ओमप्रकाश शर्मा से जनप्रिय लेखक बनने की कहानी।
उपन्यास जगत के चर्चित लेखक ओमप्रकाश को कौन नहीं जानता।
अरे! मैं भी भूल गया भाई। ओमप्रकाश भी तो दो हैं ना अब आप कहां भटक गये।
जगन, जगत, पचिया, बंदूक सिंह जैसे पात्रों को लिखने वाले ओमप्रकाश शर्मा।
अब भी नहीं पहचाने तो अब हम बोल देते हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।
अच्छा अब पहचाना है।
तो मित्रों कोई लेखक अपने पहले उपन्यास से तो जनप्रिय होता नहीं इसलिए उसे जनप्रिय बनने के लिए कुछ ऐसा लिखना होगा की वह वास्तव में जनप्रिय बन सके।
और इन्होंने ऐसा ही लिखा की पाठक इनके उपन्यास का इंतजार करते रहते थे।
इनकी लोकप्रियता इस कदर थी की उपन्यास जगत में एक और ओमप्रकाश शर्मा आ गये।
अब दो ओमप्रकाश शर्मा।
अब पाठक किसे पढे।
कौन असली- कौन नकली।
इस असली- नकली की लङाई में पाठक भटकता रहता है।
हालांकि नकली किसी को भी नहीं कहा जा सकता।
अब दोनों ओमप्रकाश शर्मा।
तो मित्रों प्रथम ओमप्रकाश शर्मा इस बात को लेकर अदालत पहुंच गये की मेरे नाम से कोई और लेखन कर रहा है जिसके कारण पाठक से धोखा हो रहा है।
अदालत में द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा को बुलाया गया।
तो द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा ने कहा, -" महोदय मेरा वास्तविक नाम ओमप्रकाश शर्मा है और में भी एक लेखक हूँ । क्या एक नाम से दो लेखक नहीं हो सकते।"
अब जज महोदय ने प्रथम ओमप्रकाश शर्मा जी से कहा , " आप दोनों ही ओमप्रकाश शर्मा हो। इसलिए किसी को लेखन से मना तो नहर किया जा सकता। अतः आप अपने उपन्यास पर अपना चित्र प्रकाशित कीजिएगा।"
ओमप्रकाश शर्मा की तरफ से फिर आपत्ति आयी, कि जब द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा भी अपना चित्र लगाना आरम्भ कर देंगे तो पाठक फिर भ्रमित होगा।"
न्यायाधीश ने कहा, -" चलो, फिर आप अपने नाम के आगे- पीछे कोई उपाधि या उपनाम लगा लो।"
यहाँ मामला कुछ जचा।
काफी सोच-विचार के बाद ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने नाम के आगे जनप्रिय लेखक लगाना आरम्भ किया।
इस प्रकार जनता के प्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा से जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा बन गये।
अरे! मैं भी भूल गया भाई। ओमप्रकाश भी तो दो हैं ना अब आप कहां भटक गये।
जगन, जगत, पचिया, बंदूक सिंह जैसे पात्रों को लिखने वाले ओमप्रकाश शर्मा।
अब भी नहीं पहचाने तो अब हम बोल देते हैं जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।
अच्छा अब पहचाना है।
तो मित्रों कोई लेखक अपने पहले उपन्यास से तो जनप्रिय होता नहीं इसलिए उसे जनप्रिय बनने के लिए कुछ ऐसा लिखना होगा की वह वास्तव में जनप्रिय बन सके।
और इन्होंने ऐसा ही लिखा की पाठक इनके उपन्यास का इंतजार करते रहते थे।
इनकी लोकप्रियता इस कदर थी की उपन्यास जगत में एक और ओमप्रकाश शर्मा आ गये।
अब दो ओमप्रकाश शर्मा।
अब पाठक किसे पढे।
कौन असली- कौन नकली।
इस असली- नकली की लङाई में पाठक भटकता रहता है।
हालांकि नकली किसी को भी नहीं कहा जा सकता।
अब दोनों ओमप्रकाश शर्मा।
तो मित्रों प्रथम ओमप्रकाश शर्मा इस बात को लेकर अदालत पहुंच गये की मेरे नाम से कोई और लेखन कर रहा है जिसके कारण पाठक से धोखा हो रहा है।
अदालत में द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा को बुलाया गया।
तो द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा ने कहा, -" महोदय मेरा वास्तविक नाम ओमप्रकाश शर्मा है और में भी एक लेखक हूँ । क्या एक नाम से दो लेखक नहीं हो सकते।"
अब जज महोदय ने प्रथम ओमप्रकाश शर्मा जी से कहा , " आप दोनों ही ओमप्रकाश शर्मा हो। इसलिए किसी को लेखन से मना तो नहर किया जा सकता। अतः आप अपने उपन्यास पर अपना चित्र प्रकाशित कीजिएगा।"
ओमप्रकाश शर्मा की तरफ से फिर आपत्ति आयी, कि जब द्वितीय ओमप्रकाश शर्मा भी अपना चित्र लगाना आरम्भ कर देंगे तो पाठक फिर भ्रमित होगा।"
न्यायाधीश ने कहा, -" चलो, फिर आप अपने नाम के आगे- पीछे कोई उपाधि या उपनाम लगा लो।"
यहाँ मामला कुछ जचा।
काफी सोच-विचार के बाद ओमप्रकाश शर्मा जी ने अपने नाम के आगे जनप्रिय लेखक लगाना आरम्भ किया।
इस प्रकार जनता के प्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा से जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा बन गये।
- आबिद रिजवी जी के स्मृति कोश से।
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