काम्बोजनामा - एक अद्भुत काव्यकथा
काम्बोजनामा :वेदप्रकाश काम्बोज की लेखन यात्रा
कुछ लोग अपनी जीवनी लिखते हैं - कुछ किसी अन्य की, लेकिन इमोशन के बादशाह राम पुजारी जब कुछ लिखते हैं, अपना सब कुछ उसमें इस तरह झोंक देते हैं, इस कदर झोंक देते हैं कि लिखी हुई पुस्तक खूबसूरत शब्दों की एक गंगा बन, आनन्दप्रद शीतल धारा की तरह मन-मस्तिष्क और आत्मा में मीठे-मीठे एहसास और प्रसंग, चित्र की भाँति उकेरती और चलचित्र की भाँति उभारती चली जाती है। काम्बोजनामा - जासूसी साहित्य में वर्षों शीर्ष पर रहने वाले दिग्गज उपन्यासकार वेद प्रकाश काम्बोज की सहज-सरल जीवनी नहीं है। यह उनका जन्म से अब तक का जिन्दगीनामा भी नहीं है। यह तो वेद प्रकाश काम्बोज के लेखकीय जीवन के अनन्त अच्छे-बुरे, सरल-कठिन, खट्टे-मीठे प्रसंगों की बेहद खूबसूरत झांकी है, जिसके लिए मैं आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज से क्षमा याचना चाहते हुए यह कहने कि धृष्टता कर रहा हूँ कि यदि आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज अपनी आपबीती पर स्वयं भी कलम उठाते तो शायद शब्दों का इतना खूबसूरत बिछौना नहीं बिछा पाते, जितना उनके प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले युवा लेखक राम पुजारी ने तैयार किया है।
राम पुजारी की लेखनी में भावनाओं का बहता सैलाब भी है घटनाओं को सजीव बनाने का कौशल भी।
काम्बोजनामा - राम पुजारी द्वारा कई वर्षों तक अनवरत अथक परिश्रम और शोध का परिणाम है। यह सत्य तो है ही, काम्बोजनामा पढ़ने वाले हर पाठक को भी पुस्तक पढ़ते-पढ़ते इसका पूरा-पूरा एहसास हो जाता है। ऐसी कोई भी पुस्तक एक या दो दिन, दो-चार महीने या महीनों की शोध से नहीं लिखी जाती। जिसकी जीवनी लिखनी हो, लिखने वाले लेखक को उसके हर पहलू, हर अन्दाज़, हर खूबी, हर कमी से परिचित होना पड़ता है।
और यह सब एक-दो, दस-बीस-पचास दिनों में नहीं होता। कल्पना करके देखिये - राम पुजारी को कितनी बार, कितने-कितने घंटे आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज जी के निकट बैठना पड़ा होगा और वेद प्रकाश काम्बोज जी को राम पुजारी जी के कितने-कितने सवालों का सामना करना पड़ा होगा और कभी-कभी काम्बोज सर के अधरों से धाराप्रवाह निकलने वाले घटनाक्रम को कितनी तत्परता से राम पुजारी को अपने मन-मस्तिष्क और पृष्ठों पर संजोना पड़ा होगा।
काम्बोजनामा - एक ओर जहाँ युवा लेखक राम पुजारी के धैर्य और अटूट लगन का दस्तावेज़ है, वहीं वेद प्रकाश काम्बोज जी जैसे दिग्गज लेखक के राम पुजारी जैसे युवा लेखक के समक्ष अपने जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना को भक्तिभाव से समर्पित कर देने का दृष्टांत है। इस में कहीं कोई बड़ा या छोटा नहीं है। जैसे भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, लेकिन उन्हें जननायक बनाया बाल्मिकी और तुलसीदास ने। तो भक्तिभाव राम पुजारी का भी अद्भुत है। एक लम्बा समय एक कालजयी पुस्तक की रचना में खपा देना और उसमें शब्दों की ऐसी माला गूंथना कि हर घटना जीवन्त हो उठे, यह शायद राम पुजारी के अलावा किसी और के लिये संभव ही नहीं था।
तेज़ भागते घटनाक्रम के उपन्यास लिख्नने वाले लेखकों के लिये वेद प्रकाश काम्बोज की जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा से अंतरंगता और शिक्षाप्रद एवं रोचक जानकारियों के गुलदस्ते सजाना कितनी तन्मयता का काम रहा है, यह वे ही समझ सकते हैं, जिन्होंने राम पुजारी की कलम की जादूगरी का, पूरी तरह डूबकर, लुत्फ़ उठाते हुए काम्बोजनामा पढ़ा है।
मैंने यह दो बार पढ़ा है और थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद तीसरी चौथी और पांचवी बार भी पढ़ सकता हूँ। पल्प फिक्शन पढ़ने वालों के लिये जहाँ यह एक काव्यमय कथा गाथा है, वहीं साहित्यिक रूचि रखने वालों के लिये वेदप्रकाश काम्बोज और ओमप्रकाश शर्मा के किस्सों में से अनेक नये किस्से गढ़ने और रोचक कहानियाँ बनाने की विस्तृत सम्भावना।
हर बड़े छोटे लेखक के लिए यह एक संग्रहणीय ग्रन्थ है तो पाठकों के लिये कथा-कहानी सदृश अद्भुत जानकारियों का खज़ाना। विशेष बात यह है कि राम पुजारी की कलम ने सबको यथायोग्य सम्मान दिया है। अपनी आत्मकथा लिखने वाले सभी बड़े -छोटे लेखकों को ऐसे दस्तावेज़ लिखने का गुर राम पुजारी से सीखना चाहिये। मैं भी अपने जीवन के प्रेत लेखन की अगली "गुफ्तगू" में राम पुजारी की भाषा-शैली और अंदाज़ेबयाँ की ख़ूबसूरती भी अपनाने की चेष्टा अवश्य करूँगा, लेकिन सबसे पहले मैं उन सभी लोगों से, जिन्होंने "काम्बोजनामा" का रसास्वादन नहीं किया है, यह गुज़ारिश अवश्य करूँगा कि न केवल इसे बार-बार पढ़ें, बल्कि इसे अपनी लाइब्रेरी की शोभा बनायें और जिन लेखकों ने भविष्य में कभी अपनी आपबीती लिखनी हो, वे इसके अन्दाज़ को अपनाएं तो हर पाठक का दिल जीतने में अवश्य कामयाब होंगे।
प्रस्तुति- श्री योगेश मित्तल जी
- प्रेत लेखन : एक प्रेत लेखक की आत्मकथा)
- वेदप्रकाश शर्मा- यादें, बातें और अनकहे किस्से
योगेश मित्तल
काम्बोजनामा :वेदप्रकाश काम्बोज की लेखन यात्रा
कुछ लोग अपनी जीवनी लिखते हैं - कुछ किसी अन्य की, लेकिन इमोशन के बादशाह राम पुजारी जब कुछ लिखते हैं, अपना सब कुछ उसमें इस तरह झोंक देते हैं, इस कदर झोंक देते हैं कि लिखी हुई पुस्तक खूबसूरत शब्दों की एक गंगा बन, आनन्दप्रद शीतल धारा की तरह मन-मस्तिष्क और आत्मा में मीठे-मीठे एहसास और प्रसंग, चित्र की भाँति उकेरती और चलचित्र की भाँति उभारती चली जाती है। काम्बोजनामा - जासूसी साहित्य में वर्षों शीर्ष पर रहने वाले दिग्गज उपन्यासकार वेद प्रकाश काम्बोज की सहज-सरल जीवनी नहीं है। यह उनका जन्म से अब तक का जिन्दगीनामा भी नहीं है। यह तो वेद प्रकाश काम्बोज के लेखकीय जीवन के अनन्त अच्छे-बुरे, सरल-कठिन, खट्टे-मीठे प्रसंगों की बेहद खूबसूरत झांकी है, जिसके लिए मैं आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज से क्षमा याचना चाहते हुए यह कहने कि धृष्टता कर रहा हूँ कि यदि आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज अपनी आपबीती पर स्वयं भी कलम उठाते तो शायद शब्दों का इतना खूबसूरत बिछौना नहीं बिछा पाते, जितना उनके प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले युवा लेखक राम पुजारी ने तैयार किया है।
राम पुजारी की लेखनी में भावनाओं का बहता सैलाब भी है घटनाओं को सजीव बनाने का कौशल भी।
काम्बोजनामा - राम पुजारी द्वारा कई वर्षों तक अनवरत अथक परिश्रम और शोध का परिणाम है। यह सत्य तो है ही, काम्बोजनामा पढ़ने वाले हर पाठक को भी पुस्तक पढ़ते-पढ़ते इसका पूरा-पूरा एहसास हो जाता है। ऐसी कोई भी पुस्तक एक या दो दिन, दो-चार महीने या महीनों की शोध से नहीं लिखी जाती। जिसकी जीवनी लिखनी हो, लिखने वाले लेखक को उसके हर पहलू, हर अन्दाज़, हर खूबी, हर कमी से परिचित होना पड़ता है।
और यह सब एक-दो, दस-बीस-पचास दिनों में नहीं होता। कल्पना करके देखिये - राम पुजारी को कितनी बार, कितने-कितने घंटे आदरणीय वेद प्रकाश काम्बोज जी के निकट बैठना पड़ा होगा और वेद प्रकाश काम्बोज जी को राम पुजारी जी के कितने-कितने सवालों का सामना करना पड़ा होगा और कभी-कभी काम्बोज सर के अधरों से धाराप्रवाह निकलने वाले घटनाक्रम को कितनी तत्परता से राम पुजारी को अपने मन-मस्तिष्क और पृष्ठों पर संजोना पड़ा होगा।
काम्बोजनामा - एक ओर जहाँ युवा लेखक राम पुजारी के धैर्य और अटूट लगन का दस्तावेज़ है, वहीं वेद प्रकाश काम्बोज जी जैसे दिग्गज लेखक के राम पुजारी जैसे युवा लेखक के समक्ष अपने जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना को भक्तिभाव से समर्पित कर देने का दृष्टांत है। इस में कहीं कोई बड़ा या छोटा नहीं है। जैसे भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, लेकिन उन्हें जननायक बनाया बाल्मिकी और तुलसीदास ने। तो भक्तिभाव राम पुजारी का भी अद्भुत है। एक लम्बा समय एक कालजयी पुस्तक की रचना में खपा देना और उसमें शब्दों की ऐसी माला गूंथना कि हर घटना जीवन्त हो उठे, यह शायद राम पुजारी के अलावा किसी और के लिये संभव ही नहीं था।
तेज़ भागते घटनाक्रम के उपन्यास लिख्नने वाले लेखकों के लिये वेद प्रकाश काम्बोज की जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा से अंतरंगता और शिक्षाप्रद एवं रोचक जानकारियों के गुलदस्ते सजाना कितनी तन्मयता का काम रहा है, यह वे ही समझ सकते हैं, जिन्होंने राम पुजारी की कलम की जादूगरी का, पूरी तरह डूबकर, लुत्फ़ उठाते हुए काम्बोजनामा पढ़ा है।
मैंने यह दो बार पढ़ा है और थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद तीसरी चौथी और पांचवी बार भी पढ़ सकता हूँ। पल्प फिक्शन पढ़ने वालों के लिये जहाँ यह एक काव्यमय कथा गाथा है, वहीं साहित्यिक रूचि रखने वालों के लिये वेदप्रकाश काम्बोज और ओमप्रकाश शर्मा के किस्सों में से अनेक नये किस्से गढ़ने और रोचक कहानियाँ बनाने की विस्तृत सम्भावना।
हर बड़े छोटे लेखक के लिए यह एक संग्रहणीय ग्रन्थ है तो पाठकों के लिये कथा-कहानी सदृश अद्भुत जानकारियों का खज़ाना। विशेष बात यह है कि राम पुजारी की कलम ने सबको यथायोग्य सम्मान दिया है। अपनी आत्मकथा लिखने वाले सभी बड़े -छोटे लेखकों को ऐसे दस्तावेज़ लिखने का गुर राम पुजारी से सीखना चाहिये। मैं भी अपने जीवन के प्रेत लेखन की अगली "गुफ्तगू" में राम पुजारी की भाषा-शैली और अंदाज़ेबयाँ की ख़ूबसूरती भी अपनाने की चेष्टा अवश्य करूँगा, लेकिन सबसे पहले मैं उन सभी लोगों से, जिन्होंने "काम्बोजनामा" का रसास्वादन नहीं किया है, यह गुज़ारिश अवश्य करूँगा कि न केवल इसे बार-बार पढ़ें, बल्कि इसे अपनी लाइब्रेरी की शोभा बनायें और जिन लेखकों ने भविष्य में कभी अपनी आपबीती लिखनी हो, वे इसके अन्दाज़ को अपनाएं तो हर पाठक का दिल जीतने में अवश्य कामयाब होंगे।
प्रस्तुति- श्री योगेश मित्तल जी
- प्रेत लेखन : एक प्रेत लेखक की आत्मकथा)
- वेदप्रकाश शर्मा- यादें, बातें और अनकहे किस्से
योगेश मित्तल
रचना अंश- काम्बोजनामा
समीक्षा - काम्बोजनामा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें