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मंगलवार, 18 जून 2024

कानून का पाण्डव, करेगा ताण्डव- केशव पण्डित, उपन्यास अंश

 साहित्य देश के लोकप्रिय स्तम्भ 'उपन्यास अंश' में इस बार पढें चर्चित उपन्यासकार केशव पण्डित का दहकते शोले सा उपन्यास 'कानून का पाण्डव करेगा ताण्डव' का एक रोचक अंश ।
"मुझे सबसे बड़ा अफसोस तो मिस्टर केशव पण्डित पर हो रहा है योर ऑनर ! मिस्टर पण्डित ने अपनी जिन्दगी में मुजरिमों के खिलाफ केस लड़े तो उन्हें मुजरिम साबित करके सजा दिलवाई। किसी निर्दोष की पैरवी की तो उसे निर्दोष साबित करके बा-इज्जत बरी कराया। यानि इन्होंने हमेशा कानून की मदद की। इन्साफ के इस मन्दिर में मुजरिमों को सजा और मजलूमों को इन्साफ ही दिलवाया। कभी भी किसी मुजरिम को बचाने और मजलूम या निर्दोष को फंसाने की चेष्टा नहीं की। इन्हें जब पूरा विश्वास हो गया कि इनका मुवक्किल सच्चा और निर्दोष है, तभी उसे अपना मुवक्किल बनाया और मुजरिम को सजा दिलवाकर उसे इन्साफ दिलवाया। लेकिन...।"
          अधेड़ व अधगंजे सरकारी वकील कालीचरण वर्मा ने अपनी वाणी को अल्प-विराम दिया, फिर कठघरे में मुल्जिम के रूप में खड़े दढ़ियल युवक को घृणा भरी नजरों से देखा, फिर न्याय की कुर्सी पर विराजमान जज महोदय से सम्बोधित होकर बोला "... लेकिन इस बार मिस्टर पण्डित कैसे गच्चा खा गये... मेरी समझ से परे की बात है। मैं ये इल्जाम भी नहीं लगा सकता कि मिस्टर पण्डित ने जानबूझकर एक मुजरिम को बचाने के लिये ये केस अपने हाथ में लिया। क्योंकि मुजरिम मजनूं एक टैक्सी ड्राइवर है, जो कि स्वयं को बचाने के लिये बहुत मोटी रकम खर्च नहीं कर सकता। मिस्टर पण्डित लाख-दो लाख रुपयों के लिये तो अपना ईमान नहीं बेचेंगे... अपने जमीर का गला नहीं घोटेंगे। मुजरिम कोई बड़ी हस्ती होता तो सोचा भी जा सकता था कि मिस्टर पण्डित ने मोटी रकम के लालच में एक मुजरिम को निर्दोष साबित करने को ये केस ले लिया। वैसे भी मिस्टर पण्डित की सच्चे और ईमानदार वकील की छवि है। इनसे ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती कि ये कानून और अदालत को भ्रमित करके इन्साफ का गला घोंटने की चेष्टा करेंगे...।"
"आप कहना क्या चाहते हैं मिस्टर वर्मा...?" भीनी-भीनी मुस्कान के साथ पूछा जज महोदय ने।
"यही कि जिन्दगी में पहली मर्तबा मिस्टर पण्डित से गलती हो गई है। शायद मुजरिम इनके सामने रोया-गिड़गिड़ाया होगा झूठी कसमें खाकर स्वयं को निर्दोष बतलाया होगा और मिस्टर पण्डित भावनाओं में बह गये होंगे। एक मुजरिम को निर्दोष समझकर इन्होंने उसकी पैरवी करने की गलती कर डाली। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मिस्टर पण्डित अपनी जिन्दगी में पहली बार कोई केस हारेंगे। इनके लगातार जीतने का रिकॉर्ड टूटेगा। इनकी वो काबिलियत धूल में मिल जाने वाली है, जिसके कारण लोग इन्हें दिमाग का जादूगर कहते हैं। मुझे इनके हारने का अफसोस तो है ही, लेकिन इस बात पर गर्व भी महसूस हो रहा है कि दिमाग के जादूगर को शिकस्त देने का श्रेय मुझे मिलेगा। क्योंकि आज ही मैं ये साबित कर दूंगा कि कठघरे में खड़े मजनूं नाम के इस भोले-भाले नजर आने वाले हैवान ने ही सलोनी का कत्ल करके मेरे मुवक्किल मिस्टर प्रकाश की दुनिया उजाड़ डाली है...।" 
"नहीं... मैं बेकसूर हूं... निर्दोष हूं...।" मुजरिमों वाले कठघरे में खड़ा दढ़ियल युवक आर्तनाद-सा कर उठा, "... सलोनी भाभी का जब कत्ल हुआ तो मैं मौहल्ले में ही नहीं था। मेरे दोस्त चन्दू का फोन आ गया था कि उसको तेज बुखार है। मैं शाम सात बजे ही अपनी टैक्सी से चन्दू के घर पहुंच गया था। चन्दू उल्लास नगर में रहता है, जो कि मेरे मौहल्ले लक्ष्मीनगर से दस किलोमीटर दूर है। घर से छह बजे चलकर सात बजे चन्दू के घर पहुंचा था और सुबह सात बजे तक वहीं रहा था। चन्दू मुझसे बोला था कि मैं इसके घर पर ही सो जाऊं। मैं वहीं सो गया था। सुबह मैंने चाय के साथ नमक के जवे बनाये थे और चन्दू के साथ नाश्ता किया था। फिर अपने घर पहुंचा तो पुलिस ने मुझे पकड़ लिया था। मैं नहीं जानता कि सलोनी भाभी को किसने मारा था लेकिन मैंने नहीं मारा था। मुझे बाद में पता चला कि सलोनी भाभी को रात नौ बजे जलाया गया था और हॉस्पिटल पहुंचते ही उसके प्राण निकल गये थे। तब मैं चन्दू के घर पर था और सोने के लिये लेट गया था...।"
“तुम क्या समझते हो कि पुलिस वाले बावले हैं...?" कालीचरण वर्मा झपटकर मजनूं के करीब पहुंचा और कठघरे के ऊपरी हिस्से को पकड़कर क्रोधित भाव से चींख-चींखकर बोला, "... या उनकी तुमसे कोई दुश्मनी थी कि नाहक ही तुम्हें सलोनी के कत्ल में गिरफ्तार करके पुलिस स्टेशन ले गये थे ? तुम्हें सलोनी या मेरे मुवक्किल मिस्टर प्रकाश के घर में जाते और खिड़की से कूदकर पीछे की गली से भागते देखा गया था। पूछताछ में पुलिस को मालूम पड़ा था कि सलोनी को जलाकर मारने वाले तुम हो। कुछ पुलिस वाले तुम्हारी तलाश में निकल पड़े थे और दो कांस्टेबिल तुम्हारे घर पर तैनात कर दिये गये...।"
"अगर मैं कातिल होता तो वापिस लौटकर अपने घर क्यों जाता...?" 
"हरेक मुजरिम वारदात करने पर घटनास्थल पर वापिस लौटकर जाता है ये जानने के लिये कि... क्या हो रहा है? अपनी समझ में तो तुम्हें किसी ने मिस्टर प्रकाश के घर में जाते हुये और खिड़की से कूदकर भागते हुये नहीं देखा था। लेकिन तुम गलतफहमी के शिकार थे। इसीलिये अपने घर जाने की गलती की और पकड़े गये थे।"
"मैं बेकसूर हूं... निर्दोष हूं...।"
"हर मुजरिम यही कहता है। कौन मुजरिम कहेगा कि उसने जुर्म किया है? अदालत में आकर सभी मुकर जाते हैं वरना तुमने पुलिस स्टेशन में इकबाले-जुर्म किया था। लिखित में बयान दिया था कि तुमने ही सलोनी पर मिट्टी का तेल यानि कैरोसिन डाला था और माचिस से आग लगा दी थी।"
"ये झूठ है...।"
"ये सच है...।" कालीचरण वर्मा कठघरे के हत्थे पर दोनों हथेलियां मारकर हाथी-सा चिंघाड़ा, "... तभी कैरोसिन की जरीकेन और माचिस की डिबिया पर तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स पाये गये हैं। इतना ही नहीं, घटनास्थल पर तुम्हारे जूतों के निशान भी पाये गये थे, जिन्हें कानून की भाषा में फुटमार्क्स भी कहा जाता है। फुटमार्क्स के मुताबिक तुम मिस्टर प्रकाश के घर में मेन गेट से गये थे, और पीछे की खिड़की से कूदकर पीछे वाली गली से भागे थे। तुमने सोच-समझकर और प्रि-प्लॉन ये मर्डर किया था। अपनी टैक्सी को पहले ही मौहल्ले से बाहर कहीं खड़ा किया हुआ था जिसमें बैठकर फरार हो गये थे...।"
"ये झूठ है। मैं अपनी टैक्सी से शाम छह बजे ही अपने दोस्त चन्दू के घर चला गया था। फिर वहां से सुबह ही वापिस लौटा था...।"
"और लौटते ही गिरफ्तार हो गये थे...।" व्यंग्पूर्ण भाव से बोला कालीचरण वर्मा, "...क्योंकि पुलिस वालों की तुमसे दुश्मनी जो थी... मौहल्ले के उन लोगों की भी तुमसे दुश्मनी थी, जिन्होंने तुम्हारे खिलाफ गवाही दी।"
"हां, दुश्मनी ही होगी...।" चींख-सा उठा मजनूं, “तभी तो सभी ने मेरे खिलाफ झूठी गवाही दी...।"
"और केरोसिन वाली केन, माचिस पर मिले तुम्हारे फिंगर प्रिंट्स ? मिस्टर प्रकाश के घर में पाये गये तुम्हारे जूतों के निशान ? पुलिस ने तुम्हारे जूतों को चैक करवाया था। उनके सोल पर मिस्टर प्रकाश के घर की मिट्टी, कैरोसिन के अंश पाये गये और जूतों के सोल थोड़े जले हुये भी थे। एक्सपर्ट की रिपोर्ट के मुताबिक उन्हीं जूतों के फुटमार्क्स मिस्टर प्रकाश के घर पर पाये गये थे।"
"मैं... मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता...।" 
"जानते तो हो प्यारे लेकिन मासूम बनकर दिखला रहे हो...।" 
"भ... भला मैं सलोनी भाभी की जान क्यों लूंगा? मेरी उनसे दुश्मनी थी क्या? कोई किसी को खामख्वाह क्यों मारेगा ?"
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मजनूं पर व्यंगभरी मुस्कान उछालने पर बोला कालीचरण वर्मा “ये तुम पूछ रहे हो कि तुम्हारी सलोनी के साथ क्या दुश्मनी थी? तुम्हारी याददाश्त के बाजे तो नहीं बज गये हैं? या मासूम बनकर दिखला रहे हो? एक दिन तुमने सलोनी का रास्ता रोक लिया था। उससे बोले थे कि वो कभी मां नहीं बन सकेगी क्योंकि उसका पति नपुंसक है। उसे किसी दूसरे मर्द के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाना होगा। तुम सलोनी से बोले थे कि वो बला की खूबसूरत है और तुम उसके साथ मुहब्बत का रिश्ता बनाना चाहते हो। तुम उसके पति से भी बढ़कर प्यार दोगे और उसे महंगे-महंगे तोहफे दोगे अपनी सारी कमाई उसके हवाले कर दिया करोगे। पतिव्रता और चरित्रवान सलोनी का मारे क्रोध के बुरा हाल हो गया था। पहले तुम्हें खूब खरी-खोटी सुनाई थी और फिर पैर से चप्पल निकालकर तुम्हारी खूब पिटाई की थी। तुम्हारी करतूत सुनकर आस-पड़ोस वालों ने भी तुम्हें भला-बुरा कहा था और पिटाई भी की थी। तुमने सलोनी को धमकी दी थी कि अपनी बेइज्जती का बदला लोगे और उसे ऐसा सबक सिखलाओगे कि वो याद रखेगी। क्या मैं झूठ बोला हूं? क्या ऐसा नहीं हुआ था ?"
मजनूं का सिर थोड़ी देर के लिये झुक गया, फिर ऊपर हुआ तो चेहरे पर कसमसाहट और आंखों में शर्मिन्दगी के भाव थे।
"हां, ये सच है वकील साहब। सलोनी भाभी मां नहीं बन पा रही थी और ये प्रकाश उसके साथ झगड़ा किया करता था बांझ बोलकर हाथ भी उठा देता था। जबकि मैं मन ही मन सोचा करता था कि अगर मुझे सलोनी भाभी जैसी खूबसूरत बीवी मिली होती तो उसे पलकों पर बिठाकर रखता। उस दिन टैक्सी वालों की हड़ताल थी। इस चन्दू ने जिद करके मुझे शराब पिला दी थी। पहली बार पी थी तो खुद पर कन्ट्रोल नहीं कर पा रहा था। सलोनी भाभी सामने पड़ी थी तो नशे में ना जाने क्या-क्या बक गया था। चूंकि सलोनी भाभी ने मुझे चप्पल से पीटा था तो ऐसे ही क्रोध में आकर बदला लेने की बात बोल डाली थी। लेकिन नशा उतरने पर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ था और मैंने सलोनी भाभी से क्षमा मांगी थी...।"
"लेकिन सलोनी ने तुम्हें माफ नहीं किया था और दुत्कारते हुये बोल दिया था कि आईन्दा उसके सामने आने की जुर्रत मत करना। क्यों... ठीक है ना...?"
मजनूं ने चुपचाप आंखें झुका लीं।
"योर ऑनर...।" कालीचरण वर्मा जज महोदय की तरफ घूमकर पूरे जोशो-खरोश में बोला, "... मजनूं को अपने किये पर कोई पछतावा नहीं था ये सिर्फ नाटक करने के लिये ही सलोनी के पास गया था। लेकिन सलोनी ने इसे दुत्कार कर भगा दिया था तो इसके क्रोध की अग्नि में इन्तकाम का पैट्रोल पड़ गया था। ये सलोनी से इन्तकाम लेने को मरा जा रहा था। इसे इन्तकाम लेने का मौका चौदह अगस्त, रविवार के दिन मिला। ये पांच लीटर वाली जरीकेन में मिट्टी का तेल भरकर सलोनी के पास पहुंचा। मैं ये भी बतला दूं कि सलोनी के पति, यानि मेरे मुवक्किल मिस्टर प्रकाश अपने गांव हरिपुर गये हुये थे अपनी बीमार मां को देखने के लिये। ये अपनी कार से सुबह-सवेरे ही निकल गये थे। ये बात मौहल्ले वालों को पता थी ही मजनूं को भी मालूम थी। मिस्टर प्रकाश ने ही बतलाई थी। मैं बतला दूं कि मजनूं ने मिस्टर प्रकाश से पैर पकड़कर माफी मांग ली थी तो मिस्टर प्रकाश ने मजनूं को माफ कर दिया था। आमना-सामना होने पर मजनूं से हाल-चाल भी पूछ लिया करते थे। जब ये कार में सवार होकर चले तो मजनूं ने पूछ लिया था कि कहां जा रहे हो? मिस्टर प्रकाश ने बतला दिया था कि बीमार मां को देखने गांव जा रहे हैं और रात तक ही वापसी होगी। मजनूं को उस दिन सलोनी से इन्तकाम लेने का मौका मिल गया और इसने इन्तकाम लिया भी था...।"
"नहीं। मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया था... मैं निर्दोष हूं। पण्डित
जी... मैं आपको सारी बातें बतला चुका हूं। फिर आपने छानबीन भी की होगी। आपको जब विश्वास हो गया होगा कि मैं निर्दोष हूं तो ही आपने मेरा केस लिया होगा। आप किसी मुजरिम की वकालत तो कर ही नहीं सकते। फिर आप खामोश क्यों बैठे हैं? सरकारी वकील साहब मुझ पर इल्जाम लगाये जा रहे हैं और आप हैं कि कुछ बोल ही नहीं रहे हैं। आपकी खामोशी तो मुझे मरवा देगी। ये वकील साहब मेरे निर्दोष होते हुये भी मुझे सलोनी भाभी का कातिल साबित कर देंगे। अगर आपको कुछ बोलना ही नहीं था तो फिर मेरी पैरवी करने के लिये तैयार क्यों हुये थे आप...?" 
"कभी-कभार होशियार और चतुर आदमी से भी मिस्टेक हो जाती है मियां मजनूं। मैंने थोड़ी देर पहले कहा भी था कि इस बार मिस्टर पण्डित गच्चा खा गये। तुम्हारे घड़ियाली आंसू देख ये पिघल गये लेकिन बाद में इन्हें लगा कि इनसे गलती हो गई और ये एक मुजरिम के वकील बन गये हैं। यही वजह है कि ये बेचारे गूंगी का गुड़ खाये बैठे हैं। क्यों मिस्टर पण्डित... ठीक कहा ना मैंने...?"
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दिमाग का जादूगर 'केशव पण्डित' कोई मुकदमा लड़े और भीड़ ना हो, ये तो हो ही नहीं सकता। अदालत कक्ष खचाखच भरा हुआ था। सभी सीटें फुल हो जाने पर लोग-बाग खड़े थे और तिल रखने की भी जगह नहीं बची थी।
दर्शकों में कई तो जज और वकील थे। जो कि केशव के कानूनी दांव-पेंच देखने व सुनने के लिये आये हुये थे।
केशव के 'अपने' भी उपस्थित थे, जिनमें केशव की धर्मपत्नी सोफिया, केशव का असिस्टेंट नम्बर वन राजन शुक्ला और उसकी धर्मपत्नी चांदनी, केशव का ड्राइवर-कम-असिस्टेंट करतार सिंह, केशव की नई असिस्टेंट श्वेता गुप्ता, केशव के गुरु रमाकान्त और उसकी बेटी माधवी चोपड़ा, केशव का नौकर मुंशी उर्फ होशियारचन्द भी उपस्थित था।
लगभग सत्तर वर्षीय रमाकान्त वकील था और कानून की डिग्री हासिल करने पर केशव उसका असिस्टेंट बना था, उससे अदालत में इस्तेमाल होने वाले कानून के दांव-पेंच सीखे थे। बाद में रमाकान्त अपने गृहनगर दिल्ली चला गया था। फिर उसकी बेटी माधवी मुम्बई में आकर सर्विस करने लगी थी। रमाकान्त के बीमार होने पर वो उसे मुम्बई ले आई थी। केशव ने अपने गुरु को देखा तो उसे हॉस्पिटल से बढ़िया नर्सिंग होम में ले गया था और उसके स्वस्थ होने पर अपने घर ले गया था। पत्रकारिता का डिप्लोमा हासिल कर चुकी माधवी को केशव ने अपनी धर्मबहन बनाया और उसे न्यूज चैनल इन्डिया टी०वी० की रिपोर्टर बनवा दिया था। माधवी को चैनल वालों ने फ्लैट दिया तो वह रमाकान्त के साथ अपने फ्लैट में रहने लगी।
लगभग छत्तीस वर्षीय, लम्बा व तन्दुरुस्त राजन शुक्ला हैन्डसम और स्मार्ट युवक है। वो अपनी खूबसूरत धर्मपत्नी चांदनी के साथ केशव के बंगले में ही फैमली मेम्बर की तरह ही रहता है। राजन ने वकालत पास की हुई है और केशव के सान्निध्य में वकालत के साथ-साथ जासूसी के गुर भी सीख लिये हैं।
लगभग बयालीस वर्षीय, लम्बा व हट्टा-कट्टा करतार सिंह पटियाला निवासी है। वो बतौर ड्राइवर केशव के यहां आया था। लेकिन फिर वो कानून व जासूसी के काफी दांव-पेंच सीखकर केशव का असिस्टेंट नम्बर टू बन गया है। लेकिन वो केशव, सोफिया और उनके बेटे आशीर्वाद पण्डित के कई बार जिद करने पर भी उनके साथ ना रहकर किराये के मकान में रहता है। उसके बीवी-बच्चे एक बम धमाके में मारे गये थे और उसका मानना है कि किराये के उस मकान में उसके बीवी-बच्चों की आत्मायें वास करती हैं।
           केशव की नई असिस्टेंट श्वेता गुप्ता पचीस वर्षीय, सांवली-सलोनी युवती है, जिसने एल०एल०बी० पास करके लॉ की डिग्री हासिल की है। उसका पिता सफेदपोश मुजरिम था और उसके मंगेतर का कातिल भी उसने केशव की मदद से अपने पिता को फांसी की सजा दिलवाई थी और उसका घर छोड़ने के साथ-साथ उसकी धन-सम्पत्ति को भी ठोकर मार दी थी। ये बात दूसरी है कि बाद में उसके नाना दिल्ली में उसके लिये करोड़ों की जमीन-जायदाद व नकदी छोड़ गये थे लेकिन वो केशव पण्डित के घर में ही रहती है और उससे कानून व जासूसी के दांव-पेंच सीख रही है।
           केशव का कोई तीस वर्षीय, पतला दुबला, लम्बे बालों वाला नौकर मुंशी, जिसका कहना है कि उसकी होशियारी के गांव और इलाके के लोग कायल थे और समस्या के निवारण हेतु उससे सलाह लेने आया करते थे और उसे होशियारचन्द कहने लगे थे। बाद में वो मुम्बई आ गया था और कुकिंग का काम सीखकर कुशल रसोइया बन गया था। इधर-उधर नौकरी करने पर वो आजकल केशव के यहां काम कर रहा है। कभी-कभार कोई मुसीबत का मारा मुंशी से सलाह लेने आ जाता है और मुंशी उसे अपनी समझ में बढ़िया प्लान भी देता है, लेकिन दुर्भाग्य से कोई ना कोई गड़बड़ी हो जाती है और प्लान पिट जाता है। खैर, अब बात करते हैं केशव पण्डित की धर्मपत्नी सोफिया की
गोरी-चिटट्टी तथा पन्ना-सी हरी आंखों वाली सोफिया ने भी केशव के साथ लंदन में कानून की पढ़ाई पढ़कर एल०एल०बी० की डिग्री ली हुई है। लंदन में ही सोफिया और केशव के बीच मुहब्बत हुई और कानून की डिग्री लेने पर दोनों ने शादी कर ली थी। स्वर्ग की अप्सरा-सी खूबसूरत सोफिया को देखकर कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि वो पन्द्रह वर्षीय आशीर्वाद पण्डित की मां होगी।
केशव पण्डित चालीस वर्षीय, पांच फुट ग्यारह इंच के कद वाला गोरा-चिट्टा व तन्दुरुस्त युवक, जो कि तीस वर्ष से ज्यादा का नहीं लगता। झील-सी नीली आंखें जिनमें गंगाजल सी शुद्धता, सूर्य-सा तेज और उस्तरे की धार-सा पैनापन भी है। हल्के सुनहरे रंग के अर्ध घुंघराले बाल । चेन स्मोकर चारमीनार के ब्राण्ड वाली सिगरेट का शौकीन लेकिन धूम्रपान करते रहने पर भी 'पट्ठे' के होंठ गुलाबी रंगत वाले हैं।
          सफेद पैन्ट व सफेद शर्ट और सफेद 'बो' के ऊपर पहने काले कोट की आस्तीनों से झांकती गोल-मटोल कलाइयों पर हल्के सुनहरे रंग के बालों के गुच्छे बायीं कलाई पर राडो की रिस्टवाच तो दायीं कलाई पर नन्हें-नन्हें हीरे जड़ित सोने का खूबसूरत ब्रेसलेट ।
          हाथों की तीन-तीन मोटी-मोटी उंगलियों में बेशकीमती नगीनों वाली अंगूठियां गले में 'ॐ' के पेन्डेट वाली सोने की मोटी चेन।
       पैरों में चमचमाते काले रंग के लैदर शूज । कुल मिलाकर किसी को भी आकर्षित कर लेने वाला सुदर्शन व्यक्तित्व ।
दिमाग का जादूगर ! कानून का पण्डित !
मजलूमों का मददगार तो मुजरिमों व देश के दुश्मनों के लिये यमदूत... केशव पण्डित !
।।।।।

"वर्मा जी...!" राजन, करतार सिंह व श्वेता गुप्ता के साथ सबसे अगली कतार में बैठा केशव उठा और मुस्कराते हुये बोला "ये तो आप ठीक बोले कि होशियार और चतुर आदमी से भी मिस्टेक हो जाती है लेकिन वो चतुर और होशियार आदमी आप हैं। मुझे ऐसा लगता है कि आपने सिर्फ पुलिस द्वारा तैयार की गई फाइल को ही पढ़ा और देखा... वो भी सरसरी तौर पर, जबकि आपको अपनी तरफ से भी थोड़ी छानबीन कर लेनी चाहिये थी।"
"मैं कोई अनाड़ी नही हूं मिस्टर पण्डित...।" कालीचरण वर्मा थोड़ा चिढ़कर बोला, "... वकालत का पचीस साल से भी ज्यादा का एक्सपीरियंस है मुझे। अदालत में कई मुकदमों की पैरवी की है, घास नहीं काटी... झक नहीं मारी है।"
“तभी ये दावा कर दिया कि मैंने एक मुजरिम को बचाने के लिये ये केस पकड़ लिया है ?" केशव ने टोंट कसा। "तो मैंने क्या गलत बोल दिया भला? ये केस तो दर्पण की तरह एकदम साफ है। कोई अनाड़ी भी ये दावा कर देगा कि मजनूं ही सलोनी का कातिल है। इस बात का अहसास बाद में आपको भी हो गया। तभी तो चुपचाप बैठे हुये थे। मैंने टोक दिया तो उठ खड़े हुये...।"
"गलतफहमी की किश्ती में सवार हैं आप वर्मा जी। मैं अगर खामोशी की चादर ओढ़े बैठा था तो इसलिये नहीं कि मैं ये अफसोस मना रहा था कि मैंने गलती से गलत केस पकड़ लिया है...।"
"तो फिर खामोशी की वजह क्या थी ?"
"पानी की गहराई नाप रहा था...।"
"पानी की गहराई... क्या मतलब...?"
            केशव चन्द कदम चलकर कालीचरण वर्मा के करीब पहुंचा और उसकी भूरी आंखों में झांकते हुये बोला “मतलब ये वर्मा जी कि कोई कितना भी कुशल तैराक क्यों ना हो... उसे पानी की गहराई नाप लेनी चाहिये। रिंग में उतरने से पहले सामने वाले खिलाड़ी की ताकत को अनुभव के तराजू पर तौल लेना चाहिये। मैं बे-मतलब की बहस में पड़ना पसन्द नहीं करता। आप मेरे मुवक्किल मजनूं को मुजरिम करार दे रहे थे। मैं उठकर कहता कि मेरा मुवक्किल निर्दोष है और वो सलोनी का कातिल नहीं है। आप चींखते कि... नहीं, मजनूं ही कातिल है। मैं प्रतिवाद करता । ये बेमतलब की ही बहस होती।"
“तो क्या आपके खामोश बैठे रहने से आपका मुवक्किल निर्दोष साबित हो जायेगा...?"
"आप मेरी खामोशी का गलत मतलब निकाल रहे हैं वर्मा जी। खामोशी का मतलब पराजय स्वीकार कर लेना कतई नहीं होता। मैं तो आपको बोलने का... अपनी बात रखने का अवसर प्रदान कर रहा था। हर किसी का अपना-अपना तरीका होता है। कोई मैदान में उतरते ही हथियार भांजने लगता है तो कोई जब तक जरूरत ना हो, शान्त रहकर अपनी शक्ति बचाये रखता है। वैसे भी आप जोश में और जल्दबाजी में लगते हैं...।"
“मैं आत्मविश्वास के कारण उत्साह में हूं मिस्टर पण्डित। मुझे मजनूं को सोनाली का कातिल साबित करने में कोई दिक्कत या परेशानी नहीं होने वाली। मजनूं को मुजरिम साबित करना मेरे लिये मक्खन में से बाल निकालने जैसा ही आसान होगा। आपके पास कुछ करने या कहने के लिये कुछ नहीं है। 
        हां, औपचारिकता के लिये और अपने मुवक्किल की फीस का हक अदा करने के लिये यूं ही कहेंगे कि आपका मुवक्किल निर्दोष है... मजनूं ने सोनाली को नहीं मारा था। मजनूं की पैरवी कर रहे हैं तो कुछ ना कुछ तो बोलना पड़ेगा ही, लेकिन फायदा कुछ भी नहीं होने वाला। आप अपनी जिन्दगी में पहली बार शिकस्त का कड़वा स्वाद चखने जा रहे हैं। आपने अपनी शिकस्त को महसूस भी कर लिया होगा...।"
"आपने तो कोई चश्मा भी नहीं लगाया हुआ है वर्मा जी फिर भी आपको अंधेरे में जीत का तिनका नजर आ रहा है। आप भ्रम के शिकार हैं और दूर से रेत के मैदान को देखकर उसे पानी की झील समझ रहे हैं...।"
"आपको कुछ ना कुछ तो बोलना ही है। कोई भी अपने गुड़ को फीका नहीं बतलाता। अफसोस कि आपने तो गुड़ के भ्रम में मिट्टी का ढेला उठाया हुआ है...।"
"नहीं, प्योर और चौबीस कैरेट का गुड़ ही है मेरे पास...।" मुस्कराकर बोला केशव, "... खजूर-सा मीठा और कलाकन्द-सा स्वादिष्ट । थोड़ा इन्तजार तो कीजिये... आपको चखाऊंगा। लेकिन इस बात की गारन्टी नहीं कि आपको मीठा और स्वादिष्ट लगेगा। क्योंकि शिकस्त का अहसास जुबान का स्वाद बिगाड़ देता है।"
"शिकस्त... और मेरी...!" बुरा-सा मुंह बनाकर बोला कालीचरण वर्मा, "... जागती आंखों से ख्वाब देख रहे हैं आप मिस्टर पण्डित...।"
"मैं जागती आंखों से ख्वाब भी देखता हूं और ख्वाब को हकीकत का जामा पहनाने की कुब्बत भी रखता हूं। दावा करने की जरूरत नहीं है मुझे। क्योंकि हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या? कौन-सा ज्यादा वक्त लगने वाला है। थोड़ी देर में ही रिजल्ट सामने आ जायेगा...।" 
"जो कि आपके और आपके मुवक्किल के खिलाफ जायेगा...।" "ये भी थोड़ी देर में मालूम पड़ जायेगा कि निर्णय किसके पक्ष में जायेगा। इस तरह की बहस करने से कोई फायदा नहीं क्योंकि माननीय जज साहब को हमारी मुंह जुबानी जंग के आधार पर निर्णय नहीं करना है। वो गवाहों और सबूतों के आधार पर ही निर्णय करेंगे...।"
"और गवाह, सबूत आपके मुवक्किल मजनूं के खिलाफ हैं मिस्टर पण्डित । चार्जशीट के साथ सबूत और सभी गवाहों के बयान माननीय जज साहब के पास पहुंचा दिये गये हैं। अब तो बस खानापूर्ति ही करनी है... औपचारिकता ही निभानी भर है...।"
"गलतफहमी के कुओं से बाहर निकलकर हकीकत की जमीन पर पैर टिकाइये वर्मा जी। जब किसी मुल्जिम को अदालत में पेश किया जाता है तो साथ में गवाहों के बयान और सबूत भी पेश किये जाते हैं। लेकिन इससे केस की इतिश्री नहीं हो जाती और अदालत अपना निर्णय नहीं सुना देती। अगर ऐसा होता तो फिर हम वकीलों की आवश्यकता ही क्या थी भला? वकीलों के माध्यम से ही सबूतों और गवाहों को चैक किया जाता है और फिर जो हकीकत सामने आती है, उसके आधार पर ही निर्णय सुनाया जाता है।"
"चलो, यूं ही सही...।" व्यंग्यभरे भाव से बोला कालीचरण वर्मा, "...आप साबित कर दीजिये कि सारे गवाह और सबूत झूठे हैं। साबित करके दिखलाइये कि आपका मुवक्किल निर्दोष है। मेरा दावा है कि आपके सारे प्रयास फेल हो जायेंगे। मजनूं सलोनी का कातिल है और उसे सजा होकर रहेगी ही रहेगी...।"
"पहले ठीक से मालूम तो पड़े कि मेरे मुवक्किल को किस आधार पर मुजरिम बतलाया जा रहा है? कौन से सबूत और कौन से गवाह हैं? पहले आप अपनी पोटली खोलकर अपना माल दिखलाइये फिर मैं साबित करूंगा कि आपका माल नकली है। जिसे आप खरा सोना बतला रहे हैं, उसे हकीकत की कसौटी पर कसकर नकली साबित करना मेरा काम है। पहला चांस आपका। बताइये कि आप किसी आधार पर मेरे मुवक्किल को सलोनी का कातिल ठहरा रहे हैं...?"

  

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