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बुधवार, 4 सितंबर 2019

साहित्य प्रचार में पाठक का योगदान

साहित्य प्रचार- प्रसार में आपका योगदान - संतोष पाठक
    साहित्य के प्रचार-प्रसार में एक पाठक का क्या योगदान होना चाहिए। इसके क्या अर्थ हैं। इसी विषय पर उपन्यासकार संतोष पाठक जी का एक आलेख प्रस्तुत है।

कुछ कहना चाहता हूं।
आज के लेखन और लेखकों के संदर्भ में, आज के प्रकाशकों के संदर्भ में। वैंटीलेटर पर कृतिम ढंग से सांस लेते मनोरंजक साहित्य के संदर्भ में।
   ये तीनों ही बड़ी कठिनता से - आपस में सामंजस्य बैठाने की मुश्किल कोशिश करते हुए - घिसट-घिसट कर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं।
  उक्त हालात के लिए कौन जिम्मेदार है और कौन नहीं, फिलहाल यह मेरा मुद्दा नहीं है।
       मैं बात करना चाहता हूं, लेखक, प्रकाशक और उनके सामंजस्य से छपकर सामने आ रहीं, आने वाली रचनाओं की। उन किताबों की जिनकी कुछ हजार प्रतियां छापकर, उनमें से कुछ सौ प्रतियां बेचकर प्रकाशक चैन की सांस लेता है कि चलो पब्लिशिंग का खर्चा तो निकला। दूसरी तरफ लेखक उस किताब को सोशल मीडिया पर डालकर, हजारों लोगों में से कुछ की प्रशंसा और कुछ पाठकों की आलोचना झेलकर ये सोचकर अपने को तसल्ली दे लेता है कि चलो, किताब छपकर मार्केट में आई तो सही।
सवाल ये है कि इससे हासिल क्या हुआ?
लेखक ने राॅयल्टी नहीं कमाई, प्रकाशक ने ऊंचे दाम पर किताब बेचकर भी बस प्रकाशन का खर्चा भर वसूल लिया। लेखक को लेखक कहलाने का गौरव - जो कि अधिकतर मामलों में बस मुंहदेखी बात होती है - हासिल हुआ। प्रकाशक को प्रकाशक कहलाने का गौरव - जो वास्तव में किसी गिनती में नहीं आता - हासिल हुआ।
चेहरे पर दिखावे की मुस्कान और बेस्ट सेलर होने का दावा, किताब के आउट आॅफ स्टाॅक तो जैसे कोई बड़ी उपलब्धि हो - भले ही वह किताब पांच सौ ही छापी गई हो - सोशल मीडिया पर प्रमुखता से प्रचारित होने लगता है।
         वह भी ऐसे ऐसे ग्रुप में जहां हर पाठक अपने आप में एक लेखक है लिहाजा किताब का पोस्टमार्टम शुरू हो जाता है। इसके विपरीत 'तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊंगा' की तर्ज पर वाहवाही भी मिलती है। नतीजा ये होता है कि एक अच्छी किताब पाठकों तक पहुंचने से पहले ही अपना वजूद खो देती है। इसके विपरीत ऐसी किताब जिसके आपको पांच पन्ने भी पढ़ना गवारा न हो कुछ नये पाठकों के हाथों तक पहुंच जाती है।
नतीजा फिर भी वही रहता है ढाक के तीन पात।
और हम क्या करते हैं?
भसड़ फैलाने वाली पोस्ट को शेयर कर के दुनिया भर में फैला देते हैं। राजनीति पर ऐसे ऐसे कमेंट करते हैं कि हमारे नेताओं ने अगरी बेशरमी में डिप्लोमा ना कर रखा हो तो अब तक जाने कितने सुसाईड कर चुके होते।
       संप्रदायिकता की भावनाओं को भड़काने वाले पोस्ट को लाईक करते हैं, कमेंट करते हैं, शेयर करते हैं। पोस्ट किसी खूबसूरत दिखने वाली मोहतरमा की हो तो उनकी छींक की खबर पर भी पूछ बैठते हैं कि डाॅक्टर को दिखाया या नहीं, या फिर हकीम लुकमान बनकर दो चार सलाह दे डालते हैं।
मगर एक बार भी हम वहां दिखाई दे रही किसी पुस्तक को या उसके रीव्यू को शेयर करने की जहमत नहीं उठाते। कहीं हमारे ऐसा करने से किताब की सेल ना बढ़ जाय। अरे भाई किताब नहीं पढ़ी कोई बात नहीं, अच्छी नहीं लगी कोई बात नहीं, बहुत अच्छी लगी तो भी कोई बात नहीं मगर सामने दिखाई दे रही किताब को शेयर कर देंगे तो हमारे पाॅकेट से क्या गया। कुछ और लोग किताब के बारे में जान जायेंगे हो सकता है उन हजार लोगों में से कोई एक किताब खरीद भी ले। हमारा क्या गया? सिवाय इसके कि हमारेे इस किंचित प्रयास से अमुक किताब की एक प्रति ज्यादा बिक गई।
          हम किताब पढ़ते हैं, अच्छी लगे तो हम सैकड़ों लोगों में से एक उसके बारे में दो लाईन लिख देता है। बुरी लगे तो लेखक को बुरा ना लगे इस भावना के तहत अधिकतर लोग किताब के बारे में कुछ नहीं लिखते।
         जबकि जरूरत दोनों ही बातों की है। ईमानदारी पूर्वक की गई हमारी समीक्षा हमेशा लेखन को बढ़ावा देती है, लेखक को और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है, भले ही किताब की बुराई सुनकर थोड़ी देर के लिए उसका मन खिन्न हो जाए।
इसलिए सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाली हर किताब को शेयर करें। भले ही उसका लेखक हमारे संपर्क में हो या न हो! हम उसे व्यक्तिगत तौर पर जानते हों या नहीं जानते हों।
आइए मिलकर मनोरंजक साहित्य को फिर से बुलंदियों पर पहुंचाने की कवायद में जुट जाएं।
लेखक का फायदा - किताबें ज्यादा बिकेंगी तो राॅयल्टी ज्यादा मिलेगी। वह ज्यादा मेहनत से अपने लेखन कार्य को अंजाम दे सकेगा।
प्रकाशक का फायदा - किताबें ज्यादा बिकेंगी तो वह ज्यादा कमाई करेगा और पुस्तक का मूल्य कम करने में कामयाब होगा। आज दो सौ बीस में बिकने वाली किताबें कल डेढ़ सौ, एक सौ तीस में मिलने लगेंगी।
पाठक का फायदा - पढ़ने के लिए कम पैसे खरचने पड़ेंगे। आज जिस मूल्य में एक किताब खरीदते हैं हो सकता है कल को उसी कीमत में उसी स्तर की दो किताबें हासिल हो जायं।

प्रस्तुति- संतोष पाठक
लेखक- संतोष पाठक
फेसबुक की मूल पोस्ट

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