लेबल

रविवार, 18 जुलाई 2021

लौटेंगें वे दिन- अजिंक्य शर्मा

 लौटेंगें वे दिन- अजिंक्य शर्मा
बने रहे ये पढ़ने वाले, बनी रहे ये पाठशाला

जी हांँ, हिन्दी पाठकों की मस्ती की पाठशाला, जिसमें पाठकों ने बहुत मजे किए। एक वक्त था जब बुकस्टालों पर जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा, इब्ने सफी, वेद प्रकाश काम्बोज, कर्नल रंजीत, सुरेंद्र मोहन पाठक, अनिल मोहन, वेद प्रकाश शर्मा, अमित खान आदि लेखकों के उपन्यासों का इंतजार उतनी ही शिद्दत से किया जाता था, जितनी शिद्दत से आज दर्शक क्रिस्टोफर नोलन या मार्वल सिनेमेटिक यूनिवर्स की नई फिल्म का इंतजार करते हैं। इन लेखकों की लोकप्रियता का आलम ये था कि किताबें बुकस्टाल पर आते ही हाथों-हाथ बिक जातीं थीं। आज भी इनके दीवानों की कमी नहीं है और इनके उपन्यास रिप्रिंट होकर भी बिक रहे हैं।  
उपन्यासकार अजिंक्य शर्मा
                     उपन्यासकार अजिंक्य शर्मा
        कुछ वर्ष पूर्व जब उपन्यासें छपना बेहद कम हो गईं थीं, तब ऐसा लगने लगा था, जैसे किताबों का दौर खत्म हो जाएगा। मोबाइल का पदार्पण हो चुका था। नए-नए फीचर्स से लैस मोबाईल ने सबका मन मोह लिया। फिर पायरेसी का दौर शुरू हुआ। लोग मोबाइल पर ही pdf में किताबें पढ़ने लगे-अब भी पढ़ रहे हैं-जिससे लेखकों को एक पैसे भी रॉयल्टी नहीं मिलती। ऐसे में लेखक लिखकर क्या करे? पायरेसी के कारण किताबों की बिक्री कम हुई तो लेखक और प्रकाशक दोनों ही उदासीन होने लगे और किताबों से दूर जाने लगे। लेकिन कुछ लेखकों ने ऐसे समय में भी लिखना जारी रखा। अपनी पहचान बनाई। और अपनी जादुई कलम से उपन्यास जगत को बेशकीमती नगीने दिए। जिससे पाठकों का पुस्तकप्रेम एक बार फिर परवान चढ़ने लगा।
      आज फिर लोकप्रिय साहित्य में लेखकों की संख्या बढ़ रही है। किताबों की मांग बढ़ी है। लेखकों की मेहनत को पाठकों ने सराहा है। प्रबुद्ध पाठक उपन्यास खरीदकर पढ़ते हुए पायरेसी का भी विरोध कर रहे हैं।
        अब वो दौर तो रहा नहीं, जब उपन्यास गली-मोहल्लों में बुकस्टालों पर आम उपलब्ध हो जाते थे। ऐसे में पाठकों को ऑनलाइन खरीदी ही करनी पड़ती है। इससे भी रीच कम होती है क्योंकि सभी पाठक ऑनलाइन खरीदी नहीं करते। बहुत से पाठकों को तो नए लेखकों व उनके उपन्यासों का पता भी नहीं चल पाता।पाठकों की संख्या कम होने का एक कारण ये भी है।
       यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जब लोकप्रिय साहित्य का सुनहरा दौर था, उस समय भी सबसे अच्छे माने जाने वाले लेखकों की संख्या बेहद कम-उंगलियों पर गिनी जा सकने लायक-ही थी। ये लेखक लोकप्रिय साहित्य के शीर्ष पर काबिज रहे। आज जब नए लेखक इन्हीं का आशीर्वाद लेकर लिख रहे हैं तो पाठकों को भी उम्मीद है कि कुछ बेहतर पढ़ने को मिलेगा।
       टीवी, इंटरनेट आदि मनोरंजन साधनों का दबदबा तो है लेकिन ये चीजें किताबों का विकल्प नहीं बन सकतीं। किताबें तो किताबें ही हैं। किताबों को इंसान का सच्चा साथी कहा जाता है तो ये कोई अतिशयोक्ति नहीं है। किताबों ने बहुत कुछ बदला है। और आज भी बहुत कुछ बदलने की क्षमता रखती हैं। एक बच्चे को एक किताब तब बदल देती है, जब वो उसे पढ़ने में रुचि लेने लगता है। उसके बाद तो इस सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए अनगिनत किताबें हैं ही।
भले ही हमने बचपन में खुद किताबें पढ़ने के लिए-या हर समय किताबों में घुसे रहने के लिए-परिजनों से डांट या मार खाई हो लेकिन ये एक निर्विवाद तथ्य है कि हर वे माता-पिता-जो पुस्तकप्रेमी हैं, किताबों की अहमियत समझते हैं-यही चाहते हैं कि उनके बच्चे मोबाइल पर एक आभासी सैनिक बनकर आभासी दुश्मनों को मारने की जगह किताबें पढ़ने में अपना समय व्यतीत करें।
याद रखिए, अच्छी किताबें अच्छी सोच प्रेरित करती हैं। अधिकांशतः बुद्धिजीवी वही होते हैं, जो अच्छे पाठक व पुस्तकप्रेमी भी होते हैं।
प्रस्तुति- अजिंक्य शर्मा उर्फ बृजेश शर्मा
  अजिंक्य शर्मा का पूर्ण परिचय- अजिंक्य शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

  1. रोचक लेख है...इसमें नये लेखकों का जिक्र है केवल उनके नाम होते और लेखक अपने पसंदीदा नवीन लेखकों और उनकी रचनाओं की चर्चा करते तो और लेख और बेहतर हो सकता था। पाठकों को कुछ रोचक लेखको और उनकी रचनाओं का भी पता लगता।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर बृजेश भाई, keep it up 👍🎉

    जवाब देंहटाएं

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...