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सोमवार, 17 जनवरी 2022

बवण्डर - सुरेश चौधरी, समीक्षा

नाॅवल – बवंडर
लेखक – सुरेश चौधरी
प्रकाशन – रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ - 288
समीक्षक – दिलशाद (सिटी ऑफ इविल)
सुरेश चौधरी की कलम से निकली है इस बार देशभक्ति से ओत प्रोत एक्शन, थ्रिल और रोमांस की बेहद ही मार्मिक कहानी। जो प्रत्येक पाठक को अंत तक झंझोड़ देगी। 
     देशभक्ति है अपने देश से प्रेम और देश के लिए प्राण न्योछावर करना। तब क्या हो जब बीच में परिवार या धर्म आ जाए। इसको भी सुरेश जी ने बेहद ही शानदार तरीके से बताया है की देश सर्वोपरि है। देशप्रेम के स्थान को परिवार, प्यार, धर्म, कोई कीमती चीज भी जगह नहीं ले सकती। देश की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है जो देश को नुकसान पहुंचाती है। किंतु देश के मतवाले, जिनके हृदय में देश प्रेम बसा है तब तक देश को कोई बाल बराबर भी नुकसान नही पहुंचा सकता। 
     मैने सुरेश जी के कई नाॅवल पढ़े है। उनके दिल में उतरने वाले डायलॉग, बेहद सरल प्रकार से कहानी को बयां करना, और हृदय को स्पर्श करके रुलाते हुए कहानी को बयां करने का अपना ही अलग फन है। एक वक्त था जब अधिकतर सामाजिक नाॅवल का बोलबाला था। जिसे पढ़कर पाठक मनोरंजन के साथ समाज के बहुत से पहलू सीखता था। उसके बाद मर्डर मिस्ट्री और जासूसी नाॅवल ने ले ली। धीरे धीरे सामाजिक नाॅवल कम होते चले गे।
       फिर आ गया मोबाइल। ये पता नही कौनसी जेनर का है। इसके बाद तो नाॅवल का दौर जैसे खत्म हो गया। किंतु मोबाइल कहां तक किताबी दुनिया को रोक सकता था। धीरे धीरे किताबी युग पुनः वापस आया किंतु कुछ एक जेनर के रूप में।
      सुरेश जी ने उसी युग को जिंदा रखने के लिए सामाजिक, थ्रिल, रोमांस जेनर को ही चुना। वैसे सुरेश जी कहते हैं वे किसी एक जेनर में बंधना नही चाहते। समय समय पर प्रत्येक जेनर पर लिखेंगे।
नाॅवल में अनेक भावुक कथन हैं,  समीक्षा लंबी होने के डर से कुछ कथन पेश हैं
- जब एक आतंकवादी मुखिया से कहता है "तुम हमारा साथ दो हम कश्मीर और मुसलमानों को आजाद कराएंगे"
मुखिया कहता है, "जब पूरा भारत आजाद है तो कश्मीर कैसे गुलाम रहा। हमारा कश्मीर दिल है हिंदुस्तान का। रही बात मुसलमानों की, जितना अधिकार हिंदुओं को है उतने ही हक यहां पर मुसलमानों को है। और तुम कहते हो मुसलमान गुलाम है।"
    एक दृश्य में सलीम शबनम से कहता है मुझे फौज में जाना है तब शबनम कहती है, "पुरखों की इतनी बड़ी संपत्ति तुम्हारे पास है।  वैसे भी तुम इकलौती औलाद हो।"
तब सलीम नफरत से कहता है, "यह तुम्हे याद रहा लेकिन देश के लिए मेरा फर्ज क्या है तुम्हे याद नही। हजारों ऐसे युवक है जो अपने माता पिता की इकलौती औलाद होने के बावजूद फौज में हैं।"
     सलीम फौज की छुट्टी पर आया था। तभी सरहद पर हमला हो जाता है। वह जाने का निश्चय करता है। मुखिया के मना करने के बावजूद वह कहता है, "जब घर पर दुश्मनों ने हमला बोल दिया हो , तब क्या आराम से बैठे रहना ठीक होगा।"
      नाॅवल की कहानी भारत की सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद पर है। कहानी कश्मीर की पृष्ठ भूमि से शुरू होती है। दस साल पहले मुखिया रमजान अली की हवेली में कुछ आतंकवादी घुस आते हैं और कश्मीर को आजाद कराने के लिए उसे भी अपने साथ मिलने की बात करते हैं। मुखिया को अपने देश से गद्दारी कुबूल न थी। इसलिए आंतकवादी मुखिया के बेटे और बेटी को मार देते हैं । उनका बेटा सलीम जवान हो चुका है। जिसके लिए एक सुंदर लड़की शबनम का चुनाव किया जाता है। जबकि शबनम को अपनी बहु अमजद बनाना चाहता था । इस बीच कुछ आतंकवादी सलीम से मिलते हैं और उसे अपने साथ मिलाने की बात करते हैं। सलीम देश प्रेम की खातिर फौजी बन जाता है। उधर अमजद आतंकवादी बन जाता है। कहानी मोड़ लेते हुए बढ़ती जाती है।अनेकों सवाल जैसे
आतंकवादी सलीम से क्या चाहते थे?
क्या सलीम देश प्रेम से डिगा?
क्या उसकी शादी शबनम से हो सकी?
अमजद ने शबनम को पाने के लिए क्या किया?
अमजद आतंकवादी क्यों और कैसे बना?
एक समय ऐसा भी आया जब उसे देश चुनना था या परिवार,
सलीम ने देश के लिए क्या किया?
क्या उसने देश को चुना या परिवार को?
जब शबनम को पता लगा सलीम उससे ज्यादा देश को प्यार करता है तो क्या हुआ?
क्या शबनम ने शादी से इंकार किया?
बहुत से सवाल, जिनका जवाब देशभक्ति से ओत प्रोत  नाॅवल बवंडर में मिलेंगे।
सुरेश जी को ढेरों शुभकामनाएं।
.......
बवण्डर- सुरेश चौधरी
समीक्षक- दिलशाद अली 

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