद।
साहित्य देश
www.sahityadesh@gmail.com
रोचक आलेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
हटाएंवाह। बेहतरीन जानकारी। 😊
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
हटाएंBahut hi badhiya aur informative
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राम भाई, बस आपके लेखन का चमत्कार देखना है।
हटाएंBahut he achi jaankari di aapne. Thanks for this.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी।
हटाएंबेहतरीन जानकारी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई।
हटाएंआपके द्वारा किये जा रहे इन प्रयासों के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंSundar
जवाब देंहटाएंSundar
जवाब देंहटाएंबढ़िया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार भाई।
जवाब देंहटाएंशानदार लिखा है आपने।
जवाब देंहटाएंकुशवाह कांत की जीवनी पर भी विस्तार से लिखें। कभी।
हां, अतिशीघ्र।
हटाएंवाह बहुत खूब
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