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बुधवार, 28 जून 2023

तथास्तु- वेदप्रकाश शर्मा, उपन्यास अंश

साहित्य देश के स्तम्भ 'उपन्यास अंश' में इस बार प्रस्तुत है प्रसिद्ध उपन्यासकार वेदप्रकाश शर्मा जी के पुत्र शगुन शर्मा जी के उपन्यास 'तथास्तु' का एक रोचक अंश।
तथास्तु - शगुन शर्मा

अपने आलीशान चैंबर में अपनी ऊंची पुश्तगाह वाली चेयर पर मौजूद रागिनी ने रिवाल्विंग चेयर को घुमाया और अपने सामने मेज के पार बैठे शख्स का खुर्दबीनी से मुआयना किया।

रागिनी का पूरा नाम रागिनी माथवन था। वह यौवनावस्था के नाजुक दौर को पहुंची किसी ताजा खिले गुलाब-सी सुंदर युवती थी उसकी आवाज में जैसे जादू और आंखों में हद दर्जे का आकर्षण था। बला के हसीन चेहरे पर शैशव का अल्हड़पन तथा गजब का आत्मविश्वास था।
           वह मुंबई फिल्म इंडस्ट्री बॉलीवुड की नामचीन प्लेबैक सिंगर थी और आज निर्विवाद रूप से वालीवुड की टॉप सिंगर कही जाती थी। उसकी मधुर आवाज हिंदुस्तान के कोने-कोने में गूंज रही थी।
महज उन्नीस बरस की आयु में यह आज कामयाबी की उस बुलंदी पर पहुंच चुकी थी जो केवल विरलों को ही नसीब होती थी।
उसके सामने बैठे शख्स का नाम भीखाराम भंसाली था। जो कि बाॅलीवुड का सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक था। जिसकी वालीवुड में चौतरफा डिमांड थी और जिसके बारे में यह कहते आम सुना जा सकता था कि किसी फिल्म के साथ उसका नाम जुड़ना ही उस फिल्म की कामयाबी की लगभग गारंटी था।
रागिनी को इस तरह अपनी तरफ देखता पाकर भंसाली के चेहरे पर असंमजस के भाव आ गए।
"लगता है मुझे यहां देखकर आपको कोई खुशी नहीं हुई मिस रागिनी?" भंसाली तनिक खिन्न भाव से बोला ।
"यह आपकी गलतफहमी है जनाब भंसाली साहब।" दुनिया की सबसे मथुर आवाज की स्वामिनी ने अपने होठों पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट लाते हुए कहा- "आप जैसी शख्सियत से मिलकर भला कौन होगा जो खुश नहीं होगा। खैर... जाने दीजिए।" उसने निःश्वास
भरी- 'और यह बताइए कि आप क्या लेना पसंद करेंगे। ठंडा या... ।"
“तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है।" भंसाली रागिनी की बात काटता हुआ बोला "मैं अभी ब्रेकफास्ट करके आया हूँ और ब्रेक फास्ट भी जरा हैवी हो गया है।"
“ओह।" रागिनी इत्मिनान से चेयर की पुश्त से पीट टिकाती हुई बोली- -"तब तो फिर मुझे यह पूछना चाहिए था कि आपके यहां तशरीफ लाने की वजह क्या है?"
"राइट!" भंसाली सहज भाव से बोला। फिर वह अपनी जेब से सिगरेट तथा लाइटर का पैकेट निकालता हुआ बोला “आई कैन' स्मोकिंग?"
"सॉरी भंसाली साहब ।" रागिनी ने खेद भरे स्वर में
कहा- "दरअसल मुझे स्मोकिंग से एलर्जी है।"
"ओह ।" भंसाली के चेहरे पर तनिक अप्रसन्नता भाव आए, जो उसने अपने चेहरे पर उजागर नहीं होने दिए। वह सिगरेट का पैकेट तथा लाइटर वापस अपनी जेब में रखता हुआ बोला-
"थैंक्स।"
“डोंट माइंड"
"मेरे यहां आने की वजह कारोबारी है मिस रागिनी।" फिर उसने कहा।
“मेरा भी कुछ ऐसा ही अंदाजा था।"
"आजाद प्रोडक्शन ने हाल ही में अपने बैनर तले एक नई फिल्म लांच करने की घोषणा की है। उसका नाम शायद आपने सुना होगा?"
"सुना है।" रागिनी ने कहा-
-“उसका नाम तथास्तु है। टेलीविजन, चैनलों पर उसका विज्ञापन तो शुरू भी हो गया है। बहरहाल एकदम नए अंदाज का विज्ञापन है उसका।"
“आजाद प्रोडक्शन हमेशा नया ही करता है।" भंसाली के स्वर में गर्व का पुट आ गया था - "उस विज्ञापन के टेलर में कोई एक्शन या मूवमेंट नहीं दिखाया गया है। क्योंकि अभी तो इस फिल्म के किसी भी शाॅट की शूटिंग नहीं की गई। फिर भी वह विज्ञापन टेलीविजन चैनलों पर
आज सबसे ज्यादा धूम मचा रहा है।"
रागिनी का सिर हॉले से सहमति में हिला।
“तथास्तु फिल्म की यूनिट को तैयार करने में मैंने और मुकुलबाली आजाद जो कि आजाद प्रोडक्शन का मालिक और तथास्तु फिल्म के प्रोड्यूसर हैं ने काफी मेहनत की है और केवल फिल्म की हीरोइन को छोड़कर यूनिट के सभी लोग फिल्म इंडस्ट्री के 'दिग्गजों' में शुमार होते है।"
“मतलब यह कि फिल्म निर्माण की आपकी पूरी यूनिट तैयार है?"
"हां! सिवाय फीमेल प्ले बैक सिंगर के।"
"ओह!" रागिनी की स्वप्नीली आंखों में सहसा सोच के भाव उभरे —— “तो अपनी लेटेस्ट फिल्म तथास्तु के लिए आपको एक फीमेल प्ले बैक सिंगर की जरूरत है?"
“यस! वैसे तो इंडस्ट्री में फीमेल सिंगरों की कमी नहीं है। लेकिन हमारी तलाश का दायरा केवल 'दिग्गज' ही है और यह बात तो शायद ही किसी से छिपी हो कि रागिनी माधवन आज निर्विवाद रूप से संगीत की दुनिया में शिखर पर हैं।"
“समझ गई! आप अपनी इस फिल्म के लिए बतौर फीमेल सिंगर मुझे साइन करना चाहते हैं?"
"यू आर सो एब्सोल्यूटली राइट मिस रागिनी और मुझे पूरा यकीन है कि मेरे साथ काम करके आपको खुशी होगी?"
रागिनी तुरंत कोई जवाब न दे सकी। वह किसी गहरी सोच में नजर आने लगी थी।
"आपने जवाब नहीं दिया?" उसे सोचों में डूबी देख भंसाली व्यग्र भाव से बोला-
-"क्या मेरे इस ऑफर में आपको कोई दिलचस्पी है?"
रागिनी ने खामोशी तोड़ी। कुछ पलों की खामोशी के बाद उसने कहा--" आपने ठीक समझा भंसाली साहब। मुझे आपकी इस ऑफर में सचमुच कोई दिलचस्पी नहीं है।"
        एक पल को तो भंसाली को अपने कानों पर यकीन ही न आया कि उसने वही सुना था जो रागिनी कह रही थी।
"मिस रागिनी।" फिर वह अविश्वास से आंख फैला हुआ विस्मय से बोला- -“आप मुझे इंकार कर रही है? भीखाराम भंसाली को इंकार कर रही हैं?"
“ऑय एम सॉरी भंसाली साहब। लेकिन यह सच है।" "लेकिन क्यों?" मंसाली तीव्र स्वर में बोला- -"इतने बड़े बैनर  और डायरेक्टर की फिल्म को इंकार करने की आखिर वजह क्या है?
"अगर कोई वैट्स प्राब्लम है तो।"
"वैट्स की तो खैर कोई प्राब्लम नहीं है।"
"तो फिर?"
"तो फिर यह भंसाली साहब।" रागिनी अब पहले की तरह ही सहज हो गई थी- "कि मेरी इंकारी की दो अहम वजह है?"
"वह क्या?"
"पहली वजह फिल्म का बैनर है? आजाद प्रोडक्शन "
"यह क्या वजह हुई?"
“फिलहाल आप नहीं समझेंगे। दूसरी वजह आपसे ताल्लुक रखती है।"
"मुझसे।" भंसाली चौंका -“मुझसे ताल्लुक है?”
"हाँ भई।"
"मुझसे ताल्लुक रखती वजह क्या है?"
“आपका नाम ?"
“क्या?"
“भीखाराम भंसाली!"
"मगर।" भंसाली बुरी तरह उलझ गया था। वह चकित होकर बोला-
"यह क्या वजह है?"
"शायद आपकी समझ में नहीं आएगी।"
भंसाली का दिमाग अंतरिक्ष में कत्थक करने लगा था।
"मिस सगिनी ।" वह आंदोलित भाव से बोला “आप क्या कह रही है मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा? भला मेरा नाम आपकी इंकारी की वजह कैसे हो सकता है?"
"डिटेल समझाने का मेरे पास वक्त नहीं है भंसाली साहब।" रागिनी के स्वर में पुनः खेद का पुट आ गया- "आय एम वैरी सॉरी। मुझे।"
उसने अपनी रिस्टवॉच देखी "साढ़े नौ बजे रिकार्डिंगके लिए जाना है और नौ बजने वाले हैं।"
      आश्चर्य और अविश्वास की अधिकता के कारण भंसाली के नेत्र फट पड़े।
"आप मुझे यहां से जाने के लिए कह रही हैं?" यह आवेश में आता हुआ बोल
"घर आए मेहमान से यह बदसलूकी भला मैं कैसे कर सकती हूं  जनाब।" रागिनी भावहीन स्वर में बोली-  "मैं तो केवल आपको यह बता रही हूं कि साढ़े नौ बजे मुझे स्टूडियो में पहुंचना है।"
भंसाली का धैर्य तब एकाएक जवाब दे गया। वह एक झटके से उछलकर खड़ा हो गया।
"तुम पहली लड़की हो रागिनी, जिसने भंसाली को इंकार करने का दुस्साहस दिखाया है।" वह तमतमाया हुआ बोला। रागिनी के लिए उसका संबोधन भी पूरी तरह चेंज हो गया था-  "तुमसे पहले यह जुर्रत आज तक कोई नहीं कर सका, भले ही वह कितना बड़ा स्टार क्यों न हो। और इंकार भी कहां किया है तुमने, तुम सरासर मेरा अपमान कर रही हो।"
"अपमान?"
“हां। इंकारी की जो वजह तुमने बताई।" भंसाली का कठोर स्वर भभकने लगा था – “वह निहायत ही बेबुनियाद और बकवास है, और जो तुमने जानबूझकर महज मेरा अपमान करने के लिए गढ़ी है। मैं अपने इस अपमान को हमेशा याद रखूंगा मिस रागिनी। अपना यह अपमान मैं हमेशा याद रखूंगा।"
रागिनी ने कुछ कहना चाहा।
लेकिन बुरी तरह क्रोधित और तमतमाया भंसाली फिर एक पल के लिए भी वहां नहीं रुका था।
वह मुड़ा और फिर तेजी से फर्श को रौंदता हुआ रागिनी के चैंबर से बाहर निकल गया।
             होठ भींचे रागिनी कई पलों तक चैबर के उस झूलते दरवाजे को देखती रही, जिससे निकलकर भंसाली बाहर गया था। फिर एकाएक उसके गुलाबी अधरों पर उसके चेहरे जैसी ही सुंदर मुस्कान खिल गई।
वह मुस्कान, जिसमें न जाने कितने भेद छिपे हुए थे।
तभी उसकी मेज पर रखा इंटरकाम बजा ।
उसने अपने सिर को हल्की-सी जुबिश दी और इंटरकाम कर रिसीवर उठाकर कान से लगाया।
"बड़गोली साहब आए है मैडम।" दूसरी तरफ से अटकी आवाज उसके कानों में पड़ी। और वह नाम सुनकर न जाने क्यों एक बार फिर रागिनी के मस्तष्क पर आड़ी-तिरछी रेखाएं उभरती चली गई। लेकीने खुद को सामान्य कर लिया।
"भेज दो।"
उसने कहा और रिसीवर इंटरकाम पर रख दिया।
।।।।।।।।।।।।।

मुकुलबाली आजाद बाॅलीवुड का जाना-माना फिल्म प्रोड्यूसर ।
आजाद प्रोडक्शन के नाम से जिसके बैनर का डंका सारी फिल्म इंडस्ट्री में बजता था।
वह बावन साल की उम्र का एक मोटा थुलथुल और रुखे मिजाज वाला आदमी था।
चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी!
आंखों पर पतले लेंसों का काला नजर का चश्मा ।
वह उस वक्त अपने ऐश्वर्यशाली ऑफिस में मौजूद था। उसके सामने फाइलों का छोटा-मोटा ढेर लगा हुआ था। वह तमाम फाइलें उसकी आगामी फिल्म 'तथास्तु' से ताल्लुक रखती थी, जो कि उसका ड्रीम प्रोजेक्ट था और अपनी पिछली कई फिल्मों की तरह वह इस फिल्म को भी आजाद प्रोडक्शन की एक यादगार फिल्म देना चाहता था। उसी तैयारी में वह पूरे मनोयोग से जुटा था। तभी इंटरकाम का बजर बजा!
मुकुल के चेहरे पर घोर अप्रसन्नता के भाव आए।
लेकिन उसने इंटरकॉम का रिसीवर उठा लिया और
बोला- “यस ।"
"अस्थाना साहब आए हैं सर।" उसके कानों में अपनी रिसेप्शनिस्ट का अदब भरा स्वरे पड़ा- -"आपसे फौरन मिलना चाहते हैं।"
"अस्थाना ।” मुकुल होठों ही होठों में बुदबुदाया। उसके चेहरे पर तत्काल कई रंग आकर चले गए थे। लेकिन उसने लगभग फौरन खुद को सुसंयत कर लिया और इंटरकाम पर बोला - “उसे आने दो।"
इधर उसने रिसीवर इंटरकाम पर रख दिया।
प्रत्यक्षतः वह भले ही खुद को शांत एवं संयत दर्शाने का प्रयास कर रहा था लेकिन 'अस्थाना' के आने की खबर सुनकर वह अंदर ही अंदर काफी बेचैन हो उठा था।
"सामने रखे फाइलों के ढेर में उसकी दिलचस्पी अचानक ख़त्म हो गई थी, अपनी बेचैनी छिपाने के लिए उसने दराज से निकालकर अपनी पसंदीदा ब्रांड का सिगरेट सुलगा लिया और उसके कश लगाने लगा।
            तभी उसके ऑफिस का ग्लासडोर खोलकर उसी की हम उम्र और उसके जैसे हुलिए वाले शख्स ने अंदर कदम रखा था।
आगंतुक का नाम आनंद अस्थाना था, वह मुंबई का एक मशहूर हीरों कर व्यापारी था, जो हिंदी फिल्मों में फाइनेंस भी करता था, लेकिन उसका मुख्य कारोबार हीरों का व्यापार था। उसका वह व्यापार इंटरनेशनल लेवल पर फैला हुआ था और आज उसके पास कितनी अकूत संपत्ति थी इसका उसे जरा भी अंदाजा नहीं था।

आनंद अस्थाना और मुकुलबाली आजाद आपस में गहरे दोस्त थे। लेकिन पिछले कुछ दिनों से अचानक ऐसे हालात बन गए थे, जिसने उनकी दोस्ती में गहरी दरार उत्पन्न कर दी थी।

अस्थाना दरवाजे पर ही ठिठक गया और कुछेक पलों तक सपाट तथा सख्त निगाहों से मुकुल को देखता रहा, फिर वह मुकुल के करीब पहुंचा।

अपनी चेयर में धंसी विशाल काया को मुकुल ने तकलीफ दी और पहलू बदलकर उसने नाक व मुंह से सिगरेट का ढेर सारा धुंआ उगला।
""कैसा है अस्थाना?" फिर वह अपने होठों पर बनावटी मुस्कान सजाता हुआ बोला ! “जैसा भी हूं तेरे सामने हूं।” 
अस्थाना अपलक मुकुल को देखता हुआ शुष्क स्वर में बोला । "बैठ! क्या पिएगा? सिगरेट तो मुझे मालूम है कि तू पीता नहीं है।"
अस्थाना ने कुर्सी पर बैठने का उपक्रम न किया।
"मेरा पुराना यार है।" वह सपाट स्वर में बोला “इस लिहाज से तुझे फिर यह भी पता होना चाहिए कि मुझे क्या पीना पसंद है।" "सॉरी! फारमेलिटी वाली बातें मुझे याद नहीं रहती।”
“मुझे अपने दुश्मनों का।" अस्थाना अपलक मुकुल को घूरता हुआ अपने एक-एक शब्द पर बल देता हुआ बोला- “खून बहुत पसंद है। उसे मैं काफी चाव से पीता हूं।"
मुकूल हड़बड़ाया।
उसने एकटक भाव से सामने खड़े अस्थाना को देखा। 
"मगर यहां तो तेरा कोई दुश्मन नहीं है?" फिर उसने कहा।
"गौर से देख मुकुल" अस्थाना उसकी आंखों में आंखें डालता हुआ बोला- -"तेरे चश्मे का नंबर लगता है बदल गया है।" 
"तेरा इशारा कही मेरी तरफ तो नहीं है अस्थाना ।"
"मेरा यार कितना समझदार है।" अस्थाना के स्वर में व्यग का पुट आ गया था।
मुकुल संजीदा हुआ।
"नुक्स मेरे चश्मे में नहीं तेरे दिमाग में है अस्थाना ।" वह बोला- "मैं तेरा दुश्मन नहीं दोस्त हूं। दोस्त भी पुराना, गहरा अजीज ।” "था।" अस्थाना ने अपने शब्दों पर जोर दिया "जिसका कि मुझे सख्त अफसोस है।"
"तेरे इस अफसोस की वजह?"
"तेरी इकलौती गोल्ड मैडलिस्ट बेटी अदा है।"
“उसने अर्थशास्त्र में लंदन की ब्रिज यूनीवर्सिटी को टॉप किया है मुकुल। अर्थशास्त्र का उसे हैरत में डाल देने वाला नॉलिज है। उसे एक बहुत बड़ी अर्थशास्त्री बनना है और अपने बाप के अरबों-खरबों के बिजनेस को और आगे ले जाना है। मगर ।"
"मगर क्या अस्थाना?" मुकुल ने त्रस्त भाव से सिगरेट का कश लेकर पूछा। 
"तुम मेरी बेटी और उसके मुकाम के बीच में दीवार बन गए हो।
तुमने मेरे लाख मना करने के बावजूद उसे अपनी एक वाहियात फिल्म बतौर हीरोइन साइन कर लिया और उसे उसके असली मुकाम से भटका दिया है।"
"तेरी बेटी बहुत खुशकिस्मत है अस्थाना जिसे न्यूकमर होने के बावजूद आजाद प्रोडक्शन पर्दे पर ला रहा है। मतलब साफ है, उसकी कामयाबी निश्चित है, अगर वह इसी तरह पूरी निष्ठा और लगन से अपना काम करती रही तो टॉप पर पहुंचने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। तब तुझे समझ में आएगा कि अदा के कैरियर के उस मुकाम के आगे यह मुकाम कतई हैच है जो तूने उसके लिए चुन रखा था।

"बकवास बंद कर मुकुल।" अस्थाना भड़ककर बोला- "मेरी बेटी तेरी दो-दो कौड़ी की फिल्मों में परदे पर ठुमके लगाने के लिए नहीं -आई, वह अपने बाप की तरह एक बहुत बड़ी कार्पोरेट हस्ती बनने के लिए दुनिया में आई है जिसके दरवाजे पर तेरे जैसे दर्जनों पेड्यूसर रोजाना फिल्म फाइनेंस की भीख मांगने के लिए हाथ फैलाए खड़े होंगे। म-मैं तुझे फिर आखिरी बार समझा रहा हूं मुकुल। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है तथास्तु फिल्म का अपना जो विज्ञापन तूने रिलीज किया है उसमें कोई  चेहरा दिखाया नहीं गया। अपनी यह वाहियात जिद छोड़ दे और मेरे घर की इज्जत को परदे पर चमकने से रोक दे। अदा जैसी खूबसूरत लड़कियों की इस शहर में कोई कमी नहीं है। एक ढूंढ़ेगा तो हजार मिल जाएंगी। दस हजार मिल जाएगी। उससे ज्यादा मिल जाएंगी। बल्कि खुद आकर तेरे दरवाजे पर सजदा कर रहीं होगी। लेकिन ।”

“तूने गलत नहीं कहा अस्थाना ।” मुकुल ने सिगरेट का कश लेकर अस्थाना की बात काट दी“आजाद प्रोडेक्शन के पास अपनी हीरोइन के लिए लड़कियों की कोई कमी नहीं है। एक से बढ़कर एक खूबसूरत लड़कियों की कतार लगी हुई है। स्टार कही जाने वाली अदाकाराएं भी तथास्तु में भूमिका पाने के लिए मुझे फोन कर रहे है उनमें से कई का मैंने स्क्रीन टेस्ट भी लिया है। लेकिन।”

"फिर लेकिन।” “तू अच्छी तरह से जानता है कि टेलेंट परखने के मामले में तेरा यह यार कभी धोखा नहीं खा सकता। टेस्ट मुकम्मल होने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि जो बात अदा में है वह किसी और में नहीं है।"
"मुकुल ।”
"और देख अस्थाना, तू आज के नए जमाने का हाईटैक सोच वाला इंसान है। पुराने जमाने की यह घिसी-पिटी दकियानूसी बातें तुझे शोभा नहीं देती कि घर की इज्जत परदे पर नहीं चमकनी चाहिए। वक्त के साथ-साथ हर बात के मायने बदल जाते हैं और फिर तेरी बेटी भी तो फिल्मों की दीवानी है। फिल्म एक्ट्रेस बनना उसका सपना है और तथास्तु में जो 'रोल' मैं उससे करवाना चाहता हूं उसके लिए वह एकदम फिट है। जब सबकुछ सलीके से चल रहा है और ऑन डिमांड है तो फिर तू क्यों बीच में विलेन बनने की कोशिश कर रहा है?”
"मतलब यह कि " अस्थाना की आंखों से चिंगारियां निकलने लगी थीं। वह भभकते स्वर में बोला “मेरी बात पर तूने जरा भी गौर नहीं किया। मेरी बेटी अदा को अपनी फिल्म में कास्ट करने से तू बाज नहीं आएगा?
"आय एम सॉरी अस्थाना। हमारी सारी तैयारियों मुकम्मल हो चुकी हैं। आने वाली अट्ठारह तारीख को तथास्तु फिल्म का मुहूर्त है जो आजाद वैनर की हर फिल्म की तरह बेहद धूमधाम से संपन्न होगा और उसमे तुझे जरूर, इंवाइट किया जाएगा। मुझे पूरा यकीन है कि तू अपने तमाम गिले-शिकवे भुला देगा और अट्ठारह तारीख को हमारी उस  'पार्टी' में जरूर आएगा।"

“आऊंगा मुकुल! जरूर आऊंगा।" अस्थाना ने अपना एक-एक शब्द चबाया। उसके होठों से कठिनता से शब्द निकले थे- "जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करना मजबूरी बन जाता है। मेरे लाख-लाख समझाने और मना करने के बावजूद तू जो करने को राजी नहीं है वह होने से रोकने का अब मेरे पास केवल एक ही तरीका है ।"

“क्या मतलब?” मुकुल ने हकबकाकर अस्थाना को देखा। "बिल्कुल साफ है मुकुल! मुझे कुछ करना होगा। कुछ ऐसा करना होगा। ताकि तू अपने इरादों से बाज आ जाए ।"
"ऐसा तू क्या करने वाला है अस्थाना ।"
"अट्ठारह तारीख को तुझे पता चल जाएगा।" 
"अच्छा।" मुकुल ने सिगरेट का लंबा कश लिया और अपलक अस्थाना को देखता हुआ बोला "अट्ठारह तारीख को उस पार्टी में क्या मुझे गोली मार देगा? वैसे इस वक्त जो तेरे तेवर हैं वह तो साफ-साफ इसी बात की चुगली कर रहे हैं।"
“क्या?" 
“यही कि तू अपनी बेटी की 'कास्ट' वाली मेरी फिल्म रोकने के लिए मुझे गोली मार सकता है?".
“तूने ठीक कहा मुक्त ! सवाल जब मेरी इकलौती होनहार बेटी के कैरियर का हो तो मैं कुछ भी कर सकता हूं। आई रिपीट कुछ भी
“अरे वाह ।" मुकुल ड्रामेटिक भाव से बोला "फिर तो भई मैं वाकई डर गया।"
अस्थाना एकाएक पलटा और पैर पटकता हुआ मुकुल के ऑफिस से बाहर निकल गया।
परंतु !
मुकुल को उसकी आंखों में एक आग नजर आई थी। उसने अपना अधजला सिगरेट ऐश ट्रे में मसल दिया और कितनी ही देर तक चिंतामग्न मुद्रा में बैठा रहा।
फिर उसने मेज पर रखा अपना सेल्युलर उठाया और फुर्ती से उस पर कोई नंबर डॉयल करने लगा।
वह निस्संदेह अदा का मोबाइल नंबर था। दूसरी और से रिंग जाने लगी तो उसने मोबाइल अपने कान से सटा लिया।
..............

मुकुलवाली आजाद के पर्सनल असिस्टेंट का नाम कमल वर्मा था। वह पच्चीस साल की उम्र का सामान्य कद-काठी वाला एक आकर्षक नौजवान था, जिसकी आंखों में मानों जादू था। ऐसा जादू जो किसी भी लड़की को अपनी तरफ खींच सकता था।

                उसका केबिन मुकुलबाली आजाद के केबिन से ठीक बाहर था, उससे आगे कारीडोर था, यदि कारीडोर सन्नाटे में डूबा हो और उसे वहां देखने वाला कोई न हो तो कमल वर्मा, की होल के जरिए मुकुलबाली के केबिन में न केवल झांक सकता था उससे कान सटाकर अंदर होने वाली बातचीत भी सुन सकता था। उस वक्त भी वह ऐसा ही कर रहा था। मुकुलबाली तथा अस्थाना के बीच चैंबर में होने वाला सारा वार्तालाप सुना था और उसकी आंखों में एक खास किस्म की चमक आ गई थी।

फिर जैसे ही फर्श को रौंदता तमतमाया हुआ अस्थाना दरवाजे की तरफ बढ़ा वह फुर्ती से दरवाजे के पास से हट गया और अपनी सीट पर वापस बैठकर सामने रखे कंप्यूटर की-बोर्ड में व्यस्त हो गया।

उस वक्त वह अपने आपको पूरी तरह सामान्य दिखाने का प्रयास कर रहा था। जबकि वास्तव में स्थिति बिल्कुल उसके प्रतिकूल थी।

कमल वर्मा उस वक्त मन ही मन बहुत ज्यादा आंदोलित था, उसके अंदर एक छंद-सा चल रहा था। तभी झटके से चैंबर का दरवाजा खुला और तमतमाया अस्थाना बाहर निकला। कमल वर्मा की तरह उसने एक निगाह उठाकर देखना भी गंवारा नहीं किया था।
          वह फर्श को रौंदता हुआ वहां से चला गया। कमल वर्मा तब तक उसे देखता रहा, जब तक कि अस्थाना मोड़ काटकर आंखों से ओझल न हो गया।

फिर एकाएक उसके चेहरे के भाव तेजी से बदले।

             उसने एक बार सतर्क निगाहें अपने चारों और फिराई। जब उसे यकीन हो गया कि उसे वहां देखने वाला कोई नहीं था तो उसने फौरन अपना मोबाइल फोन निकाला और उस पर कोई नंबर पंच करके कान से लगा लिया और दूसरी तरफ से काल रिसीव होने का इंतजार करने लगा।
।।।।।।
बाला जी बड़गोली पचास साल की उम्र का सूरत से ही अत्यंत काइयां दिखने वाला शख्स था। उसकी तोड़ निकली हुई थी। फिर अथगंजा था। अपने पंधे का यह मंझा हुआ व्यवसाई था।

वह बालीवुड में सी. डी. डी. पी. डी. और आडियो टेप कैसेट के धंधे में 'ईल' नाम की कंपनी भारत की सबसे बड़ी कैसेट कंपनी थी। जिसका कि यह चेयरमैन था। पिछले दस सालों में वालीवुड की जितनी भी फिल्मों का संगीत सुपरहिट हुआ, उनमें से अस्सी फीसदी फिल्मों के म्यूजिक के कापीराइट बड़गोली के पास सुरक्षित थे। वही बड़गोली उस वक्त रागिनी से मिलने आया था और उसके

केबिन में उसके सामने बैठा था।
"फरमाइए बड़गोली साहब।" रागिनी बड़गोली के चेहरे पर अपनी निगाह जमाती हुई मीठे स्वर में बोली " आपने यहां आने का तकल्लुफ क्यों किया?" बड़गोली ने कुर्सी पर पहलू बदला फिर रागिनी के कोमल सुंदर चेहरे पर निगाह जमाता हुआ बोला- -"यह कारोबारी तकल्लुफ है।"
“सो तो जाहिर है। वरना इतने बड़े कैसेट किंग के पास मुझ नाचीज को याद करने की फुर्सत कहां?" बड़गोली फैसला न कर सका कि रागिनी ने वह महज औपचारिक बात कहीं थी या उसका उपहास किया था। लेकिन उपहास की कोई वजह दूर-दूर तक उसकी समझ में न आई।
"ह...हूं।" उसने हुंकार भरी और अपने स्वर को संयत रखता हुआ बोला - "दरअसल रागिनी, तुम्हारे जैसे टॉप सिंगरों में आज 'रोमिक्स' एलबम निकालने की होड़ लगी हुई है। मुझे पता चला है कि तुम भी बहुत जल्द अपना प्राइवेट रीमिक्स एलबम निकालने वाली हो?"
“आपने ठीक सुना है बड़गोली साहब " रागिनी ने सहज भाव से कहा- "टॉप सिंगरों में यह होड़ तो आज सचमुच लगी हुई है, फिर मैं भला कैसे पीछे रहती। मेरा भी ऐसा ही एक रीमिक्स लगभग तैयार हैं और बहुत मुमकिन है कि वह अगले ही महीने लांच हो जाए। वैसे यह मेरा पहला रीमिक्स एलबम होगा। जिसका नाम मैंने 'हिना' रखा है।
"हिना अच्छा नाम है और मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारा वह एलबम निश्चित रूप से सुपर-डुपर हिट होगा। उस एलबम के रूप में तुम्हारी आवाज का जादू एक बार फिर ऑडियंस के दिलोदिमाग पर छा जाएगा।"
"मेरी ईश्वर से यही कामना है।"
“इफैक्ट, मेरे यहां पर आने की यही वजह है रागिनी।" 
"क्या?" रागिनी के चेहरे पर उलझन के भाव आए।
“मैं तुम्हारे इस फर्स्ट रीमिक्स एलबम के राइट्स खरीदना चाहता हूं। उन राइट्स की कीमत मैं तुम्हें किसी भी दूसरी म्यूजिक कंपनी के मुकाबले कहीं ज्यादा दूंगा और उस एलबम का 'एड' भी हर कंपनी से बढ़ा-चढ़ाकर करूंगा। मेरे ख्याल से मेरे इस ऑफर से तुम्हें कोई ऐतराज नहीं होगा।"
रागिनी अनिश्चित सी नजर आने लगी थी। बड़गोली के खामोश होने के बावजूद उसने बोलने का उपक्रम नहीं किया था। बड़गोली के ही आगे बोलने का इंतजार करती रही थी।
"वैसे।” बड़गोली ने ही कहा- "यह जानकर तुम्हें भी सख्त हैरानी होगी रागिनी कि गीत और संगीत की दुनिया से जुड़े दो इतने बड़े दिग्गजों के बीच आज तक कोई भी प्रोफेशनल रिलेशन कायम नहीं है। जबकि हमारे बीच केवल प्रोफेशनल ही नहीं बल्कि अन्य कामन रिलेशन भी होने चाहिए। वैसे इस मामले में तुम्हारा क्या ख्याल है? क्या मैं गलत कह रहा हूँ?" 
“आप जैसा समझदार आदमी भला गलत कैसे कह सकता है। बड़गोली साहब।"
"सो देयर।" बड़गोली ने इस बार भी उसके लहजे के व्यंग को नहीं समझा था। वह लापरवाही से कबे झटकता हुआ बोला "तो फिर हम अपने 'रिलेशनशिप' की शुरूआत 'हिना' से करते हैं। यह रहे 'हिना' के कापीराइट्स पेपर।" उसने अपनी जेब से कागज का एक पुलंदा बांध कर रागिनी के सामने मेज पर डाल दिया और बोला- 'इन्हें में पहले से टाइप करा लाया हूं। केवल रकम वाला कालम खाली है। मतलब रकम तुम्हारी अपनी मर्जी से भरी जाएगी। उसे भर लो और यह पेपर साइन कर दो।"
रागिनी ने एग्रीमेंट पेपर उठा लिए। उसने पेपर्स खोलकर सरसरी निगाहों से उनका मुआयना किया।
बड़गोली ने गलत नहीं कहा  था।
वह पेपर्स कंपलीट थे। मगर 'प्राइस' वाला कॉलम खाली था। जिसमे रागिनी अपनी माफिक रकम भरने के लिए आजाद थी।

            पेपर्स देखते-देखते अनायास ही रागिनी के होठों पर एक विदुपपूर्ण मुस्कराहट उभर आई, मगर पेपरों की ओट होने के वजह से बड़गोली उसकी वह मुस्कराहट न देख सका।
         बड़गोली काफी हसरत भरी निगाहों से रागिनी की और देखता रहा और पेपर साइन किए जाने का इंतजार करता रहा।
अगले ही पल । पेपर्स पर रागिनी की पकड़ सख्त हो गई।
उसने वह एग्रीमेंट पेपर फाड़कर टुकड़े-टुकड कर दिये।

उपन्यास समीक्षा-  तथास्तु

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