लोकप्रिय साहित्य के सितारे वेदप्रकाश शर्मा जी पुण्यतिथि पर जयदेव चावरिया जी का एक विशेष आर्टिकल।
10 जून, 1955 को मेरठ में जन्मे वेद प्रकाश शर्मा जी हिंदी के लोकप्रिय उपन्यासकार थे। उनके पिता पं. मिश्रीलाल शर्मा मूलतः बुलंदशहर के रहने वाले थे। वेद सर की एक बहन और सात भाइयों में सबसे छोटे हैं। एक भाई और बहन को छोड़कर सबकी मृत्यु हो गई। 1962 में बड़े भाई की मौत हुई और उसी साल इतनी बारिश हुई कि किराए का मकान टूट गया। फिर एक बीमारी की वजह से पिता ने खाट पकड़ ली। घर में कोई कमाने वाला नहीं था, इसलिए सारी ज़िम्मेदारी मां पर आ गई। मां के संघर्ष से इन्हें लेखन की प्रेरणा मिली और फिर देखते ही देखते एक से बढ़कर एक उपन्यास लिखते चले गये।
वेद सर का शुरुआती दौर काफी मुश्किलों से भरा हुआ था।जब वेद सर अपने पहले उपन्यास कि स्क्रिप्ट लेकर कई प्रकाशकों के चक्कर काटे पर कोई फायदा नहीं हुआ। सब प्रकाशक एक ही बात बोलते थे कि तुम्हारा उपन्यास किसी और के नाम से ही छाप सकते हैं वरना नहीं । लगभग ढाई साल प्रकाशकों के चक्कर काटने के बाद वेद सर ने कई उपन्यासों की स्क्रिप्ट लिख डाली। अंत में वेद सर ने सोचा मेरे नाम से ना सही पर पाठकों तक मेरी रचना तो पहुंचेगी। फिर वेद सर के शुरुआती उपन्यास कई प्रसिद्ध लेखकों के नाम से प्रकाशित हुए। वेद सर का पहला उपन्यास 'डायमंड किंग' लक्ष्मी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ था। वेद सर के एक बाद एक सात उपन्यास प्रकाशित हुए । पाठक उनके द्वारा लिखे उपन्यास काफी पसंद कर रहे थे। पर हकीकत तो यह थी कि वह किसी अन्य लेखक के नाम से प्रकाशित हो रहे थे। वेद सर ने समाजिक उपन्यास भी लिखे जो 'राजेश' के नाम से प्रकाशित हुए । वेदप्रकाश शर्मा
उसके बाद वेद सर कि मुलाकात कंचन पॉकेट बुक्स के पार्टनर सुरेश जैन से हुई। उन्हे वेद सर कि उपन्यास की स्क्रिप्ट काफी पसंद आई। वेद सर का पहला उपन्यास 'दहकते शहर' माधुरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ। पर कवर पर पूरा नाम नहीं लिखा। पाठकों को वेद सर का पहला उपन्यास बहुत पसंद आया। उसके रिपीट आर्डर आने लगे। वेद सर ने साबित कर दिया कि उनकी कलम में दम है। उसके बाद दूसरा उपन्यास 'आग के बेटे' के कवर पर वेद सर का पूरा नाम लिखा था। पर फोटो अब भी नहीं छपी थी।
फिर मधु जी से वेद सर कि शादी हुई। वेद सर ने मधु जी से कहा कि मेरे अभी तक पच्चीस उपन्यास प्रकाशित हुए हैं और मुझसे ज्यादा पापुलर विकास को कर दिया। पाठक बुक - स्टाल पर जाकर विकास का उपन्यास मांगते है जबकि में चाहता हूं कि पाठक विकास का नहीं वेद प्रकाश शर्मा के उपन्यास मांगे , बताओ में क्या करू ?
फिर मधु जी ने सलाह दी कि आप एक ऐसा उपन्यास लिखे जिसमें विकास ना हो। तब वेद सर ने 'तीन तिलंगे' और 'आग लगे दौलत को' नामक उपन्यास लिखा जिन्हे पाठक आज भी नहीं भुल पाए।
कंचन में छपने से पहले अन्य प्रकाशकों को वेद सर 15 उपन्यास दिए थे। जो अन्य नामों से छपे वेद सर के कहने पर कंचन पॉकेट बुक्स ने उन सभी 15 उपन्यासों के कॉपीराइट खरीद लिए और वेद सर के नये उपन्यासों के साथ बीच - बीच में उन्हे प्रकाशित किया।
वेद सर के उपन्यासों कि डिमांड देखकर अन्य प्रकाशकों ने नकली उपन्यास निकालने का प्रयास किया। पर वेद सर ने अदालत को सहारा लेकर उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया।
फिर कई अन्य प्रकाशकों ने वेद सर के नाम से मिलते - जुलते उपन्यास प्रकाशित किया पर पाठको ने उन उपन्यासों को नकार दिया।
फिर वेद सर मनोज पॉकेट बुक्स से मिले। जहां मेरठ में वेद सर के उपन्यासों की हजारों में कॉपियां छपती थी और मनोज से एक लाख का छपने लगी।
'कैदी नंबर सौ' उपन्यास वेद सर का सौवा उपन्यास था। जिससे वेद सर ने 27 साल कि उम्र में लिखा था। विश्व के ऐसे पहले ऐसे उपन्यासकार बने जिसने मात्र 27 साल कि उम्र में सौ उपन्यास लिख दिए थे।
फिर राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित हुआ 'कानून का बेटा' उस समय उपन्यासों कि आम कीमत 6 रू होती थी। पर राजा पॉकेट बुक्स ने 10 रू कर दी । इसके बावजूद भी काननू का बेटा 200 - 200 रू में ब्लैक हुआ। किसी भी उपन्यास के ब्लैक में बिकने कि यह विश्व कि पहली घटना थी।
उसके बाद वेद सर ने सुरेश जैन के साथ प्रकाशन संस्थान तुलसी पॉकेट बुक्स खोला। और एक के बाद एक कई उपन्यास आय जो लाखों की संख्या में बिके ।
वहीं मनोज पॉकेट बुक्स ने वेद सर के नाम से 'नाम का हिटलर' नकली उपन्यास प्रकाशित कर दिया। जिसमें वेद सर का नाम व फोटो भी था। जैसे ही वेद सर को पता चला उन्होंने कोर्ट का में केस कर दिया । नाम का हिटलर जब्त कर लिया । इसके बाद बावजूद 'आत्मा का गवाही' और 'कानून नहीं बिकेगा' उपन्यास वेद सर के नाम से नकली उपन्यास आये और एक बात फिर कोर्ट में केस चला।
फिर वेद सर का वर्दी वाला गुंडा उपन्यास आया। जिसे लोगों ने खूब पढ़ा और बिक्री के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये। इतना ही नहीं 500 - 500 रू में ब्लैक में बिका । वेद सर के 176 उपन्यास प्रकाशित हुए। यह उपन्यास थ्रिलर उपन्यासों कि दुनिया में सुपर स्टार का दर्जा रखता है।
उसके बाद वेद सर के दो उपन्यासों पर दो फिल्म बनी 'बहू मांगे इंसाफ', 'बहू कि आवाज', 'विधवा का पति'व 'अनाम' नाम से बनी।
उसके बाद उपन्यास 'लल्लू' पर 'सबसे बड़ खिलाड़ी' बनी जो सुपरहिट हुयी, वेद सर ने ही फिल्म का स्क्रीन प्ले लिखा था। उसके बाद उपन्यास 'सुहाग से बड़ा' पर 'इंटरनेशनल खिलाड़ी' पर भी फिल्म बनी और सुपरहिट साबित हुई।
वेद सर मेरे हिसाब से दुनिया के सबसे बेहतरीन उपन्यासकार है जिनकी रचना ने सभी पाठको का मनोरंजन किया।
वेद सर के उपन्यासों से प्रेरणा लेकर मैंने शुरू में 5 - 6 कहानी लिखी। जो मेरे दोस्तो को काफी पसंद आई। उसके बाद उनके कहने पर मैंने उपन्यास लिखना शुरू किया। जिसका नाम my first murder case है जो अगले महीने आने वाला है वेद सर को में अपना गुरु मानता हूं । मेरा पहला उपन्यास वेद सर समर्पित है।
वेद सर आज हमारे बीच नहीं है। पर वेद सर हमारे दिल में हमेशा रहेंगे । में चाहता हूं एक बार आप मुझे जरूर मौका दे। मेरे आने वाला उपन्यास अवश्य पढ़े । और अपनी राय जरूर दे।।
प्रस्तुति- जयदेव चावरिया (हरियाणा)
Thanks sir
जवाब देंहटाएंवेद जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आर्टिकल। वेद जी को विनम्र श्रद्धांजलि।🙏
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