अब उसके लिये कत्ल करना बहुत जरूरी हो गया था...इस ताबड़तोड़ भयानक घटनाचक्र में यही एकमात्र उसके बचाव का मार्ग रह गया था।
अपने अँधेरे कमरे में वह बड़ी देर से
इन्हीं विचारों के बवंडर में इधर-उधर घूमे जा रहा था। अपने तीव्र मानसिक तनाव में
वह कमरे की बत्ती जलाना भी भूल गया था। एकाकीपन तथा घना अँधेरा मन को और भी विचलित
कर देता है।
तनाव में इधर से उधर और उधर से इधर चलते हुये वह सिगरेट पर सिगरेट फूँके जा रहा था। उसके मस्तिष्क में सुधा के वाक्य गूँज-गूँज कर प्रलय मचा रहे थे।
29 दिसम्बर की रात - विक्की आनंद |
“केवल चौबीस घण्टे...इससे
अधिक समय मैं तुम्हें नहीं दे सकती।”
“मेरे पेट में पनप रहा
तुम्हारा बच्चा- अब मुझे कुलबुलाता अनुभव हो रहा है।”
उसने सुधा से आँख न मिलाते हुये कहा-
“अगर मैं इसे अपनी भूल
स्वीकार करने से इन्कार कर दूं तो?”
और सुधा की प्रतिक्रिया...वह तेजी से चीखकर बोली
थी,-“इतना साहस है तुम में?”
“विवशता इंसान से सब कुछ
करा लेती है।”
इस पर वह और भी भड़क उठी
थी- “विवशता? कैसी विवशता? बड़ा आसान होता है, तुम जैसे नीच आदमियों के लिये किसी
मासूम की इज्जत से खिलवाड़ करना और फिर उसे दुत्कार देना।”
“मुझे समझने का प्रयत्न
करो सुधा।”- उसने तर्क से सुधा को समझाना चाहा था-“बिना घर वालों की अनुमति से
छुपकर तुमसे शादी कर लेने से मैं बपौती की धनसम्पत्ति से वंचित हो जाऊँगा। मुझे
परिस्थियों को सुधारने का समय दो...मेरी बात मानो सुधा डीयर...`एबॉर्शन` के बाद
धीरे-धीरे....।”
“कदापि नहीं...यह तुम्हें
पहले सोचना चाहिये था। अब मैं एक भी शब्द नहीं सुनूंगी।”
“मुझे
नहीं मालूम था कि तुम इतनी तेज और हट्ठी होगी।”
सुधा खूंखार नजरों से उसे
देखती रही। फिर फट पड़ी थी- “ढोंगी, स्वार्थी मुझे कलंकित करके तू कहां जा सकता
है। मैं तुम्हें दुनियाभर में नंगा कर दूंगी...तू किसी को मुँह दिखाने योग्य नहीं
रहेगा।”
“क्या करोगी?”
“पुलिस
में रिपोर्ट...जबरदस्ती करने की, बलात्कार की।”- वह हाँफती हुयी बोली।
“बहुत
ऊँचा मत उड़ो सुधा, स्वयं अपने पँख जला लोगी।”
सुधा
कुछ नहीं बोली, तेजी से बाहर की ओर बढी।
वह गुस्से में खड़ा था, बोला-“तो क्या यह
तुम्हारा अंतिम फैसला है?”
“बिलकुल
अंतिम।”- यह कहकर सुधा बाहर निकल गयी थी।
अब
वह दिल ही दिल खौलता तपता रहा, असंमजस में डूबा बाहर और भीतर के अँधेरों में खोया
भटका सा इस सीमित चारदीवारी में घूम रहा था। प्रतिक्षण उसकी व्याकुलता बढती ही जा
रही थी। फिर एकाएक झटके से रुककर अपने सिर को इस प्रकार दबा लिया कि अगर वह इसे न
दबाता तो इस कोलाहल से उसके सिर के परखच्चे उड़ जाते।
फिर
वह गहरी -गहरी सांसे लेने लगा।
चंद
क्षण बाद निरुपाय स्वर में बड़बड़ाया-
“हाँ।
अब यह कत्ल मेरे लिये बहुत जरूरी हो गया है। ओ मुर्ख सुधा...तेरा दुख दूर भी हो
जायेगा। और मेरी चिंताओं का भी अंत। कल मैं तुझे आखिरी बार कार में बिठाकर डॉक्टर
पद्मवती के क्लिनिक की ओर ले जाऊंगा। यह
एक नाटक मात्र होगा...कार तेजी से आगे बढ जायेगी...सुनसान रास्ते में कहीं पर मौत
तेरी प्रतिक्षा में होगी। फिर दूर तक फैले हाइवे के दोनों और फैले जंगल में तेरी
लाश को किसी गड्ढे में फेंककर सुखी घास पत्तों से ढक कर मैं साफ बचकर निकल जाऊंगा।
कानून के हाथ कभी मुझ तक नहीं पहुँच पायेंगे। बस मेरे पास इन लम्बे हाथों में तेरी
कोंमल गरदन दबाने की क्रिया रह जायेगी...नहीं गरदन नहीं, छहः गोलियां...पूरी छहः
तेरे अंग-अंग को छेद देगी....सुधा उल्लू की पट्ठी तूने स्वयं मौत को बुला लिया है।
मेरा क्या दोष?”
बड़बड़ाता
हुआ वह गहरी -गहरी सांसें लेने लगा। वह यह निर्णय न ले लेता तो स्वयं उसकी धड़कनें
बंद हो जाती।
......................................
कड़ाके
की ठण्ड थी। रात के आठ बजने वाले थे, मगर लगता था जैसे आधी रात का समय हो। शहर के
पूर्वी छोर की अंतिम नयी कॉलोनी विश्वास नगर कुहरे और गहरे सन्नाटे में डूबी हुयी
थी। सड़क के दोनों ओर शानदार कोठियों में से बसूरती हुयी रोशनियां झांक रही थी।
फुटपाथ पर सिर झुकाये हुयी सी लैम्पपोस्टों का प्रकाश गहरी धुंधली परत को पार नहीं
कर पा रहा था। अधिक दुकानें बंद हो चुकी थी, जो एकआध खुली थी वह भी जंगल में किसी
सुनसान झोपड़ी की तरह लग रही थी।
ऐसे
में डॉक्टर पद्मावती के क्लिनिक के सामने वाले फुटपाथ से लगी एक गहरे ब्राउन रंग
की मारुति कार खड़ी थी। लैम्पपोस्ट के धुंधले प्रकाश में ऐसा लग रहा था जैसे कार
की अगली सीट पर एक औरत और एक मर्द बैठे हैं। कार लगभग आधे घण्टे से वहीं खड़ी थी।
थोड़े-थोड़े समय पर सिर झटकने के ढंग से प्रतीत होता था कि दोनों किसी बात पर झगड़
रहे हैं।
फुटपाथ
के निकट के कुछ दुकानदारों को उनकी बातें करने का ढंग बड़ा रहस्यमयी सा लग रहा था।
कार की सीलिंग लाइट ऑफ थी। पास से कभी कभार गुजरने वाली किसी कार की लाईट से क्षण
भर के लिये नजर आता कि लड़की जवान थी। उसने कोट पहन रखा था और उसका सिर फूलदार
स्कार्फ से ढका हुआ था। मर्द ने अलास्टर पहन रखा था। सिर पर फैल्ट हैट था जिसका
अगला सिरा झुका हुआ था, जिससे थोड़ा सा चेहरा ही दिखाई देता था जो भरा-भरा और लाल
था। वह निरंतर सिगरेट पिये जा रहा था। बीच-बीच में सिगरेट का कश लेते-लेते वह
रहस्यमयी ढंग से रुक जाता था। जब गाड़ी गुजर जाती तो बातें फिर आरम्भ हो जाती।
गुजरती कारों की रोशनी से कार की नम्बर प्लेट देखी पढी जा सकती थी। कार का नम्बर
था डी.एच. डी. 4844.
उधर कार में बैठे औरत और मर्द में तकरार चल रही थी।
“तो
जैसा मैं कहता हूँ तुम वह नहीं करोगी?”- मर्द की आवाज में रौब था,-“तुम सामने
क्लिनिक में चली जाओ सब ठीक हो जायेगा। डॉक्टर पद्मावती कोई पूछताछ नहीं करेगी।
उसे केवल पैसे चाहिये। कोई कुछ जान पायेगा।”
“नहीं...।”-
लड़की का स्वर दृढ और तेज था,-“मैं गर्भपात नहीं कराऊंगी, कदापि नहीं।”
“यह
तुम्हारा अंतिम फैसला है?”
“और
तुम मेरी बात न मानने का परिणाम भी जानती हो?”
“तुम
मुझे धमकी दे रहे हो?”
“नहीं
सुधा देवी...मैं तो तुम्हें केवल उस कड़वी सच्चाई का थोड़ा सा परिचय दे रहा हूँ जो
तुमसे पूर्व मेरे सम्पर्क में आयी उन दूसरी लड़कियों के अनुभव की होगी जिन्होंने
मेरी बात न मानने की मुर्खता की थी।”
“मैं
पूछ सकती हूँ कौनसी कड़वी सच्चाई की मुझे चेतावनी दे रहे हो?”- सुधा ने तीखे स्वर
में पूछा।
सुधा
के बिगड़े तेवर देखकर मर्द कुछ नर्म पड़ गया और समझाने वाले ढंग में बोला-
“देखो
सुधा, मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसी में हम दोनों की भलाई है।”
“मेरी
भलाई नहीं केवल तुम्हारा स्वार्थ है।”
“ठण्डे
दिमाग से मेरी बात सुनने और समझने का प्रयत्न करो...एक सुझाव है मेरा...मैं दृढ
फैसला करके आया हूँ।”
“मैं
भी सुनूं तो वह कौनसी कड़वी सच्चाई है तुम्हारी? वैसे बता दूँ मैं भी अपने फैसले
पर दृढ हूँ।”
“पहले
बताओ क्या तुम्हारी कोख में चार महीने का बच्चा है ना?”
“हाँ।”
“तो
अगर मैं तुम्हारी इच्छा अनुसार अभी तुमसे शादी कर लूँ तो तुम इस बच्चे को पाँच
महीने बाद जन्म दोगी, क्या इससे मेरे खानदान की इज्जत...?”
सुधा ने बात काटते हुये कटु स्वर में कहा-
“तुम्हारे खानदान की इज्जत बचाने का उपाय है मेरे पास।”
“कौन
सा उपाय? मैं भी तो सुनू।”
“तुरंत
ही शादी की रस्म पूरी हो जाये... उसके एक सप्ताह बाद मैं `एबॉर्शन` करवा लूंगी।”
“तुम
मुझ पर विश्वास क्यों नहीं करती। तुम एबॉर्शन अभी करवा लो। मैं वचन देता हूँ कि एक
महीने के भीतर मैं घरवालों को तुमसे शादी के लिये सहमत कर लूंगा।”
“नहीं
मिस्टर।”- सुधा दाँत भींचकर दृढता से बोली,-“now or never...this is my last
word”
ऐसा लगा जैसे नौजवान गुस्से से काँपने लगा हो। उसके गले से
हल्की सी गुर्राहट निकली...वह स्टेयरिंग से अलग होकर सीधा बैठता हुआ बोला-“इतना
क्रोध....इतनी घृणा और हठ...और मेरा यह अपमान कि तुम मेरा नाम न लेकर मुझे तू तू
करके `मिस्टर` कह रही हो, ...खैर.. तुम ठीक कह रही हो। लोहा पूरी तरह से गरम
है...अभी चोट मारनी चाहिये....अभी नहीं तो कभी नहीं।”- यह कह कर नौजवान गाड़ी
स्टार्ट करने लगा।
सुधा ने झट से अपनी और का दरवाजा खोला और तेजी से बाहर निकल
गयी।
नौजवान सुधा की नीयत ताड़ चुका था। उसने बिजली की फुर्ती से झपट कर सुधा को दबोच लिया और गाड़ी की ओर
घसीटने लगा।
सुधा जोर से चिल्लायी-“बचाओ...बचाओ...।”
नौजवान एक भरपूर चांटा सुधा के गाल पर जड़ दिया और उसे जोर
से कार में धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया। सुधा की चीखें सुनकर आस-पास के ठिठुरे
सिमटे से जीनव में थोड़ी हलचल हुयी। आस-पास के मकानों की खिड़कियां खुलने लगी। चंद
दुकानदार अपनी दुकानों से बाहर निकल आये।
लेकिन तब तक गहरी
ब्राउन मारुति फर्राटे भरती दूर जा चुकी थी। विश्वास नगर से बाहर लम्बी अँधेरी
सड़क पर, जिसके दोनों ओर झाड़ -झंकाड़ और
घनी झाड़ियां थी और लगभग पन्द्रह किलोमीटर आगे बल्लारी नाम का गाँव था।
सुधा की चीखें दूर होती हुयी बंद हो गयी।
......................................
“भगवान के लिये
मुझे मत मारो। मैं वचन देती हूँ कि वही करुंगी जो तुम चाहोगे। मुझ से सौगंध ले लो।”
“नहीं...।”- नौजवान ने तीखे और रूखे स्वर में कहा,-“तुम
विश्वास योग्य नहीं हो। तुम्हारे भयानक वाक्य अब भी मेरे मस्तिष्क में साँपों की
भाँति फुंफकार रहे हैं। मैं तुम्हें केवल एक मिनट का समय दे सकता हूँ, वह भी बस
तुम्हारी अंतिम अच्छा जानने के लिये....इस से पहले मैं एक बात जरूर कहना चाहूँगा
हरामजादी कुतिया। इस बात का क्या प्रमाण है कि तेरी कोख में पलने वाला पाप मेरा
है। वह औरत जो शादी से पहले पराये मर्द को अपना सर्वस्व सौंप दे....क्या उस पर
विश्वास किया जा सकता है? क्या उसने पहले किसी और को अपना शरीर नहीं सौंपा होगा?
“न...न..नहीं।”- सुधा बुरी तरह तड़प कर चीखी-“मैं भगवान की
सौगंध....।”
“शटअप...सौगंध की बैसाखियां केवल झूठे लोग प्रयोग करते हैं।
और...अब...अपनी अंतिम अच्छा बताओ। मैं एक मिनट तक प्रतीक्षा करूंगा।”- यह कहकर
नौजवान ने अपनी दृष्टि रिस्टवॉच पर जमा दी।
“सुनो...।”- “सुधा ने फफक -फफक कर रोते हुये कहा,-“मुझे
कत्ल करके तुम फाँसी के फंदे को निमंत्रण दोगे। मैंने आज सुषमा को सब कुछ....।”
“तो फिर ...।”- नौजवान ने दाँत भींचकर जहरीले स्वर में
कहा,-“सुषमा भी शीघ्र ही तुम तक पहुँच जायेगी...स्वर्ग में या नर्क में। चलो शायद
आज ही तुम्हारी सहेली तुम्हें मिल जायेगी।”
यह कह कर नौजवान ने और प्रतीक्षा किये बिना सायलेंसर लगे
रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा दिया। सुधा के गले से भयानक चीखों को तूफान उबल पड़ा। पहली
गोली उसकी दाहिनी बाँह में लगी, दूसरी बायी बाँह में, तीसरी और चौथी उसकी दोनों
जाँघों में...और सुधा चीखती हुयी इधग-उधर झूलने लगी। और नौजवान ने पांचवीं गोली सुधा के सीने में
झोंक दी। सुधा की गरदन लुढक गयी परंतु
शरीर में अब भी तड़प थी। नौजवान ने
अंतिम गोली उसके सिर में मारकर उसे सदा के लिये स्थिर कर दिया। पेड़ से बंधी लाश
डोलती रह गयी।
नौजवान ने रिवॉल्वर की नाल में फूंक मारी और उसे जेब में रख
लिया। फिर बिना मुड़े उलटे कदमों से पीछे हटने लगा। मारुति तक पहुँच कर उसके साथ
टेक लगाने के बाद उसने वहशियाना ठहाका लगाया और बड़बड़ाया-
“हरामजादी...कुत्तिया...सबके सामने मेरा गिरेबान पकड़ कर
मुझे बदनाम करना चाहती थी। साली सुषमा को बताकर आई है...देख लूंगा उसे भी।”
लोकप्रिय उपन्यासकार विक्की आनंद द्वारा लिखे गये रोचक
उपन्यास `29 दिसम्बर की रात` के इन अंशों को पढने के बाद कई रहस्यमय एवं जिज्ञासा
भरे प्रश्न मन में उठते हैं।
जैसे
सुधा ने अपनी सहेली
सुषमा को क्या बताया था?
क्या हत्यारे ने सुषमा की हत्या भी कर दी?
क्या सुषमा ने हत्यारे को गिरफ्तार करना दिया?
आखिर हत्यारा था कौन?
इन रोमांचक
प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये लोकप्रिय उपन्यासकार विक्की आनंद द्वारा लिखित रोमांचक
उपन्यास `29 दिसम्बर की रात` में पढ सकते हैं।
उपन्यास- 29 दिसम्बर की रात
लेखक- विक्की आनंद
प्रकाशक- डायमण्ड पॉकेट बुक्स, दिल्ली
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