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रविवार, 10 जुलाई 2022

दिलशाद अली - साक्षात्कार

 मैं हाॅलीवुड को टक्कर देने वाले उपन्यास लिखना चाहता हूँ। 
दिलशाद अली- साक्षात्कार शृंखला- 11
    साहित्य देश की साक्षात्कार शृंखला में 'पहला उपन्यास- पहला साक्षात्कार' में इस बार प्रस्तुत है उत्तरप्रदेश के हापुड़ जिले के निवासी युवा उपन्यासकार दिलशाद अली का साक्षात्कार।
   Flydreams Publication से सन् 2021 में प्रकाशित '
सिटी ऑफ इविल' दिलशाद अली जी का प्रथम उपन्यास है।
1. सर्वप्रथम साहित्य देश की तरफ से आपका हार्दिक स्वागत है। आपके प्रथम उपन्यास 'सिटी ऑफ इविल' के लिए शुभकामनाएं। 
साक्षात्कार  के आरम्भ में हम आपका जीवन परिचय जानना चाहेंगे।
दिलशाद अली-   सर्वप्रथम गुरप्रीत जी का बहुत-बहुत आभार, जिंहोने मुझे इंटरव्यू के लायक समझा। तत्पश्चात साहित्य देश और सभी पाठकों का हृदय से आभार, आपने मुझे एक लेखक के रूप में स्वीकार किया। आशा है आपका प्यार हमेशा यूं ही बरकरार रहेगा। हालांकि अभी तक मेरा पहला नॉवल प्रकाशित हुआ है किन्तु आपके प्यार ने मुझे नए लेखक का एहसास नहीं होने दिया। आपके प्यार की बदौलत मैं लिख रहा हूँ और लिखता रहूँगा।मेरा नाम दिलशाद आली है और मैं उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले से हूँ। मैं पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ बी.एड. किए हूँ।

2. वर्तमान इंटरनेट के समय में जब लोगों का मनोरंजन का माध्यम बदल गया है तो ऐसे समय में आप में साहित्य प्रेम जागृत कैसे हो गया?
दिलशाद अली-   एक समय था जब लोगों के पास मनोरंजन के लिए सीमित साधन उपलब्ध थे। सीमित साधनों के चलते लोगों की ज़िंदगी बेहतर और मनोरंजकपूर्ण बीत रही थी। 90 का समय क्या समय था, अगर किसी 90 के दशक जीने वाले से पूछे तो लोग दांतों तले अंगुलिया दबाकर वाकया सुनेंगे। उन्ही साधनों में साहित्य या फिर कहें लुगदी भी था। 90 के समय तक साहित्य अपने चरम पर था। 90 के समय तक अनेक लेखक उभरे। और फिर आया आधुनिकता का समय। मोबाइल और टीवी ही ने सभी मनोरंजन की कमर तोड़ दी। लोग जैसे जीना भूल गए। जीना चाहते हैं लेकिन जी नही पा रहे। कैसे जिये क्योंकि वो अब आधुनिकता की कैद में जो हैं।
    इसी के चलते साहित्य प्रेम भी आधुनिकता की चपेट में आ गया। मनोरंजन के साधन अत्यधिक थे तो साहित्य पर कौन समय देता। खैर, जो साहित्य जुनूनी थे उन्हें आधुनिकता जकड़ नहीं पायी। अनेक लेखकों, प्रकाशकों और आप जैसे लोगों ने साहित्य को जिंदा रखा। सेवा करते रहे। उसका फल यह है कि मोबाइल की कैद में रहने वाले भी आज किताबों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। उसी जुनून में मैं भी था। मैंने किताबें पढ़नी कभी नहीं छोड़ी। मन में एक जुनून था लिखने का जो अब जाकर पूरा हुआ।
3. किन- किन लेखकों से आप प्रेरित रहे, किन को ज्यादा पढा और उनमें क्या विशेष लगा?
दिलशाद अली-    मैंने लगभग सभी लेखकों को पढ़ा है। अपने जमाने के लुगदी साहित्य से पढ़ा। लेकिन ज़्यादातर मैंने वेद प्रकाश जी, अनिल मोहन जी, सुरेन्द्र मोहन पाठक जी, जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी को पढ़ा। आज भी अन्य लेखकों को पढ़ रहा हूँ। नयें लेखकों को भी पढ़ रहा हूँ जो अलग हटकर बहुत कुछ करने का दम रखते हैं। विशेषता की बात की जाये तो हर लेखक में अपनी विशेषता होती है। वेद जी की विशेषता थी वो पाठकों को इस तरह बांध देते थे कि नॉवल बिना पूरा किये उठ नहीं पाते थे। मुझे आज भी याद है अगर मेरा नॉवल अधूरा रह जाता था तो मैं बैचेन हो उठता था। रातों को कल्पना करता था उसका अंत कैसा होगा। 

4. आपने अपना प्रथम उपन्यास ही जाॅम्बी टाइप रक्तपिपाशु लोगों पर लिखा, यह विचार कैसे आया? मेरे विचार से हिंदी साहित्य में ऐसे उपन्यास न के बराबर ही हैं।

दिलशाद अली-    मैंने हर जेनर के नॉवल पढे। मैंने सोचा अगर मैं कुछ लिखुंगा तो अलग ही हटकर लिखुंगा। बचपन से ही मुझे फिल्मे देखने का शौक था। ज्यादा प्रभावित मैं हॉलीवुड मूवी से हुआ और अभी भी हूँ। तो मैंने भी हॉलीवुड की तर्ज पर लिखने की सोची। मुझे ख्याल आया कि क्यों न भारत में भी हॉलीवुड की तरह कहानियाँ हो और उस पर फिल्में बने। जिससे बाहर देश के लोग भी भारत का लोहा माने। मेरा इरादा यही है कि मैं ज़्यादातर नॉवल हॉलीवुड मूवी को टक्कर देने के लिए ही लिखुंगा।

इसलिए मेरे दिमाग में सबसे पहले 'सिटी ऑफ इविल' लिखने का आइडिया आया। कह सकते हो कि मुझे 'सिटी ऑफ इविल' लिखने का आइडिया हॉलीवुड मूवी से आया।

5. प्रथम उपन्यास 'सिटी ऑफ इविल' के प्रकाशन पश्चात आपकी, परिवार और पाठकों की क्या प्रतिक्रिया रही? जब स्वयं की रचना प्रकाशित होती है तो एक अलग ही अनुभव होता है, वह अनुभव शेयर कीजिएगा।

दिलशाद अली-     मेरा पहला नॉवल 'सिटी ऑफ इविल' फ्लायड्रीम पब्लिकेशन से था। जब जयंत जी ने बताया आपका नॉवल हमारे पास आ गया है और जल्द ही आपको मिलेगा। मुझे विश्वास ही नही हो रहा था कि मेरा लिखा नॉवल आ चुका है और मेरे हाथों में आने वाला है। उससे पहले मेरे दोस्तों और पाठकों तक नॉवल पहुँच रहा था। मैं देखकर बेहद खुश हो रहा था। भला एक लेखक क्यों खुश न हो। और जब मेरे पास मेरा नॉवल पहुंचा तो देर तक मैं नॉवल को पकड़े निहारता रहा। कभी खोलता तो कभी बंद करता कभी पढ़ता तो कभी उसका फोटो खींचता। यह एहसास खुशी से लबालब भरा था।

दोस्तों की बात की जाये तो वो मुझसे भी ज्यादा खुश थे। नॉवल आने के बाद तो वो मुझे दिलशाद लेखक या लेखक साहब कहकर पुकारने लगे हैं। बहुत खुशी होती है।

6. वर्तमान में हार्डकाॅपी रचना प्रकाशन भी एक जटिल प्रक्रिया है। पाठक कम हैं, तो प्रकाशक संस्थान भी ज्यादा रिस्क नहीं लेते, आपके क्या अनुभव रहे, प्रथम उपन्यास प्रकाशन पर?

दिलशाद अली-     हाँ, यह सवाल सही है। साहित्य दौर अभी ऊपर उठना शुरू हुआ है। यानि साहित्य का स्तर इतना भी नही उठा है कि लेखक गर्व से कह सके उसकी इतनी कॉपी बिक गयी हैं। इतना जरूर हुआ है सालों पहले जो स्तर खत्म हो चुका था वापस आने को बेताब हुआ है। आज के लोग किताब से पहले सिनेमा, मोबाइल या अन्य साधन में खर्च करना पसंद करते हैं। इसीलिए प्रकाशक हर किसी पर रिस्क उठाना पसंद नही करता। इसके चलते लेखक सेल्फ पब्लिकेशन की तरफ भागते हैं या फिर प्रकाशन कराने के लिए जद्दोजहद करते रहते हैं।

लेकिन मेरे साथ ऐसा नही हुआ। मेरा नसीब अच्छा था। शुरुआत में ही मुझे फ्लायड्रीम पब्लिकेशन मिला। मैं अपने आपको बहुत सौभाग्यशाली मानता हूँ जो बिना संघर्ष के पहला नॉवल प्रकाशित करा सका। इसके लिए सारा श्रेय फ्लायड्रीम पब्लिकेशन को जाता है।

07. 'सिटी ऑफ इविल' का द्वितीय भाग कब तक प्रकाशित होगा और भविष्य में आपके और कौन कौन से उपन्यास आने वाले हैं?

दिलशाद अली-  हाँ, मानता हूँ 'सिटी ऑफ एविल' के दूसरे भाग के आने में लंबा समय लग गया है। मैंने कहानी लिख तो ली थी। फिर मुझे ख्याल आया कि पाठक को ज्यादा लंबा इंतजार नहीं कराना चाहिए। गलती तो हो ही चुकी थी इसलिए मैंने वह कहानी प्रकाशित कराने से रोक दी। क्योंकि उसका तीसरा भाग भी आना था। मैंने सोचा क्यों न दूसरा और तीसरा पार्ट का चक्कर ही खत्म कर दिया जाये और फाइनल ही पार्ट निकालकर कहानी को समाप्त कर दिया जाये। उसके चक्कर में मुझे लंबा समय लगा। कहानी मुझे बेहतर लिखनी थी और ढेरों सवालों को भी पूरा करना था। पाठकों को बता दूँ मैंने 'सिटी ऑफ एविल' की फाइनल कहानी पूरी कर दी है। इसी साल में पाठक उसे पढ़ सकते हैं। समय तो लगा लेकिन उम्मीद से भी बेहतर बन पड़ा है।

मेरा दूसरा नॉवल ‘युगांतर एक प्रेम कथा’ शब्दगाथा प्रकाशन से आ रहा है। युगांतर की कहानी के लिए मैंने बहुत मेहनत की है। यकीन मानना जब आप एक बार उसका अंत करेंगे तो शायद आपकी फेवरेट नॉवल बन जाएगी। युगांतर साईस फिक्सन, थ्रिल, सस्पेंस और रोमांस सब कुछ समेटे हुए है। जुलाई 2022 के अंत तक आपके हाथों में होगी।

तीसरा नोवल 'सिटी ऑफ एविल' फाइलन कहानी के साथ आपको मिलेगा।

अगला नॉवल ‘लिमिट ऑफ लव’ पूरा हो चुका है। वह भी जल्द ही आपको मिलेगा। यह नॉवल मर्डर-मिस्ट्री की चाशनी में डूबा मिलेगा।

08. आपका नया उपन्यास 'युगांतर' आ रहा है, पाठकों में भी उसकी काफी चर्चा है। क्या आप अपने पाठकों के साथ युगांतर के विषय में कुछ चर्चा करना चाहेंगे?

दिलशाद अली- युगांतर प्री ऑर्डर पर लगाया गया था। पाठकों की शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है। कुछ दृश्यों को पढ़कर ही पाठक नाॅवल की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। कहानी की बात करें तो युगांतर की कहानी एक लड़के से शुरू होती है जो अपनी पुरानी स्मृति खो चुका है। स्वयं को खोजते हुए वह एक लड़की से टकराता है, इत्तेफाकन लड़की भी स्वयं के बारे में ही खोज रही होती है। वह भी पुरानी यादों को भूल चुकी होती है। इसी दौरान मेले में दोनों एक बूढ़े से मिलते हैं। बूढ़ा दोनों को देखकर चौंक जाता है। वह कहता है उसने बचपन में दोनों को देखा था। दोनों उसकी दुकान पर आते थे। बूढ़े को आश्चर्य होता है कि वह बूढ़े क्यों नहीं हुए। वह पूछता भी है कि क्या तुम उन दोनों की संतान हो। बूढ़ा इससे ज्यादा कुछ नहीं जानता था। तब वो एक गिरोह के चंगुल में जा फंसते हैं। गिरोह के सभी सदस्य उन्हें नहीं जानते केवल एक को छोड़कर। वह दोनों को देखकर कांप जाता है। उसे यकीन नही हो पाता कि बचपन में दोनों ने हम सबको तबियत से धोया था। गोली भी लड़के का कुछ नही बिगाड़ पाई थी। यह जान लड़का और लड़की चौंक जाते हैं। ढेरों रहस्यों के जवाब आपको मिलेंगे 'युगांतर- एक प्रेम कहानी'- में जो आपको शुरू से अंत तक बांधे रखेंगे। आपने शायद ऐसा नाॅवल कभी न पढ़ा हो।

10. क्या कारण है आपने फ्लाईड्रिम्स पब्लिकेशन से शब्दगाथा प्रकाशन का रुख किया?

दिलशाद अली- ऐसा नहीं है कि मैने फ्लाइड्रीम छोड़ दिया। मेरे पास कई प्रोजेक्ट पड़े थे। मैने सोचा कि मुझे एक साल में कई नाॅवल निकालने हैं तो फ्लाइड्रीम के साथ अन्य का सहारा लेना होगा। यह बात मैने जयंत जी और गुप्ता जी को बताई। वो बोले आप दूसरी तरफ से भी प्रकाशित करा सकते हो। इसलिए मैने शब्दगाथा पब्लिकेशन की तरफ रुख किया। फ्लाइड्रीम ने मेरे सपने पूरे किए। मुझे लेखक बनाया इसलिए उसे छोड़ने का विचार तो मैं कर ही नहीं सकता। आप जल्द ही मेरा नाॅवल सिटी ऑफ इविल का दूसरा और फाइनल पार्ट पढ़ेंगे जो फ्लाइड्रीम से ही आएगा। 11. वर्तमान में किताबों के क ई रूप सामने आ रहे हैं, जैसे पुस्तक हार्डकाॅपी, eBook और ऑडियो बुक्स आप का इन विभिन्न माध्यमों के प्रति क्या विचार है?

दिलशाद अली- वर्तमान में साहित्य पुनः पटरी पर आता दिखाई दे रहा है किंतु ऐसा भी नहीं है है जैसा बीते समय में था। क्योंकि महंगाई और समय की मांग के आगे अभी भी पाठक उस लाइन को पकड़ने में पीछे हैं। फिर भी आशा है बीता समय कुछ तो वापस आ रहा है और शायद वही समय आ जाए। फिर लगता है उलझन भरी और भागदौड़ भरी जिंदगी में नामुमकिन सा लगता है। समय की मांग के साथ साहित्य ने भी अपना मार्ग ढूंढा है जैसे ईबुक्स और ऑडियो बुक्स। पाठक सरलतापूर्वक महंगाई से बचते हुए साहित्य से जुड़ सकते हैं। मेरा मत है ईबुक्स और ऑडियो बुक्स ही सबसे ज्यादा प्रचलन में आने वाला है। क्योंकि मोबाइल जिंदगी का हिस्सा बन चुका है जो हार्ड कॉपी को अपनाने में अभी पीछे है। जबकि ईबुक्स और ऑडियो बुक्स कभी भी कहीं भी प्रयोग कर सकते हैं और कर रहे हैं। पाठकों की बहुत बड़ी संख्या इस साधन की तरफ रुख किए हुए है और आने वाले पाठक भी इससे जुड़े बिना नहीं रह सकते। मैं तो यही कहूंगा इसके बिना अब शायद साहित्य आगे बढ़ नहीं पाएगा। साहित्य को ऊंचाई पर पहंचाने में अन्य साधन महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं

11. अपने पाठकों और साहित्य देश ब्लॉग के लिए कोई संदेश/ दो शब्द। 

दिलशाद अली- एक लेखक के लिए पाठक ही सब कुछ होता है। अगर पाठक ही न हो तो लेखक लेखक ही न रहेगा। मैं सौभाग्य शाली हूँ कि मुझे पाठक मिले। एक से बढ़कर एक पाठक मिले। पाठकों से यही कहना चाहूँगा आपका प्यार इसी तरह मुझे मिलता रहे।

और अंत में अपने सभी पाठकों, गुरप्रीत जी और साहित्य देश को प्यार भरा धन्यवाद।

अन्य महत्वपूर्ण लिंक-

समीक्षा- सिटी ऑफ एविल

लेखक परिचय- दिलशाद अली

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