किस्सा तब का है जब प्रेम बाजपेयी जी- 33 आराम पार्क,रामनगर,दिल्ली में रहते थे।
मनोज पॉकेट बुक्स और राज पॉकेट बुक्स (बाद में राजा पॉकेट बुक्स) के रास्ते अलग-अलग हो चुके थे।अब तक, 13 साल से 'मनोज पॉकेट बुक्स' के लिए उपन्यास लिख रहे 'प्रेम' जी के लिए इस रिश्ते को अब और आगे खींचना मुश्किल हो गया था।
अंततः 'तन चुभी कीलों' के मुखड़े से शुरू होने वाला 'गीत'...'सौतन और सुहागन' के अंतरे से गुज़रता हुआ 'क्षमादान' पर जाकर द एण्ड हो गया।
'मनोज' जी ने अपनी 'पार्टी' से 'बाजपेयी' जी को निकाल दिया।
उस उपन्यासकार को जिसके लिए तब 'ठण्डा मतलब कोकाकोला' के अंदाज़ में पंच लाइन हुआ करती थी। "मनोज पॉकेट बुक्स का अर्थ है 'प्रेम बाजपेयी' का नया उपन्यास।
डबडबाई आँखों से 'प्रेम' जी ने अंतिम बार 'मनोज' जी की तरफ़ देखा. मन-ही-मन सफ़र को याद किया और नियति मानते हुए विदा ली।
बहू हो तो ऐसी- प्रेम बाजपेयी |
'समय' निष्ठुर होता है...दग़ाबाज़ नहीं।
मनोज जी के ऑफ़िस से निकलकर बोझिल क़दमों से 'प्रेम' जी...आगे चले जा रहे थे।
भ्रम था या सच्चाई ? प्रेम जी को लग रहा था मानो कोई उनका पीछा कर रहा है...।
कौन है ? प्रेम जी ने मानो स्वयं से बुदबुदाया हो...।
काफ़ी दूर निकलने पर अचानक वह शख़्स सामने आ गया !
"अरे ! राज जी आप ?" - प्रेम बाजपेयी जी लगभग चीखे थे।
"बाकी बातें बाद में...घर चलिए...चाय इंतज़ार कर रही है...।"- प्रेम जी की आँखें छलछला आयीं थीं।
ये थे राज भाई...'मनोज' से छिटककर 'राज पॉकेट बुक्स' की आधारशिला रखने वाले...श्री राज कुमार भाई।
बैनर बदल चुका था...नई इबारत लिख चुकी थी।
"मेरे नए उपन्यास अब केवल राज पॉकेट बुक्स,दरीबा कलां,दिल्ली-६ से ही प्रकाशित होंगे।"- प्रेम बाजपेयी
ये ही था...पहला 'राज' से प्रकाशित लेखक का नया उपन्यास- बहू हो तो ऐसी।
उपन्यास : बहू हो तो ऐसी
उपन्यासकार : प्रेम बाजपेयी
मूल्य : पांच रुपये
...किस्सा क्या ? सब इतिहास का हिस्सा लगता है...मीठा...कसक भरा...।
प्रस्तुति-
प्रदीप पालीवाल, इटावा
संम्पर्क- 9761453660
प्रदीप पालीवाल, इटावा
संम्पर्क- 9761453660
जितना रोचक किस्सा है उतना ही रोचक उसको कहने की शैली भी है... आभार....
जवाब देंहटाएंजी...आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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