शहर : पुणे (महाराष्ट्र)
दिनांक 19-दिसंबर-2017
समय : शाम 05:15
वो किसी पुरानी सी वीरान इमारत का एक कमरा था, जिस इमारत को शायद किसी वजह से सालों पहले अधूरा छोड़ दिया गया था। जिसको देख कर ही गुमान होता था कि एक लंबे वक़्त से किसी को इस इमारत की याद तक नहीं आई थी। दीवारों पर प्लास्टर नहीं था और ईटो का लाल रंग उस कमरे को एक भयानक सा रूप दे रहा था। खिड़कियों के लिए छोड़ी गयी जगह से, कमरे में हवा की आवाज़ सीटी की तरह गूँज रही थी और उस कमरे के बीचों-बीच इस समय लोहे की एक टंकी रखी हुई थी, जिसके अंदर से उठती हुई आग की तेज़ लपटें उस पूरे कमरे को गर्म कर रही थीं। और साथ ही तप रहा था वह चेहरा, जो उस आग के पास खड़ा हुआ था। लपटों की रौशनी में उसका गोरा चेहरा भी आग की ही तरह लाल नज़र आ रहा था। उसके बिखरे हुए बाल, चेहरे पर बड़ी हुई दाढ़ी, अंगारों की तरह दहकती हुई उसकी आँखें और उसके भींचे हुए जबड़े चीख-चीख कर कह रहे थे कि वह आग सिर्फ आग नहीं बल्कि किसी ज्वालामुखी के फटने की शुरुआत है।