😎 *रिवाल्वर का मिज़ाज : कहानियाँ ऐसे भी बनती हैं -3*
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थोड़ी ही देर बाद नसीम एक बेहद खूबसूरत मल्टीकलर स्वेटर साथ लेकर आये और मुझे थमाते हुए बोले -"योगेश जी, यह स्वेटर पहनकर देखिये!"
मगर मेरे पहनने से पहले ही भारती साहब और फोटोग्राफर दोनों के मुंह से लगभग एक साथ ही निकला -
"बढ़िया...!"
"खूबसूरत....!"
कई रंगों का वह स्वेटर भारती साहब ने खुद मुझे पहनाया, जैसे छोटे बच्चे को पहनाते हैं! मुझे बड़ा अजीब लग रहा था, किन्तु यह पूरी तरह अजीब भी नहीं था, क्योंकि इस उम्र में भी जब मुझे अस्थमा का बहुत तगड़ा अटैक होता था, तब मेरे नहाने की छुट्टी हो जाती थी, *(हालांकि आम तौर पर मैं रोज नहाने वाला व्यक्ति हूँ! बुखार में भी!)* और तब अगर गर्मी के दिन हुए तो मेरी माता जी मेरे ऊपरी सारे कपड़े उतार कर, गीले तौलिये से मेरा बदन पोंछ कर, मुझे कपड़े पहनाती थीं! सर्दियों में बदन पोंछने का भी झंझट नहीं किया जाता! यूँ ही कपड़े बदल दिये जाते थे! कभी-कभी मम्मी का यह काम पिताजी भी कर दिया करते थे!
इसीलिए भारती साहब ने स्वेटर पहनाया तो अजीब नहीं लगा!
आज राज भारती जी इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन नसीम भाई उस घटना के गवाह हैं!
मुझे स्वेटर पहनाने के बाद भारती साहब ने नसीम से पूछा - "ठीक है?"
नसीम ही नहीं, फोटोग्राफर ने भी बढ़िया बताया और फोटोग्राफर ने उसे अपने हिसाब से सैट करने के बाद मेरी कई तस्वीरें खीची!
बाद में स्वेटर उतारने के बाद भी कुछ स्नैप लिये गये!
उसके बाद हम बड़े अच्छे मूड में वहाँ से रुखसत हुए!
अब मुझे सुनील पंडित के लिए वेद प्रकाश शर्मा के कैरेक्टर "केशव पंडित" को मुख्य पात्र बनाकर उपन्यास आरम्भ करना था, पर एक समस्या थी - उस समय तक मैंने वेद की केशव पंडित सीरीज़ का एक भी उपन्यास नहीं पढ़ा था! और केशव पंडित सीरीज़ का मेरे पास एक भी उपन्यास नहीं था!
उपन्यास लिखना शुरू करने के लिए पहले मैंने राज भारती जी से भी बात की थी और केशव पंडित कैरेक्टर के बारे में डिटेल पूछी तो पता चला कि उस समय तक राज भारती जी ने तो वेद प्रकाश शर्मा का कभी भी एक भी उपन्यास नहीं पढ़ा! भारती साहब ने हिन्दी में इब्ने सफी, ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज आदि काफी उपन्यासकारों के उपन्यास पढ़े थे, पर वेद प्रकाश शर्मा का तब तक तो एक भी उपन्यास नहीं पढ़ा था!
यशपाल वालिया जी से भी बात की तो पता चला - उन्होंने भी वेद प्रकाश शर्मा का एक भी उपन्यास नहीं पढ़ा था!
तब जब मैं सुनील पंडित नाम के लिये उपन्यास किस तरह आरम्भ किया जाये, सोचते हुए यशपाल वालिया के घर बैठा उनसे बात कर रहा था, तभी उनके घर "इन्देश्वर जोशी" का आगमन हुआ!
इन्देश्वर जोशी वालिया साहब का बहुत पुराना दोस्त था, पर उस समय वह हम सभी का दोस्त हो चुका था! राज भारती, एस. सी. बेदी और मैं सभी उससे बहुत मिक्स अप और फ्रैंक थे!
इन्देश्वर जोशी - वही है, जिसे अगर आपने कभी विजय पाकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किये गये मनोज और सूरज नामों के उपन्यास देखे हों तो उनमें सूरज नाम के पीछे उसी की तस्वीर थी! मनोज नाम की बैक में यशपाल वालिया के पड़ोस में रहने वाले "मनोज" नाम के एक नाबालिग किशोर की तस्वीर थी! पर विजय पाकेट बुक्स में छपे मनोज और सूरज के ये दोनों नकली उपन्यास थे, पर इनके बैक कवर पर असली इन्सानों की तस्वीर थी, जबकि मनोज पाकेट बुक्स में ये ट्रेडमार्क थे और इन नामों में मनोज पाकेट बुक्स में बैक कवर पर किसी की तस्वीर नहीं होती थीं! मनोज पाकेट बुक्स इन ट्रेडमार्क्स में किसी भी लेखक का उपन्यास छाप सकती थी! अत: इन नामों के उपन्यासों के पीछे कभी कोई तस्वीर नहीं छापी जाती थी!
पर विजय पाकेट बुक्स से मनोज और सूरज क्यों छपे..?
उसका कारण राजहंस उर्फ केवल कृष्ण कालिया के एक उपन्यास का मनोज में छपना था!
पर वो किस्सा फिर कभी...
तब इन्देश्वर जोशी का आना सुखद हवा के झोंके के समान था! इन्देश्वर ने वेद प्रकाश शर्मा के बहुत सारे उपन्यास पढ़े थे और केशव पंडित के भी!
उसने मुझे केशव पंडित के कैरेक्टर के बारे में बहुत अच्छी तरह बताया और मैने केशव पंडित का एक भी उपन्यास पढ़े बिना ही केशव पंडित सीरीज़ का उपन्यास लिखना आरम्भ कर दिया! हालांकि बाद में मैंने कई उपन्यास पढ़े और जब वेद प्रकाश शर्मा ने तुलसी पेपर बुक्स आरम्भ किया और एक नया नाम सोनू पंडित आरम्भ किया तो सोनू पंडित नाम के लिये केशव पंडित सीरीज़ के सभी उपन्यास मैंने ही लिखे! पर वो किस्सा भी फिर कभी...!
मैंने सुनील पंडित के लिए केशव पंडित लिखना आरम्भ कर दिया और जब लगभग पचास पेज तक लिख चुका था, एक दिन राज भारती जी और सुनील पंडित का आगमन हुआ!
इस बार सुनील मेरे लिए रजत राजवंशी नाम से छपने वाले मेरे उपन्यास "रिवाल्वर का मिज़ाज" का एक टाइटिल लेकर आया था!
टाइटिल में बैक पर मेरी तस्वीर भी थी!
पर यदि आपने मेरा उपन्यास रिवाल्वर का मिज़ाज देखा है ! पढ़ा है, तो आपने देखा होगा कि रजत राजवंशी नाम से छपने वाला पहला उपन्यास रिवाल्वर का मिज़ाज मेरठ की माया पाकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था और उस समय सामने आने वाला यह टाइटिल सपना पाकेट बुक्स से था तो.....
ऐसा क्या हुआ कि सपना पाकेट बुक्स से छपने वाला "रजत राजवंशी" का उपन्यास "रिवाल्वर का मिज़ाज" "माया पाकेट बुक्स" से छपा और वह टाइटिल भी कोई और था, जो माया पाकेट बुक्स द्वारा छापा गया था!
ऐसा क्या हुआ और ऐसा क्यों हुआ कि रजत राजवंशी तो छपा, मगर प्रकाशक बदल गया!
(शेष फिर)
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