लेबल

रविवार, 24 फ़रवरी 2019

लेखक की कलम से- गुलशन नंदा

  ब्लॉग पर एक नया स्तम्भ आरम्भ किया है। जिसके अंतर्गत लेखकों के लेखकिय प्रकाशित किये जायेंगे। इस स्तंभ का आरम्भ गुलशन नंदा के एक लेखकिय से कर रहे हैं। जिसमें गुलशन नंदा ने नकली उपन्यास और स्वयं के उपन्यासों में लगे अश्लीलता के आरोपों पर लिखा है।

-----------------

प्रिय पाठक बंधु,
       यह मेरा सौभाग्य है कि आप सबके सहयोग एवं विश्वास के कारण मेरा नाम आज भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक, बल्कि निदेशक में बसने वाले हिन्दी पाठकों में भी प्रिय है। यह भी आपके सहयोग एवं स्नेह का फल है कि मेरी रचनाओं को आज हिन्दी उपन्यासों में सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तकें होने का गर्व प्राप्त हुआ है। मुझे आशा है कि मेरी प्रत्येक रचना को आप अपनी आशाओं के अनुकूल ही पायेंगे।
           किन्तु अधिक लोकप्रियता कभी-कभी परेशानी का कारण भी बन जाती है। तीन-चार वर्षों तक मेरे नाम से प्रकाशित जाली उपन्यासों ने मेरे मन को अशांत बनाये रखा। केन्द्रीय गुप्तचर विभाग, पाठकों एवं विक्रेताओं के अमूल्य सहयोग ने अब मुझे जाकर इस अशांति से मुक्ति दिलाई।
               अब एक नया लांझन इस लोकप्रियता के कारण मुझ पर लगाया जा रहा है। मेरे उपन्यासों के बारे में कुछ तथाकथित आलोचक तथा लेखक यह भ्रम फैला रहे हैं कि मेरी लोकप्रियता अश्लील एवं सैक्स से भरपूर उपन्यास लिखने हुई है।  यह एक अजीब बात है कि मेरे उन उपन्यासों में भी, जिनमें रोमांस न के बराबर है साहित्यकारों को अश्लीलता दिखाई देती है। संभव है, मेरी कुछ प्रारम्भिक रचनाओं में, जो मैंने विद्यार्थी जीवन में लिखी थी, रोमांस का कुछ अंश अधिक हो, किंतु बाद में‌ लिखे ग ए मेरे अधिकतर उपन्यासों के संबंध में इस प्रकार का आरोप उचित नहीं । ऐसा प्रतित होता है है, जैसे उन्होंने मेरे उपन्यास पढे बिना इस प्रकार के छींटे कसे हैं।
                    जब तक मुझे अपने पाठकों का स्नेह एव विश्वास प्राप्त है, इस प्रकार के लांछन मुझे निरुत्साह नहीं कर सकते। फिर भी मेरे आलोचकों से मेरा निवेदन है कि यदि वे मेरे उपन्यास पढकर स्वस्थ आलोचना करें तो मेरे लिए वह पथ-प्रदर्शक हो सकती है। लोकप्रियता के कारण यह अनुमान लगा लेना कि उपन्यास अश्लील होगा- सरासर अन्याय है, जिसके बारे में मैं इतना कह सकता हूँ कि कोई भी पुस्तक लाखों की संख्या  में तभी बिक सकती है यदि वह हर घर में खुलेआम पढी जा सके। अश्व पुस्तक न माँ बेटी के सामने पढ सकती है, न पिता पुत्र के सामने। मुझे संतोष और प्रसन्नता है कि मेरी रचनाएँ परिवार के सभी सदस्य एक -दूसरे से छुपाए बिना पढ सकते हैं।
                       मैं पाठकों से अनुरोध करूंगा कि वे मेरे इन उपन्यासों को पढकर सदा की तरह मुझे अपने विचार लिखें। साथ ही मैं उ‌नके भरपूर स्नेह के लिए आभार प्रदर्शित करता हूँ।

7, शीश महल 5-A, पाली हिल्ज,
बांद्रा, मुम्बई-400050
                                                                आपका
                                                             गुलशन नंदा

(सन् 1985)

3 टिप्‍पणियां:

  1. गुरप्रीत जी आप बहुत अच्छा और बड़ा काम कर रहे हैं , मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेनामी मित्र, आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है, हमें ऊर्जा देती है। अगर आपका नाम-पता टिप्पणी में होता तो ज्यादा अच्छा लगता। धन्यवाद।
    - गुरप्रीत सिंह
    www.sahityadesh.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...