साहित्य देश के हास्यरस स्तम्भ के अंतर्गत इस बार प्रस्तुत है राज भारती जी के उपन्यास 'संग्राम' का एक रोचक प्रसंग।
कथा नायक संग्राम और एक युवती कविता के मध्य एक वार्ता अंश
''तुम एक बहादुर लड़की हो।''- मैंने धीमी आवाज में कहा । ''कोई लड़की बुजदिल नहीं होती ।"
''कुछ तो होती है ।'' - मैं मुस्कराए बिना ना रह सका ।
''तुम एक बहादुर लड़की हो।''- मैंने धीमी आवाज में कहा । ''कोई लड़की बुजदिल नहीं होती ।"
''कुछ तो होती है ।'' - मैं मुस्कराए बिना ना रह सका ।
''वह लड़कियां नहीं बकरियां होती है ।''
''हालांकि मैंने बकरियों को भी सींग मारते हुए देखा है ।''
''वह बकरियां नहीं लड़कियां होती है ।'' - वह बोली।
''हालांकि मैंने बकरियों को भी सींग मारते हुए देखा है ।''
''वह बकरियां नहीं लड़कियां होती है ।'' - वह बोली।
उपन्यास - संग्राम
लेखक - राज भारती
उपन्यास समीक्षा - संग्राम
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