दवाओं का एजेन्ट केवलकृष्ण बना उपन्यासकार राजहंस- भाग-01
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विजय कुमार मलहोत्रा के पास राणा प्रताप बाग में अन्दरूनी रोड पर सड़क के मुहाने पर काफी बड़ी जगह थी!
उसी पते पर विजय कुमार मलहोत्रा ने विजय पाकेट बुक्स की नींव रखी!
विजय कुमार मलहोत्रा की अशोक पाकेट बुक्स के स्वामी बसन्त सहगल से अच्छी दोस्ती थी! अक्सर उन दोनों का राणा प्रताप बाग स्थित विजय पाकेट बुक्स के आफिस में अथवा शक्ति नगर स्थित बसन्त जी की बैठक में जमावड़ा होता! संयोगवश मैं गिनती के उस खुशकिस्मतों में हूँ, जिसे दोनों जगह बैठने का अवसर मिला!
विजय पाकेट बुक्स जब शैशवावस्था में थी, अशोक पाकेट बुक्स एक नामी प्रकाशन संस्था थी! इसका एक खास कारण यह भी था कि उन दिनों उपन्यासकारों में गुलशन नन्दा एक प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित नाम था और अशोक पाकेट बुक्स ने गुलशन नन्दा के कई उपन्यास प्रकाशित किये थे, जिनके कापीराइट भी उन्हीं के पास थे और आये दिन गुलशन नन्दा के उपन्यासों के रिप्रिन्ट होते रहते थे, जिसके कारण बहुत कुछ छापने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी!
मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक की आपबीती की श्रृंखला नहीं पढ़ी, किन्तु यकीन है कि श्रृंखला पूरी होने से पहले उसमें मेरा जिक्र भी आना चाहिए और बसन्त सहगल का भी!
मुझे याद नहीं कि अशोक पाकेट बुक्स में सहगल साहब ने सुरेन्द्र मोहन पाठक को छापा या नहीं छापा, किन्तु दोनों की दोस्ती मशहूर रही थी तथा शाम की बहुत सी महफ़िलों में दोनों ने परस्पर जाम टकराये थे.और मैं तो बहुत बार उनके साथ घण्टों बैठने लकी स्ट्राइक का धुंआ उड़ाने और काफी या पैग के घूंट साथ साथ भरने का साथी रहा था! मनोज पाकेट बुक्स और राजा पाकेट बुक्स में पाठक साहब की इन्ट्री भी मेरी तिकड़म के बाद हुई थी, किन्तु वह किस्सा फिर कभी...!
अभी हम दवाओं के एजेन्ट केवलकृष्ण कालिया के उपन्यासकार बनने का किस्सा बता रहे हैं, पर यह किस्सा विजय पाकेट बुक्स का जिक्र किये बिना सम्भव नहीं है!
विजय कुमार मलहोत्रा ने पाकेट बुक्स खोलने की योजना का जिक्र बसन्त सहगल से किया तो बसन्त सहगल ने उनसे कहा कि कुछ स्क्रिप्ट उनके पास भी पड़ी हैं! उनमें कुछ जासूसी थीं और दो स्क्रिप्ट ऐसी थीं, जो डाकुओं की पृष्ठभूमि पर थीं, किन्तु उर्दू में थीं। बसन्त सहगल उर्दू भी बखूबी पढ़ लेते थे! उन्होंने विजय कुमार मलहोत्रा से कहा दोनों स्क्रिप्ट उन्होंने पढ़ी हैं! बहुत अच्छी हैं, किन्तु उन्हें डाकुओं की पृष्ठभूमि के उपन्यास पसन्द नहीं!
बसन्त सहगल ने विजय कुमार मलहोत्रा को एक यह बात भी बताई कि वो दोनों स्क्रिप्ट एक नये लेखक ने लिखी हैं, जो वास्तव में दवाओं की एक कम्पनी का एजेन्ट है!
विजय कुमार मलहोत्रा भी उर्दू पढ़ लेते थे! बेशक पढ़ने में वक़्त कुछ ज्यादा लगता था! उन्होंने भी उर्दू की वे दोनों पाण्डुलिपियाँ पढ़ीं!
उन्हें भी अच्छी लगीं और उन्होंने बसन्त सहगल से उस दवाओं के एजेन्ट को भेजने को कहा!
बसन्त सहगल ने दवाओं के उस एजेन्ट केवलकृष्ण कालिया को विजय पाकेट बुक्स भेजा! विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण से कहा कि वह सामाजिक उपन्यास लिखे!
उन दिनों स्टार पाकेट बुक्स में राजवंश ट्रेडमार्क के अन्तर्गत आरिफ मारहर्वीं के उपन्यास खूब धूम मचा रहे थे!
राजवंश एक 'बेस्ट सेलर' नाम था! विजय कुमार मलहोत्रा ने राजवंश की तर्ज़ पर एक नाम राजहंस रखा और एक नाम रघुराज के नाम की स्टाइल आर्टिस्ट से लिखवाकर फाइनल की और वह स्टाइल तथा रघुराज व राजहंस नाम और ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करवाये, जैसी कि शुरुआत हिन्द व स्टार पाकेट बुक्स, मनोज पाकेट बुक्स पहले ही कर चुके थे!
विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण को यकीन दिलाया कि राजहंस नाम में उसी के उपन्यास छापे जायेंगे! उपन्यास के बैक कवर पर राजहंस के रूप में उसकी फोटो भी छापी जायेगी और प्रत्येक उपन्यास के पारिश्रमिक के रूप में एक ऐसी अच्छी रकम भी देने का वायदा किया, जिससे केवलकृष्ण को दवाओं के एजेन्ट की नौकरी न करनी पड़े!
केवलकृष्ण ने नौकरी छोड़ दी और पूरा समय उपन्यास लिखने में लगाने लगा, किन्तु आरम्भ में केवलकृष्ण उर्दू में ही लिखते थे! उनके उपन्यास का हिन्दी में अनुवाद करवाना पड़ता था, किन्तु केवलकृष्ण को हिन्दी भी आती थी! विजय कुमार मलहोत्रा की सलाह पर केवलकृष्ण ने हिन्दी में लिखना शुरु कर दिया!
विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण के लिखे दोनों उपन्यास रघुराज नाम से छापे!
उनमें रामबली नाम का एक हीरो था, केवलकृष्ण के आरम्भिक दोनों उपन्यास रघुराज के लिए से ही छपे, लेकिन रामबली सीरीज़ के लिये तीसरा उपन्यास विजय कुमार मलहोत्रा ने बड़े लम्बे अंतराल के बाद मुझसे लिखने को कहा था, जब मैंने सवा सौ पेज का मैटर लिख लिया तो अचानक विजय कुमार मलहोत्रा ने मुझे उपन्यास लिखना रोक देने को कहा और मैंने जितना मैटर लिखा था, पढ़ने के लिए मंगाया!
मैंने वह मैटर विजय कुमार मलहोत्रा जी को दे दिया, तब उन्होंने बताया कि यह सीरीज़ आगे लिखवाने का इरादा उन्होंने इसलिए बदल दिया, क्योंकि रामबली सीरीज़ के वह उपन्यास केवल 'राजहंस' नाम में रिप्रिन्ट करवाना चाहता है तो अगर आगे भी यह सीरीज़ वही लिखेगा!
मुझे यह नहीं मालूम कि रामबली सीरीज़ के वे उपन्यास राजहंस नाम से छपे या नहीं छपे!
पर हाँ, दवाओं के एक एजेन्ट केवलकृष्ण को विजय कुमार मलहोत्रा ने विजय पाकेट बुक्स में उपन्यासकार 'राजहंस' बना दिया!
बाद में केवलकृष्ण और विजय पाकेट बुक्स के विजय कुमार मलहोत्रा में एक विवाद ने भी जन्म लिया और उसका अंजाम पाकेट बुक्स के सबसे चर्चित मुकदमे ने लिया! पर वो किस्सा फिर कभी....! नहीं, फिर कभी नहीं अगली बार...!
और हाँ, अपने मित्र राकेश चौहान द्वारा उपलब्ध करवाई विजय पाकेट बुक्स में 'राजहंस' नाम से प्रकाशित उपन्यासों की लिस्ट भी पेश कर रहा हूँ, किन्तु केवलकृष्ण का किस्सा अभी खत्म नही हुआ, ना ही 'राजहंस' नाम का!
बाद का किस्सा -
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विजय कुमार मलहोत्रा के पास राणा प्रताप बाग में अन्दरूनी रोड पर सड़क के मुहाने पर काफी बड़ी जगह थी!
उसी पते पर विजय कुमार मलहोत्रा ने विजय पाकेट बुक्स की नींव रखी!
विजय कुमार मलहोत्रा की अशोक पाकेट बुक्स के स्वामी बसन्त सहगल से अच्छी दोस्ती थी! अक्सर उन दोनों का राणा प्रताप बाग स्थित विजय पाकेट बुक्स के आफिस में अथवा शक्ति नगर स्थित बसन्त जी की बैठक में जमावड़ा होता! संयोगवश मैं गिनती के उस खुशकिस्मतों में हूँ, जिसे दोनों जगह बैठने का अवसर मिला!
विजय पाकेट बुक्स जब शैशवावस्था में थी, अशोक पाकेट बुक्स एक नामी प्रकाशन संस्था थी! इसका एक खास कारण यह भी था कि उन दिनों उपन्यासकारों में गुलशन नन्दा एक प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित नाम था और अशोक पाकेट बुक्स ने गुलशन नन्दा के कई उपन्यास प्रकाशित किये थे, जिनके कापीराइट भी उन्हीं के पास थे और आये दिन गुलशन नन्दा के उपन्यासों के रिप्रिन्ट होते रहते थे, जिसके कारण बहुत कुछ छापने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी!
मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक की आपबीती की श्रृंखला नहीं पढ़ी, किन्तु यकीन है कि श्रृंखला पूरी होने से पहले उसमें मेरा जिक्र भी आना चाहिए और बसन्त सहगल का भी!
मुझे याद नहीं कि अशोक पाकेट बुक्स में सहगल साहब ने सुरेन्द्र मोहन पाठक को छापा या नहीं छापा, किन्तु दोनों की दोस्ती मशहूर रही थी तथा शाम की बहुत सी महफ़िलों में दोनों ने परस्पर जाम टकराये थे.और मैं तो बहुत बार उनके साथ घण्टों बैठने लकी स्ट्राइक का धुंआ उड़ाने और काफी या पैग के घूंट साथ साथ भरने का साथी रहा था! मनोज पाकेट बुक्स और राजा पाकेट बुक्स में पाठक साहब की इन्ट्री भी मेरी तिकड़म के बाद हुई थी, किन्तु वह किस्सा फिर कभी...!
अभी हम दवाओं के एजेन्ट केवलकृष्ण कालिया के उपन्यासकार बनने का किस्सा बता रहे हैं, पर यह किस्सा विजय पाकेट बुक्स का जिक्र किये बिना सम्भव नहीं है!
विजय कुमार मलहोत्रा ने पाकेट बुक्स खोलने की योजना का जिक्र बसन्त सहगल से किया तो बसन्त सहगल ने उनसे कहा कि कुछ स्क्रिप्ट उनके पास भी पड़ी हैं! उनमें कुछ जासूसी थीं और दो स्क्रिप्ट ऐसी थीं, जो डाकुओं की पृष्ठभूमि पर थीं, किन्तु उर्दू में थीं। बसन्त सहगल उर्दू भी बखूबी पढ़ लेते थे! उन्होंने विजय कुमार मलहोत्रा से कहा दोनों स्क्रिप्ट उन्होंने पढ़ी हैं! बहुत अच्छी हैं, किन्तु उन्हें डाकुओं की पृष्ठभूमि के उपन्यास पसन्द नहीं!
बसन्त सहगल ने विजय कुमार मलहोत्रा को एक यह बात भी बताई कि वो दोनों स्क्रिप्ट एक नये लेखक ने लिखी हैं, जो वास्तव में दवाओं की एक कम्पनी का एजेन्ट है!
विजय कुमार मलहोत्रा भी उर्दू पढ़ लेते थे! बेशक पढ़ने में वक़्त कुछ ज्यादा लगता था! उन्होंने भी उर्दू की वे दोनों पाण्डुलिपियाँ पढ़ीं!
उन्हें भी अच्छी लगीं और उन्होंने बसन्त सहगल से उस दवाओं के एजेन्ट को भेजने को कहा!
बसन्त सहगल ने दवाओं के उस एजेन्ट केवलकृष्ण कालिया को विजय पाकेट बुक्स भेजा! विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण से कहा कि वह सामाजिक उपन्यास लिखे!
उन दिनों स्टार पाकेट बुक्स में राजवंश ट्रेडमार्क के अन्तर्गत आरिफ मारहर्वीं के उपन्यास खूब धूम मचा रहे थे!
राजवंश एक 'बेस्ट सेलर' नाम था! विजय कुमार मलहोत्रा ने राजवंश की तर्ज़ पर एक नाम राजहंस रखा और एक नाम रघुराज के नाम की स्टाइल आर्टिस्ट से लिखवाकर फाइनल की और वह स्टाइल तथा रघुराज व राजहंस नाम और ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करवाये, जैसी कि शुरुआत हिन्द व स्टार पाकेट बुक्स, मनोज पाकेट बुक्स पहले ही कर चुके थे!
विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण को यकीन दिलाया कि राजहंस नाम में उसी के उपन्यास छापे जायेंगे! उपन्यास के बैक कवर पर राजहंस के रूप में उसकी फोटो भी छापी जायेगी और प्रत्येक उपन्यास के पारिश्रमिक के रूप में एक ऐसी अच्छी रकम भी देने का वायदा किया, जिससे केवलकृष्ण को दवाओं के एजेन्ट की नौकरी न करनी पड़े!
केवलकृष्ण ने नौकरी छोड़ दी और पूरा समय उपन्यास लिखने में लगाने लगा, किन्तु आरम्भ में केवलकृष्ण उर्दू में ही लिखते थे! उनके उपन्यास का हिन्दी में अनुवाद करवाना पड़ता था, किन्तु केवलकृष्ण को हिन्दी भी आती थी! विजय कुमार मलहोत्रा की सलाह पर केवलकृष्ण ने हिन्दी में लिखना शुरु कर दिया!
विजय कुमार मलहोत्रा ने केवलकृष्ण के लिखे दोनों उपन्यास रघुराज नाम से छापे!
उनमें रामबली नाम का एक हीरो था, केवलकृष्ण के आरम्भिक दोनों उपन्यास रघुराज के लिए से ही छपे, लेकिन रामबली सीरीज़ के लिये तीसरा उपन्यास विजय कुमार मलहोत्रा ने बड़े लम्बे अंतराल के बाद मुझसे लिखने को कहा था, जब मैंने सवा सौ पेज का मैटर लिख लिया तो अचानक विजय कुमार मलहोत्रा ने मुझे उपन्यास लिखना रोक देने को कहा और मैंने जितना मैटर लिखा था, पढ़ने के लिए मंगाया!
मैंने वह मैटर विजय कुमार मलहोत्रा जी को दे दिया, तब उन्होंने बताया कि यह सीरीज़ आगे लिखवाने का इरादा उन्होंने इसलिए बदल दिया, क्योंकि रामबली सीरीज़ के वह उपन्यास केवल 'राजहंस' नाम में रिप्रिन्ट करवाना चाहता है तो अगर आगे भी यह सीरीज़ वही लिखेगा!
मुझे यह नहीं मालूम कि रामबली सीरीज़ के वे उपन्यास राजहंस नाम से छपे या नहीं छपे!
पर हाँ, दवाओं के एक एजेन्ट केवलकृष्ण को विजय कुमार मलहोत्रा ने विजय पाकेट बुक्स में उपन्यासकार 'राजहंस' बना दिया!
बाद में केवलकृष्ण और विजय पाकेट बुक्स के विजय कुमार मलहोत्रा में एक विवाद ने भी जन्म लिया और उसका अंजाम पाकेट बुक्स के सबसे चर्चित मुकदमे ने लिया! पर वो किस्सा फिर कभी....! नहीं, फिर कभी नहीं अगली बार...!
और हाँ, अपने मित्र राकेश चौहान द्वारा उपलब्ध करवाई विजय पाकेट बुक्स में 'राजहंस' नाम से प्रकाशित उपन्यासों की लिस्ट भी पेश कर रहा हूँ, किन्तु केवलकृष्ण का किस्सा अभी खत्म नही हुआ, ना ही 'राजहंस' नाम का!
बाद का किस्सा -
राजहंस बनाम विजय पाकेट बुक्स
हिन्द - मनोज और विजय पाकेट बुक्स के बीच सनसनीखेज मुकदमा
हिन्द - मनोज और विजय पाकेट बुक्स के बीच सनसनीखेज मुकदमा
में आप पढ़ेंगे, लेकिन खास बात अभी बता दूँ कि विजय पाकेट बुक्स की इस लिस्ट में आखिरी बहुत से उपन्यास केवलकृष्ण कालिया के लिखे नहीं हैं! कुछ उपन्यास यशपाल वालिया के लिखे थे और कुछ उस समय लुधियाना और बाद में डलहौजी में रहने वाले सरदार लेखक हरविन्दर के, किन्तु वह किस्सा अगली बार...!
इस बार यह तो आप जान गये कि एक मामूली दवा कम्पनी का मामूली सा सेल्स एजेन्ट (वह दवा कम्पनी बाद में बन्द भी हो गई थी) केवलकृष्ण, किस तरह एक विख्यात उपन्यासकार 'राजहंस' बन गया है!
शायद इसे ही किस्मत कहते हैं!
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
इस बार यह तो आप जान गये कि एक मामूली दवा कम्पनी का मामूली सा सेल्स एजेन्ट (वह दवा कम्पनी बाद में बन्द भी हो गई थी) केवलकृष्ण, किस तरह एक विख्यात उपन्यासकार 'राजहंस' बन गया है!
शायद इसे ही किस्मत कहते हैं!
प्रस्तुति- योगेश मित्तल
बढ़िया जानकारी 👍
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