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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू

उदयपुर विश्वविद्यालय कुछ अपने नाम जैसा ही अत्यन्त अलग एवम् प्रिय। अनेक शहरों के लड़के-लड़किया, अमीर-गरीब तथा सभी धर्मों के छात्र इस विद्यालय को शोभायमान बनाए हुए थे। अगस्त का महीना यूं भी छात्र- छात्राओं के अन्दर नया उत्साह उत्पन्न कर देता है—क्योंकि इलेक्शन आरम्भ हो चुके थे। छात्रों में एक नया जोश सहज ही देखा जा सकता था, किन्तु शाम होते ही चीखते एम्प्लीफायर खामोश हो जाते, जैसे इस समय चारों ओर खामोशी व्याप्त थी। कुछेक लड़के-लड़कियां अपने होस्टल के कमरों में पढ़ाई में व्यस्त थे, कुछ बैडमिंटन खेल रहे थे, तो कुछ प्रेमिकाओं की झलक के लिए 'गर्ल्स होस्टल' के इर्द-गिर्द चक्कर काट रहे थे। लड़कियां भी कम नहीं थीं किसी-न- किसी बहाने अपने प्रियतम को दर्शन दे दिया करती। माहौल कुछ अजीब था। 

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू
        आज रविवार था, इसीलिए शायद ऐसा समां बंधा था। ठंडी हवा चारों ओर चहलकदमी कर रही थी। आकाश में चांद दिखने लगा था। लॉन के एक कोने में विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध छात्र नेता बैठे हुए थे। उनकी संख्या चार थी। चारों के हाथों में सिगरेटें सुलग रही थीं। अनायास प्रथम छात्र नेता बोला- "हमारा ग्रुप आज यूनिवर्सिटी में काफी चर्चित है— इसका श्रेय अमित तिवारी को जाता है।”


    "छात्राएं तो वैसे भी लट्टू हैं उस पर, 'ही मैन' लगता है दोस्त।" तीसरे ने कहा।
"होगा क्यों नहीं, लम्बा-चौड़ा जो है। अमित तिवारी अगर हमारी तरह होस्टल में रहता तो मजा आ जाता दोस्त।"
"मजा तो उसके न रहने पर भी उठा रहे हैं-किस चीज की कमी है ? रुपया पानी की तरह बहा रहा है। हमारा ख्याल भी कितना रहता है उसे ।" - प्रथम छात्र नेता बोला।
"हूंsss ।” - उन्होंने पुनः सिगरेट का कश खींचा। "लगता है, तुझे चढ़ने लगी – जा, आराम कर।”-  दूसरा हँसा था।
प्रथम छात्र उठा तथा अपने कमरे की ओर बढ़ गया। ये सारी गतिविधियां नेहा अपने कमरे की खिड़की से चुपचाप देख रही थी।
नेहा - पूरा नाम नेहा कपूर । सौंदर्य का उसके पास जरा भी अभाव नहीं था। गोरा रंग, गोरी सुराहीदार गर्दन, बादामी आंखें, घनी लम्बी पलकें, काले लम्बे घने रेशमी केश, जो कूल्हे तक लटक रहे थे-पतले तराशे हुए गुलाबी होंठ, लेकिन गंभीर मुखड़ा । हल्की-भीनी महकती सांसें कमरे में फैलती रहीं। उसके शरीर पर मूल्यवान आधुनिक स्कर्ट- ब्लाउज था— पांव में स्लीपर पहने हुए खिड़की से बाहर का नजारा देख रही थी नेहा । एकाएक उसकी 'रूममेट' पायल ने अन्दर पग रखा तो नेहा सचेत हुई, आहिस्ता से मुड़ी-  “कहां चली गई थीं ?” बोली वह ।
"कहीं नहीं - जरा नोट्स तैयार करने थे । तुम तो जानती हो, मेरी लिखने की रफ्तार कितनी मंद है ।"- अपनी  पुस्तकें, कॉपियां उसने मेज पर पटक दीं तथा पंखे के नीचे आकर फर्श पर बिछी चटाई पर बैठ गई, "आओ नेहा- बैठो।"
नेहा चुपचाप उसके समीप आई तथा बैठ गई।
"और सुना, दो घंटे अकेले क्या करती रही ?" -मुस्कराते हुए उसने प्रश्न उछाल दिया ।'
"कुछ नहीं, जरा लड़कों की धमाल चौकड़ी देख रही थी।" नेहा ने सरल भाव से कहा,- "एक बात बताओ पायल।"
"हूँ- पूछ !” उसने इत्मीनान से कहा ।
"यहां अमित तिवारी का बहुत शोर है। कभी देखा है, उसे ?" -वह अपनी नेल पॉलिश को निहारती हुई बोली।
"हां, तुम तो बी० एस-सी० प्रथम वर्ष देख रही हो, मैं सीनियर हूं। अमित तिवारी भी सीनियर है। उसका रूप, सौंदर्य, व्यक्तित्व लड़कियों पर छा गया है। अपनी क्लास की बहुत-सी लड़कियां तो उस पर जान देती हैं।" - पायल अत्यन्त गर्व से बता रही थी - चेहरा चमक रहा था ।
"क्या बहुत पैसा है उसके पास ?"-  यूं ही प्रश्न किया था नेहा ने।
" बहुत — देखतीं नहीं, चुनाव के समय उसी के बैनर्स नजर आ रहे हैं। फिर स्वयं लड़कियां भी उसकी कन्वेसिंग कर रही हैं।"-  पायल मुस्कराई ।
"हूँ—तुम किसे वोट दोगी ?"-  इस बार नेहा ने उसे देखते हुए प्रश्न किया ।
"और किसे, अमित तिवारी जिन्दाबाद उसी का व्यक्तित्व इस योग्य है कि हम उसे अध्यक्ष बनाएं - मगर तुम वोट किसे दोगी ?" - पायल ने लापरवाही से पूछा । "मैं,मैं भूपेन्द्र नारायण चौहान को वोट दूंगी।"-  इस बार नेहा हंसी थी ।
"आंय..! क्या तुम्हारा स्क्रू ढीला पड़ गया है ? भूपेन्द्र चौहान की औकात ही क्या है।"- पायल ने रुष्टता से कहा।
"औकात नहीं, उसकी योग्यता को आंको पायल- गरीब छात्र है। अमित की तरह उसके पास सुविधाएं नहीं- मगर विद्यार्थियों के अपने अधिकार के लिए लड़ सकता है वह ।" - अत्यन्त मद्धिम लहजा ।
"अब समझी।" - पायल का मुखड़ा तेजी से बदल गया, "तुम अवश्य उसकी विजय पर प्रसन्न होगी, मगर भूपेन्द्र इस योग्य नहीं कि उसे यह चुनाव विजयी बना सके।"
"देख लेना, विजय उसी की होगी।"-  नेहा ने दृढ़ता से कहा।
"उसका इतिहास जानती हो तुम ?" - पायल आहिस्ता से बोली।
"मुझे जानना भी नहीं । तुम जानती हो - हिस्ट्री से मुझे वैसे भी एलर्जी है ।" - गाढ़ी मुस्कान होंठों पर थिरक उठी नेहा के।
"मगर उसकी हिस्ट्री मैं तुझे बताऊंगी।"-  पायल ने जिद्दी स्वभाववश कहा,-  "उसके जीवन में उसका अपना कोई नहीं । यहीं उदयपुर के किसी साधारण मोहल्ले में रहता है । यतीम है। मां कहीं गांव में मरी है। कमरे में चारपाई, टूटी-सी मेज, पुस्तकों के अलावा एक एलार्म घड़ी है।" - पायल के मुखड़े पर बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
"एलार्म घड़ी से मुझे अपने मोहल्ले के एक 'हेडक्लर्क' साहब की याद आ गई।" - नेहा साधारण ढंग से बोली, “उनका नाम गिरधारीलाल नायर था। ऑफिस में हेडक्लर्क थे पत्नी जत्र तीस वर्ष की हुई तो उन्हें प्रथम बार बच्चे की आशा दिखाई दी - मगर यह उनका दुर्भाग्य था कि पत्नी और बच्चा दोनों का देहांत हो गया। पत्नी के अचानक  अन्त से वे अकेले हो गये तो सुबह ऑफिस जाने में देर होने लगी। बेचारे परेशान रहने लगे, क्योंकि सुबह जगाने वाला कोई नहीं था। बस, एक दिन एलार्म घड़ी ले आए और वही घड़ी आज उनका सबसे बड़ा सहारा है। समय से अब घड़ी उठाती है, और अगर किसी दिन घड़ी खराब हो गई तो ऐसे उदास हो जाते हैं, जैसे उनकी पत्नी दोबारा मर गई हो। उन्हीं की तरह भूपेन्द्र नारायण भी होगा। बेसहारा लोगों का सबसे बड़ा सहारा घड़ी है पायल -- जिसे आज कोई नहीं समझ सकता।" - नेहा के तेवर कुछ बदल गए थे।
“मैं ऐसे लोगों को मुर्दा समझती हूँ। यह भी कोई जीना हुआ ?" - कहने के पश्चात् पायल उठी तथा अपने पलंग के समीप चली गी।
         नेहा केवल उसे देखती रही। पलंग पर लेटते ही पायल ने कोई पुस्तक उठा ली। नेहा ने पुस्तक को देखा तो मुखड़े की रंगत तेजी से बदली थी। वह पायल के करीब आकर रुकी तथा बोली, - "ऐसी बेहूदा किताबें पढ़ने के लिए यहां आई हो पायल - अगर ऐसे ही अपना जीवन अंधकारमय करना है तो घर बैठो जाकर।" - नेहा ने किताब उससे छीन ली, - "इन सस्ते और व्यावसायिक लेखकों को पढ़ने से क्या लाभ ! इनका लेख मन में गुदगुदी भर सकता है-शांति, सकून, नसीहत नहीं दे सकता।" - आंखों में क्रोध छलक आया था।
"तुम इसे बेहूदा कहती हो ? जानती हो, यह इस जमाने का चर्चित लेखक है । नाउ, डोंट डिस्टर्ब मी ।"-  पायल खिसिया गई थी।
"पायल, क्या हम लड़कियों का यही भविष्य है-दिन- रात लड़कों से आंखमिचौली और पढ़ने के समय ऐसे घटिया उपन्यास ! आज लड़कियां 'ड्रग' मेनड्रेक्स आदि का सेवन कर रही हैं। उनका भविष्य केवल नशा है। नशे के लिए वे  अपने जीवन में अनेकों दाग लगा लेंगी। क्या मिलेगा उन्हें ? मैंने तुम्हारे पिताजी की हालत देखी है। गरीबी में रहकर तुम्हें राजकुमारी बनाए हुए हैं क्योंकि तुम उनका सुन्दर सपना हो । मगर अफसोस उनका सपना टूटते समय नहीं लगेगा।"-  नेहा ने पुस्तक पायल के पलंग पर फेंक दी तथा वापस अपने पलंग पर बैठ गई। थोड़ी देर चुपचाप बैठी रही, फिर अपने नोट्स इत्यादि की कॉपी निकालकर पढ़ने लगी।
          पायल ने किताब एक ओर रखी। उसे अपने पिता की याद आ गई। उनके कहे शब्द जेहन में गूंजने लगे,-  ''तुम्हें लॉयर बनाऊंगा - तुम लॉयर बनोगी पायल, ताकि लोगों से गर्व के साथ कहूं - मैं हूँ लॉयर पायल का बाप। तुम्हें ये अरमान पूरे करने होंगे पायल।'' पिता के शब्दों ने उसे भावुक बना डाला । पलकें छलक आईं। भीगी पलकों से उसने नेहा को देखा - चुपचाप सोचती रही, नेहा जूनियर होकर भी मुझसे कितने अधिकार से बातें करती है—मानो मेरी सगी बहन हो । धीरे से उठी तथा नेहा के करीब आकर खड़ी हो गई। नेहा ने उसे उदासी में लिपटे देखा तो पलकें भर आईं।
"सॉरी नेहा !" - कांपते स्वर में बोली थी पायल। "प-ग-ली !" - नेहा ने उसे सीने से लगा लिया, - "थोड़े दिनों का साथ है पायल ! हंस-मुस्कराकर बीते तो अच्छा है— अच्छी जिन्दगी जीने के लिए इन्सान के अच्छे विचारों का होना अनिवार्य है ।"-  अत्यन्त स्नेह से बोली थी नेहा ।
पायल खामोश रही।
"हम लड़कियों को सदैव अपनी सीमा में रहना चाहिए - क्योंकि जब औरत अपनी सीमा पार करती है, वह औरत नहीं रह जाती --सदा तमाशा ही बनी रहती है।" नेहा का लहजा गंभीर हो गया ।
पायल ने उसे देखा तथा सिर झुकाकर बोली,-  "सॉरी- अब तक अंधेरे में थी— तुमने मुझे सही समय पर इस भूल का अहसास कराया।"
"गुड - अब हुई ना बात !" - मुस्कान । पायल भी मुस्कराई तथा अपने पलंग की ओर वापस चली गई ।
नेहा ने बत्ती बुझाई तथा अपने पलंग पर लेट गई ।

अपाहिज फरिश्ता-  सरला रानू

समय की रफ्तार अपनी गति से गुजरती रही। लमहे मिनट और मिनट घंटों में परिवर्तन का रूप-चक्र धारण कर महीनों में तबदील होते गये। पायल अपने पिता की मृत्यु जब्त कर पढ़ाई में जुट गई। उसका अन्य खर्च फिलहाल अमित ने संभाल लिया था। प्रतिमाह तीन सौ रुपये दिया करता था अमित । नेहा को भी सहायता मिल रही थी । अमित का सहारा उसके लिए किसी नवजीवन से कम नहीं था। इस समय भी दोनों बिखरी पुस्तकें समेटकर चुपचाप बैठी हुई थीं। शायद किन्हीं विचारों ने उन्हें आ घेरा था। शाम डूब चुकी थी। क्षितिज के चारों ओर सितारे टूटे कांच की तरह बिखरे हुए थे । खामोशी गहरी नितांत चुप्पी ।
"क्या सोच रही हो पायल ?" - सहसा नेहा ने उतरती खामोशी को निगल लिया था।
"अं !"-  चौंक उठी थी पायल। स्वयं को संयत कर बोली,- "कुछ नहीं । सोच रही हूं, इंसान कई तरह के होते हैं। कुछ बहुत बुरे होते हैं, कुछ अच्छे भी होते हैं।" उदास लहजा,-  "मेरा आज इस दुनिया में कोई नहीं। बाबूजी ने साथ छोड़ दिया। मैंने पढ़ाई का इरादा ही त्याग दिया था नेहा, मगर अमित ने एक मुंहबोले भाई का रिश्ता ही नहीं निभाया, बल्कि सगे भाई से बढ़कर सहयोग दिया। आज के इस महंगे समय में कौन किसका साथ देता है।" - वह जैसे गहरे कुएं से बोलती प्रतीत हुई।
"पगली, आवश्यक नहीं, रक्त का रिश्ता ही वफादार हो । भावनाओं के रिश्ते सदैव मजबूत होते हैं। अमित जैसे युवकों की आज कमी नहीं बहुत से युवा मर्द अपनी भावनाओं पर मिट जाते हैं। मैं भी क्या कम अमित की अहसानमंद हूँ ! उनके लिए मेरे मन में अथाह प्रेम है। बहुत चाहने लगी हूं मैं उन्हें । यही कारण है, मैं अपना अधिकार समझकर उनकी सहायता स्वीकार करती हूं, अन्यथा कब की पढ़ाई छोड़कर चली जाती।"
“अर्थात् तुम अमित भैया से प्यार करती हो?"- पायल खिल उठी थी।
"हां पायल ! मैं चाहती हूं, तुम मेरी भावनाएं उन तक पहुंचा दो । मैं उनके बिना जीवित नहीं रह सकूंगी।"- नेहा उदास होने लगी थी।
"हुर्रे !" पायल बुदबुदाई, -"मैं कल ही अमित भैया से कहूंगी। वैसे इन दिनों वह स्वयं खोये रहते हैं। शायद 'आग' बराबर लगी हो।" -पायल चहक उठी ।
"नहीं-नहीं पायल - प्लीज, यह निर्णय में स्वयं करूंगी। कुछ गलत कह गई। मेरी भावनाएं तुम नहीं पहुंचाओगी। मैं यह अधिकार तो मेरा अपना है।"- नेहा ने ध्यान से उसे देखते हुए कहा ।
"ओ० के० !" एक दीर्घ सांस लेकर पायल बोली,- "मुझे वास्तव में प्रसन्नता होगी नेहा ! अमित भैया ही तुम्हारे योग्य हैं।" -पायल कहने के पश्चात् उठी तथा अपनी पुस्तकें समेटकर पलंग की ओर चली गई।
             थोड़ी देर बाद दोनों पुनः अपनी पुस्तकों में उलझी रहीं । नेहा थोड़ी देर पश्चात् ही पुस्तक सीने पर रखे विचारों में डूब गई-- "सोतेली माँ ने अपना जाल फैला ही लिया। मुझे रुपये भेजने भी बन्द कर दिए। क्या ऐसी स्थिति में वह उसे कोठी में रहने देगी ? नहीं, अपमान सहना पड़ेगा उसे । नौकरानी बनकर रहने से अच्छा है—अमित के साथ अपना नया जीवन आरंभ हो । अमित ही उसे इस कठिनाई से मुक्ति दिला सकता है। हां, मैं शीघ्र ही अमित से मिलूंगी। प्रथम ईयर के बाद अमित की पत्नी बनूंगी। उसके साथ घर बसाऊंगी। मेरा सारा जीवन अमित है। दिखाऊंगी उस नई मां को मैंने अपना जीवन स्वयं संवारा है। मेरा अमित लाखों में एक जो है। लोग जलेंगे। 'नई मां' तो दांतों तले अंगुलियां दबा लेगी। इतना सुन्दर पुरुष क्या उसने देखा होगा ?' प्रश्न उमड़े तो स्वयं उत्तर भी मूक आवाज में उभरता प्रतीत होता, 'नहीं, सपनों के राजकुमार को सभी तो नहीं देख सकते ।'-  अपने ही उत्तर पर मुस्करा उठी नेहा ।

       अनेक विचारों में डूबी नेहा उस समय सचेत हुई, जब दूर कहीं घड़ियाल ने चीखकर रात्रि के दस बजाए । नेहा ने पायल की ओर देखा । अपने में सिमटी पायल सो चुकी थी । नेहा उठी, बालों का ढीला जूड़ा बनाया, साड़ी का आंचल संवारकर सैंडिल हाथ में उठाई तथा बत्ती बुझाकर कमरे से बाहर झांका सन्नाटा 'कॉरीडोर' में हल्का प्रकाश ही था। वह अत्यन्त सतर्कता से कमरे से बाहर निकली। निःशब्द ही उसने दरवाजा भली-भांति बन्द किया तथा दबे पांव आगे बढ़ गई ।

             लायब्रेरी का एकांत बरामदा । खामोशी नेहा एक स्तंभ की ओट में सीढ़ियों की ओर देखती रही। चमकती साफ- सुथरी सीढ़ियां । कच्ची जमीन पर पीपल के सूखे पत्ते बिखरे हुए थे। नेहा चुपचाप स्तंभ की ओट में बैठ गई । अनजानी घुटन से राहत मिली। उसे ना जाने क्यों इसी स्थान पर आत्मिक सुख मिलता था। बैठने के उपरान्त वह यूनिवर्सिटी की सूनी- उदास सड़क को देखती रही। काली-कलूटी सड़क विधवा समान खामोश फैली हुई थी। पीपल, नीम तथा अशोक के वृक्ष पवन के हल्के झोंकों से खिलवाड़ कर रहे थे । अच्छा लगा उसे । देखती रही। एकांत का आनंद उठा ही रही थी कि सहसा चौंक गई थी नेहा । दूर, मोड़ पर दो आकृतियां आकृष्ट हुई। अमित को वह दूर से पहचान गई, किन्तु साथ चलती युवती को पहचानने में उसे देर लगी । तुरन्त उठी थी वह स्तंभ की ओट में खड़ी हो गई ।

'अमित और इस लड़की के साथ !' प्यार का कमजोर मन तड़प उठा था ।
दोनों लायब्रेरी से थोड़ी दूर आकर ठिठक गये। लड़की का सिर झुका हुआ था ।

“जाओ शबनम, मगर ख़ुदा के लिए अपने को संभालने का प्रयत्न करो। तुम अगर ऐसे गलत रास्तों पर चलती रहीं तो सोचो, क्या होगा तुम्हारा भविष्य ? यह शिक्षा का मंदिर है। इसे बदनाम करने का प्रयास मत करो।" - अमित गंभीर था।

"अल्लाह ने आज मुझे आपके द्वारा बचा लिया, वर्ना थाने में होती, मैं क्या उत्तर देती अपने अदा को।" - शबनम उदास रही।

" शबनम, तुम्हारे जैसी लड़कियों ने आज छात्राओं को बदनाम कर डाला है। अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए ऐसा अनर्थ मत करो, वरना ख़ुदा तुम्हें माफ नहीं करेगा।" अमित- ने सिगरेट जला ली ।

"अमितजी, अगर मैं दोबारा ऐसा पग उठाऊंगी तो आप मुझे जो मन चाहे सजा दीजिएगा ।" - भारी स्वर ।

" आश्चर्य होता है शबनम, तुम इतनी समझदार लड़की हो, फिर भी ऐसी गंदी हरकतें !" - अमित ने ढेर सारा धुआं उगल दिया ।

शबनम कुछ ना कह सकी। चुपचाप होस्टल की ओर बढ़ गई।

अमित चुपचाप खड़ा शवनम को जाते देखता रहा। अभी वह जाने के लिए मुड़ता कि ठिठक गया। लायब्रेरी के खामोश वातावरण में नेहा खड़ी थी- "आप !" -कहता हुआ अमित नेहा की ओर बढ़ा। नेहा तुरन्त कुछ ना कह सकी। अमित उसके समीप आकर ठहर गया। नेहा का सर्वांग कांप उठा । अमित ने गौर से देखा उसे । मन अज्ञात टीसों से भर उठा।

थोड़ी देर खामोश रहकर नेहा ही बोली, - "वह लड़की```?” -अपना संदेही प्रश्न उसने अधूरा ही छोड़ दिया।

         अमित उसका संदेह समझते ही बोला,- "शबनम थी।" गंभीर स्वर ।
  समीप ही सीढ़ी पर बैठ गया था वह। नेहा को भी बैठना पड़ा। अमित ने सिगरेट का जलता टुकड़ा एक ओर उछालते हुए कहा, “कुछ गलत लड़कियों ने इसे 'ड्रग'- मेनड्रेक्स जैसी नशीली गोलियों का आदी बना दिया है। इतना ही नहीं, प्रतिदिन होटल में लंच, पिक्चर की आदतों से भी वह नहीं बच पाई। इन्हें प्राप्त करने के लिए पैसा चाहिए और इतना पैसा घर से नहीं आता। शबनम होटलों में जाने लगी, जहां इसे रुपयों के साथ शराब, गोश्त भी मिल जाया करता था। स्वाभाविक है, शबनम बहक गई। उन्नीस वर्ष की इस युवा लड़की ने अल्प समय में स्वयं को औरत बना लिया। कितनी लज्जा की बात है ! समझ नहीं आता, क्या हो गया है आज की लड़कियों को।" - अमित का स्वर गहरी पीड़ा का आभास दे गया।

       नेहा निःशब्द उसे देखती रही कुछ लोग दूसरों के गम पर सदा दुखी रहते हैं। अमित का मन कितना बड़ा है !' सोचती हुई वह केवल अमित को देखती रही ।

अमित कुछ देर चुप रहा। उसकी ओर बिना देखे बोला,- "सुना था, दुनिया की सारी बुराइयां केवल लड़कों में होती हैं— मगर नहीं, कुछ लड़कियां भी मर्दों से दो कदम आगे होती हैं।" - अमित ने एक दीर्घ सांस ली, - "अगर सही अवसर पर भूपेन्द्र मुझे सूचित ना करता तो शायद इस समय तक शबनम जेल में होती ।"

"अं... जेल !"- लम्बी खामोशी तोड़ी नेहा ने ।
"हां । शबनम पैसे के लिए होटल जाती है । अपना कौमार्य लुटाकर उसने क्षणिक सुख प्राप्त करने का निर्णय लिया। इस बार वह जिस होटल में थी, वह इस शहर का बदनाम होटल है। वहां ठहरे हुए यात्रियों को ऐसी ही लड़कियां प्रस्तुत की जाती हैं। शबनम भी चली गई, मगर ठीक उसी समय पुलिस ने छापा मारकर अनेक यात्रियों के साथ पेशेवर लड़कियां गिरफ्तार कर लीं। यह मेरा सौभाग्य था कि इंस्पेक्टर ने मेरी इज्जत, सम्मान पर शबनम को बरी कर दिया । सोचता हूं, कल जब अखबार में हमारे विद्यालय का जिक्र होता तो क्या मुँह दिखाते !" - अमित ने दूसरी सिगरेट जलाकर ढेर सारा धुआं उगल दिया।

नेहा अपलक अमित को देखती रही। उसे इस बात की प्रसन्नता थी कि अमित एक अच्छा लड़का है। वे लोग महान् होते हैं, जिनका हृदय दूसरों के गम पर तड़प जाये।

"आप यहां क्या कर रही हैं ?"-  अमित ने सहजता से एक प्रश्न किया था ।

"घुटन के कारण यहां तक चली आई।" - उसने उत्तर दिया था।

           इस कथ्य ने अमित को नेहा की ओर देखने पर विवश किया। नेहा की पलकें झुक गई। अमित थोड़ी देर लम्बे- लम्बे कश लेता रहा। फिर सिगरेट उछालकर बोला- "घुटन इंसान की साथी होती है, मैं इसका दावा कर सकता हूं दुनिया का कोई भी व्यक्ति सुखी नहीं। सभी दुखी हैं । देखने वाली प्रत्येक वस्तु सुंदर हो सकती है, मगर यह आवश्यक नहीं कि उसकी सुंदरता अतुल्य हो।” -अपने कथन के पश्चात् वह उठा था - "बी० एस-सी० पार्ट वन का इम्तहान शीघ्र होगा। आप अगर अपना समय पढ़ाई में गुजारें तो अच्छा होगा।" -अमित गंभीर हो गया।

अपाहिज फरिश्ता - सरला रानू
     "मैं बच्ची नहीं मुझे मालूम है। मेरी पढ़ाई का अंतिम चरण समीप आ चुका है।" - ना जाने क्यों, नेहा को अमित का प्रत्येक शब्द क्यों सालता चला गया- "मैं स्वयं पढ़ाई को अधिक मान्यता देती हूं। आप क्या समझते हैं, मैं अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह हूं ?" - उसे अमित के परामर्श पर दुःख हुआ शायद यही कारण या उसकी आंखें भीग गई थीं। अमित जरा भी विचलित नहीं हुआ, बल्कि निःशब्द अपने मार्ग की ओर बढ़ता चला गया। नेहा को आश्चर्य हुआ । उसे अमित से ऐसे व्यवहार की कदापि आशा नहीं थी ।

         अपने कमरे में आकर नेहा चुपचाप बिस्तर पर लेट गई। अमित पत्थर है उसके दिल को जीतना इतना आसान नहीं लगता है, वह प्रेम के अहसास से अछूता है । मुझे अमित के लिए गहरी पीड़ा सहनी होगी उसे अपनाने के लिए लाज का बंधन तोड़ना पड़ेगा। 'हां, मैं शीघ्र अमित पर अपना प्यार प्रकट करूंगी।' सोचती रही नेहा । भावनाओं का प्रचंड तूफान आत्मा की गहराई में उमड़ता रहा।

        नेहा निरंतर प्रयत्नरत रही, किन्तु अमित पर अपना प्रेम प्रकट करने का अवसर नहीं मिला। वह लगातार अमित से मिलने का अवसर ढूंढ़ती रही, किन्तु अमित का सामीप्य उससे दूर होता गया। इतना ही नहीं, जब इम्तहान आरंभ हुए तो नेहा बहुत उदास थी। मन बेचैन रहने लगा। अमित को देखने हेतु आंखें तरस गईं और अमित वह तो लापरवाह सा केवल अपने दोस्तों में व्यस्त रहता । कभी अगर दोनों का सामना हुआ भी तो अमित इस तरह निकल जाता, मानो नेहा को जानता ही नहीं। ऐसा रूखा, अजनबी व्यवहार नेहा को दिन-रात तड़पाता रहा। इम्तहान चलते रहे ।

        पायल ने दिन-रात परिश्रम किया उसमें अब पहले जैसी चंचलता नहीं थी, परिपक्वता आ चुकी थी उसका विचार था  बी० ए० के बाद एल-एल० बी० करेगी... किन्तु नेहा का अभी कुछ विशेष विचार नहीं बना था। वह केवल ग्रेजुएट होना चाहती थी।

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