नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेला-2019
विश्व पुस्तक मेले में पहुंचने का यह मेरा पहला अवसर है। ख्वाहिश एक लंबे समय से थी, जिसे पुस्तकों से प्रेम है, वह हर पाठक इस मेले में आना चाहता है। मेरा भी यह स्वप्न था। जो आज 06.01.2019 को पूरा हो गया।
जब यह सूचना मिली की आदरणीय वेदप्रकाश कंबोज जी के उपन्यास 'दांव खेल, पासे पलट गये' का विमोचन है तभी यह तय कर लिया था की इस बार पुस्तक मेले में अवश्य जाना है। मेशु भाई के आमंत्रण और हरियाणा के मित्र राममेहर और बबलू जाखड़ के निवेदन को कहां तक टाला जा सकता था।
विश्व पुस्तक मेले का आयोजन प्रगति मैदान में किया जाता है। यह अफ्रो-एशिया का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है। इसमें 25 देशों के प्रकाशक शामिल हैं। छोटे से छोटे प्रकाशक से लेकर बड़े से बड़ा प्रकाशक विश्व पुस्तक मेले में अपनी उपस्थित दर्ज करवा ही देता है।
वेदप्रकाश कंबोज जी के उपन्यास 'दाव-खेल','पासे पलग गये' नामक दो उपन्यासों के संयुक्त संस्करण का विमोचन गुल्ली बाबा पब्लिकेशन के स्टाल (हाॅल 11, स्टाल-336) पर दो बजे था।
मैं और बबलू जाखड़ दरियागंज के रविवार को लगने वाले पुस्तक बाजार से होकर ही प्रगति मैदान पहुंचे थे। अगर कम मूल्य पर किताबें चाहिए तो दरियागंज जैसा विकल्प बहुत अच्छा है। यहाँ से साहित्यिक और जासूसी उपन्यास काफी मात्र में मिल गये थे।
दरियागंज का पुस्तक बाजार |
हम जब विमोचन समारोह में पहुंचे तब कार्यक्रम आरम्भ था। काफी मित्र और परिचित गुल्ली बाबा की स्टाॅल पर उपस्थित थे। वेदप्रकाश कंबोज जी के उपन्यास का विमोचन गुल्ली बाबा पब्लिकेशन के CEO दिनेश जी ने किया।
वेदप्रकाश कंबोज जी के उपन्यास का विमोचन |
वेदप्रकाश कंबोज जी के साथ |
राम पुजारी जी के दो उपन्यास 'लव जिहाद...एक चिड़िया' और 'दामिनी...अधूरा इंसाफ' की रिलाॅचिंग आदरणीय वेदप्रकाश कंबोज के हाथों हुयी। एंकर का कार्य दोनों समय प्रवीण आजाद जी ने ही संभाला।
इस समय आबिद रिजवी ने राम पुजारी जी के उपन्यासों की सारगर्भित व्याख्याता करते हुए कहा.....'नयी पीढी के लेखकों में राम पुजारी एक ऐसा नाम है जिन्होंने सामाजिक समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा है। महिला सशक्तिकरण ले लिए इन्होंने अपने उपन्यासों में जो आवाज बुलंद की है उसकी मैं तारीफ करता हूँ। इन्होंने महिलाओं के भावों की अभिव्यक्ति अपने इन दोनों उपन्यासों 'लव जिहाद...', और 'दामिनी...एक अधूरा इंसाफ' में दिखाया है जो आज हमारे समाज की परिस्थितियाँ हैं, हमारे पुरुष प्रधान समाज की जो परिस्थितियाँ हैं, उसके बारे में इन्होंने एक प्रश्न चिह्न छोड़ा है की आज भी नारी के साथ अधूरा इंसाफ होता है, आ भी लव जिहाद के नाम पर उसका शोषण होता है। यह आवाज सिर्फ राम पुजारी के ही नहीं बल्कि महिला सशक्तिकरण की आवाज है। मैं इस विमोचन के अवसर पर उनको साधुवाद देता हूँ।'
राम पुजारी जी के उपन्यासों का विमोचन |
वेदप्रकाश कंबोज जी के उपन्यास विमोचन पर उनके पाठकों का एकत्र होना, वास्तव में बहुत अच्छा। वेदप्रकाश कंबोज जी की किसी पुस्तक का विश्व पुस्तक मेले में यह प्रथम विमोचन भी है। एक लंबे दौर के पश्चात एक लेखक के पाठकों का यूं किसी समारोह में एकत्र होना उपन्यास जगत के लिए एक सुखद संकेत है। सुखद संकेत यह भी है की जासूसी उपन्यास भी अब अच्छे कलेवर के साथ अच्छे प्रकाशन संस्थानों से प्रकाशित हो रहे हैं।
यहाँ मात्र पाठक भी नहीं, नये और पुराने समय के उपन्यास लेखक भी एकत्र हुए। लेखक रजत राजवंशी(योगेश मित्तल), सुरेन्द्र मोहन पाठक जी, परशुराम शर्मा, धरम बारिया (धरम-राकेश जोड़ी वाले), आबिद रिजवी जी, रमाकांत मिश्र, इकराम फरीदी जी। पाठकों की बात करें तो भोपाल से बलविन्द्र सिंह जी, लखनऊ से उमाकांत पाण्डे जी, दिल्ली से महिला पाठक तन्वी पारीक, डाॅली रानी जी, शिखा अग्रवाल जी, दिनेश कुमार जी, शशि भूषण जी, गुरप्रीत सिंह GP, राजीव रोशन, मनेष जैन (रवि पॉकेट बुक्स), अभिराज ठाकुर, आदित्य वत्स जी, प्रभाकर विश्वकर्मा, वेदप्रकाश कंबोज जी के पुत्र मेशु जी और संजय कंबोज जी। अभी भी कुछ साथी मित्रों के नाम रह गये होंगे।
यहाँ मित्रों से अलग होने का मन तो नहीं कर रहा था लेकिन अभी पूरा पुस्तक मेला बाकी था। कभी बबलू भाई यहाँ से निकलने की बात करते तो मैं और राम भाई गायब हो जाते, कभी मैं बोलता की भाई चलो तो बबलू भाई किसी मित्र से बात करने में व्यस्त हो जाते। राममेहर जी तो यहाँ से टल ही नहीं रहे थे। यहाँ एक पारिवारिक माहौल था, रोचक किस्से थे, अपनापन था, आखिर किसका मन करता यहाँ से निकलने को।
हाॅल नंबर 12 में 'राॅक पिजन पब्लिकेशन' के स्टाॅल पर सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' जी से भी मिलना हो गया। सहर जी की किताब 'रावायण' इन दिनों खूब चर्चा में है। वहीं पर प्रतिमा जायसवाल जी भी उपस्थित थी। प्रतिमा जी का कहानी संग्रह 'सत्यनाशी' का जिक्र भी कई बार सुना था। अब दोनों किताबें लेखकों के हस्ताक्षर के साथ हमारी संपत्ति हो गयी।
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' और प्रतिमा जायसवाल जी के साथ |
प्रतिमा जी और सिद्धार्थ अरोड़ा जी से मुलाकात चाहे संक्षिप्त रही लेकिन इस दौरान साहित्य और फिल्मों पर सार्थक चर्चा अवश्य की। दोनों लेखक मृदुल स्वभाव के हैं। राममेहर भाई को वहीं छोड़ कर मैं और बललू जाखड़ अन्य प्रकाशकों की स्टाॅल पर निकल पडे़। 'ज्ञानपीठ प्रकाशन' से 'नया ज्ञानोदय' का एक अंक लिया तब राममेहर भाई आकर बबलू जाखड़ को ले गये। मैं 'ज्ञानपीठ' से निकला तो दोनों गायब। कमाल है बंदे की....दोनों जनाब 'हिन्द युग्म' पर 'डाॅर्क हाॅर्स' के लेखक नीलोत्पल मृणाल के साथ 'सेल्फी' ले रहे हैं। मैं घूमता- ढूंढता हुआ जब हिन्द युग्म के स्टाॅल पर पहुंचा वहाँ न राममेहर भाई हैं, न बबलू जाखड़ और न ही नीलोत्पल मृणाल। सब गायब....मुझे एक दो किताबें खरीदनी थी। रुपये मेरे बैग में थे और बैग मेरा 'राॅक पिजन' की स्टाॅल पर था।
हिन्द युग्म के वहाँ एक सज्जन को घेरे चार-पांच युवक- युवतियां बैठे। सज्जन पता नहीं क्यों 'योग' की धज्जियां उड़ा रहे थे। बता रहे थे योग का कोई फायदा नहीं है, सब दिखावा है। श्रोता बहुत गौर सुन रहे थे, बस एक मैं ही न श्रवण न कर सका। वापस लौट आया।
राममेहर भाई के मन-मस्तिष्क में एक और किताब आयी। शेर सिंह राणा की किताब 'जेल डायरी'। फूलन देवी का हत्यारा, तिहाड़ जेल से फरार, काबुल से पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ लाने वाला शेर सिंह राणा। गूगल पर सर्च किया तो पता चला यह 'हाॅर्पर काॅलिस पब्लिकेशन' की किताब है।
अब इतने बड़े मेले में हाॅर्पर काॅलिंस को कहां ढूंढे भाई। पूछताछ केन्द्र से पता किया। हाॅल नंबर सात में हाॅर्पर वालों की स्टाल है।
हमारे तीनों के पास जो बैग से थे वो किताबों से भरे हुए थे। एक अलग से और बैग था जिसे हम दो आदमी उठाकर चल रहे थे। थकान और भीड़ के कारण बहुत जोर से सिरदर्द था। राममेहर भाई का सर्दी के कारण बहुत बुरा हाल था। एक जगह पर तीनों ने बैठ कर काॅफी पी। काॅफी का तो बस नाम था, था तो वह गर्म पानी। नीरस गर्म पानी। अतिरिक्त शुगर ने भी रस न दिया।
"भाई क्या लाया है ये। बाहर कहीं चलते आराम से देशी चाय पीते।"
"भाई यहाँ तो यही मिलेगी, महंगी और बेस्वाद।"
"चलो, एक बार तो राहत मिली।"
हाॅल नंबर सात में जाकर पता चला की वहाँ सिर्फ बच्चों की किताबें हैं। हार्पर कालिंस की दूसरी स्टाॅल हाॅल नंबर 11 में है। जहां से सुबह मेले की शुरुआत की वहीं पर समापन भी। हाॅल नंबर 11 से हाॅल नंबर 11 तक।
बबलू भाई को कुछ अर्थशास्त्र की किताबों की जरुरत थी। बबलू भाई वर्तमान में Phd. कर रहे हैं, विषय की कुछ अच्छी पुस्तकें उनको चाहिए।
मेले में हमने ने गुल्ली बाबा पब्लिकेशन, मंजुल, बोधि, ज्ञानपीठ, राॅक पिजन, हिन्द पॉकेट बुक्स, हिन्दी युग्म, वाणी प्रकाशन, हार्पर काॅलिंस, प्रभात, सस्ता साहित्य, जैसे असख्य पब्लिनेशन पर घूमते हुए विभिन्न किताबों की खरीददारी की।
पुस्तक मेले में आपके पास बहुत से विकल्प है, विभिन्न प्रकार की पुस्तकें आपको यहाँ से उपलब्ध हो सकती हैं। पुस्तकों का जो संसार यहाँ फैला है वह स्वयं में अद्वितीय है। प्रत्येक स्टाॅल पर आपको कोई न कोई ऐसी पुस्तक मिल ही जायेगी को आपको आकृष्ट करेगी या आप स्वयं उसकी तलाश में होंगे, ऐसी किताबें भी आपको दिखाई दे जायेगी जिनका आपने कभी नाम नहीं सुना लेकिन वह भी आपको प्रभावित करेंगी।
मैंने वेदप्रकाश कंबोज जी का उपन्यास 'दांव खेल, पासे पलट गये', रामपुजारी का 'दामिनी...एक अधूरा इंसाफ', सिद्धार्थ अरोड़ा का 'रावायण', प्रतिमा जायसवाल का कहानी संग्रह 'सत्यनाशी', भगत सिंह की अमर कृति 'मैं नास्तिक क्यों हूँ'। धार्मिक साहित्य में महिप सिंह का 'आदिग्रंथ', दयानंद सरस्वती कृत 'सत्यार्थ प्रकाश' और एक पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' ली। इसके अलावा दरियागंज बाहर से खरीदी गयी किताबों का एक बैग पहले से ही कमर दर्द दे रहा था।
सात बजे के लगभग पुस्तक मेले से बाहर निकल कर देशी चाय का आनंद लिया। चाहे वही जो मन को भाये, वही असली आनंद देती है।
राममेहर भाई और बबलू जाखड़ की ट्रेन निकल गयी थी। इसलिए वे दिल्ली में ही रुक गये और मैं सराय रोहिल्ला रेल्वे स्टेशन को निकल गया। जहाँ मेरी ट्रेन और साथी इंतजार कर रहे थे।
नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेला-2019 और साथी मित्र, लेखकों-पाठकों ले साथ बिताये ये पल हमेशा याद रहेंगे।
Guru bhao chha gye aap to, paini drishti aur, sankshep sab kuch bta diya... Wah wah...
जवाब देंहटाएंBahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर विमेचना गुरुप्रीत भाई, जहाँ चार यार मिल जायें वहीं दिन दे गुजार । और जहाँ एक शगल के सैकड़ों मित्र हों वहाँ क्या कहने , मित्रों और किताबों का प्यार खींच लाया था हमें 06-012019 को प्रगति मैदान के पुस्तक मेले में । तो एक बार फिर मैं जा रहा हूँ उसी पुस्तक मेले में कुछ नये दोस्तों से मिलने और कुछ नई किताबों को अपनी धरोहर बनाने को 13-01-2019 को दुबारा......
जवाब देंहटाएंदिनेश कुमार✍️
अरे भाई बहूत खूब लिखा
जवाब देंहटाएंएक बार फिर पूरा माहौल ही जीवन्त बना दिया अपने।
ये सफर तो चलते ही रहना है।
जहां किताबें हो वहां पहुचना अपने लिए तो बहुत ही रोचक रहेगा।
हमने तो अगले दिन राम भाई के
अंगूरीबाग में भी कई बुकसेलर व डिस्ट्रीब्यूटर से मिले थे किताबें भी खूब मिल गयी थी।
सुंदर जीवंत विवरण।
जवाब देंहटाएंशानदार तस्वीरों के साथ बेहतरीन पुस्तक मेला वर्णन। योग को बुराभला कहने वाले सज्जन को दो चार सुना देते तो और बढ़िया होता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और जीवंत वर्णन किया है आपने। काफी नगीने भी ले लिये।
जवाब देंहटाएंWah sir.muje bhi kamalkant ke novels chahiye.mil nhi rhe hai...
जवाब देंहटाएं........
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