लेबल

मंगलवार, 13 नवंबर 2018

किस्सा ओमप्रकाश का

#नकली_उपन्यास_लेखन_कैसे?
---------------------------------------------
---------------------------------------------
प्रिय पाठकों, लिटरेचर लाइफ गु्रप पर 12 नवम्बर, सन् 2018 ई. को दो मित्रजनों की पोस्टें पढ़ीं। उस पोस्ट पर उन्होंने ओम प्रकाश शर्मा (जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा पर भ्रामक टिप्पणियां कर, जासूसी उपन्यास जगत के 40-50 की वय के पाठकों को भ्रामक जानकारियां देकर दिवंगत लेखक पर आक्षेप लगाए। मैं उन्हें पूरी तरह नकारते हुए जानकारियां दुरुस्त कराने का प्रयास कर रहा हूं। ओम प्रकाश शर्मा (बाद में जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा) और वेद प्रकाश काम्बोज का मैं सन् 1958 ई. से पाठक रहा हूं। हो सकता कुछ महीने पूर्व से उनका लेखन पाठकों के बीच आ गया हो। ये लेखक द्वय, मासिक पत्रिकाओं में लिखा करते थे। (नाॅवल) लेखन की शर्त मासिक पत्रिका प्रकाशक की हर माह नाॅवल देने की होती थी। 112 पेजेज और 27 लाइनों में नाॅवल होते थे, (मूल्य 75 पैसे।) अतः सरलता से हफ्ता-दस में लिखे जा सकते थे।
ओम प्रकाश शर्मा के 450 के आसपास उपन्यास, और 900 के आसपास नकली उपन्यासों को मिलाकर संख्या बतायी गयी है। पाठक द्वय द्वारा। प्रश्न उठाया कि 450 उपन्यास कैसे लिखे जा सकते हैं? आक्षेपित किया कि ओम प्रकाश ने नकली उपन्यास ओम प्रकाश शर्मा के नाम से लिखे-लिखाए।
इस संदर्भ में जानकारी देता हूं कि मेरे सन् 1968-70 के बीच दिल्ली प्रवास के बीच, एक ऐसी घटना घटी जिसने जासूसी उपन्यासकारों के नाम पर भूचाल ला दिया, जो सन् 2000 तथा बाद तक अपना पूरे असर में रहा; जब तक कि जासूसी उपन्यासों की सेल, ढलान पर न आ गयी। हुआ यूं कि उक्त अवधि 1968-70 के बीच, कूचा चेलान, दरियागंज, दिल्ली-6, निवासी एक ओम प्रकाश शर्मा नामधारी सज्जन जो लिखने का शौक रखते थे, उनसे एक प्रकाशक ने, कानूनी सलाह लेकर राजेश, जयन्त, जगत, तारा आदि पात्रों सहित जासूसी उपन्यास लिखाया। ओम प्रकाश शर्मा के नाम से छपा। बेचा।
नोट-उस समय तक पिछले दस वर्षों से लिखते आ रहे ओम प्रकाश शर्मा के दस वर्षों में प्रतिमाह नावल, 10×12=120 मार्केट में आ चुके थे। पाठक उनकी शैली पहचानते थे। बाद में आये ओम प्रकाश शर्मा की शैली में अंतर पकड़कर शिकायतें लिखकर भेजी गयीं। पूर्व के ओम प्रकाश शर्मा ने प्रकाशक का साथ पाकर बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा पर मुकदमा किया। अदालती पेशियां पड़ीं। बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा मुकदमा चलने के दौरान कई उपन्यास मार्केट में उतार चुके थे। (नोट-मैं उन्हें नकली ओम प्रकाश शर्मा न लिखूंगा, क्योंकि अदालत में नहीं माना) बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा के वकील ने अदालत में साबित कर दिया कि उनके मुवक्किल का नाम ओम प्रकाश शर्मा हैं। उन्हें अपने नाम से लिखने-छपने का मौलिक अधिकार है। अदालत ने यह दलील स्वीकार की। पूर्व वाले ओम प्रकाश शर्मा ने उपन्यास के पात्रों को लेकर विरोध रखा, बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा के वकील ने अदालत को दलील देते हुए कहा कि राम, सीता, गीता, राजेश, जयन्त, तारा नाम देश के हजारों लोगों के हो सकते हैं, चूंकि पात्र समाज के नामों से ही उठाए जाते हैं, अतः इस अधिकार को भी नहीं छीना जा सकता।
बहरहाल बाद वाले ओम प्रकाश शर्मा ने मुकदमा जीता। अदालत ने अपनी सलाह दी कि नाम के साथ कुछ और आगे-पीछे लगाकर नाम की भ्रामक स्थिति को लेखक स्वयं साफ करें। पूर्व वाले ओम प्रकाश शर्मा ने अपने लिए ‘जनप्रिय लेखक’ नाम रजिस्टर्ड कराया। जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के नाम से नावल, फोटोयुक्त आने लगे।
तो दोस्तों, इस तरह आगे, ओम प्रकाश शर्मा नाम के साथ नाॅवलों के छपने का सिलसिला शुरू हुआ तो महीने में दिल्ली-मेरठ से 50-60 उपन्यास आने लगे। जिनकी संख्या समीक्षक द्वय ने 900 लिखी वे कई हजार में है जिन्हीं अब नकली कहने में परहेज नहीं।
जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के 450 उपन्यास पर सवाल उठाने वालों को ध्यान में लाना आवश्यक है कि पूर्व में 120 उपन्यास की बात 10 वर्षों में मैंने लिखी, अगले 30 वर्षों को और जोड़ लीजिए 68 से 98 जबकि उपन्यास लेखन-पाठन का स्वर्णिम काल था तो 30×12=360़120=480 उपन्यास बनते हैं। कुछ अपवाद स्वरूप समय में न लिखा तो तीस की संख्या घटकर 450 रह जाती है। जो अक्षरशः सही है। जनप्रिय ओम प्रकाश ने कभी नकली नाॅवल नहीं लिखा। उन्हें जब एक उपन्यास के प्रथम एडिसन की रायल्टी दस हजार रुपये मिलते थे तब नकली ओम प्रकाश शर्मा पाण्डुलिपि लिखने वाले लेखक, 60-100 रुपये के बीच पारश्रमिक पाते थे। सहज में समझ में आने वाली बात है कि 10,000 रुपये एक प्रिण्ट के लेने वाला लेखक 60-100 रुपये में नाॅवल नकली क्यों लिखेगा? एक बालक बुद्धि की भी समझ में यह बात नहीं आने वाली।
ओम प्रकाश शर्मा नाम के जाली उपन्यासों की संख्या 900 में नहीं 9,000 से ऊपर हो सकती है।
जनप्रिय ओम प्रकाश के साथ मैंने वेद प्रकाश काम्बोज के नाम को भी खास मकसद से लिखा है। सन् 1974-75 में वेद प्रकाश शर्मा जी जब लेखन क्षेत्र में आये तो अदालती फैसले को निगाह में रखते हुए वेद प्रकाश काम्बोज के पात्रों विजय-रघुनाथ को लेकर लेखन की शुरूआत की। उन्होंने मेहनत की कामयाबी के झण्डे गाड़े। पर न भूलना चाहिए कि शुरूआती दिनों में वेद प्रकाश काम्बोज और विजय-रघुनाथ सीरीज के नाम की गुडविल शामिल थी।

-आबिद रिजवी
8218846970
दिनांक-13 नवम्बर, 2018

1 टिप्पणी:

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...