जासूसी साहित्य में कुछ अलग हटकर लिखने का श्रेय 'सस्पेंश के बादशाह वेदप्रकाश शर्मा' को जाता है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों और सत्य घटनाओं पर आधारित काल्पनिक उपन्यास लिखें हैं।
उनकी यही विशेषता उन्हें बाकी लेखकों से एक अलग मुकाम पर स्थापित करने में सहायक है। लेकिन कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है, जाना था जापान पहुँच गये चीन समझ गये ना।लेखक अपने उपन्यास के प्रकाशन से पूर्व उपन्यास की थीम कुछ और घोषित करता है और उपन्यास का कथानक कुछ और हो जाता है।
यह ऐसे ही नहीं हो जाता। यह तब की घटना है जब वेदप्रकाश शर्मा जी एक खतरनाक बीमारी से जूझ रहे थे। बस तभी राजा पॉकेट बुक्स से वेदप्रकाश शर्मा जी के नाम से यह उपन्यास प्रकाशित हुआ था।थी
।करी डाॅट काॅम- ये नाम है मेरे आगामी नये उपन्यास का। हो सकता है आप कहें कि यह अम तो किसी भी एंगिल से जासूसी उपन्यास का नाम नहीं लगता। यहाँ मैं कुछ अंश तक आपकी बात से सहमत हूँ, परंतु विश्वास दिलाता हूँ इसके थ्रिल, सस्पेंश, इन्वेस्टिगेशन और सेंटीमेंट्स को आप वर्षों तक नहीं भूला सकेंगे।यह कहानी आज की है। आज के युवाओं की। ऐसे पांच युवाओं की जिनकी आँखों में सतरंगी सपने थे, दिल में उमंगें। कुछ कर गुजरने का जनून। कुछ बन जाने का जज्बा। उनमें तीन लड़के थे और दो लड़कियां। सपनों को साकार करने के लिए जब उन्हें कुछ और नहीं सूझा तो इंटरनेट पर जा बैठे और निकल पड़े सर्फिंग पर। सर्फिंग करते पहुँच जाते हैं 'सेक्स वेबसाइट' पर। एक के बाद एक अश्लील फोटो और विडियो सामने आने शुरु हो जाते हैं। इतना ही नहीं, उन्हीं के शहर के ऐसे लड़के-लड़कियों के काॅन्टेक्ट भी सामने आने शुरु हो जाते हैं जिनसे कोई भी संबंध बना सकता है। युवा दिल रोमांच का मतवाला होता है। उसी रोमांच से गुजरने के लिए उन्होंने इंटरनेट पर दिये गये ईमेल्स पर काॅन्टेक्ट करने शुरू कर दिये और फिर....वे ऐसी दुनिया में पहुंचते चले गये जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं था।
भले ही मेरे पाँच मुख्य किरदार न भटके हों, एक काली दुनिया में घुसने के बाद वहाँ से वापस आ गये हों, मगर इस कथानक के जरिये मैं समाज को यह बताता चाहता हूँ कि इंटरनेट की यह भयावह दुनिया हमें कहां ले जा रही है। और फिर मेरे पाँच किरदरों के सामने आई एक नई वेबसाइट - नौकरी डाॅट काॅम।
युवाओं को लगा - ये वेबसाइट हमारे सभी सपनों को साकार कर सकती है। वे निकल पड़े और जा फंसे एक ऐसी दुनिया में जो हर पल उन्हीं को हैरान परेशान कर रही थी। मगर आज के युवा किसी से कम नहीं है। जब वे अपने रंग में आये तो सबको छकाते चले गये। तौबा कर ली उन्होंने जो उन जैसे युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते थे।
बिलकुल नये और ताजा विषय पर लिखा - नौकरी डाॅट काॅम।
तो ये थी वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'नौकरी डाॅट काॅम' की एक झलक, जो समाज में व्याप्त आधुनिक ठगी पर लिखा गया है।
पर निराशाजनक बात यह है कि इस उपन्यास के लेखन के समय वेदप्रकाश शर्मा जी भयंकर बीमारी से ग्रस्त थे।
'छठी उंगली' और 'भयंकरा' नामक उपन्यासों के अतिरिक्त यह (नौकरी डाॅट काॅम) उनके नाम से प्रकाशित होने वाले उपन्यास हैं जिस से वेद जी की लेखनी पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है।
नौकरी डाॅट काॅम उपन्यास का जो प्रचार और थीम थी उपन्यास उस पर खरा नहीं उतर सका। कारण- उपन्यास में वह कथानक था ही नहीं जिसका वर्णन ऊपर दिया गया है।
एक अच्छा कथानक किन्हीं कारणों से उपन्यास का वह रूप न ले सका जिसकी उम्मीद पाठकों को वेद जी से थी।
- अगर आपने नौकरी डाॅट काॅम उपन्यास पढा है तो अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।
भले ही मेरे पाँच मुख्य किरदार न भटके हों, एक काली दुनिया में घुसने के बाद वहाँ से वापस आ गये हों, मगर इस कथानक के जरिये मैं समाज को यह बताता चाहता हूँ कि इंटरनेट की यह भयावह दुनिया हमें कहां ले जा रही है। और फिर मेरे पाँच किरदरों के सामने आई एक नई वेबसाइट - नौकरी डाॅट काॅम।
युवाओं को लगा - ये वेबसाइट हमारे सभी सपनों को साकार कर सकती है। वे निकल पड़े और जा फंसे एक ऐसी दुनिया में जो हर पल उन्हीं को हैरान परेशान कर रही थी। मगर आज के युवा किसी से कम नहीं है। जब वे अपने रंग में आये तो सबको छकाते चले गये। तौबा कर ली उन्होंने जो उन जैसे युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते थे।
बिलकुल नये और ताजा विषय पर लिखा - नौकरी डाॅट काॅम।
तो ये थी वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'नौकरी डाॅट काॅम' की एक झलक, जो समाज में व्याप्त आधुनिक ठगी पर लिखा गया है।
पर निराशाजनक बात यह है कि इस उपन्यास के लेखन के समय वेदप्रकाश शर्मा जी भयंकर बीमारी से ग्रस्त थे।
'छठी उंगली' और 'भयंकरा' नामक उपन्यासों के अतिरिक्त यह (नौकरी डाॅट काॅम) उनके नाम से प्रकाशित होने वाले उपन्यास हैं जिस से वेद जी की लेखनी पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया है।
नौकरी डाॅट काॅम उपन्यास का जो प्रचार और थीम थी उपन्यास उस पर खरा नहीं उतर सका। कारण- उपन्यास में वह कथानक था ही नहीं जिसका वर्णन ऊपर दिया गया है।
एक अच्छा कथानक किन्हीं कारणों से उपन्यास का वह रूप न ले सका जिसकी उम्मीद पाठकों को वेद जी से थी।
- अगर आपने नौकरी डाॅट काॅम उपन्यास पढा है तो अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
धन्यवाद।
रोचक...उपन्यास तो नहीं पढ़ा है लेकिन ये झलक जरूर रोचक लग रही है...अगर यह किसी भूत लेखक द्वारा लिखवाया गया हो तो भी झलक में इतना सामान था कि अच्छा खासा उपन्यास बन सकता था...यह बात मैं भी मानता हूँ कि वेद जी के कथानक भले ही जैसे हों वो समसामयिक मुद्दों को अपने कथानकों में जरूर पिरोते थे....
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