लेबल

शनिवार, 24 नवंबर 2018

2. साक्षात्कार- इकराम फरीदी

कहानियाँ समाज से मिलती हैं- एम. इकराम फरीदी
साक्षात्कार शृंखला-02
 दिल्ली यात्रा (4.11.2018)  के दौरान जासूसी उपन्यासकार इकराम फरीदी से मिलना हुआ। उस दौरान इनका एक साक्षात्कार लिया जो आप के समक्ष प्रस्तुत है।
       -इकराम फरीदी जी के 'द आॅल्ड फाॅर्ट' से लेकर 'रिवेंज' तक पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और सभी कहानी के स्तर पर विविधता लिए हुए हैं। 
 - फरीदी जी, सर्वप्रथम आपका धन्यवाद जो आपने उपन्यास जगत को बेहतरीन उपन्यास दिये।
 - जी, धन्यवाद। 
- मेरा पहला प्रश्न है,आपको लिखने की प्रेरणा कहां से मिली। 
- बचपन से ही कहानियाँ पढने का शौक रहा, बाल मैगजीन पढी, धीरे-धीरे यह शौक उपन्यास की तरफ चला गया। और पढना फिर लेखन में बदल गया। 
- अपनी उपन्यास यात्रा के बारे में बतायें? 
- मेरा प्रथम उपन्यास 'द ओल्ड फोर्ट' जनवरी 2015 में  साहित्य सदन दिल्ली से आया। दूसरा उपन्यास 'ट्रेजड़ी गर्ल' धीरज पॉकेट बुक्स मेरठ से आया उसके बाद मेरे सभी उपन्यास 'रवि पॉकेट बुक्स' मेरठ से ही आ रहे हैं। 
 - उपन्यास जगत में आपके प्रेरणास्रोत लेखक कौन रहे हैं ?
 - मैंने सर्वाधिक आदरणीय वेदप्रकाश शर्मा जी को पढा है, मैं उनसे बहुत प्रभावित हूँ। इसके अलावा वेदप्रकाश कंबोज जी, सुरेन्द्र मोहन पाठक, अनिल जी, इब्ने सफी आदि को भी पढा है। इन्हीं की बदौलत में आज इस मुकाम पर हूँ। 
- बहुत से पाठक यह भी कहते हैं आपकी लेखनी में वेद जी की झलक मिलती है? 
 - यह हो सकता है, क्योंकि मैंने उनको पढकर लिखना सीखा है। उनके साथ भी रहा हूँ । लेकिन मुझे नहीं लगता मैं उन जैसा लिखता हूँ वो उपन्यास साहित्य के सम्राट थे। वे समुद्र थे मैं एक बूंद हूँ । 
- आपके उपन्यासों के कथानक कुछ अलग हटकर होते हैं,कहानी कहां से मिलती है?
- मेरी कहानियाँ समाज की कहानियाँ है। जैसा समाज में देखा उसे ग्रहण किया और कुछ कल्पना के रंग भर कर उसे एक उपन्यास का रूप दे दिया। कहानियाँ समाज से ही मिलती हैं।
-कुछ बता सकते हैं समाज से कैसे ग्रहण किया?
-मेरा आगामी उपन्यास 'होटल चैलेंज ' एक हाॅरर उपन्यास है। हमारे महाराष्ट्र प्रवास के समय एक होटल 'होटल चैलेंज' में कुछ घटनाएं घटित हुयी। वहाँ से मुझे उपन्यास की कहानी मिली। समाज में व्याप्त समलैंगिकता को आधार बनाकर 'समप्रीत ' उपन्यास लिखा। मेडिकल लाइन में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधार पर 'सफेद चोर ' उपन्यास आयेगा। हमारे समाज में बहुत कुछ घटित होता है, एक लेखक वही से कहानी उठाता है। 
 - आपके उपन्यास 'ए टेरेरिस्ट' की कहानी आतंकवाद पर आधारित थी। जिसमें यह दर्शाया गया की आतंकवादी पैदा करने के पीछे कुछ मुस्लिम लोग शामिल हैं। ऐसा कथानक चुनते वक्त कहीं डर नहीं लगा की कोई विवाद न हो जाये?
- जो सत्य है वही लिखा है। आतंकवाद के अनेक कारणों में से यह भी एक कारण है। बाकी उपन्यास संतुलित ढंग से लिखा गया है। किसी विवाद को बढावा देना मेरा मकसद नहीं और उपन्यास से ऐसा कुछ हुआ भी नहीं। 
- उपन्यास 'ए टेरेरिस्ट' के पात्र हैं 'विजय-विकास'। वेदप्रकाश कंबोज जी का 'विजय' एक सुलझा हुआ और जहीन शख्स है। वेदप्रकाश शर्मा का 'विजय' एक्शन वाला है लेकिन आपका 'विजय' इमोशनल बहुत है ऐसा परिवर्तन क्यों? यह तो विजय की छवि के विपरीत है? 
 - जो कहानी की मांग थी मैंने वैसा ही लिखा है। बाकी समय के साथ परिवर्तन होता रहता है। 
 - क्या कारण रहा की उपन्यास जगत का सुनहरा दौर देखते -देखते खत्म हो गया?
 - बदलते मनोरंजन के साधन और घोस्ट राइटिंग के कारण यह सुनहरा दौर खत्म हो गया। लेकिन पाठक आज भी हैं, अगर अच्छा लेखन है तो पाठक आज भी पढना पसंद करते हैं। 
- क्या जासूसी उपन्यासों का दौर लौटेगा? 
 बिल्कुल लौटेगा और मेरी छठी इंद्री तो कहती है कि एक दिन दौरे इब्ने सफी जैसा पाठकों का जुनून वापस आ सकता है । वेद प्रकाश शर्मा जी हमेशा कहते रहे कि इंसान एक ऐसा प्राणी है जिसे शारीरिक भूख के साथ साथ मानसिक भूख भी होती है और उस भूख को शांत करने के लिए जासूसी उपन्यास से अच्छा मनोरंजन दूसरा नहीं है ।इसीलिए मैं कहता हूॅ कि जासूसी उपन्यास का दौर पुनः सशक्त उपस्थिति दर्ज कराएगा। बस ईमानदार प्रकाशक और ईमानदार लेखक की ज़रूरत है। 
----- 
इस साक्षात्कार में हरियाणा के मित्र 'राममेहर जी' और 'बबलु जाखड़ जी' का सहयोग रहा।
- आपको यह साक्षात्कार कैसा लगा?
- अगर आप भी कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बाॅक्स में लिखें।
-धन्यवाद।
लेखक का पूरा परिचय यहां देखें- एम. इकराम फरीदी
---

6 टिप्‍पणियां:

  1. टूटकर बिखरा पॉकेट बुक्स आज बड़े अजब मोड़ पर पड़ा सिसक रहा है। इसके पतन के लिए महज दौर के बदलाव और घोस्ट राइटिंग को दोष देना आंखे बंद करके सच झुठलाने जैसा है। जहां समय पर अगली पीढ़ी का बीज नहीं पड़ता वह वंश हमेशा के लिए जमींदोज हो जाता है, फरीदी साहब, और..पॉकेट बुक्स में यह सितम कयामत की हद तक हुआ है। जिन दिग्गज लेखकों की शान में आज के संघर्षशील लेखकों की जमात कसीदे पढ़ते नहीं थकती, असल में वही दिग्गज इस त्रास्दी के गुनाहगार हैं। इन्होंने ही जासूसी उपन्यासकारों की नई पीढ़ी को पैदा होने नहीं दिया। क्योंकि आने वाली नई अनछुई प्रतिभाओं से उन्हें अपने उजले सिंघासन का भविष्य खतरे में नजर आता था। प्रकाशन कोई भी हो, वह नामी लेखकों का मोहताज होता है इसलिए विशुद्ध कारोबारी प्रकाशक लेखक के इशारों पर तिगनी की तरह नाचता रहा। तब उसकी रगों में कान से लेकर पूंछ तक भरा ईगो..बंदर का घोंसला बन गया और उसकी मुर्दे जैसी अकड़ कहीं गायब हो गई। वरना कोई बताये कि पाकेट बुक्स का कलंक दिनेश ठाकुर क्यों पैदा हुआ? उसूलपसंद होने का फटा ढोल पीटने वाले तुलसी पेपर बुक्स को 'डार्लिंग' और 'मिस्टर' जैसे ट्रेडमार्क क्यों लाने पड़े? कयामत यह है कि आज भी जासूसी उपन्यास जगत से जुड़ा हर वह शख्श जो इस डूबते जहाज को बचाने के लिए कुछ कर सकता है, वह खुद को प्रलय के बाद का ब्रम्हाजी समझकर घमंड में ऐंठा हुआ है और स्वयंभू झण्डाबरदार बनकर अपनी ढपली पर अपना रराग अलाप रहा है..और खुद अपनी पीठ थपथपाकर खुश हो रहा है कि पॉकेट बुक्स में इंकलाब बस वही लाने वाला है। कोई भी ये समझने को तैयार नहीं है कि अतीत की बुलंद इमारत के खंडहरों पर वर्तमान का स्वर्णमहल नहीं बनाया जा सकता। उसके लिए नया ईंट गारा जुटाना होगा और नए कारसाज भी। अतीत के जो चमकते सूरज अकेले -अकेले अपनी चमक बिखेरकर अस्तांचल की राह लगने को तैयार हैं, जो इंकलाब की कोपलों को रौंदने के अपराधी हैं वह बची खुची सांसों के साथ अब भला कौन सा इंकलाब लेकर आ पाएंगे? और क्यों? इस फ्रंट पर कितने ही ऐसे जलते सवाल हैं जिनके जबाब यकीनन एक सवाल बनकर ही रह जाएंगे। उनके जबाब कभी कोई नहीं जान पायेगा। यह एक तारीख के अंत का आरंभ है। या शायद अंत ही है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपने अपनी लेखनी का प्रदर्शन तो किया है परन्तु राह तो आपने भी नहीं दर्शायी। क्वालिटी लेखन होगा तो आज के जमाने में उसे सेल्फ पब्लिश किया जा सकता है। किंडल में डाला जा सकता है। ब्लॉग में डालकर अपना पाठकवर्ग बनाया जा सकता है। आज लिखने वाला अपने काम को पाठकों तक पहुँचाने के लिए प्रकाशकों का मोहताज नहीं रहा है। बस लिखने वाले को इन तकनीकों का पता होना चाहिए। पाश्चिम में कई लेखक ऐसे ही कमा रहे हैं।

      हटाएं
    2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    3. अगर सेल्फ पब्लिशिंग और वेब की दुनियां इतनी ही कारगर है जनाब, तो क्या कोई बता पाएगा कि अभी तक कोई दूसरा सुरेंद्र मोहन पाठक या वेद प्रकाश शर्मा पैदा क्यों नहीं हुआ? क्या इनके बाद देश में टेलेंट का अकाल पड़ गया? पर्दे के पीछे का काला सच कितने रीडरों को पता है। s m pathak को छोड़कर कितने दिग्गज लेखक ऐसे हैं या थे जो अधूरी या पूरी तरह घोस्ट राइटरों पर आश्रित नहीं थे? जिनके नाम के पीछे किसी गुमनाम का काम होता था। उन गुमनामों को क्या कोई नहीं पढ़ता? किंडल और ब्लॉग विकल्प से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। बहुत ही हल्के विकल्प। उनमें दूसरा पाठक या शर्मा पैदा करने की कुव्वत नहीं है। उनके मुकम्मल वजूद पर तो आज भी अकेले राजा पाकेट बुक्स का नाम भारी है। आभासी दुनियां और धरातल की दुनियां के इसी बुनियादी फर्क ने मुकम्मल प्रकाशनों के शटर को आज तक गिरने नहीं दिया। पूरब और पश्चिम के लेखकों की तुलना करना मोदी से राहुल की तुलना करने जैसा होगा।

      हटाएं

Featured Post

मेरठ उपन्यास यात्रा-01

 लोकप्रिय उपन्यास साहित्य को समर्पित मेरा एक ब्लॉग है 'साहित्य देश'। साहित्य देश और साहित्य हेतु लम्बे समय से एक विचार था उपन्यासकार...