लोकप्रिय साहित्य बनाम गंभीर साहित्य- योगेश मित्तल
साहित्य शब्द का प्रयोग तो सभी लिखाड़ी और पढ़ाकू करते आये हैं, पर हमारे ‘पॉकेट बुक्स’ वर्ग के लेखकों को बड़े रचनाकार कहलानेवाले और साहित्यकार कहलाने वाले लेखकों ने कभी न तो साहित्यकार माना, ना ही उनके लेखन को साहित्य में दर्ज किये जाने योग्य।
पॉकेट बुक्स लेखन को यदि साहित्य शब्द से विभूषित भी किया गया तो उसे सदैव ‘सस्ता साहित्य’ कहा गया।
फिर भी एक वक्त ऐसा आया, जब बड़े-बड़े साहित्यकार पॉकेट बुक्स के सस्ते लेखन में उतर आये, लेकिन उन 'कथित साहित्यकारों' ने पॉकेट बुक्स लेखन में अपना वास्तविक नाम देना उचित न समझा, कुछ अपवाद हैं - शिवानी, कृष्णचन्दर, राम कुमार भ्रमर आदि।
कृष्णचन्दर को तो हिन्द पॉकेट बुक्स वालों ने बाल पॉकेट बुक्स की धूम के समय 'हांगकांग की गुड़िया' से विशेष रूप से प्रचारित किया था ! पुराने पाठकों को शायद वह विज्ञापन याद भी हो - 'न ताला टूटा - न सेंध लगी - हांगकांग की गुड़िया गायब हो गयी।
अधिकाँश साहित्यिक लेखकों ने स्टार, हिन्द, रूपम, नकहत, नफीस, साधना और मनोज पॉकेट बुक्स में चक्कर अवश्य लगाए और कुछ एक छपे भी, लेकिन ज्यादातर साहित्यिक लेखक पॉकेट बुक्स प्रकाशकों को भी प्रभावित नहीं कर पाए ! उनके कथानक बेहद स्लो और एक्शनलेस थे।
उन उपन्यासों में घटनाएं सीमित होती थीं और डायलॉगबाजी में रोचकता का सर्वथा अभाव था, जैसा की आप वेद प्रकाश काम्बोज के विजय की रघुनाथ और अशरफ से नोंक-झोंक और झकझकियों में पाते रहे हैं या सुरेंद्र मोहन पाठक के सुनील और रमाकांत और प्रभुदयाल के बीच पाते रहे हैं ! विनोद हमीद और कासिम की बातों में लुत्फ़ उठाते रहे हैं ! राज भारती के सागर के रोमांस और अग्निपुत्र के भूतकाल के वर्णन में पाते रहे हैं ! ओम प्रकाश शर्मा के राजेश-जयंत-जगत-जगन-बगारोफ़-गोपाली आदि में पाते रहे हैं।
रूपम पॉकेट बुक्स तो जल्दी ही बंद होने का कारण भी यही रहा कि अच्छे साहित्यिक लेखकों के अच्छे उपन्यास छापने के बावजूद ‘पॉकेट बुक्स पाठकों’ में साहित्यिक लेखक अपनी पैठ नहीं बना पाए।
अब मेरा आपसे सवाल यह है कि आप साहित्य किसे मानते हैं। उन पुराने व बड़े लेखकों की कृतियों को, जिन्हें सिर्फ 'स्टेटस सिम्बल' के लिए लोग पढ़ने का दावा तो करते हैं, लेकिन चार पेज लगातार पढ़ नहीं पाते और पूछने पर उस कृति की कमियां-खूबियां तक बताने के लिए इंटरनेट में मैटर तलाश करते हैं ! या आपकी नज़र में साहित्य वह है - जो आपकी स्मृतियों को झकझोर दें, झिंझोड़ दें।
या आपकी निगाह में साहित्य की कोई और कसौटी है !
आप अपने विचारों को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत करें, क्योंकि आज भी बहुत से 'बड़े कहलाने वाले लेखक' जासूसी व सामाजिक लेखकों को हेय दृष्टि से देखते हैं।
मज़े की बात है - विदेशों में आर्थर कानन डायल, अगाथा क्रिस्टी, जेम्स हेडली चेज, सिडनी शेल्डन, इर्विंग वैलेस आदि ने जो शोहरत और प्रतिष्ठा हासिल की। भारत में पॉकेट बुक्स लेखक आज भी उस प्रतिष्ठा से वंचित है।
सबसे बड़ी और हास्यास्पद बात यह है कि बड़े नाम वाले लेखकों ने कई बेहद वाहियात उपन्यास लिखे हैं, लेकिन बड़े नाम के लेखक होने का पुरूस्कार यह है कि उन्हें कोर्स में भी पढ़ाया जा रहा है। अक्सर हमारे शिक्षा विभाग में बड़ी-बड़ी डिग्री वाले ऐसे नालायक लोगों की भरमार रही है - कहानी तथा उपन्यास की समझ तो दूर, उन्हें पढ़ने का भी शौक रहा हो, इसमें भी मुझे संदेह है।
आप लोगों ने भी बहुत से बड़े-बड़े लेखकों की साहित्यिक कृतियों को पढ़ा होगा। आपको कोई कृति बेहद बकवास भी लगी होगी। मैं चाहता हूँ - आप निःसंकोच उसके बारे में लिखें, जिससे हमारी भावी पीढ़ी को साहित्य के नाम पर वाहियात और सड़े हुए विषयों की गंदगी न पढ़ाई जाए।
और हाँ, मैं तो आपको इस बारे में बताऊंगा ही।
लेखक- योगेश मित्तल
Bht badhiya Yogesh bhai
जवाब देंहटाएंलेख अच्छा एवं विचारणीय है किन्तु गहन विश्लेषण की आवश्यकता है ।
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