बिमल चटर्जी...चन्दर...वेद प्रकाश काम्बोज...जनप्रिय लेखक 'ओम प्रकाश शर्मा'...
निराली थी...इन 'उपन्यासों' की दुनिया...
मैंने जब अपनी 'बुक स्टॉल' संभाली...मैं इनके बारे में 'ABC...D' भी नहीं जानता था...
'मजरूह' ( सुल्तानपुरी ) साहब के शब्द उधार लेना चाहूँगा...कि -
...
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया...
इन उपन्यासों के बारे में 'साहित्य' के लोगों की राय अच्छी नहीं थी. आज भी नहीं है...वे इसे 'पल्प फिक्शन' ( लुगदी साहित्य ) कहकर लगभग 'पाक़िस्तान' भेजने की बात करते थे...उनका मानना था कि 'ये पुस्तकें बच्चों को बिगाड़ती हैं...'
ऐसे में मेरी मुलाक़ात होती है वन एण्ड ओनली...जनप्रिय लेखक 'ओम प्रकाश शर्मा'...जी से...
देखते ही देखते साहित्य ( प्रेमचंद...राही मासूम रज़ा ( 'मिली' फ़िल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का पुरस्कार प्राप्त करने वाले...) का प्रेमी #प्रदीप_इटावा_वाला 'शर्मा' जी के अपनी ही दुकान #पालीवाल_बुक_सेण्टर पर उपलब्ध सभी उपन्यास पढ़ गया...मुझे तो वे कहीं से भी 'बच्चों' को बिगाड़ने वाले नहीं लगे...
'ओम प्रकाश शर्मा'.जी...अपने नाम के आगे 'जनप्रिय लेखक' क्यों लगाते थे ?
जनप्रिय लेखक 'ओम प्रकाश शर्मा' जी...'विक्रांत'...सीरीज़ के 'ट्रेड' नाम वाले लेखक 'ओम प्रकाश शर्मा' जी ( ? ) से कैसे अलग थे...?
कहानी बहुत लम्बी है...मेरे 'सीने' में इन उपन्यासों को 'पल्प फिक्शन' की गाली देकर 'पुकारने' वालों के प्रति 'शिकायत' दफ़न है...विशाल अनुभव और अध्ययन तो है ही...
नीचे कुछ कोट कर रहा हूँ...
"मैंने उससे दुबारा मेरठ जाने पर पूछा, ''प्रेमचंद और शरतचंद के बीच तुम किसे महान समझते हो ?''
मैंने सोचा कि वही रटा रटाया उत्तर कि दोनों. पर मैं स्वयं तनिक स्तब्ध रह गया, उसका उत्तर सुनकर. उसने कहा प्रेमचंद को ध्यान से पढ़ोगे तो जानोगे कि वह एक ऐसा कायस्थ था जिसका संपूर्ण साहित्य ब्राह्मण विरोधी था जबकि ब्रिटिश युग में ब्राह्मण भी साधारण प्रजा था. आज तो कुछ है ही नहीं.''
...ये किससे मुलाक़ात की 'चर्चा' थी ?
कौन था...जो...बातचीत में तुम...उसका...उसने...जैसे 'आत्मीय' संबोधन यूज़ कर रहा था...?
ये थे...ये तो बाद में बताऊंगा...वो भी यदि मौक़ा लगा...
लेकिन प्रेमचंद जी को... ब्राह्मण विरोधी बताने वाले थे...
वन एण्ड ओनली...जनप्रिय लेखक 'ओम प्रकाश शर्मा'...जी !
राजेश,जगत,जगन,बन्दूक सिंह जैसे 'यादगार' चरित्र को लेकर 'सीरीज़' लिखने वाले दिवंगत 'शर्मा' जी के...दो जासूसी उपन्यासों ( 'एक नवाब पन्द्रह चोर' और 'सुधाकर हत्याकांड' ) का मुख्य पृष्ठ निम्न में शामिल है...
शुरुआत में ही...
शामे-अवध अवश्य प्रसिद्ध है ।
परन्तु अवध की दोपहर...जून का महीना ।
चुंबक की तरह 'जकड़' लेने वाले...शर्मा जी...उनके पढ़े उपन्यास बहुत याद आते हैं...
आमीन...
लेकिन दुःखी मन से...
#प्रदीप_इटावा_वाला
( 9761453660 )
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