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बुधवार, 30 नवंबर 2022

काम्बोजनामा- रामपुजारी

 काम्बोजनामा- रामपुजारी 

आइए हम सभी काम्बोज सर के जन्मदिन के अवसर पर शुभकामना संदेश भेजें।

इस अवसर पर #काम्बोजनामा से एक झलकी आप सभी के लिए प्रस्तुत है...

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बंद आँखों से तो आमजन भी सपने देख लेते हैं लेकिन जो खुली आँखों से सपने देखे उसे या तो लोग दीवाना, पागल कहते हैं या फिर विचारक अथवा दार्शनिक! अठारह साल का किशोर मन अपनी सपनों की दुनिया में खोया रहता। मन में हमेशा कुछ न कुछ चलता रहता, जिसका जिक्र वह किसी से भी नहीं कर पाता था। पड़ोस के ही बाबूराम स्कूल में वह पढ़ता था। जब स्कूल में नहीं होता था तो वह शॉप पर होता था। उसके पास वक़्त ही कहाँ था। वहीं वह अंतर्मुखी वेद अपने सपनों में खोया हुआ अपने पिता जितेंद्र सिंह काम्बोज का हाथ बँटाता था। आर्टिफ़ैक्ट्स और हैंडीक्राफ्ट की ये सोविनियर शॉप उस जमाने में लालकिले की एक बड़ी मशहूर शॉप थी।

              इस अठारह वर्षीय जुझारू-जिज्ञासु और कल्पनाशील वेद प्रकाश का जन्म शाहदरा के एक संयुक्त परिवार में हुआ। शाहदरा, वही शाहदरा जोकि छोटा बाज़ार (चन्द्रावली गाँव) के आसपास चार सौ साल पहले सोलहवीं शताब्दी में यमुना नदी के किनारे बसना शुरू हुआ। इसी शाहदरा के पुराने इलाकों में से एक, छोटा बाज़ार की जैन मंदिर गली के अंतिम कोने में स्थित केसरी मोहल्ला में, 1 दिसंबर 1939 की एक ठिठुरती-सी सुबह नन्हें वेदप्रकाश का जन्म हुआ। संयुक्त परिवार के माहौल के कारण वेद के व्यक्तित्व में कुछ ऐसे संस्कार और आदतों का गठन हुआ—छोटों से स्नेह और बड़ों का आदर करना—जोकि एकल परिवार (न्यूक्लियर फ़ैमिली) होने पर शायद नहीं हो पाता या मुश्किल होता—कई विद्वानों का कुछ ऐसा ही मानना है। परिवार में दूसरी पीढ़ी के सबसे पहली पुरुष संतान होने के नाते वेद को सभी का भरपूर स्नेह और दुलार मिला। कभी चाचा की गोदी में खेला तो कभी चाची की।

          किन्तु दादा परमानन्द सिंह से वेद का विशेष लगाव था इतना कि दादा की गोदी से वेद उतरता ही नहीं था। फिर दादा-पोते के रिश्तों की मिठास तो जगजाहिर है क्योंकि दो कालखंडों के मिलन का प्रमाण होता है यह रिश्ता। गुजरा ज़माना और आने वाला जमाना दोनों मिलकर एक-दूसरे को जानते और समझते हैं। वेद अपने दादा के साथ ही खेलता रहता। रोज रात को दादा जी वेद को कुछ किस्से-कहानियाँ सुनाया करते थे। सुबह होने पर भी उन कहानियों की बातें और घटनाएँ वेद भूल नहीं पता था। जब माँ वेद को स्कूल के तैयार कर रही होती तब भी वह दादा जी से कई तरह के प्रश्न पूछता रहता जैसे कि हनुमान जी कैसे उड़ते थे? पत्थर पानी में कैसे तैरते थे?

स्कूल जाने से पहले इस तरह कि बातें लगभग रोज़ाना ही हुआ करती थी जिसके कारण स्कूल के लिए देर हो जाती थी। जबकि जैन मंदिर स्कूल जिसमें में वेद की प्राइमरी शिक्षा हुई थी, पास में ही था। इतना पास कि स्कूल में जब सुबह का घंटा बजता था तो वेद के घर में भी सुनाई पड़ता था। जैन मंदिर गली और उसके आसपास की गलियों में खेलते-कूदते हुए वेद बड़ा होने लगा।

           एक सुबह वेद घर पर दूध पी रहा था कि जैन मंदिर स्कूल में सुबह का घंटा बजा। घंटे की आवाज सुनकर वेद जल्दबाज़ी में दूध का गिलास छोडकर दादा जी के साथ स्कूल चला गया। दादा जी को वापस आने पर जब ये पता चला तो वे दूध का गिलास लिए स्कूल पहुँच गए। उधर वेद अपनी कक्षा में दाख़िल हुआ इधर स्कूल के गेट पर दादाजी पहुँचे। दादा जी मोहल्ले के सम्मानीय और बुजुर्ग व्यक्ति थे, स्कूल के अध्यापक व अन्य स्टाफ सभी उन्हें जानते थे। इसलिए दादा जी को स्कूल में दाखिल होने में कोई कठिनाई नहीं हुई। दादा जी कक्षा के बाहर वेद को दूध पिला कर घर लौट आए। यही घटना कई बार घटी। छोटे वेद को देखकर स्कूल के बच्चे और अध्यापक कहा करते थे—आ गए दादा जी के लाडले।

फिर जैसा प्यार-दुलार बचपन में वेद को मिला वैसा ही बड़ा होने पर उसने अपने भाई-बहनों को दिया।

काम्बोजनामा से चंद अंश

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