मेरी कोशिश है कि मैं पाठकों के लिये मौलिक और बेहतरीन लिखूं -अजिंक्य शर्मा
साक्षात्कार शृंखला-04
साहित्य देश ब्लॉग के साक्षात्कार स्तम्भ के अन्तर्गत लोकप्रिय जासूसी साहित्य की श्रेणी में छतीसगढ के युवा उपन्यासकार अजिक्य शर्मा जी का साक्षात्कार प्रस्तुत है।
अजिंक्य शर्मा जी का मूल नाम ब्रजेश शर्मा है और इनके अब तक तीन उपन्यास क्रमशः 'मौत अब दूर नहीं', 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' और 'काला साया' किंडल पर प्रकाशित हो चुके हैं। इनके उपन्यास शीघ्र ही हाॅर्डकाॅपी के रूप में पाठकों को उपलब्ध होंगे।
अपने तीन उपन्यासों के दम पर इन्होंने पाठकवर्ग में एक विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है।
1. सबसे पहले आप अपना परिचय दीजिएगा।
- मेरा नाम ब्रजेश कुमार शर्मा है। वर्तमान में मैंने अजिंक्य शर्मा के पैन नेम से उपन्यास लिखना आरम्भ किया है और मुझे कहते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है कि मेरे इस प्रयास को पाठकों की भरपूर सराहना भी मिल रही है। मैं छतीसगढ़ के महासमुन्द नामक एक छोटे से नगर में रहता हूं और वर्तमान में यहां के एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक समाचार पत्र में कार्यरत हूं। उपन्यास लेखन मैंने एक शौक के रूप में आरम्भ किया लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि पाठकों का इतना प्यार और विश्वास मिलेगा। पाठकों के इसी प्यार और विश्वास से प्रेरित होकर मैं आगे भी और भी अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा।
2. आपने अपने वास्तविक नाम 'ब्रजेश शर्मा' के स्थान पर पैन नेम 'अजिंक्य शर्मा' के नाम से क्यों लिखना पसन्द किया?
- ये प्रश्न मुझसे मेरे सभी मित्र एवं पाठकगण पूछते हैं। दरअसल पैन नेम के रूप में दूसरे नाम से लिखने का कारण ये है कि मेरी दिलचस्पी विभिन्न विधाओं में लिखने की है। जासूसी थ्रिलर तो लिख ही रहा हूँ लेकिन साइंस फिक्शन में भी मेरी गहन रुचि है। हिन्दी में साइंस फिक्शन उतने लोकप्रिय भी नहीं हैं तो सम्भवतः इंग्लिश में लिखूं। इसी विचार से मैंने 'अजिंक्य शर्मा' के पैन नेम से लिखना शुरू किया। साइंस फिक्शन ब्रजेश कुमार शर्मा के नाम से ही आएगा लेकिन उसमें अभी काफी समय है। वैसे भी पाठकों की ही राय के अनुसार मेरा पैन नेम ही काफी पसन्द किया जा रहा है। इस स्नेह के लिये मैं सभी पाठकों का तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूं।
3. उपन्यास लेखक की तरफ झुकाव कैसे हुआ?
- इस बारे में मैंने अपने पहले उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं' के लेखकीय में थोड़ी चर्चा की थी। दरअसल मैं बचपन से ही उपन्यास पढ़ने में मेरी काफी रुचि रही है और इस रुचि के कारण ही मैं कब लेखन की ओर आकृष्ट हो गया, इसका पता ही नहीं चला। अब माँ सरस्वती की कृपा से हिंदी लोकप्रिय साहित्य की सेवा करने का अवसर मिला है तो मैं अपनी पूरी क्षमता से इस कार्य में जुट गया हूं। पाठकों का भरपूर प्यार और प्रोत्साहन तो मिल ही रहा है। एक लेखक को और क्या चाहिये?
4. आपके अब तक तीन उपन्यास आये हैं और सभी में साइको पात्र हैं, इसकी कोई वजह? - बहुत दिलचस्प और मेरी रुचि का प्रश्न। अपने उपन्यासों में मैं साइको पात्र को किसी पूर्व योजना के अंतर्गत शामिल नहीं करता लेकिन कहानी की आवश्यकता ऐसी बन जाती है कि साइको पात्र को शामिल करना ही पड़ता है। वैसे भी मर्डर जैसी घटना को अंजाम देने वाले शख्स का दिमागी तवाजन एक एक्सटेंट तक हिला ही हुआ होता है अतः कुछ प्रतिशत में वो एक तरह का साइको ही होता है यानी एक तरह से हर मर्डर मिस्ट्री में कातिल के रूप में एक साइको आपको मिल ही जायेगा। 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' का 'डैथफेस' आदि 'साइको' की परिभाषा पर पूर्णतः खरे उतरते हैं लेकिन कहानी की आवश्यकता व रोचकता बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे पात्रों को शामिल करना पड़ता है।
5. भारत में स्लैशर घटनाक्रम जैसे उपन्यास नहीं लिखे चाहे,आपके मन में 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' जैसा विचार कैसे आया? उससे पहले आप स्लैशर शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दें ताकी सभी आसानी से समझ सकें।
- जी गुरप्रीत भाई स्लैशर का अर्थ खून खराबे वाली घटना से सम्बन्धित होता है, हॉलीवुड में इस तरह की खून खराबें वाली फ़िल्में आईं थीं जिससे इसे एक जोनर ही माना जाने लगा. 'स्क्रीम', 'अर्बन लिजेंड', 'आई नो व्हाट यु दिड लास्ट समर' आदि हॉलीवुड की कुछ बहुत शानदार स्लैशर फ़िल्में हैं. ये मर्डर मिस्ट्री भी होती हैं पर खून खराबे की घटनाओं के कारण इन्हें स्लैशर फ़िल्में माना जाता है.
- असल में मैं एक अलग तरह का उपन्यास लिखना चाहता था। 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' को एक 'स्लैशर थ्रिलर' के रूप में लिखना मेरा ऐसा ही प्रयास है। ये एक तरह का प्योर हॉरर है, जो भूत-प्रेत की घटना पर नहीं बल्कि किसी साइको किलर से सामना होने पर जिस तरह के खौफ की अनुभूति होती है, उसे दर्शाता है। और मुझे खुशी है कि इस नॉवल के सम्बन्ध में जब पाठकों की मेल प्राप्त होती है, तो अधिकांश का यही कहना है कि हिन्दी उपन्यासों में उन्होंने वैसा दूसरा नॉवल नहीं पढ़ा। साथ ही वे 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' का अगला पार्ट भी शीघ्र पढ़ने की इच्छा व्यक्त करते हैं। ये 'पार्टी सीरीज' का अगला नॉवल होगा, जो सम्भवतः मेरे आगामी 2-3 उपन्यासों के बाद प्रकाशित होगा।
6. आपके उपन्यासों में एक बात विशेष देखने को मिली वह है वर्तमान घटनाओं का वर्णन?
आपने प्रथम उपन्यास 'मौत दूर नहीं' में लुप्त होते जासूसी साहित्य पर चर्चा है और 'काला साया' में कोरोनो का वर्णन है?
इस पर कुछ टिप्पणी । अन्य लेखक ऐसा प्रयोग करते नहीं दिखते?
- अपने उपन्यासों में वर्तमान घटनाओं का वर्णन करने के पीछे मेरा उद्देश्य कथानक को और भी रोचक बनाने के साथ ही उस घटना की ओर पाठकों में जागरूकता लाना होता है और मुझे खुशी है कि इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है। सभी पाठकों द्वारा इसे सराहा गया व पसन्द किया गया। 'मौत अब दूर नहीं' में जहां हिन्दी जासूसी साहित्य या लोकप्रिय साहित्य के सम्बन्ध में मैंने पाठकों का ध्यानाकर्षित किया, वहीं 'काला साया' में कोरोना और लॉकडाउन का जिक्र करते हुए पाठकों को दुनिया में चल रही इस गम्भीर समस्या पर चिन्तन करने के लिये भी प्रेरित किया। ये एक तरह का 'हिडन एलिमेंट' है, जिसमें लेखक पाठक से सीधे संवाद न करके उन पर विचार करने के लिये उकसाता है।
-
- मेरे विचार से अन्य बहुत से लेखक भी वर्तमान घटनाओं को अपने कथानक में शामिल करते हैं। जैसे आदरणीय रमाकांत मिश्र जी एवं सबा खान जी ने तो पर्यावरण से जुड़े सम्वेदनशील मुद्दे पर ही ख्यातिप्राप्त नॉवल 'महासमर' लिखा है।
7. लोकप्रिय जासूसी साहित्य का भविष्य क्या है?
- लोकप्रिय जासूसी साहित्य का भविष्य तो पाठकों और लेखकों पर ही निर्भर करता है। लेखक कितनी अच्छी रचनाएं लेकर आते हैं, जो कि आ भी रहीं हैं, कई प्रमुख लोकप्रिय लेखक शानदार लेखन के माध्यम से लोकप्रिय साहित्य को समृद्ध बना रहे हैं। ये भी सच है कि मोबाइल, इंटरनेट के रूप में मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हो रहे हैं लेकिन मेरे विचार से एक अच्छी किताब की जगह कोई नहीं ले सकता।
- हालांकि जिस प्रकार लोकप्रिय साहित्य के सामने पाठकों की कमी, बुक पायरेसी जैसी चुनौतियां हैं, उनके दृष्टिगत पाठक संख्या में वृद्धि करने, बुक पायरेसी के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने कुछ ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता भी अनुभव की जा रही है।
8. भारत में लेखक जासूसी साहित्य में रिसर्च क्यों नहीं करते?
- भारत में जासूसी साहित्य में लेखकों द्वारा रिसर्च या ज्यादा रिसर्च न करने का एक कारण शायद यही है कि बड़ा रिसर्च कर उस पर विस्तृत कथानक लिखने में समय भी उतना ही अधिक लगेगा, जिससे जो लेखक साल में 4 नॉवल लिख सकता है, वो साल में एक नॉवल भी मुश्किल से ही लिख पायेगा। ये भी सही है कि इस प्रकार के विस्तृत रिसर्च के बाद लिखा गया नॉवल और भी ज्यादा फैक्चुअल, और भी ज्यादा रोचक होगा लेकिन 4-6 नॉवल लिखने के समय लगाकर एक नॉवल लिखा जाना पाठकों के सब्र की भी बड़ी परीक्षा होगी, जो कि न लेखक लेना चाहते हैं, न पाठक देना चाहते हैं। वैसे थोड़ा-बहुत लेखक का रिसर्च तो आपको लगभग हर अच्छे उपन्यास में देखने को मिल जायेगा।
9. हिन्दी में बहुत से लेखकों ने हाॅलीवुड फिल्मों से या अन्य भाषाओं के उपन्यासों की खूब काॅपी की है। क्या आप पर भी इस तरह का प्रभाव है या आपके सब उपन्यास मौलिक हैं?
- मेरी पूरी कोशिश तो यही है कि मैं पाठकों के लिये मौलिक बेहतरीन रचना लिखूं और अपने तीनों उपन्यासों में मैंने इस पर अमल भी किया है। मौलिक लेखन ही एक लेखक की पहचान होती है। थोड़ा-बहुत हम किसी घटना वगैरह से प्रेरित अवश्य हो सकते हैं, जैसे ब्रेमस्टोकर को यूरोपियन फोकलोर और वैम्पायर की कहानियों से प्रेरणा मिली और उन्होंने 'ड्रैक्युला' जैसी अप्रतिम रचना लिखी, जो एक सदी से भी अधिक समय बीतने के बाद आज भी उतनी ही लोकप्रिय है। मैं अपनी तुलना ब्रेम स्टोकर जैसे महान लेखक से नहीं कर रहा बल्कि ये कहना चाहता हूं कि किसी अच्छी कहानी या अपने आसपास की घटनाओं से प्रेरणा लेकर एक अच्छी मौलिक रचना लिखने में कोई बुराई नहीं है। मेरा पूरा फोकस मौलिक लेखन पर ही है क्योंकि मैं पाठकों के लिये अच्छी मौलिक कहानियां लिखना चाहता हूं।
10. अपने पाठकों के लिए कुछ कहना चाहेंगे?
- पाठकों के लिये यही संदेश है कि किताबें खुद भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें। बच्चों को कॉमिक्से, बाल पत्रिकाएँ पढ़ने की आदत डलवाएं। किताबें बीते कल की बात बनकर न रह जाएं, ये हम सबकी जिम्मेदारी है। और अभी हम सबने जो लॉकडाउन देखा, उससे सीख लेते हुए जीवन के प्रति गम्भीरतापूर्वक विचार करें। कोरोना का संकट बीत जाने के बाद भी प्रकृति, पर्यावरण के हित में हमें महीने में एक बार लॉकडाउन रखना चाहिये। ये बढ़ते प्रदूषण जैसी समस्याओं से निबटने में भी कारगर साबित हो सकता है।
11. साहित्य देश ब्लॉग के बारे में दो शब्द।
- साहित्य देश ब्लॉग लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण की दिशा में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। पुस्तकप्रेमियों, विशेष रूप से हम उपन्यासप्रेमियों, को तो नियमित रूप से साहित्य देश ब्लॉग पर आना चाहिए। यहां उपन्यासों से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी, समीक्षा आदि का खजाना है, जो मनोरंजन के साथ ही आपका ज्ञानवर्धन भी करेगा। इस शानदार ब्लॉग को संचालित करने के लिये आपको साधुवाद। लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण हेतु इस ब्लॉग के रूप में आपने जो कार्य किया है, उसकी जितनी सराहना की जाये, कम है।
माननीय अजिंक्य शर्मा जी का यह साक्षात्कार आपको कैसा लगा, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।
साहित्य देश ब्लॉग के साक्षात्कार स्तम्भ के अन्तर्गत लोकप्रिय जासूसी साहित्य की श्रेणी में छतीसगढ के युवा उपन्यासकार अजिक्य शर्मा जी का साक्षात्कार प्रस्तुत है।
अजिंक्य शर्मा जी का मूल नाम ब्रजेश शर्मा है और इनके अब तक तीन उपन्यास क्रमशः 'मौत अब दूर नहीं', 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' और 'काला साया' किंडल पर प्रकाशित हो चुके हैं। इनके उपन्यास शीघ्र ही हाॅर्डकाॅपी के रूप में पाठकों को उपलब्ध होंगे।
अपने तीन उपन्यासों के दम पर इन्होंने पाठकवर्ग में एक विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है।
अजिंक्य शर्मा |
- मेरा नाम ब्रजेश कुमार शर्मा है। वर्तमान में मैंने अजिंक्य शर्मा के पैन नेम से उपन्यास लिखना आरम्भ किया है और मुझे कहते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है कि मेरे इस प्रयास को पाठकों की भरपूर सराहना भी मिल रही है। मैं छतीसगढ़ के महासमुन्द नामक एक छोटे से नगर में रहता हूं और वर्तमान में यहां के एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक समाचार पत्र में कार्यरत हूं। उपन्यास लेखन मैंने एक शौक के रूप में आरम्भ किया लेकिन मुझे अंदाजा नहीं था कि पाठकों का इतना प्यार और विश्वास मिलेगा। पाठकों के इसी प्यार और विश्वास से प्रेरित होकर मैं आगे भी और भी अच्छा लिखने का प्रयास करूंगा।
2. आपने अपने वास्तविक नाम 'ब्रजेश शर्मा' के स्थान पर पैन नेम 'अजिंक्य शर्मा' के नाम से क्यों लिखना पसन्द किया?
- ये प्रश्न मुझसे मेरे सभी मित्र एवं पाठकगण पूछते हैं। दरअसल पैन नेम के रूप में दूसरे नाम से लिखने का कारण ये है कि मेरी दिलचस्पी विभिन्न विधाओं में लिखने की है। जासूसी थ्रिलर तो लिख ही रहा हूँ लेकिन साइंस फिक्शन में भी मेरी गहन रुचि है। हिन्दी में साइंस फिक्शन उतने लोकप्रिय भी नहीं हैं तो सम्भवतः इंग्लिश में लिखूं। इसी विचार से मैंने 'अजिंक्य शर्मा' के पैन नेम से लिखना शुरू किया। साइंस फिक्शन ब्रजेश कुमार शर्मा के नाम से ही आएगा लेकिन उसमें अभी काफी समय है। वैसे भी पाठकों की ही राय के अनुसार मेरा पैन नेम ही काफी पसन्द किया जा रहा है। इस स्नेह के लिये मैं सभी पाठकों का तहेदिल से आभार व्यक्त करता हूं।
3. उपन्यास लेखक की तरफ झुकाव कैसे हुआ?
- इस बारे में मैंने अपने पहले उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं' के लेखकीय में थोड़ी चर्चा की थी। दरअसल मैं बचपन से ही उपन्यास पढ़ने में मेरी काफी रुचि रही है और इस रुचि के कारण ही मैं कब लेखन की ओर आकृष्ट हो गया, इसका पता ही नहीं चला। अब माँ सरस्वती की कृपा से हिंदी लोकप्रिय साहित्य की सेवा करने का अवसर मिला है तो मैं अपनी पूरी क्षमता से इस कार्य में जुट गया हूं। पाठकों का भरपूर प्यार और प्रोत्साहन तो मिल ही रहा है। एक लेखक को और क्या चाहिये?
4. आपके अब तक तीन उपन्यास आये हैं और सभी में साइको पात्र हैं, इसकी कोई वजह? - बहुत दिलचस्प और मेरी रुचि का प्रश्न। अपने उपन्यासों में मैं साइको पात्र को किसी पूर्व योजना के अंतर्गत शामिल नहीं करता लेकिन कहानी की आवश्यकता ऐसी बन जाती है कि साइको पात्र को शामिल करना ही पड़ता है। वैसे भी मर्डर जैसी घटना को अंजाम देने वाले शख्स का दिमागी तवाजन एक एक्सटेंट तक हिला ही हुआ होता है अतः कुछ प्रतिशत में वो एक तरह का साइको ही होता है यानी एक तरह से हर मर्डर मिस्ट्री में कातिल के रूप में एक साइको आपको मिल ही जायेगा। 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' का 'डैथफेस' आदि 'साइको' की परिभाषा पर पूर्णतः खरे उतरते हैं लेकिन कहानी की आवश्यकता व रोचकता बढ़ाने के उद्देश्य से ऐसे पात्रों को शामिल करना पड़ता है।
5. भारत में स्लैशर घटनाक्रम जैसे उपन्यास नहीं लिखे चाहे,आपके मन में 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' जैसा विचार कैसे आया? उससे पहले आप स्लैशर शब्द का अर्थ स्पष्ट कर दें ताकी सभी आसानी से समझ सकें।
- जी गुरप्रीत भाई स्लैशर का अर्थ खून खराबे वाली घटना से सम्बन्धित होता है, हॉलीवुड में इस तरह की खून खराबें वाली फ़िल्में आईं थीं जिससे इसे एक जोनर ही माना जाने लगा. 'स्क्रीम', 'अर्बन लिजेंड', 'आई नो व्हाट यु दिड लास्ट समर' आदि हॉलीवुड की कुछ बहुत शानदार स्लैशर फ़िल्में हैं. ये मर्डर मिस्ट्री भी होती हैं पर खून खराबे की घटनाओं के कारण इन्हें स्लैशर फ़िल्में माना जाता है.
- असल में मैं एक अलग तरह का उपन्यास लिखना चाहता था। 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' को एक 'स्लैशर थ्रिलर' के रूप में लिखना मेरा ऐसा ही प्रयास है। ये एक तरह का प्योर हॉरर है, जो भूत-प्रेत की घटना पर नहीं बल्कि किसी साइको किलर से सामना होने पर जिस तरह के खौफ की अनुभूति होती है, उसे दर्शाता है। और मुझे खुशी है कि इस नॉवल के सम्बन्ध में जब पाठकों की मेल प्राप्त होती है, तो अधिकांश का यही कहना है कि हिन्दी उपन्यासों में उन्होंने वैसा दूसरा नॉवल नहीं पढ़ा। साथ ही वे 'पार्टी स्टार्टेड नाओ!' का अगला पार्ट भी शीघ्र पढ़ने की इच्छा व्यक्त करते हैं। ये 'पार्टी सीरीज' का अगला नॉवल होगा, जो सम्भवतः मेरे आगामी 2-3 उपन्यासों के बाद प्रकाशित होगा।
6. आपके उपन्यासों में एक बात विशेष देखने को मिली वह है वर्तमान घटनाओं का वर्णन?
आपने प्रथम उपन्यास 'मौत दूर नहीं' में लुप्त होते जासूसी साहित्य पर चर्चा है और 'काला साया' में कोरोनो का वर्णन है?
इस पर कुछ टिप्पणी । अन्य लेखक ऐसा प्रयोग करते नहीं दिखते?
- अपने उपन्यासों में वर्तमान घटनाओं का वर्णन करने के पीछे मेरा उद्देश्य कथानक को और भी रोचक बनाने के साथ ही उस घटना की ओर पाठकों में जागरूकता लाना होता है और मुझे खुशी है कि इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है। सभी पाठकों द्वारा इसे सराहा गया व पसन्द किया गया। 'मौत अब दूर नहीं' में जहां हिन्दी जासूसी साहित्य या लोकप्रिय साहित्य के सम्बन्ध में मैंने पाठकों का ध्यानाकर्षित किया, वहीं 'काला साया' में कोरोना और लॉकडाउन का जिक्र करते हुए पाठकों को दुनिया में चल रही इस गम्भीर समस्या पर चिन्तन करने के लिये भी प्रेरित किया। ये एक तरह का 'हिडन एलिमेंट' है, जिसमें लेखक पाठक से सीधे संवाद न करके उन पर विचार करने के लिये उकसाता है।
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- मेरे विचार से अन्य बहुत से लेखक भी वर्तमान घटनाओं को अपने कथानक में शामिल करते हैं। जैसे आदरणीय रमाकांत मिश्र जी एवं सबा खान जी ने तो पर्यावरण से जुड़े सम्वेदनशील मुद्दे पर ही ख्यातिप्राप्त नॉवल 'महासमर' लिखा है।
7. लोकप्रिय जासूसी साहित्य का भविष्य क्या है?
- लोकप्रिय जासूसी साहित्य का भविष्य तो पाठकों और लेखकों पर ही निर्भर करता है। लेखक कितनी अच्छी रचनाएं लेकर आते हैं, जो कि आ भी रहीं हैं, कई प्रमुख लोकप्रिय लेखक शानदार लेखन के माध्यम से लोकप्रिय साहित्य को समृद्ध बना रहे हैं। ये भी सच है कि मोबाइल, इंटरनेट के रूप में मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हो रहे हैं लेकिन मेरे विचार से एक अच्छी किताब की जगह कोई नहीं ले सकता।
- हालांकि जिस प्रकार लोकप्रिय साहित्य के सामने पाठकों की कमी, बुक पायरेसी जैसी चुनौतियां हैं, उनके दृष्टिगत पाठक संख्या में वृद्धि करने, बुक पायरेसी के विरुद्ध लोगों को जागरूक करने कुछ ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता भी अनुभव की जा रही है।
8. भारत में लेखक जासूसी साहित्य में रिसर्च क्यों नहीं करते?
- भारत में जासूसी साहित्य में लेखकों द्वारा रिसर्च या ज्यादा रिसर्च न करने का एक कारण शायद यही है कि बड़ा रिसर्च कर उस पर विस्तृत कथानक लिखने में समय भी उतना ही अधिक लगेगा, जिससे जो लेखक साल में 4 नॉवल लिख सकता है, वो साल में एक नॉवल भी मुश्किल से ही लिख पायेगा। ये भी सही है कि इस प्रकार के विस्तृत रिसर्च के बाद लिखा गया नॉवल और भी ज्यादा फैक्चुअल, और भी ज्यादा रोचक होगा लेकिन 4-6 नॉवल लिखने के समय लगाकर एक नॉवल लिखा जाना पाठकों के सब्र की भी बड़ी परीक्षा होगी, जो कि न लेखक लेना चाहते हैं, न पाठक देना चाहते हैं। वैसे थोड़ा-बहुत लेखक का रिसर्च तो आपको लगभग हर अच्छे उपन्यास में देखने को मिल जायेगा।
9. हिन्दी में बहुत से लेखकों ने हाॅलीवुड फिल्मों से या अन्य भाषाओं के उपन्यासों की खूब काॅपी की है। क्या आप पर भी इस तरह का प्रभाव है या आपके सब उपन्यास मौलिक हैं?
- मेरी पूरी कोशिश तो यही है कि मैं पाठकों के लिये मौलिक बेहतरीन रचना लिखूं और अपने तीनों उपन्यासों में मैंने इस पर अमल भी किया है। मौलिक लेखन ही एक लेखक की पहचान होती है। थोड़ा-बहुत हम किसी घटना वगैरह से प्रेरित अवश्य हो सकते हैं, जैसे ब्रेमस्टोकर को यूरोपियन फोकलोर और वैम्पायर की कहानियों से प्रेरणा मिली और उन्होंने 'ड्रैक्युला' जैसी अप्रतिम रचना लिखी, जो एक सदी से भी अधिक समय बीतने के बाद आज भी उतनी ही लोकप्रिय है। मैं अपनी तुलना ब्रेम स्टोकर जैसे महान लेखक से नहीं कर रहा बल्कि ये कहना चाहता हूं कि किसी अच्छी कहानी या अपने आसपास की घटनाओं से प्रेरणा लेकर एक अच्छी मौलिक रचना लिखने में कोई बुराई नहीं है। मेरा पूरा फोकस मौलिक लेखन पर ही है क्योंकि मैं पाठकों के लिये अच्छी मौलिक कहानियां लिखना चाहता हूं।
10. अपने पाठकों के लिए कुछ कहना चाहेंगे?
- पाठकों के लिये यही संदेश है कि किताबें खुद भी पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ने के लिये प्रेरित करें। बच्चों को कॉमिक्से, बाल पत्रिकाएँ पढ़ने की आदत डलवाएं। किताबें बीते कल की बात बनकर न रह जाएं, ये हम सबकी जिम्मेदारी है। और अभी हम सबने जो लॉकडाउन देखा, उससे सीख लेते हुए जीवन के प्रति गम्भीरतापूर्वक विचार करें। कोरोना का संकट बीत जाने के बाद भी प्रकृति, पर्यावरण के हित में हमें महीने में एक बार लॉकडाउन रखना चाहिये। ये बढ़ते प्रदूषण जैसी समस्याओं से निबटने में भी कारगर साबित हो सकता है।
11. साहित्य देश ब्लॉग के बारे में दो शब्द।
- साहित्य देश ब्लॉग लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण की दिशा में उत्कृष्ट कार्य कर रहा है। पुस्तकप्रेमियों, विशेष रूप से हम उपन्यासप्रेमियों, को तो नियमित रूप से साहित्य देश ब्लॉग पर आना चाहिए। यहां उपन्यासों से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी, समीक्षा आदि का खजाना है, जो मनोरंजन के साथ ही आपका ज्ञानवर्धन भी करेगा। इस शानदार ब्लॉग को संचालित करने के लिये आपको साधुवाद। लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण हेतु इस ब्लॉग के रूप में आपने जो कार्य किया है, उसकी जितनी सराहना की जाये, कम है।
माननीय अजिंक्य शर्मा जी का यह साक्षात्कार आपको कैसा लगा, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।
लेखक के विचार बहुत परिपक्व लगे लगता है लेखक
जवाब देंहटाएंबहुत रीसर्च करके उपन्यास लेखन करते हैं पार्टी स्टारटेड नोउ जैसे उपन्यास पर तो कोई थ्रिलर मूवी बननी चाहिए इंडिया में
thanks.
हटाएंरोचक साक्षात्कार। अजिंक्य जी के विषय मे जानकर अच्छा लगा। उम्मीद है वो ऐसे और भी कथानक लेकर पाठको के समक्ष प्रस्तुत होते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास भाई
हटाएंअजिंक्य शर्मा जी प्रतिभावान लेखक हैं। अब तक प्रकाशित तीनों उपन्यास बेहद अच्छे हैं, उम्मीद है भविष्य में इनके और भी शानदार उपन्यास पढने को मिलेंगे।
हटाएंविकास भाई आपके विचारों के लिए धन्यवाद ।
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बहुत बहुत आभार गुरप्रीत भाई
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबढ़िया साक्षात्कार, अच्छा कर रहे हैं गुरप्रीत भाई👍
जवाब देंहटाएं