बड़ा गेम- उपन्यास अंश
अनुराग कुमार जीनियस
विक्रम और शुभांकर डी को मौजपुर आए पाँच दिन बीत चुके थे। आज छठवां दिन था। सोनू के गायब होने से उपजे केस के चलते वे दोनों वहां थे।और वह केस जो तमाम दुश्वारियों के बाद आखिरकार हल हो गया था।और अब उन्हें वहां से चले जाना चाहिए था पर वे रुके थे और उसके पीछे एक बड़ी वजह थी। प्रशांत जो दो दिन पहले मंगल की बहन के यहां शादी में गया था,जा तो मंगल भी रहा था पर ऐन मौके पर कुछ ऐसी प्रॉब्लम खड़ी हो गई की प्रशांत को अकेले ही जाना पड़ा वरना उन्हें जानने वाले अच्छी तरह जानते थे कि वे दो जिस्म एक जान हैं। हरदम साथ रहना पसंद करते थे। वे दोनों एक दूसरे से बेइंतेहा मोहब्बत करते थे_प्रशांत ने उन दोनों को जिद करके रुकने पर मजबूर किया था।उसने कहा था की दो दिन बाद उसका बर्थडे है।उसे सेलिब्रेट करके जाएं। प्रशांत की जिद के आगे ही वे मजबूर हो गए थे और रुक गए थे।वरना उनका तो इरादा केस निपटने के बाद ही राजनगर वापस जाने का था।
खैर,वे दोनों कल से ही मंगल के रेस्टोरेंट में ही ठहरे थे। दोपहर तक प्रशांत का बर्थडे मनाने के बाद शाम वाली ट्रेन से उनका इरादा वापस लौट ने का था।उनकी हफ्ते भर की छुट्टी की खत्म हो रही थी।
मंगल ने आज रेस्टोरेंट ग्राहकों के लिए बंद कर रखा था।बाहर बकायदा इस बात को सूचित करता एक पोस्टर जो की एक बड़े से कागज की शक्ल में बाहर चस्पा था।इस बार मंगल ने प्रशांत का बर्थडे कुछ अलग अंदाज में मनाने की सोची थी।उसमे वह बिलकुल भी विघ्न बाधा ,खलल बर्दाश्त करना नही चाहता था।
उसने बर्थडे पार्टी को सेलिब्रेट करने के लिए काफी इंतजाम भी जुटा लिए थे। रेस्टोरेंट के हाल को बढ़िया तरीके से कल ही सजा लिया था रात में ही।इस काम में विक्रम और शुभांकर ने भी मदद की थी।
पूरे हाल में चमकदार रंगीन पन्नी,तरह तरह के रंग बिरंगे गुब्बारे टांगे गए थे। हाल के बीच में सजी बजी बढ़ी मेज पर खूबसूरत पेस्टी वाला केक जो मंगल ने ऑर्डर देकर बनवाया था जिसपर प्रशांत की सुंदर सी तस्वीर बनी हुई थी।ऐसी इच्छा खुद प्रशांत ने जाहिर की थी की केक पर उसकी तस्वीर हो।ऐसा उसने कही देखा था।और मंगल उसकी इच्छा को कभी टाल नहीं सकता था।
पार्टी मनाने के लिए सब रेडी थे।बस प्रशांत के आने का वेट कर रहे थे।
"प्रशांत को फोन करके जल्दी आने को बोल दो।शाम वाली ट्रेन से वापस भी जाना है।एक हफ्ते की छुट्टी भी खत्म होने वाली है आज।कल से ड्यूटी ज्वाइन कर लूंगा।"विक्रम ने मंगल से सुबह ही बोल दिया था।और मंगल ने प्रशांत को फोन लगाया भी तब लगा नहीं।दो तीन बार की कोशिश के बाद भी फोन नही लगा। रात में भी विक्रम के कहने पर मंगल ने प्रशांत को फोन लगाया दो तीन बार पर तब भी नही लगा था।
"नेटवर्क प्रॉब्लम की वजह से नहीं लग रहा शायद," मंगल ने कहा था,," सर्दी में इधर नेटवर्क प्रॉब्लम बहुत रहती है।"
"हूं! बाद में फिर ट्राई करना।"
फोन में ऐसी प्रॉब्लम ग्रामीण क्षेत्रों में कोई बड़ी प्रॉब्लम नहीं समझी जाती।
विक्रम,शुभांकर डी दोनो ही नहा धोकर रेडी थे।बर्थडे सेलिब्रेट करके वापस राजनगर जाने के लिए।
रात को इंस्पेक्टर देवेंद्र रावत का फोन आने पर उसने इस बारे में बता भी दिया था।
हाल में कुछ सजावट बाकी थी जिसे सब मिलकर अंजाम दे रहे थे।
तभी एक बेवड़े शराबी ने रेस्टोरेंट का गेट खोला और अंदर कदम रखे।इससे पहले कोई कुछ कहता वह डगमगाते कदमों से चलते हुए एक कुर्सी पर आ कर बैठ गया।
मंगल तुरंत उसके पास पहुंचा।मंगल थोड़ा गुस्से में लग रहा था क्योंकि उस शराबी ने खुद को गिरने से बचाने के लिए लटकते गुब्बारे को सहारा समझकर पकड़ लिया था और उस गुब्बारे का काम तमाम कर दिया था।
"यहां अंदर कहां चले आए मामा।बाहर देखा नहीं क्या लिखा है?"मंगल उससे गुस्से में बोला।वह शराबी मौजपुर का ही था।तकरीबन10 साल से अपने बहन, बहनोई के यहां रहता आ रहा था।पूरा मौजपुर उसे मामा ही कहता था।
" क्या..क्या लिखा है?"बुजुर्ग शराबी लड़खड़ाती हुई जुबान में बोला।
"आज रेस्टोरेंट बंद है!"
"अच्छा! बंद है!"
"हां।"
"क्यों..बंद क्यों है...अच्छा समझ गया.. माफ करना.. माफ करना.. मैं..मैं भूल गया था।"
"क्या समझ गए?"
"यही की रेस्टोरेंट बंद है!अब..अब इतनी बड़ी ब.. बात हो गई तो.. रेस्टोरेंट बंद होगा ही।"
"बात तो खैर बड़ी ही है।तभी तो रेस्टोरेंट बंद है।आज मेरे दोस्त प्रशांत का बर्थडे,जन्मदिन है मामा!"मंगल खुश होकर बोला।
"देवा! प्रा. प्रशांत का आज जन्मदिन है?"
"हां।पर तुम इतने दुखी क्यों लग रहे हो?"
शराबी नशे मैं था फिर भी दुखी जान पड़ रहा था।
"तुम्हे पता नही?"
"क्या?"
"मुझे तो लगा कि तुम्हें पता होगा!"
"अरे क्या?"
"तुम्हे तो सच में कुछ प..पता नही!"
"अरे क्या मामा? खुलकर बताओ सस्पेंस क्यों बढ़ा रहे हो!"
"वो..वो..तुम्हारा दोस्त.. प्रशांत .. वो नदी के ऊपर पहाड़ी पर जो बड़ा.. बड़ा सा आम का बाग है उसमे .. उसमे एक पेड़ पर फांसी पर लटक रहा है!"
शराबी ने भयंकर विस्फोट किया।
विक्रम, शुभांकर भी उसके नजदीक आ गए।
"क्या मामा! तुम्हे आज के दिन ही मजाक करने को मिला? वो भी इतना भद्दा मजाक!" मंगल तुरंत नाराज हो गया।
"मैं.. मजाक नही कर रहा।"
"ये मजाक नही तो और क्या है! आपको पता नही प्रशांत ,महाराजपुर मेरी बहन के यहां शादी में गया हुआ है।आता ही होगा।"
"अच्छा! प ..पर बाहर सब यही कह रहे है।"
"सुनी सुनाई बात पर इतना एतबार नहीं...!"
तभी रेस्टोरेंट का दरवाजा भड़ाक से खुला और रेस्टोरेंट में काम करने वाले छोटे लड़के ने अंदर प्रवेश किया।वह वह बुरी तरह दहशत में जान पड़ता था।
"मंगल.. मंगल भैया! वो.. प्रशांत .. प्रशांत भैया पहाड़ी पर .. आम के बाग में फांसी पर.. फांसी पर लटक रहे है।"
शराबी व्यक्ति की बात पर लड़के ने मोहर लगा दी तो मंगल,विक्रम, शुभांकर तीनों के होश फाख्ता हो गए।
"ये कैसे हो सकता है! प्रशान्त तो शादी में…??फिर..???"
"मैं वहीं से आ रहा हूं।"- लड़के ने बात बीच में काटकर तुरंत कहा।
"तुमने..तुमने देखा था?"
लड़के ने हां में गर्दन हिलाई।
खैर,वे दोनों कल से ही मंगल के रेस्टोरेंट में ही ठहरे थे। दोपहर तक प्रशांत का बर्थडे मनाने के बाद शाम वाली ट्रेन से उनका इरादा वापस लौट ने का था।उनकी हफ्ते भर की छुट्टी की खत्म हो रही थी।
मंगल ने आज रेस्टोरेंट ग्राहकों के लिए बंद कर रखा था।बाहर बकायदा इस बात को सूचित करता एक पोस्टर जो की एक बड़े से कागज की शक्ल में बाहर चस्पा था।इस बार मंगल ने प्रशांत का बर्थडे कुछ अलग अंदाज में मनाने की सोची थी।उसमे वह बिलकुल भी विघ्न बाधा ,खलल बर्दाश्त करना नही चाहता था।
उसने बर्थडे पार्टी को सेलिब्रेट करने के लिए काफी इंतजाम भी जुटा लिए थे। रेस्टोरेंट के हाल को बढ़िया तरीके से कल ही सजा लिया था रात में ही।इस काम में विक्रम और शुभांकर ने भी मदद की थी।
पूरे हाल में चमकदार रंगीन पन्नी,तरह तरह के रंग बिरंगे गुब्बारे टांगे गए थे। हाल के बीच में सजी बजी बढ़ी मेज पर खूबसूरत पेस्टी वाला केक जो मंगल ने ऑर्डर देकर बनवाया था जिसपर प्रशांत की सुंदर सी तस्वीर बनी हुई थी।ऐसी इच्छा खुद प्रशांत ने जाहिर की थी की केक पर उसकी तस्वीर हो।ऐसा उसने कही देखा था।और मंगल उसकी इच्छा को कभी टाल नहीं सकता था।
पार्टी मनाने के लिए सब रेडी थे।बस प्रशांत के आने का वेट कर रहे थे।
"प्रशांत को फोन करके जल्दी आने को बोल दो।शाम वाली ट्रेन से वापस भी जाना है।एक हफ्ते की छुट्टी भी खत्म होने वाली है आज।कल से ड्यूटी ज्वाइन कर लूंगा।"विक्रम ने मंगल से सुबह ही बोल दिया था।और मंगल ने प्रशांत को फोन लगाया भी तब लगा नहीं।दो तीन बार की कोशिश के बाद भी फोन नही लगा। रात में भी विक्रम के कहने पर मंगल ने प्रशांत को फोन लगाया दो तीन बार पर तब भी नही लगा था।
"नेटवर्क प्रॉब्लम की वजह से नहीं लग रहा शायद," मंगल ने कहा था,," सर्दी में इधर नेटवर्क प्रॉब्लम बहुत रहती है।"
"हूं! बाद में फिर ट्राई करना।"
फोन में ऐसी प्रॉब्लम ग्रामीण क्षेत्रों में कोई बड़ी प्रॉब्लम नहीं समझी जाती।
विक्रम,शुभांकर डी दोनो ही नहा धोकर रेडी थे।बर्थडे सेलिब्रेट करके वापस राजनगर जाने के लिए।
रात को इंस्पेक्टर देवेंद्र रावत का फोन आने पर उसने इस बारे में बता भी दिया था।
हाल में कुछ सजावट बाकी थी जिसे सब मिलकर अंजाम दे रहे थे।
तभी एक बेवड़े शराबी ने रेस्टोरेंट का गेट खोला और अंदर कदम रखे।इससे पहले कोई कुछ कहता वह डगमगाते कदमों से चलते हुए एक कुर्सी पर आ कर बैठ गया।
मंगल तुरंत उसके पास पहुंचा।मंगल थोड़ा गुस्से में लग रहा था क्योंकि उस शराबी ने खुद को गिरने से बचाने के लिए लटकते गुब्बारे को सहारा समझकर पकड़ लिया था और उस गुब्बारे का काम तमाम कर दिया था।
"यहां अंदर कहां चले आए मामा।बाहर देखा नहीं क्या लिखा है?"मंगल उससे गुस्से में बोला।वह शराबी मौजपुर का ही था।तकरीबन10 साल से अपने बहन, बहनोई के यहां रहता आ रहा था।पूरा मौजपुर उसे मामा ही कहता था।
" क्या..क्या लिखा है?"बुजुर्ग शराबी लड़खड़ाती हुई जुबान में बोला।
"आज रेस्टोरेंट बंद है!"
"अच्छा! बंद है!"
"हां।"
"क्यों..बंद क्यों है...अच्छा समझ गया.. माफ करना.. माफ करना.. मैं..मैं भूल गया था।"
"क्या समझ गए?"
"यही की रेस्टोरेंट बंद है!अब..अब इतनी बड़ी ब.. बात हो गई तो.. रेस्टोरेंट बंद होगा ही।"
"बात तो खैर बड़ी ही है।तभी तो रेस्टोरेंट बंद है।आज मेरे दोस्त प्रशांत का बर्थडे,जन्मदिन है मामा!"मंगल खुश होकर बोला।
"देवा! प्रा. प्रशांत का आज जन्मदिन है?"
"हां।पर तुम इतने दुखी क्यों लग रहे हो?"
शराबी नशे मैं था फिर भी दुखी जान पड़ रहा था।
"तुम्हे पता नही?"
"क्या?"
"मुझे तो लगा कि तुम्हें पता होगा!"
"अरे क्या?"
"तुम्हे तो सच में कुछ प..पता नही!"
"अरे क्या मामा? खुलकर बताओ सस्पेंस क्यों बढ़ा रहे हो!"
"वो..वो..तुम्हारा दोस्त.. प्रशांत .. वो नदी के ऊपर पहाड़ी पर जो बड़ा.. बड़ा सा आम का बाग है उसमे .. उसमे एक पेड़ पर फांसी पर लटक रहा है!"
शराबी ने भयंकर विस्फोट किया।
विक्रम, शुभांकर भी उसके नजदीक आ गए।
"क्या मामा! तुम्हे आज के दिन ही मजाक करने को मिला? वो भी इतना भद्दा मजाक!" मंगल तुरंत नाराज हो गया।
"मैं.. मजाक नही कर रहा।"
"ये मजाक नही तो और क्या है! आपको पता नही प्रशांत ,महाराजपुर मेरी बहन के यहां शादी में गया हुआ है।आता ही होगा।"
"अच्छा! प ..पर बाहर सब यही कह रहे है।"
"सुनी सुनाई बात पर इतना एतबार नहीं...!"
तभी रेस्टोरेंट का दरवाजा भड़ाक से खुला और रेस्टोरेंट में काम करने वाले छोटे लड़के ने अंदर प्रवेश किया।वह वह बुरी तरह दहशत में जान पड़ता था।
"मंगल.. मंगल भैया! वो.. प्रशांत .. प्रशांत भैया पहाड़ी पर .. आम के बाग में फांसी पर.. फांसी पर लटक रहे है।"
शराबी व्यक्ति की बात पर लड़के ने मोहर लगा दी तो मंगल,विक्रम, शुभांकर तीनों के होश फाख्ता हो गए।
"ये कैसे हो सकता है! प्रशान्त तो शादी में…??फिर..???"
"मैं वहीं से आ रहा हूं।"- लड़के ने बात बीच में काटकर तुरंत कहा।
"तुमने..तुमने देखा था?"
लड़के ने हां में गर्दन हिलाई।
बडा गेम 3( सर्वनाश)- अनुराग कुमार जीनियस
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