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रविवार, 15 सितंबर 2019

मैं जासूसी उपन्यासकार क्यों बना?- अमित खान

मैं जासूसी उपन्यासकार ही क्यों बना ?

 मैं समझता हूँ, उपन्यास लेखन अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है । जिसमें पात्रों के माध्यम से आप अपने मन की बात कहते हैं । दूसरे शब्दों में, उपन्यास-लेखन एक जादू की तरह है । जैसे काला जादू ! उपन्यासकार एक जादूगर की तरह रंगमंच पर खड़ा होता है और वह अपने दिमाग रूपी हैट में-से घटनाओं का ऐसा चमत्कारी जाल निकालकर दिखाता है, ऐसा महिमा-मंडल चारों तरफ बुनता है कि सब बेहद मन्त्र-मुग्ध होकर कागज़ पर लिखे शब्दों को पढ़ते हैं ।

       जिस उपन्यासकार में पाठकों को शब्दों से चिपकाने का जितना ज्यादा कौशल होगा, वह उतना ही कामयाब उपन्यासकार बनेगा  ।

         कहने को सब कुछ काफी आसान है, लेकिन फिर भी यह जादू बिखेरना कोई बच्चों का खेल नहीं । उसके लिये उपन्यासकार के पास कठोर परिश्रम, अगाध कल्पनाशीलता और पाठकों की नब्ज परखने का ख़ास आला होना चाहिए ।

       बचपन से ही मुझे अच्छा लगता था, रहस्यमयी रचनाओं का ताना-बाना बुनना । मैं घंटों के लिये ऐसे कल्पना-लोक में खो जाता, जो एक अजब ही दुनिया होती । थ्रिल (रोमांच) से मुझे प्यार था, आज भी है । ज़रा सोचिये, आम जिन्दगी में भी कितना थ्रिल होता है । जिन्दगी में कितने अद्भुत होते हैं वो क्षण, जब आपको मालूम ही नहीं होता कि अगले पल क्या होने वाला है ? क्या घटने वाला है ? सब कुछ सस्पेंसफुल होता है । फिर चाहे वह सस्पेंस कैरियर को लेकर हो या जिन्दगी और मौत को लेकर । थ्रिल आखिर जिन्दगी में कहाँ नहीं है ? हर जगह रोमांच है । हर जगह सस्पेंस है । और जब हमारी जिन्दगी ही इतनी रोमांचकारी होती है, तो फिर व्यवसाय भी कोई रोमांचकारी ही क्यों न चुना जाये । यही सोचकर मैं जासूसी उपन्यासकार बन गया ।

     श्रद्धेय देवकीनंदन खत्री से शुरू हुआ भारत में जासूसी उपन्यास का यह सफ़र इब्ने सफी और ओमप्रकाश शर्मा से लेकर आज तक जारी है ।
      फिर भी एक बात का दुःख अवश्य है । भारत में जासूसी साहित्य को वह सम्मान आज भी नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था । जबकि वेद प्रकाश शर्मा और सुरेन्द्र मोहन पाठक जैसे शलाका पुरुष इस क्षेत्र में हुए हैं, जिन्होंने अद्भुत लेखन-कार्य किया है । आज भी जासूसी साहित्य को भारत में साहित्य के नाम पर कूड़ा परोसने वाला एक व्यवसाय समझा जाता है । जबकि विदेशों में जासूसी साहित्यकारों ने अथाह मान-सम्मान प्राप्त किया है । अगाथा क्रिस्टी, इयान फ्लेमिंग और जेम्स हेडली चेइज जैसे दर्जनों उपन्यासकार इस बात के साक्षी हैं । इतना ही नहीं, शरलाक होम्ज पात्र के रचयिता आर्थर कानन डायल को इंग्लैंड में ‘सर’ जैसी मानद उपाधि से भी अलंकृत किया गया ।

क्या भारत में ऐसा संभव है ?
हरगिज नहीं ।
अभी जासूसी साहित्य के लिये यहाँ एक खुली मानसिकता की आवश्यकता है । स्वस्थ्य बहस की आवश्यकता है ।

       फिर भी मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक जासूसी उपन्यासकार हूँ और मुझे दया आती है उन कुंठित मानसिकता वाले लोगों पर, जो जासूसी उपन्यासों को सिर्फ इसलिये नहीं पढ़ते, क्योंकि उनकी निगाह में यह एक स्तरहीन साहित्य है ।

ज़रा सोचिये, वह मनोरंजन के कितने महत्वपूर्ण साधन से वंचित हैं ।

     मैं इस कामना के साथ इस लेखकीय को बंद करता हूँ कि एक दिन हालात सुधरेंगे । एक दिन जासूसी साहित्य को भारत में वही दर्जा हासिल होगा, जो विदेशों में हासिल है ।

अब आज्ञा चाहूंगा ।
आपका अपना
अमित खान
मुंबई – 400104
सम्पर्क सूत्र : foramitkhan@gmail.com

यह खास लेखकीय, जो "मैडम नताशा का प्रेमीे" उपन्यास का हिस्सा है।  


4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी क्वालिटी का लेखन अगर होगा तो उसका सम्मान भले ही भारत में न मिले लेकिन उसके अनुवाद के माध्यम से विश्व में सम्मान अर्जित किया जा सकता है। आजकल जो नेस्बो, हक्कन नासिर जैसे उपन्यासकार इस साहित्य के शीर्ष पर बैठे हैं और इनकी मूल भाषा अंग्रेजी नहीं है। हिंदी के अपराध साहित्यकारों को इस विषय में भी सोचना चाहिए। हाँ, बस इधर एक ही क्राइटेरिया रहेगा कि उपन्यास सबसे ऊँची क्वालिटी का हो।

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    1. Sir, Mera manna hai ki janpriya lekhak Om Prakash Sharma ne Dan Brown se bhi shandar novel likhe hain. Ab bhale hi unhe wo khyati na mil payi ho, ya unke novels english me translated na hue ho lekin we nischit rup se hindi novel jagat ke sabse mahan lekhko me se ek hain. Unki lekhni chamatkari thi. Unka 'Khooni Tantrki' aur ese kai novel pad kar mujhe feeing aati hai ki Avengers movie banane walo ne jarur Janpriya Lekhak Om Prakash Sharma Ji se training li hogi.

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  2. Bilkul Sahi, Sir. Jasusi Sahitya ke kshetra me apka yogdan bhi atulniya hai. Apke dwara rachit Commander Karan Saksena series ke novels kisi Roller Coaster ride se kam nahi hote.

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